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Author Topic: अमृत वचन  (Read 20282 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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Re: अमृत वचन
« Reply #45 on: April 05, 2013, 09:49:45 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    परमपिता से मिलन में सबसे बड़ी बाधा समस्त एहलौकिक और परलौकिक इच्छाओं की आसक्ति है |आसक्ति से मुक्त होना ही अनासक्ति है | अनासक्त होने के लिए सर्वप्रथम एवंग सर्वोपरि अपने और पराये का भेद मिटाना  अनिवार्य है और यह तभी संभव होगा जब हम सुख की खोज बहार नहीं अपने भीतर करें | जब हम अपने स्वाभिक स्वरुप ,कर्तव्यों एवंग कर्मों को पहंचाने, उसे स्वीकार करें | हमें अपने सुख को सांसारिक वस्तुओं से परिभाषित नहीं करें | जबतक हम ऐसा करते रहेंगे हम बंधते जायेंगे | जब हम स्वयम अपने भीतर झांकना आरम्भ करेंगे तो हमें हमारे जीवन के उदेश्य को जान पायेंगे और उसको प्राप्त करने का मार्ग प्रसस्थ होता जायेगा | 

    ॐ साईं राम

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #46 on: April 05, 2013, 11:07:04 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः





    ॐ साईं नाथाय नमः

    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #47 on: April 06, 2013, 01:12:56 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    ज्ञान वो प्रकाश पुंज है जो हमें सत्य-असत्य  से अवगत कराता है | यह हमें सर्वश्रेष्ठ बनता है | इस धन को कोई हमसे चुरा नहीं सकता अपितु अहंकार से अवश्य हम इसे खो सकते हैं |


    साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #48 on: April 06, 2013, 11:18:43 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    कार्य की सफलता ओर असफलता स्वयं के हाथों  में नहीं होती वो परमपिता के इच्छा शक्ति पर ही निर्भर होती है  पर सही मंजिल  का चुनाव एवंग पुरषार्थ करना स्वयं के हाथों में होता है | पुरषार्थ करना ही हमारे हाथों में है ,परिणाम नहीं | साक्षी भाव को रखते हुये किया हुआ पुरषार्थ स्वयं को  कर्तापन की भावना से  दूर रखता है |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #49 on: April 07, 2013, 02:52:50 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    भारतीय शास्त्र दावे के साथ कहते हैं कि मानव का ईश्वर के साथ एकीकरण निश्चित है पर उससे पहले मानव का मानव से एकीकरण तो हो |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #50 on: April 07, 2013, 02:59:06 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    मनुष्य को ज्ञान की साधना में अवश्य जलना चाहिए, सूरज न बन सको पर दीपक अवश्य बनना चाहिए |
    दूसरों को मार्ग दिखलाने के पहले स्वयं को मार्ग खोजना चाहिए |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #51 on: April 08, 2013, 12:07:23 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    सबसे ज्यादा सावधान तो हमें रहना है क्योकि सत्य की प्राप्ति स्वार्थ की प्राप्ति न हो जाये |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #52 on: April 11, 2013, 10:08:18 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जिस प्रकार रस वृक्ष की जड़ से लेकर शाखाग्रपर्यन्त रहता है, किन्तु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता ; वाही जब अलग होकर फलके रूपमे आ जाता है तो संसार में सभी को प्रिय लगने लगता है । दूध में घी रहता ही है,किन्तु उस समय उसका अलग ही स्वाद नहीं मिलता; वाही जब उससे अलग हो जाता है तब सभी के लिए स्वादवर्धक हो जाता है । खांड ईख के  ओर-छोर ओर बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है।

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #53 on: April 12, 2013, 11:56:43 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः

    जिसने चित्त की चंचलता को कम नहीं किया उसका संकल्प मजबूत नहीं रह सकता। दृढ़ वही रह सकता है जिसमें भय नहीं है, जिसमें क्षोभ नहीं है, चित्त की चंचलता नहीं है, जो कष्टों से घबराता नहीं है। शक्ति जागरण का एक मार्ग है शुभ भाव में रहना। केवल जागरूकता के साथ संकल्प करें कि मेरा मन शुद्ध हो रहा है, भाव शुद्ध हो रहा है, परिणाम शुद्ध हो रहा है। शक्ति का जागरण स्वत: हो जाएगा। हमें जागरूक रहना है कि मन में बुरे विचार न आएं, बुरी कल्पना न आए, बुरे भाव न आएं। यह जागरूकता बढ़ जाए तो शक्ति अपने आप जाग उठती है।

    ॐ साईं राम


    Offline Pratap Nr.Mishra

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #54 on: April 13, 2013, 01:17:54 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    व्यक्ति स्वयम के दृष्टिकोण से सत्य को परिभाषित कर लेता है जबकि वास्तविकता इससे भिन्न होती है | इसलिए अव्सकता है अहंकार रहित सोच की |

    साईं राम

     


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