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Author Topic: अमृत वचन  (Read 20244 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
Re: अमृत वचन
« Reply #30 on: April 01, 2013, 09:51:05 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    आध्यात्म के दो मार्ग है | एक मार्ग है प्रेम का,ह्रदय का | एक मार्ग है ध्यान का ,बुद्धि का | ध्यान के मार्ग पर बुद्धि को शुद्ध करना है -इतना शुद्ध कि बुद्धि शेष ही न रह जाए | प्रेम के मार्ग में ह्रदय को शुद्ध करना है -इतना शुद्ध कि ह्रदय खो जाए | दोनों ही मार्ग से शून्य उपलब्धि करनी है ,मिटना है | कोई विचारों को काट-काटकर मिटेगा है ; कोई वासना को काट-काटकर मिटेगा |

    प्रेम है वासना से मुक्ति | ध्यान है विचारों से मुक्ति | दोनों ही मिटा देंगे; और जहाँ स्वयं तुम नहीं, वहीँ परमात्मा है |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #31 on: April 01, 2013, 09:52:49 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    सद्गुरु शिष्यकी कभी परीक्षा नहीं लेते; क्योंकि उन्हें शिष्यकी क्षमताका पूर्ण भान होता है | शिष्यकी क्षमता और गुरुभक्तिका भान सबको हो; अतः शिष्यको कठिनतम परिस्थितिमें डाल देते हैं और शिष्यको संपूर्ण गुरु-लीलाका भान होता है | अतः वह भी आनंदी होकर सब सहन करता है; इसलिए कहते हैं, गुरु-शिष्यका संबंध अंतरंग होता है |


    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #32 on: April 01, 2013, 10:25:43 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    नदी ने अकड़ते हुए कुएं से कहा- तेरी क्या औकात है तुझे पता है, कुआं हाथ जोड़कर बोला- बहनजी भटकाव और ठहराव में कुछ तो फर्क होता ही है।फर्क इतना ही है कि, तुम प्यासे के पास जाती हो और प्यासा मेरे पास आता है,तुम ऊपर से नीचे की ओर जाती हो, इसलिए मीठे से खारी हो जाती हो।मैं नीचे से ऊपर की ओर आता हूं, इसलिए मीठे का मीठा ही रह जाता हूं।"

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #33 on: April 02, 2013, 05:41:00 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    हमारे मानसिक अशांति का कारण ही हमारा भौतिक मोह है | यही मोह ही हमें सदैव सता रहा है | हमारे अन्दर गुण -अवगुण (पांडव-कौरव) दोनों है और उनमे निरंतर युद्ध (मनोयुद्ध) चलता रहता है और जब मन थका हुआ होता है तो असुरी शक्तिओं के आगे हारने लगता है या उसके सामने युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता है |

    जब हम असफलताओं से हारने लगते हैं तो एकदम जीवन से भी हारने लगते हैं या उलझ जाते हैं |  थके हरे मन और निर्णय ना ले पाने में असमर्थ बुद्धि की वजह से मन को सही दिशा में ले जाने का आभाव हो जाता है और हम मानसिक अशांति में चले जाते हैं |

    आशा की किरण तभी नजर आती है जब मार्ग निर्देशन के लिए स्वयं ईश्वरी बौधिक सत्ता (ज्ञान/सत्य ) रास्ता दिखलाती है और हम उसको अनुसरण करते हैं |

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #34 on: April 02, 2013, 08:45:41 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    मत में, स्वभाव में, व्यक्तित्व में चाहे कितना भी भेद क्यों न हो, उसे सहन करे। उस भेद का कोई प्रभाव प्रेमपर न पड़ने दे। उसे मानना चाहिये कि कर्म की और रुचि की एकता नहीं हो सकती, परंतु प्रीति की एकता मैं कर सकता हूँ यह भावना चित्त शुद्धि का सुन्दर उपाय है।

    रामजी और लक्ष्मणजी की मान्यतामें भेद था। श्रीराम समुद्रसे रास्ता माँगते हैं, लक्ष्मणजी को यह पसंद नहीं है, परंतु उनके प्रेम में किंचिन्मात्र भी कमी नहीं है।

    ॐ साईं राम


    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #35 on: April 02, 2013, 10:23:12 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    अज्ञानतावश जाने-अनजाने भूल करना हमारी स्वाभिक प्रवृति है | भूल करने पर जितना दोष नहीं होता अपितु भूल को ना स्वीकार करने पर होता है , भूल से  कुछ ना सिखने और उसको  पुनः करने में होता है | गलतियों से ही हमें सिखने को मिलता है और यही ज्ञान हमें जीवन में उन्नति का मार्ग खोलता है |

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #36 on: April 02, 2013, 12:37:17 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    सद्गुरु शिष्यकी कभी परीक्षा नहीं लेते; क्योंकि उन्हें शिष्यकी क्षमताका पूर्ण भान होता है | शिष्यकी क्षमता और गुरुभक्तिका भान सबको हो; अतः शिष्यको कठिनतम परिस्थितिमें डाल देते हैं और शिष्यको संपूर्ण गुरु-लीलाका भान होता है | अतः वह भी आनंदी होकर सब सहन करता है; इसलिए कहते हैं, गुरु-शिष्यका संबंध अंतरंग होता है |

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #37 on: April 02, 2013, 11:53:02 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय  नमः

    श्री भगवत गीता में अर्जुन को सम्पूर्ण रहस्यों का ज्ञान देने के पश्चात् भगवान कहते हैं कि इसपर तुम पूर्ण विचार करो  और उसके पश्चात्  तुम्हारी जैसी इच्छा है वैसा ही करो ।

    भगवान कितने साक्षी हैं ,निरभिमानी हैं यद्यपि स्वयम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं फिर भी बाध्य नहीं करते । स्वत्रंता देते हैं  निर्णय लेने का और उसका पालन करने का ।

    पर यह अजीब विडम्बना है कि इस भौतिक जगत का प्राणी सदैव अहंकार से ग्रषित रहकर अपने विचारों को ही सर्वक्षेष्ठ  और दूसरों को बध्य्तामुलक आपनाने को विवस करता है या सदा प्रयासरत रहता है ।

    हमें उसको पाना है / शरणागत होना है तो उसके आचरणों / गुणों /वचनों को भी अपनाना होगा और जीवन के  व्यवहार में लाना होगा । अन्यथा हमारी भक्ति /श्रधा /प्रेम  स्वयम को धोका देना और  मात्र एक आडम्बर तक ही सिमित रह जायेगी । इस जीवन के मूल उदेश्य से वंचित रह जायेंगा ।

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #38 on: April 03, 2013, 06:36:02 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जैसे शराब से भरे घड़े को नदियाँ पवित्र नहीं कर सकती, वैसे ही बड़े-बड़े प्रायश्चित्त बार-बार किये जाने पर भी भगवद्विमुख मनुष्यों को पवित्र करने में असमर्थ है |

    श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध पहला अध्याय पेज ३२६

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #39 on: April 03, 2013, 06:44:14 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    मनुष्य लौकिक और परलौकिक कष्टों से यह जानकर भी कि पाप उसका शत्रु है ,पापवासनाओं से विवश होकर बार-बार वैसे ही कर्मों में प्रवृत हो जाता है | मनुष्य कभी तो प्रायश्चित्त आदि के द्वारा पापो से छुटकारा पा लेता है ,कभी फिर उन्हें ही करने लगता है |

    जैसे स्नान करने के बाद धुल डाल लेने के कारण हाथी का स्नान व्यर्थ हो जाता है , वैसे ही मनुष्य का प्रायश्चित्त करना भी व्यर्थ ही है |

    श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध पहला अध्याय पेज ३२६

    ॐ साईं राम

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #40 on: April 04, 2013, 12:30:55 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    योग्य और अयोग्य विषयों में विवेक द्वारा स्वीकृति ही योग्यता है
    तथा हठपूर्वक करना अयोग्यता है |

    महाऋषि सूतजी 

    ॐ साईं राम

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #41 on: April 04, 2013, 09:18:45 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः






    ॐ साईं नाथाय नमः
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #42 on: April 04, 2013, 10:59:09 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    श्रधा और सबुरी

    बाबा की कृपा हेतु कोई भी भारी आडम्बर की क्या आवश्यकता है केवल अपने विचारों में उनको स्थापित करना होता है, मन पवित्र रखना होता है और मन जब पवित्र हो तो व्यवसाय भी भक्ति का रूप ले लेता है और मन अगर अपवित्र होता है तो भक्ति मात्र व्यवसाय बनके रह जाती है |

    साईं राम

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    ॐ साईं नाथाय नमः

    बतीस प्रकार के सेवापराधों का वर्णन श्रीमद्भागवत में किया गया है |

    श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध आठवाँ अध्याय पेज ३४९

    १.  सवारी पे चढ़के अथवा पैरों में खडाऊँ पहनकर श्रीभगवान के मंदिर में जाना |
    २.  यथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना |
    ३.  श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना |
    ४.  अशुचि अवस्था में दर्शन करना |
    ५.  एक हाथ से प्रणाम करना |
    ६.  परिक्रमा करते समय भगवान् के सामने कुछ न रूककर फिर परिक्रमा करना अथवा सामने ही  परिक्रमा करते रहना |
    ७.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने पैर पसारकर बैठना  |
    ८.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दोनों घुटनों को ऊँचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना |
    ९.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने सोना |
    १०.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने भोजन करना |
    ११.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने झूट बोलना |
    १२.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने जोरसे बोलना |
    १३.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना |
    १४.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना |
    १५.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कलह करना |
    १६.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना |
    १७.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना |
    १८.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को निष्ठुर वचन बोलना |
    १९.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कम्बल से सारा शरीर ढक लेना |
    २०.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरों की निंदा करना |
    २१.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरों की स्तुति करना |
    २२.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अश्लील शब्द बोलना |
    २३.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना |
    २४.शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात सामान्य उपचारों से भगवान् की सेवा पूजा करना |
    २५.श्रीभगवान्  को निवेदित किये बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना |
    २६.जिस ऋतू में जो फल हो, उसे सबसे पहले श्रीभगवान् को न चढ़ाना |
    २७.किसी शाक या फलादिके अगले भाग को तोड़कर श्रीभगवान् के व्यंजनादिके लिए देना |
    २८.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना |
    २९.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दुसरे किसी को प्रणाम करना |
    ३०.गुरुदेव की अभ्यर्थना ,कुशल-प्रश्न और उनका स्तवन न करना |
    ३१.अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना |
    ३२.किसी भी देवता की निंदा करना |

    ॐ साईं राम








     

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #44 on: April 04, 2013, 11:53:42 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    आत्मा का लक्ष्य सुख की प्राप्ति अर्थात परमानन्द की प्राप्ति है ,किन्तु हम सुख को नहीं सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित करना ही जीवन का उदेश्य मान लेते हैं ,जो नश्वर हैं |

    जो इस सत्य को जानते हुए भी लोभ का परित्याग नहीं करते वो सदैव इन्हें खोने के भय से जीते है और जो इस सत्य को जानते ही नहीं वो अहंकार में जीते हैं, और जहाँ अहंकार और भय  उपस्थित हो वहां सुख कैसे रह सकता है |

    साईं राम

     


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