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Author Topic: अमृत वचन  (Read 20270 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
Re: अमृत वचन
« Reply #15 on: March 25, 2013, 09:49:29 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    सत्य तो यही है कि पंचतत्व रुपी शारीर में आसक्ति का होना स्वाभिक है पर दुखों का मूल कारण भी तो यही है |आसक्ति हमारे मन की शांति को हर लेती है ;उसे भंग कर देती है |  हमारी बुद्धि को स्थिर नहीं रहने देती ,उसे चंचल बना देती है | आसक्ति से प्रमाद की उत्पत्ति होती है | प्रमाद मद होता है और मद अहंकार का स्रोत होता है और अहंकार पूर्णता विनास को  जन्म देता है | इसलिए आसक्ति ही हमारे दुखों की जननी है जो परमपिता के मिलन में अनावश्यक है |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #16 on: March 25, 2013, 09:53:55 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    एक छोटी नौका भी तबतक महासागर में नहीं डूब सकती जबतक महासागर का जल उसके अन्दर
    नहीं प्रवेश कर जाता | वैसे ही दोष और नकारात्मक विचार जबतक हमारे अन्दर नहीं प्रवेश करते
     तबतक कोई भी हमें इस भौतिक महासागर में डूबा नहीं सकता |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #17 on: March 26, 2013, 12:28:48 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    भय का स्रोत है इच्छा | पाने की इच्छा होगी तो स्वाभिक है खोने का भय भी होगा | यदि जीवित रहने की इच्छा है तो मृत्यु का भय भी अवश्य होगा | इस भय से सभी ग्रषित हैं क्योकि इच्छाओं से मुक्त कोई भी नहीं | इन भय का समाधान असक्त से अनासक्त होना ही है और जो केवल ज्ञान से ही सम्भव है | असक्त और अनासक्त भाव को पृथक कर संसार की,जीवन की उलझनों को सुलझाया जा सकता है |

    अनुभव ही सच्चा ज्ञान है | ज्ञान ही वो कुंजी है जो भौतिक जगत से दूर और अध्यात्मिक जगत का द्वार खोलने में सहायक होता है | बिना ज्ञान के  वास्तविकता से अपरिचित होकर सदैव हम वास्तविक ईश्वर  प्रेम और भक्ति से अनभिग्य होकर बाहरी आडम्बरों और अंधविश्वास को ही सत्य समझ लेते हैं |
     
    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #18 on: March 26, 2013, 12:30:45 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    विचारों में असहमति ,मतभेद और विवाद ये कदाचित अवगुण नहीं हैं बल्कि ये जीवन की परीक्षा का आवश्यक अंग है । जो सम्बन्ध इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है वो कभी भी जीवन में समाप्त नहीं होता ।

    पूर्व के विचारों और आज के विचारों में परिवर्तन स्वाभिक है क्योकि हररोज जीवन का अनुभव हमारी सोच, हमारे विचारों को एक नई परिपक्यता प्रदान करता है । लगातार अनुभवों से सिखना और स्वयम को परिष्कृत करना ही उन्नति है ।


    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #19 on: March 26, 2013, 09:41:58 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जीवन में होनेवाली घटनायों  का बोध हमें उस समय नहीं हो पता पर
    समय आने पर स्वतः ही बोध हो जाता है । जिसे हम कभी कभी सुख का कारण
    समझ लेते हैं वही बाद मे दुखों का कारण बन जाती है और कभी कभी दुःख का
    कारण ही सुखों की प्राप्ति करवाता है ।

    हमें सैदेव दोनों ही स्थितिओं में बहुत ही संभल के जीवन के  मूल लक्ष्य की और अग्रसर होते रहना चाहिये।

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #20 on: March 26, 2013, 09:44:18 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    मूल आवश्यकता के सिवा सहज रूप से जो भी मिले उसका आनंद ही सच्चा सुख है और
    नाकि इच्छायों में वृद्धि कर उन्हें पूरा करने हेतु अपना जीवन व्यतीत करने में |

    इस सत्य का बोध जिस दिन भी हमको हो जाता है हम सही अर्थ में स्वयं को पा लेते हैं |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #21 on: March 26, 2013, 03:13:57 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    मनुष्य को चाहिये अपने से अधिक गुणवान को देखकर प्रसन्न हो; जो कम गुणवाला हो,उसपर दया करे और जो अपने सामान गुणवाला हो,उससे मित्रता का भाव रखे | यों करने से उसे दुःख कभी नहीं दबा सकते |

    श्री मद्भागवत चतुर्थ स्कन्ध आठवाँ अध्याय

    ॐ साईं राम 

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #22 on: March 26, 2013, 11:14:47 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः



    ॐ साईं नाथाय नमः
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #23 on: March 28, 2013, 09:08:28 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः



    ॐ साईं नाथाय नमः

    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #24 on: March 28, 2013, 10:26:11 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    आध्यात्मिक सत्य तो सब तर्कों से उपर है | उस सत्य को पाने की तड़प यानि चेतनता की ऊँची अवस्था को विस्वास करना ही आध्यात्मिकता है |

    बुद्धि से जो सत्य प्राप्त हो उसपर तो विचार किया जा सकता है परन्तु आध्यात्मिक सत्य वो तो सारे विचारों से उपर है |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #25 on: March 29, 2013, 09:01:17 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जो पुरुष कपटधर्ममय ग्रेहस्थाश्रम में ही रहता हुआ पुत्र ,स्त्री और धनको ही परम पुरषार्थ मानता है,वह अज्ञानवश संसारारण्य में ही भटकता रहनेके कारण उस परम कल्याणको प्राप्त नहीं कर सकता | दुःख के आत्यंतिक नाश और परमानन्द की प्राप्ति की नाम कल्याण है |
     
    श्री मद्भागवत चतुर्थ स्कन्ध पचीसवाँ अध्याय पेज २४८

    ॐ  साईं राम

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #26 on: March 29, 2013, 09:57:47 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः



    ॐ साईं नाथाय नमः
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #27 on: March 30, 2013, 02:08:04 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    आत्मा का लक्ष्य सुख की प्राप्ति अर्थात परमानन्द की प्राप्ति है ,किन्तु हम सुख को नहीं सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित करना ही जीवन का उदेश्य मान लेते हैं ,जो नश्वर हैं |

    जो इस सत्य को जानते हुए भी लोभ का परित्याग नहीं करते वो सदैव इन्हें खोने के भय से जीते है और जो इस सत्य को जानते ही नहीं वो अहंकार में जीते हैं, और जहाँ अहंकार और भय  उपस्थित हो वहां सुख कैसे रह सकता है |

    साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #28 on: March 30, 2013, 10:00:28 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जिस प्रकार कुम्हार आगे में पके हुए घड़े पर हाथ की थाप मार मार कर वह कितना पका है उसकी पहचान करता है उसी प्रकार साधक के जीवन में विषम परिस्थितिका निर्माण कर, गुरु या ईश्वर अपने भक्त की साधकत्व और शरणागति की परीक्षा लेता है ! वस्तुतः एक उत्तम साधक के लिए विषम परिस्थितियाँ गुरु समान होती है जो उसे अंतर्मुख कर अध्यात्म के अनेक सूक्ष्म पक्ष सिखा देती है ! आखिर सोना तपकर ही कुन्दन बनता है |

    साईं राम


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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #29 on: April 01, 2013, 09:07:27 AM »
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  • साईं नाथाय नमः

    गुरु सदैव ही शिष्य के अंतःकरण में विराजमान रहते हैं | जब इहलौकिक /सांसारिक माया का आवरण हट जाता है और मन स्वच्छ और निर्मल हो जाता है तो गुरु की वास्तविक छवि शिष्य में प्रतिबिंबित होने लगती है | गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं रह जाता क्योकि वे सूक्ष्म रूप से एकदूसरे में रहते हैं |

    ॐ साईं राम

     


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