ॐ साईं नाथाय नमः
जिस प्रकार वायुके द्वारा उडके जानेवाला गंध आपने आश्रय पुष्पसे घ्राणेन्द्रीयतक पहुँच जाता है, उसी प्रकार भक्तियोगमें तत्पर और राग-द्वेषादि विकारोंसे शून्य चित परमात्मा को प्राप्त कर लेता है |
मै आत्मारुपसे सदा सभी जीवोमें स्थित हूँ ; इसलिए जो लोग मुझ सर्वभूतस्थित परमात्माका अनादर करके केवल प्रतिमामे ही मेरा पूजन करते हैं , उनकी वह पूजा स्वांगमात्र है | मै सबका आत्मा,परमेश्वर सभी भूतो में स्थित हूँ ,ऐसी दशामें जो मोहवश मेरी उपेक्षा करके केवल प्रतिमाके पूजन में ही लगा रहता है, वह तो मानो भस्ममें ही हवन करता है | जो भेददर्शी और अभिमानी पुरुष जो दुसरे जीवों के साथ वैर बांधता है और इस प्रकार उनके शरीरोमें विद्धमान मुझ आत्मासे ही द्वेष करता है,उसके मनको कभी शांति नहीं मिल सकती | जो दुसरे जीवों का अपमान करता है,वह बहुत सी घटिया-बढ़िया सामग्रियोंसे अनके प्रकार के विधि-विधानके साथ मेरी मूर्तिका पूजन भी करे तो भी मै उससे प्रसन्न नहीं हो सकता | मनुष्य अपने धर्मका अनुष्ठान करता हुआ तबतक मुझ ईश्वरकी प्रतिमा आदिमें पूजा करता रहे,जबतक उसे अपने ह्रदयमें एवं सम्पूर्ण प्राणियोंमें स्थित परमात्माका अनुभव ना हो जाये | जो व्यक्ति आत्मा और परमात्माके बीच थोडा सा भी अंतर करता है, उस भेददर्शी को मै मृत्युरूपसे महान भय उपस्थित करता हूँ | अतः सम्पूर्ण प्राणियोंके भीतर घर बनाकर उन प्राणियोंके रूपमें ही स्थित मुझ परमात्माका यथायोग्य दान,मान मित्रताके व्यवहार तथा समदृष्टिके द्वारा पूजन करना चाहिये |
श्री मद्भागवत तृतीय स्कन्ध उनतीसवाँ अध्याय पेज १७४
ॐ साईं राम