जय सांई राम।।।
नाम से भगवान् का वश में होना
ऋणमेतत्प्रवृद्धं मे हृदयान्नापसर्पति। यद् गोविन्देति चुक्रोश कृष्णा मां दूरवासिनम्॥
(महाभारत)
द्रुपदकुमारी कृष्णा ने कौरवसभा में वस्त्र खींचे जाते समय जो मुझ दूरवासी (द्वारकानिवासी) श्रीकृष्ण को गोविन्द कहकर पुकारा था, उसका यह ऋण मुझपर बहुत बढ़ गया है। यह हृदय से कभी दूर नहीं होता।
गीत्वा च मम नामानि नर्तयेन्मम संनिधौ। इदं ब्रवीमि ते सत्यं क्रीतोऽहं तेन चार्जुन॥
अर्जुन! जो मेरे नामों का गान करके मेरे निकट नाचने लगता है, उसने मुझे खरीद लिया है-यह मैं तुमसे सच्ची बात करता हूँ।
गीत्वा च मम नामानि रुदन्ति मम संनिधौ। तेषामहं परिक्रीतो नान्यक्रीतो जनार्दन:॥
(आदिपुराण)
जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है।
जितं तेन जितं तेन जितं तेनेति निश्चितम्। जिह्वाग्रे वर्तते यस्य हरिरित्यक्षरद्वयम्॥
जिसकी जिह्वा के अग्रभाग पर हरि-ये दो अक्षर विद्यमान हैं, उसकी जीत हो गयी, उसने विजय पा ली, निश्चय ही उसकी विजय हो गयी।
ॐ सांई राम।।।