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Author Topic: अमृत वचन  (Read 20248 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
अमृत वचन
« on: March 21, 2013, 07:27:27 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    ''बचन परम हित सुनत कठोरे
    सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे''

    अर्थ : सम्पूर्ण धरतीपर सुननेमें कठोर परन्तु परिणाममें परम हितकारी वचन जो सुनते हैं और कहते हैं ऐसे मनुष्य थोडे हैं|

    श्री रामचरितमानस

    भावार्थ : जो आपका खरा हितैषी होगा वह झूठमूठ आपकी प्रशंसा नही करेगा हो सकता है वह इतना कठोर बोल दे कि सहन करना कठिन हो जाये; परन्तु वे खरे हितैषी होते हैं |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #1 on: March 21, 2013, 07:31:12 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    ईश्वर हमें दुख क्यों देते है ?

    ईश्वर हमें दुख नहीं देते, हमें दुःख हमारे संचित या प्रारब्ध अनुसार कर्मफलके कारण मिलता है या योग्य प्रकारसे धर्माचरण न करनेके कारण | दुख हमें अंतर्मुख करता है और जिस प्रकार सोना तपकर कुंदन बनता है उसी प्रकार दुःख हमें सुखकी अपेक्षा अधिक सिखाता है |

    ॐ साईं राम



    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #2 on: March 21, 2013, 07:35:32 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    उद्यन्तु शतमादित्या उद्यन्तु शतमिन्दवः ।
    न विना विदुषां वाक्यैर्नश्यत्याभ्यन्तरं तमः ॥ -

    सभारञ्जन शतक

    अर्थ : चाहे सौ सूर्य उदित हो जाये, या सौ चंद्रमा, परंतु ज्ञानीके शब्द सुने बिना आंतरिक अंधकार दूर नहीं हो सकता |

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #3 on: March 21, 2013, 11:28:33 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    किसीको उनकी ऐसी गलती मत बताओ जो वे जानते हैं कि उन्होंने की है। केवल उसी की गलती बताओ जो जानता नहीं पर जानना चाहता है। उदार व्यक्ति दूसरों की गलतियां दिखाकर उन्हें ग्लानि में नहीं डालते। वे दूसरों की गलती करुणा और सावधानी से ठीक करते हैं, शब्दों से नहीं अपने आचरण से।

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #4 on: March 21, 2013, 11:34:54 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन |
    लब्ध्वा कुलगुरुं सम्यग्गुरुमेव समाश्रयेत् || -श्रीगुरु गीता

    अर्थ : यदि शिव क्रोधित हो जाएं तो गुरु बचाते हैं; परंतु यदि गुरु क्रोधित हो जाएं तो शिव भी बचा नहीं सकते | अतः पुरुषार्थ कर गुरुके शरणागत होना चाहि

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #5 on: March 22, 2013, 05:43:20 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    गुरु की शक्ति

    इंग्लैंड में किसी ने स्वामी विवेकान्द से पुछा की जब अंगेजी भाषा पर आपका इतना अच्छा ज्ञान है तो आपके गुरु ओर भी इस भाषा का ज्ञान रखते होंगे | गुरु भक्त स्वामी विवेकान्द ने मुस्कुराता हुए उत्तर दिया ``मेरे गुरु तो अंग्रेजी भाषा का एक शब्द भी नहीं बोल सकते पर उनके पास वो शक्ति है जिससे वो मेरे जैसे हजारो विवेकान्द बना सकते हैं | ``

    ॐ साईं राम

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #6 on: March 22, 2013, 10:45:51 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    इस जीवन में ही मुक्ति पाना चाहते हो तो स्वयं को प्रयास करना होगा क्योकि अहंकार और असुरक्षा के जन्मदाता तुम स्वयं हो, इसका स्रोत स्वयं तुम ही हो |

    तुम्हारे लिए केवल बाहरी सौन्दर्य का ही महत्व है आतंरिक सौन्दर्य का कोई मोल नहीं | जबतक तुम अपने अस्तित्व को बाहरी तत्वों से परिभाषित करते रहोगे, तुम अहंकार को पोषित करते रहोगे | संतोष को जितना तुम बहार ढुंढ़ोगे उतना ही असंतोष बढेगा , असुरक्षा  बढ़ेगी क्योकि तुम्हारे बाहर जो कुछ भी है सब नश्वर है | संतोष के लिए जो भी अनिवार्य है वो तुम्हे केवल भीतर ही प्राप्त होगा और अपने अन्दर मन तक पहुँचाने का मार्ग केवल योग से ही प्रसस्थ हो सकता है |

    ॐ साईं राम 

     

    Offline SaiSonu

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #7 on: March 23, 2013, 01:10:40 AM »
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  • ॐ साईं राम

    लोभ (लालच):

    लोभ और लालच एक-दूसरे के परस्पर द्वेषी हैं| वे सनातक काल से एक-दूसरे के विरोधी हैं| जहां लाभ है वहां ब्रह्म का ध्यान करने की कोई गूंजाइश नहीं है| फिर लोभी व्यक्ति को अनासक्ति और मोक्ष को प्राप्ति कैसे हो सकती है

    ॐ साईं नाथाय नमः
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #8 on: March 23, 2013, 03:55:26 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः
     
    खरे ज्ञानका स्रोत बाहर नहीं हमारे अंदर है, हमारे आत्माका प्रकाश, उस खरे ज्ञानके स्रोतसे हमारा परिचय करवाता है; परंतु हम अहंकारवश ज्ञानको बाहर ढूंढते है और आत्मसाक्षात्कार हेतु योग्य पुरुषार्थ नहीं करते !

    ॐ साईं राम
    « Last Edit: March 23, 2013, 05:16:11 AM by Pratap Nr.Mishra »

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #9 on: March 23, 2013, 05:12:35 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    प्राथना

    प्रभु हमें अपने मानव शरीर देकर अनुकम्पा की है | अब मानव बुद्धि देकर हमें उपकृत और कर दीजिये ताकि हम सच्चे अर्थों में मनुष्य कहला सकें और मानव जीवन के आनंद का लाभ
    उठा सके।

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #10 on: March 23, 2013, 11:42:55 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

     कर्म प्रधान

    ईश्‍वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्‍य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्‍त होता है ..... ।। - गोस्‍वामी तुलसीदास

    ॐ साईं राम

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    Re: अमृत वचन
    « Reply #11 on: March 23, 2013, 11:50:30 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    ''सर्वश्रेष्‍ठ बनने की आशा में ''

    सर्वश्रेष्ठ बनने की
    आशा में जीने वाले
    इर्ष्या और होड़ को
    धर्म मानने वाले
    समुद्र में पथ से भटके हुए
    ज़हाज जैसे होते
    किनारे की तलाश में
    निरंतर भटकते रहते
    किनारा तो मिलता नहीं
    थक हार कर चुक जाते
    अंत में डूब जाते

    ॐ साईं राम

     

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #12 on: March 24, 2013, 01:20:12 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जो भेददर्शी क्रोधी पुरुष ह्रदय में हिंसा,दंभ अथवा मात्सर्य का भाव रखकर मुझसे प्रेम करता है,वह मेरा तामस भक्त है | जो पुरुष विषय,यश और ऐश्वर्य की कामना से प्रतिमादि में मेरा भेदभाव से पूजन करता है, वह राजस भक्त है | जो व्यक्ति पापो का क्षय करने के लिए, परमात्मा को अर्पण करने के लिए और पूजन करना कर्तव्य है ----इस बुद्धि से मेरा भेदभाव से पूजन करता है, वह सात्त्विक भक्त है |

     श्री मद्भागवत तृतीय स्कन्ध उनतीसवाँ अध्याय

    ॐ साईं राम

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #13 on: March 24, 2013, 02:37:49 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जिस प्रकार वायुके द्वारा उडके जानेवाला गंध आपने आश्रय पुष्पसे घ्राणेन्द्रीयतक पहुँच जाता है, उसी प्रकार भक्तियोगमें तत्पर और राग-द्वेषादि विकारोंसे शून्य चित परमात्मा को प्राप्त कर लेता है |

    मै आत्मारुपसे सदा सभी जीवोमें स्थित हूँ ; इसलिए जो लोग मुझ सर्वभूतस्थित परमात्माका अनादर करके केवल प्रतिमामे ही मेरा पूजन करते हैं , उनकी वह पूजा स्वांगमात्र है | मै सबका आत्मा,परमेश्वर सभी भूतो में स्थित हूँ ,ऐसी दशामें जो मोहवश मेरी उपेक्षा करके केवल प्रतिमाके पूजन में ही लगा रहता है, वह तो मानो भस्ममें ही हवन करता है | जो भेददर्शी और अभिमानी पुरुष जो दुसरे जीवों के साथ वैर बांधता है और इस प्रकार उनके शरीरोमें  विद्धमान मुझ आत्मासे ही द्वेष करता है,उसके मनको कभी शांति नहीं मिल सकती | जो दुसरे जीवों का अपमान करता है,वह बहुत सी घटिया-बढ़िया सामग्रियोंसे अनके प्रकार के विधि-विधानके साथ मेरी मूर्तिका पूजन भी करे तो भी मै उससे प्रसन्न नहीं हो सकता | मनुष्य अपने धर्मका अनुष्ठान करता हुआ तबतक मुझ ईश्वरकी प्रतिमा आदिमें पूजा करता रहे,जबतक उसे अपने ह्रदयमें एवं सम्पूर्ण प्राणियोंमें स्थित परमात्माका अनुभव ना हो जाये | जो व्यक्ति आत्मा और परमात्माके बीच थोडा सा भी अंतर करता है, उस भेददर्शी को मै मृत्युरूपसे महान भय  उपस्थित करता हूँ | अतः सम्पूर्ण प्राणियोंके भीतर घर बनाकर उन प्राणियोंके रूपमें ही स्थित मुझ परमात्माका  यथायोग्य दान,मान मित्रताके व्यवहार तथा समदृष्टिके द्वारा पूजन करना चाहिये |

    श्री मद्भागवत तृतीय स्कन्ध उनतीसवाँ अध्याय पेज १७४

    ॐ साईं राम





     
    « Last Edit: March 24, 2013, 02:44:50 PM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: अमृत वचन
    « Reply #14 on: March 24, 2013, 11:22:23 PM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    जिस प्रकार रस वृक्ष की जड़ से लेकर शाखाग्रपर्यन्त रहता है, किन्तु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता ; वाही जब अलग होकर फलके रूपमे आ जाता है तो संसार में सभी को प्रिय लगने लगता है । दूध में घी रहता ही है,किन्तु उस समय उसका अलग ही स्वाद नहीं मिलता; वाही जब उससे अलग हो जाता है तब सभी के लिए स्वादवर्धक हो जाता है । खांड ईख के  ओर-छोर ओर बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है।

    इसी प्रकार जब हम इस संसाररुपी वृक्ष से सांसारिक रस से परमानंद रस को ज्ञान,भक्ति एवंग बैराग के द्वारा अलग करेगें तो सब कुछ प्राप्त कर लेंगे ।

    श्री मद्भागवत

    ॐ साईं राम

     


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