DwarkaMai - Sai Baba Forum

Sai Literature => Sai Thoughts => Topic started by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 07:27:27 AM

Title: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 07:27:27 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

''बचन परम हित सुनत कठोरे
सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे''

अर्थ : सम्पूर्ण धरतीपर सुननेमें कठोर परन्तु परिणाममें परम हितकारी वचन जो सुनते हैं और कहते हैं ऐसे मनुष्य थोडे हैं|

श्री रामचरितमानस

भावार्थ : जो आपका खरा हितैषी होगा वह झूठमूठ आपकी प्रशंसा नही करेगा हो सकता है वह इतना कठोर बोल दे कि सहन करना कठिन हो जाये; परन्तु वे खरे हितैषी होते हैं |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 07:31:12 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

ईश्वर हमें दुख क्यों देते है ?

ईश्वर हमें दुख नहीं देते, हमें दुःख हमारे संचित या प्रारब्ध अनुसार कर्मफलके कारण मिलता है या योग्य प्रकारसे धर्माचरण न करनेके कारण | दुख हमें अंतर्मुख करता है और जिस प्रकार सोना तपकर कुंदन बनता है उसी प्रकार दुःख हमें सुखकी अपेक्षा अधिक सिखाता है |

ॐ साईं राम


Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 07:35:32 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

उद्यन्तु शतमादित्या उद्यन्तु शतमिन्दवः ।
न विना विदुषां वाक्यैर्नश्यत्याभ्यन्तरं तमः ॥ -

सभारञ्जन शतक

अर्थ : चाहे सौ सूर्य उदित हो जाये, या सौ चंद्रमा, परंतु ज्ञानीके शब्द सुने बिना आंतरिक अंधकार दूर नहीं हो सकता |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 11:28:33 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

किसीको उनकी ऐसी गलती मत बताओ जो वे जानते हैं कि उन्होंने की है। केवल उसी की गलती बताओ जो जानता नहीं पर जानना चाहता है। उदार व्यक्ति दूसरों की गलतियां दिखाकर उन्हें ग्लानि में नहीं डालते। वे दूसरों की गलती करुणा और सावधानी से ठीक करते हैं, शब्दों से नहीं अपने आचरण से।

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 21, 2013, 11:34:54 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

शिवे रुष्टे गुरुस्त्राता गुरौ रुष्टे न कश्चन |
लब्ध्वा कुलगुरुं सम्यग्गुरुमेव समाश्रयेत् || -श्रीगुरु गीता

अर्थ : यदि शिव क्रोधित हो जाएं तो गुरु बचाते हैं; परंतु यदि गुरु क्रोधित हो जाएं तो शिव भी बचा नहीं सकते | अतः पुरुषार्थ कर गुरुके शरणागत होना चाहि

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 22, 2013, 05:43:20 AM
ॐ साईं नाथाय नमः

गुरु की शक्ति

इंग्लैंड में किसी ने स्वामी विवेकान्द से पुछा की जब अंगेजी भाषा पर आपका इतना अच्छा ज्ञान है तो आपके गुरु ओर भी इस भाषा का ज्ञान रखते होंगे | गुरु भक्त स्वामी विवेकान्द ने मुस्कुराता हुए उत्तर दिया ``मेरे गुरु तो अंग्रेजी भाषा का एक शब्द भी नहीं बोल सकते पर उनके पास वो शक्ति है जिससे वो मेरे जैसे हजारो विवेकान्द बना सकते हैं | ``

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 22, 2013, 10:45:51 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

इस जीवन में ही मुक्ति पाना चाहते हो तो स्वयं को प्रयास करना होगा क्योकि अहंकार और असुरक्षा के जन्मदाता तुम स्वयं हो, इसका स्रोत स्वयं तुम ही हो |

तुम्हारे लिए केवल बाहरी सौन्दर्य का ही महत्व है आतंरिक सौन्दर्य का कोई मोल नहीं | जबतक तुम अपने अस्तित्व को बाहरी तत्वों से परिभाषित करते रहोगे, तुम अहंकार को पोषित करते रहोगे | संतोष को जितना तुम बहार ढुंढ़ोगे उतना ही असंतोष बढेगा , असुरक्षा  बढ़ेगी क्योकि तुम्हारे बाहर जो कुछ भी है सब नश्वर है | संतोष के लिए जो भी अनिवार्य है वो तुम्हे केवल भीतर ही प्राप्त होगा और अपने अन्दर मन तक पहुँचाने का मार्ग केवल योग से ही प्रसस्थ हो सकता है |

ॐ साईं राम 

 
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on March 23, 2013, 01:10:40 AM
ॐ साईं राम

लोभ (लालच):

लोभ और लालच एक-दूसरे के परस्पर द्वेषी हैं| वे सनातक काल से एक-दूसरे के विरोधी हैं| जहां लाभ है वहां ब्रह्म का ध्यान करने की कोई गूंजाइश नहीं है| फिर लोभी व्यक्ति को अनासक्ति और मोक्ष को प्राप्ति कैसे हो सकती है

ॐ साईं नाथाय नमः
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 23, 2013, 03:55:26 AM

ॐ साईं नाथाय नमः
 
खरे ज्ञानका स्रोत बाहर नहीं हमारे अंदर है, हमारे आत्माका प्रकाश, उस खरे ज्ञानके स्रोतसे हमारा परिचय करवाता है; परंतु हम अहंकारवश ज्ञानको बाहर ढूंढते है और आत्मसाक्षात्कार हेतु योग्य पुरुषार्थ नहीं करते !

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 23, 2013, 05:12:35 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

प्राथना

प्रभु हमें अपने मानव शरीर देकर अनुकम्पा की है | अब मानव बुद्धि देकर हमें उपकृत और कर दीजिये ताकि हम सच्चे अर्थों में मनुष्य कहला सकें और मानव जीवन के आनंद का लाभ
उठा सके।

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 23, 2013, 11:42:55 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

 कर्म प्रधान

ईश्‍वर ने संसार को कर्म प्रधान बना रखा है, इसमें जो मनुष्‍य जैसा कर्म करता है उसको, वैसा ही फल प्राप्‍त होता है ..... ।। - गोस्‍वामी तुलसीदास

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 23, 2013, 11:50:30 PM
ॐ साईं नाथाय नमः

''सर्वश्रेष्‍ठ बनने की आशा में ''

सर्वश्रेष्ठ बनने की
आशा में जीने वाले
इर्ष्या और होड़ को
धर्म मानने वाले
समुद्र में पथ से भटके हुए
ज़हाज जैसे होते
किनारे की तलाश में
निरंतर भटकते रहते
किनारा तो मिलता नहीं
थक हार कर चुक जाते
अंत में डूब जाते

ॐ साईं राम

 
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 24, 2013, 01:20:12 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

जो भेददर्शी क्रोधी पुरुष ह्रदय में हिंसा,दंभ अथवा मात्सर्य का भाव रखकर मुझसे प्रेम करता है,वह मेरा तामस भक्त है | जो पुरुष विषय,यश और ऐश्वर्य की कामना से प्रतिमादि में मेरा भेदभाव से पूजन करता है, वह राजस भक्त है | जो व्यक्ति पापो का क्षय करने के लिए, परमात्मा को अर्पण करने के लिए और पूजन करना कर्तव्य है ----इस बुद्धि से मेरा भेदभाव से पूजन करता है, वह सात्त्विक भक्त है |

 श्री मद्भागवत तृतीय स्कन्ध उनतीसवाँ अध्याय

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 24, 2013, 02:37:49 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

जिस प्रकार वायुके द्वारा उडके जानेवाला गंध आपने आश्रय पुष्पसे घ्राणेन्द्रीयतक पहुँच जाता है, उसी प्रकार भक्तियोगमें तत्पर और राग-द्वेषादि विकारोंसे शून्य चित परमात्मा को प्राप्त कर लेता है |

मै आत्मारुपसे सदा सभी जीवोमें स्थित हूँ ; इसलिए जो लोग मुझ सर्वभूतस्थित परमात्माका अनादर करके केवल प्रतिमामे ही मेरा पूजन करते हैं , उनकी वह पूजा स्वांगमात्र है | मै सबका आत्मा,परमेश्वर सभी भूतो में स्थित हूँ ,ऐसी दशामें जो मोहवश मेरी उपेक्षा करके केवल प्रतिमाके पूजन में ही लगा रहता है, वह तो मानो भस्ममें ही हवन करता है | जो भेददर्शी और अभिमानी पुरुष जो दुसरे जीवों के साथ वैर बांधता है और इस प्रकार उनके शरीरोमें  विद्धमान मुझ आत्मासे ही द्वेष करता है,उसके मनको कभी शांति नहीं मिल सकती | जो दुसरे जीवों का अपमान करता है,वह बहुत सी घटिया-बढ़िया सामग्रियोंसे अनके प्रकार के विधि-विधानके साथ मेरी मूर्तिका पूजन भी करे तो भी मै उससे प्रसन्न नहीं हो सकता | मनुष्य अपने धर्मका अनुष्ठान करता हुआ तबतक मुझ ईश्वरकी प्रतिमा आदिमें पूजा करता रहे,जबतक उसे अपने ह्रदयमें एवं सम्पूर्ण प्राणियोंमें स्थित परमात्माका अनुभव ना हो जाये | जो व्यक्ति आत्मा और परमात्माके बीच थोडा सा भी अंतर करता है, उस भेददर्शी को मै मृत्युरूपसे महान भय  उपस्थित करता हूँ | अतः सम्पूर्ण प्राणियोंके भीतर घर बनाकर उन प्राणियोंके रूपमें ही स्थित मुझ परमात्माका  यथायोग्य दान,मान मित्रताके व्यवहार तथा समदृष्टिके द्वारा पूजन करना चाहिये |

श्री मद्भागवत तृतीय स्कन्ध उनतीसवाँ अध्याय पेज १७४

ॐ साईं राम





 
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 24, 2013, 11:22:23 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

जिस प्रकार रस वृक्ष की जड़ से लेकर शाखाग्रपर्यन्त रहता है, किन्तु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता ; वाही जब अलग होकर फलके रूपमे आ जाता है तो संसार में सभी को प्रिय लगने लगता है । दूध में घी रहता ही है,किन्तु उस समय उसका अलग ही स्वाद नहीं मिलता; वाही जब उससे अलग हो जाता है तब सभी के लिए स्वादवर्धक हो जाता है । खांड ईख के  ओर-छोर ओर बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है।

इसी प्रकार जब हम इस संसाररुपी वृक्ष से सांसारिक रस से परमानंद रस को ज्ञान,भक्ति एवंग बैराग के द्वारा अलग करेगें तो सब कुछ प्राप्त कर लेंगे ।

श्री मद्भागवत

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 25, 2013, 09:49:29 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

सत्य तो यही है कि पंचतत्व रुपी शारीर में आसक्ति का होना स्वाभिक है पर दुखों का मूल कारण भी तो यही है |आसक्ति हमारे मन की शांति को हर लेती है ;उसे भंग कर देती है |  हमारी बुद्धि को स्थिर नहीं रहने देती ,उसे चंचल बना देती है | आसक्ति से प्रमाद की उत्पत्ति होती है | प्रमाद मद होता है और मद अहंकार का स्रोत होता है और अहंकार पूर्णता विनास को  जन्म देता है | इसलिए आसक्ति ही हमारे दुखों की जननी है जो परमपिता के मिलन में अनावश्यक है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 25, 2013, 09:53:55 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

एक छोटी नौका भी तबतक महासागर में नहीं डूब सकती जबतक महासागर का जल उसके अन्दर
नहीं प्रवेश कर जाता | वैसे ही दोष और नकारात्मक विचार जबतक हमारे अन्दर नहीं प्रवेश करते
 तबतक कोई भी हमें इस भौतिक महासागर में डूबा नहीं सकता |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 26, 2013, 12:28:48 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

भय का स्रोत है इच्छा | पाने की इच्छा होगी तो स्वाभिक है खोने का भय भी होगा | यदि जीवित रहने की इच्छा है तो मृत्यु का भय भी अवश्य होगा | इस भय से सभी ग्रषित हैं क्योकि इच्छाओं से मुक्त कोई भी नहीं | इन भय का समाधान असक्त से अनासक्त होना ही है और जो केवल ज्ञान से ही सम्भव है | असक्त और अनासक्त भाव को पृथक कर संसार की,जीवन की उलझनों को सुलझाया जा सकता है |

अनुभव ही सच्चा ज्ञान है | ज्ञान ही वो कुंजी है जो भौतिक जगत से दूर और अध्यात्मिक जगत का द्वार खोलने में सहायक होता है | बिना ज्ञान के  वास्तविकता से अपरिचित होकर सदैव हम वास्तविक ईश्वर  प्रेम और भक्ति से अनभिग्य होकर बाहरी आडम्बरों और अंधविश्वास को ही सत्य समझ लेते हैं |
 
ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 26, 2013, 12:30:45 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

विचारों में असहमति ,मतभेद और विवाद ये कदाचित अवगुण नहीं हैं बल्कि ये जीवन की परीक्षा का आवश्यक अंग है । जो सम्बन्ध इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है वो कभी भी जीवन में समाप्त नहीं होता ।

पूर्व के विचारों और आज के विचारों में परिवर्तन स्वाभिक है क्योकि हररोज जीवन का अनुभव हमारी सोच, हमारे विचारों को एक नई परिपक्यता प्रदान करता है । लगातार अनुभवों से सिखना और स्वयम को परिष्कृत करना ही उन्नति है ।


ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 26, 2013, 09:41:58 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

जीवन में होनेवाली घटनायों  का बोध हमें उस समय नहीं हो पता पर
समय आने पर स्वतः ही बोध हो जाता है । जिसे हम कभी कभी सुख का कारण
समझ लेते हैं वही बाद मे दुखों का कारण बन जाती है और कभी कभी दुःख का
कारण ही सुखों की प्राप्ति करवाता है ।

हमें सैदेव दोनों ही स्थितिओं में बहुत ही संभल के जीवन के  मूल लक्ष्य की और अग्रसर होते रहना चाहिये।

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 26, 2013, 09:44:18 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

मूल आवश्यकता के सिवा सहज रूप से जो भी मिले उसका आनंद ही सच्चा सुख है और
नाकि इच्छायों में वृद्धि कर उन्हें पूरा करने हेतु अपना जीवन व्यतीत करने में |

इस सत्य का बोध जिस दिन भी हमको हो जाता है हम सही अर्थ में स्वयं को पा लेते हैं |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 26, 2013, 03:13:57 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

मनुष्य को चाहिये अपने से अधिक गुणवान को देखकर प्रसन्न हो; जो कम गुणवाला हो,उसपर दया करे और जो अपने सामान गुणवाला हो,उससे मित्रता का भाव रखे | यों करने से उसे दुःख कभी नहीं दबा सकते |

श्री मद्भागवत चतुर्थ स्कन्ध आठवाँ अध्याय

ॐ साईं राम 
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on March 26, 2013, 11:14:47 PM
ॐ साईं नाथाय नमः

(http://sphotos-c.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc6/s480x480/6685_440466889368973_230807265_n.png)

ॐ साईं नाथाय नमः
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on March 28, 2013, 09:08:28 AM
ॐ साईं नाथाय नमः

(http://sphotos-c.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-prn1/73762_440876695994659_1547941576_n.jpg)

ॐ साईं नाथाय नमः

Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 28, 2013, 10:26:11 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

आध्यात्मिक सत्य तो सब तर्कों से उपर है | उस सत्य को पाने की तड़प यानि चेतनता की ऊँची अवस्था को विस्वास करना ही आध्यात्मिकता है |

बुद्धि से जो सत्य प्राप्त हो उसपर तो विचार किया जा सकता है परन्तु आध्यात्मिक सत्य वो तो सारे विचारों से उपर है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 29, 2013, 09:01:17 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

जो पुरुष कपटधर्ममय ग्रेहस्थाश्रम में ही रहता हुआ पुत्र ,स्त्री और धनको ही परम पुरषार्थ मानता है,वह अज्ञानवश संसारारण्य में ही भटकता रहनेके कारण उस परम कल्याणको प्राप्त नहीं कर सकता | दुःख के आत्यंतिक नाश और परमानन्द की प्राप्ति की नाम कल्याण है |
 
श्री मद्भागवत चतुर्थ स्कन्ध पचीसवाँ अध्याय पेज २४८

ॐ  साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on March 29, 2013, 09:57:47 AM
ॐ साईं नाथाय नमः

(http://sphotos-a.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-snc7/580273_440659149349747_788932899_n.jpg)

ॐ साईं नाथाय नमः
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 30, 2013, 02:08:04 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

आत्मा का लक्ष्य सुख की प्राप्ति अर्थात परमानन्द की प्राप्ति है ,किन्तु हम सुख को नहीं सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित करना ही जीवन का उदेश्य मान लेते हैं ,जो नश्वर हैं |

जो इस सत्य को जानते हुए भी लोभ का परित्याग नहीं करते वो सदैव इन्हें खोने के भय से जीते है और जो इस सत्य को जानते ही नहीं वो अहंकार में जीते हैं, और जहाँ अहंकार और भय  उपस्थित हो वहां सुख कैसे रह सकता है |

साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on March 30, 2013, 10:00:28 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

जिस प्रकार कुम्हार आगे में पके हुए घड़े पर हाथ की थाप मार मार कर वह कितना पका है उसकी पहचान करता है उसी प्रकार साधक के जीवन में विषम परिस्थितिका निर्माण कर, गुरु या ईश्वर अपने भक्त की साधकत्व और शरणागति की परीक्षा लेता है ! वस्तुतः एक उत्तम साधक के लिए विषम परिस्थितियाँ गुरु समान होती है जो उसे अंतर्मुख कर अध्यात्म के अनेक सूक्ष्म पक्ष सिखा देती है ! आखिर सोना तपकर ही कुन्दन बनता है |

साईं राम

Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 01, 2013, 09:07:27 AM

साईं नाथाय नमः

गुरु सदैव ही शिष्य के अंतःकरण में विराजमान रहते हैं | जब इहलौकिक /सांसारिक माया का आवरण हट जाता है और मन स्वच्छ और निर्मल हो जाता है तो गुरु की वास्तविक छवि शिष्य में प्रतिबिंबित होने लगती है | गुरु और शिष्य में कोई भेद नहीं रह जाता क्योकि वे सूक्ष्म रूप से एकदूसरे में रहते हैं |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 01, 2013, 09:51:05 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

आध्यात्म के दो मार्ग है | एक मार्ग है प्रेम का,ह्रदय का | एक मार्ग है ध्यान का ,बुद्धि का | ध्यान के मार्ग पर बुद्धि को शुद्ध करना है -इतना शुद्ध कि बुद्धि शेष ही न रह जाए | प्रेम के मार्ग में ह्रदय को शुद्ध करना है -इतना शुद्ध कि ह्रदय खो जाए | दोनों ही मार्ग से शून्य उपलब्धि करनी है ,मिटना है | कोई विचारों को काट-काटकर मिटेगा है ; कोई वासना को काट-काटकर मिटेगा |

प्रेम है वासना से मुक्ति | ध्यान है विचारों से मुक्ति | दोनों ही मिटा देंगे; और जहाँ स्वयं तुम नहीं, वहीँ परमात्मा है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 01, 2013, 09:52:49 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

सद्गुरु शिष्यकी कभी परीक्षा नहीं लेते; क्योंकि उन्हें शिष्यकी क्षमताका पूर्ण भान होता है | शिष्यकी क्षमता और गुरुभक्तिका भान सबको हो; अतः शिष्यको कठिनतम परिस्थितिमें डाल देते हैं और शिष्यको संपूर्ण गुरु-लीलाका भान होता है | अतः वह भी आनंदी होकर सब सहन करता है; इसलिए कहते हैं, गुरु-शिष्यका संबंध अंतरंग होता है |


ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 01, 2013, 10:25:43 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

नदी ने अकड़ते हुए कुएं से कहा- तेरी क्या औकात है तुझे पता है, कुआं हाथ जोड़कर बोला- बहनजी भटकाव और ठहराव में कुछ तो फर्क होता ही है।फर्क इतना ही है कि, तुम प्यासे के पास जाती हो और प्यासा मेरे पास आता है,तुम ऊपर से नीचे की ओर जाती हो, इसलिए मीठे से खारी हो जाती हो।मैं नीचे से ऊपर की ओर आता हूं, इसलिए मीठे का मीठा ही रह जाता हूं।"

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 02, 2013, 05:41:00 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

हमारे मानसिक अशांति का कारण ही हमारा भौतिक मोह है | यही मोह ही हमें सदैव सता रहा है | हमारे अन्दर गुण -अवगुण (पांडव-कौरव) दोनों है और उनमे निरंतर युद्ध (मनोयुद्ध) चलता रहता है और जब मन थका हुआ होता है तो असुरी शक्तिओं के आगे हारने लगता है या उसके सामने युद्ध करने के लिए तैयार नहीं होता है |

जब हम असफलताओं से हारने लगते हैं तो एकदम जीवन से भी हारने लगते हैं या उलझ जाते हैं |  थके हरे मन और निर्णय ना ले पाने में असमर्थ बुद्धि की वजह से मन को सही दिशा में ले जाने का आभाव हो जाता है और हम मानसिक अशांति में चले जाते हैं |

आशा की किरण तभी नजर आती है जब मार्ग निर्देशन के लिए स्वयं ईश्वरी बौधिक सत्ता (ज्ञान/सत्य ) रास्ता दिखलाती है और हम उसको अनुसरण करते हैं |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 02, 2013, 08:45:41 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

मत में, स्वभाव में, व्यक्तित्व में चाहे कितना भी भेद क्यों न हो, उसे सहन करे। उस भेद का कोई प्रभाव प्रेमपर न पड़ने दे। उसे मानना चाहिये कि कर्म की और रुचि की एकता नहीं हो सकती, परंतु प्रीति की एकता मैं कर सकता हूँ यह भावना चित्त शुद्धि का सुन्दर उपाय है।

रामजी और लक्ष्मणजी की मान्यतामें भेद था। श्रीराम समुद्रसे रास्ता माँगते हैं, लक्ष्मणजी को यह पसंद नहीं है, परंतु उनके प्रेम में किंचिन्मात्र भी कमी नहीं है।

ॐ साईं राम

Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 02, 2013, 10:23:12 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

अज्ञानतावश जाने-अनजाने भूल करना हमारी स्वाभिक प्रवृति है | भूल करने पर जितना दोष नहीं होता अपितु भूल को ना स्वीकार करने पर होता है , भूल से  कुछ ना सिखने और उसको  पुनः करने में होता है | गलतियों से ही हमें सिखने को मिलता है और यही ज्ञान हमें जीवन में उन्नति का मार्ग खोलता है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 02, 2013, 12:37:17 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

सद्गुरु शिष्यकी कभी परीक्षा नहीं लेते; क्योंकि उन्हें शिष्यकी क्षमताका पूर्ण भान होता है | शिष्यकी क्षमता और गुरुभक्तिका भान सबको हो; अतः शिष्यको कठिनतम परिस्थितिमें डाल देते हैं और शिष्यको संपूर्ण गुरु-लीलाका भान होता है | अतः वह भी आनंदी होकर सब सहन करता है; इसलिए कहते हैं, गुरु-शिष्यका संबंध अंतरंग होता है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 02, 2013, 11:53:02 PM

ॐ साईं नाथाय  नमः

श्री भगवत गीता में अर्जुन को सम्पूर्ण रहस्यों का ज्ञान देने के पश्चात् भगवान कहते हैं कि इसपर तुम पूर्ण विचार करो  और उसके पश्चात्  तुम्हारी जैसी इच्छा है वैसा ही करो ।

भगवान कितने साक्षी हैं ,निरभिमानी हैं यद्यपि स्वयम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं फिर भी बाध्य नहीं करते । स्वत्रंता देते हैं  निर्णय लेने का और उसका पालन करने का ।

पर यह अजीब विडम्बना है कि इस भौतिक जगत का प्राणी सदैव अहंकार से ग्रषित रहकर अपने विचारों को ही सर्वक्षेष्ठ  और दूसरों को बध्य्तामुलक आपनाने को विवस करता है या सदा प्रयासरत रहता है ।

हमें उसको पाना है / शरणागत होना है तो उसके आचरणों / गुणों /वचनों को भी अपनाना होगा और जीवन के  व्यवहार में लाना होगा । अन्यथा हमारी भक्ति /श्रधा /प्रेम  स्वयम को धोका देना और  मात्र एक आडम्बर तक ही सिमित रह जायेगी । इस जीवन के मूल उदेश्य से वंचित रह जायेंगा ।

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 03, 2013, 06:36:02 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

जैसे शराब से भरे घड़े को नदियाँ पवित्र नहीं कर सकती, वैसे ही बड़े-बड़े प्रायश्चित्त बार-बार किये जाने पर भी भगवद्विमुख मनुष्यों को पवित्र करने में असमर्थ है |

श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध पहला अध्याय पेज ३२६

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 03, 2013, 06:44:14 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

मनुष्य लौकिक और परलौकिक कष्टों से यह जानकर भी कि पाप उसका शत्रु है ,पापवासनाओं से विवश होकर बार-बार वैसे ही कर्मों में प्रवृत हो जाता है | मनुष्य कभी तो प्रायश्चित्त आदि के द्वारा पापो से छुटकारा पा लेता है ,कभी फिर उन्हें ही करने लगता है |

जैसे स्नान करने के बाद धुल डाल लेने के कारण हाथी का स्नान व्यर्थ हो जाता है , वैसे ही मनुष्य का प्रायश्चित्त करना भी व्यर्थ ही है |

श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध पहला अध्याय पेज ३२६

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 04, 2013, 12:30:55 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

योग्य और अयोग्य विषयों में विवेक द्वारा स्वीकृति ही योग्यता है
तथा हठपूर्वक करना अयोग्यता है |

महाऋषि सूतजी 

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on April 04, 2013, 09:18:45 AM
ॐ साईं नाथाय नमः



(http://sphotos-a.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash3/7584_443571582391837_1812896158_n.jpg)


ॐ साईं नाथाय नमः
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 04, 2013, 10:59:09 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

श्रधा और सबुरी

बाबा की कृपा हेतु कोई भी भारी आडम्बर की क्या आवश्यकता है केवल अपने विचारों में उनको स्थापित करना होता है, मन पवित्र रखना होता है और मन जब पवित्र हो तो व्यवसाय भी भक्ति का रूप ले लेता है और मन अगर अपवित्र होता है तो भक्ति मात्र व्यवसाय बनके रह जाती है |

साईं राम
Title: श्रीमद्भागवत में बतीस प्रकार के सेवापराधों का वर्णन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 04, 2013, 01:59:02 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

बतीस प्रकार के सेवापराधों का वर्णन श्रीमद्भागवत में किया गया है |

श्रीमद्भागवत षष्ठ स्कन्ध आठवाँ अध्याय पेज ३४९

१.  सवारी पे चढ़के अथवा पैरों में खडाऊँ पहनकर श्रीभगवान के मंदिर में जाना |
२.  यथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना |
३.  श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना |
४.  अशुचि अवस्था में दर्शन करना |
५.  एक हाथ से प्रणाम करना |
६.  परिक्रमा करते समय भगवान् के सामने कुछ न रूककर फिर परिक्रमा करना अथवा सामने ही  परिक्रमा करते रहना |
७.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने पैर पसारकर बैठना  |
८.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दोनों घुटनों को ऊँचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना |
९.  श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने सोना |
१०.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने भोजन करना |
११.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने झूट बोलना |
१२.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने जोरसे बोलना |
१३.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने आपस में बातचीत करना |
१४.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने चिल्लाना |
१५.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कलह करना |
१६.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को पीड़ा देना |
१७.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी पर अनुग्रह करना |
१८.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने किसी को निष्ठुर वचन बोलना |
१९.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने कम्बल से सारा शरीर ढक लेना |
२०.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरों की निंदा करना |
२१.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दूसरों की स्तुति करना |
२२.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अश्लील शब्द बोलना |
२३.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने अधोवायु का त्याग करना |
२४.शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात सामान्य उपचारों से भगवान् की सेवा पूजा करना |
२५.श्रीभगवान्  को निवेदित किये बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना |
२६.जिस ऋतू में जो फल हो, उसे सबसे पहले श्रीभगवान् को न चढ़ाना |
२७.किसी शाक या फलादिके अगले भाग को तोड़कर श्रीभगवान् के व्यंजनादिके लिए देना |
२८.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना |
२९.श्रीभगवान् के श्रीविग्रह के सामने दुसरे किसी को प्रणाम करना |
३०.गुरुदेव की अभ्यर्थना ,कुशल-प्रश्न और उनका स्तवन न करना |
३१.अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना |
३२.किसी भी देवता की निंदा करना |

ॐ साईं राम








 
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 04, 2013, 11:53:42 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

आत्मा का लक्ष्य सुख की प्राप्ति अर्थात परमानन्द की प्राप्ति है ,किन्तु हम सुख को नहीं सुख प्रदान करने वाली वस्तुओं को एकत्रित करना ही जीवन का उदेश्य मान लेते हैं ,जो नश्वर हैं |

जो इस सत्य को जानते हुए भी लोभ का परित्याग नहीं करते वो सदैव इन्हें खोने के भय से जीते है और जो इस सत्य को जानते ही नहीं वो अहंकार में जीते हैं, और जहाँ अहंकार और भय  उपस्थित हो वहां सुख कैसे रह सकता है |

साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 05, 2013, 09:49:45 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

परमपिता से मिलन में सबसे बड़ी बाधा समस्त एहलौकिक और परलौकिक इच्छाओं की आसक्ति है |आसक्ति से मुक्त होना ही अनासक्ति है | अनासक्त होने के लिए सर्वप्रथम एवंग सर्वोपरि अपने और पराये का भेद मिटाना  अनिवार्य है और यह तभी संभव होगा जब हम सुख की खोज बहार नहीं अपने भीतर करें | जब हम अपने स्वाभिक स्वरुप ,कर्तव्यों एवंग कर्मों को पहंचाने, उसे स्वीकार करें | हमें अपने सुख को सांसारिक वस्तुओं से परिभाषित नहीं करें | जबतक हम ऐसा करते रहेंगे हम बंधते जायेंगे | जब हम स्वयम अपने भीतर झांकना आरम्भ करेंगे तो हमें हमारे जीवन के उदेश्य को जान पायेंगे और उसको प्राप्त करने का मार्ग प्रसस्थ होता जायेगा | 

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: SaiSonu on April 05, 2013, 11:07:04 AM
ॐ साईं नाथाय नमः


(http://sphotos-g.ak.fbcdn.net/hphotos-ak-ash3/150158_443740039041658_219375658_n.jpg)


ॐ साईं नाथाय नमः

Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 06, 2013, 01:12:56 AM

ॐ साईं नाथाय नमः

ज्ञान वो प्रकाश पुंज है जो हमें सत्य-असत्य  से अवगत कराता है | यह हमें सर्वश्रेष्ठ बनता है | इस धन को कोई हमसे चुरा नहीं सकता अपितु अहंकार से अवश्य हम इसे खो सकते हैं |


साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 06, 2013, 11:18:43 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

कार्य की सफलता ओर असफलता स्वयं के हाथों  में नहीं होती वो परमपिता के इच्छा शक्ति पर ही निर्भर होती है  पर सही मंजिल  का चुनाव एवंग पुरषार्थ करना स्वयं के हाथों में होता है | पुरषार्थ करना ही हमारे हाथों में है ,परिणाम नहीं | साक्षी भाव को रखते हुये किया हुआ पुरषार्थ स्वयं को  कर्तापन की भावना से  दूर रखता है |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 07, 2013, 02:52:50 PM


ॐ साईं नाथाय नमः

भारतीय शास्त्र दावे के साथ कहते हैं कि मानव का ईश्वर के साथ एकीकरण निश्चित है पर उससे पहले मानव का मानव से एकीकरण तो हो |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 07, 2013, 02:59:06 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

मनुष्य को ज्ञान की साधना में अवश्य जलना चाहिए, सूरज न बन सको पर दीपक अवश्य बनना चाहिए |
दूसरों को मार्ग दिखलाने के पहले स्वयं को मार्ग खोजना चाहिए |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 08, 2013, 12:07:23 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

सबसे ज्यादा सावधान तो हमें रहना है क्योकि सत्य की प्राप्ति स्वार्थ की प्राप्ति न हो जाये |

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 11, 2013, 10:08:18 AM


ॐ साईं नाथाय नमः

जिस प्रकार रस वृक्ष की जड़ से लेकर शाखाग्रपर्यन्त रहता है, किन्तु इस स्थिति में उसका आस्वादन नहीं किया जा सकता ; वाही जब अलग होकर फलके रूपमे आ जाता है तो संसार में सभी को प्रिय लगने लगता है । दूध में घी रहता ही है,किन्तु उस समय उसका अलग ही स्वाद नहीं मिलता; वाही जब उससे अलग हो जाता है तब सभी के लिए स्वादवर्धक हो जाता है । खांड ईख के  ओर-छोर ओर बीच में भी व्याप्त रहती है, तथापि अलग होनेपर उसकी कुछ और ही मिठास होती है।

ॐ साईं राम
Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 12, 2013, 11:56:43 AM


ॐ श्री साईं नाथाय नमः

जिसने चित्त की चंचलता को कम नहीं किया उसका संकल्प मजबूत नहीं रह सकता। दृढ़ वही रह सकता है जिसमें भय नहीं है, जिसमें क्षोभ नहीं है, चित्त की चंचलता नहीं है, जो कष्टों से घबराता नहीं है। शक्ति जागरण का एक मार्ग है शुभ भाव में रहना। केवल जागरूकता के साथ संकल्प करें कि मेरा मन शुद्ध हो रहा है, भाव शुद्ध हो रहा है, परिणाम शुद्ध हो रहा है। शक्ति का जागरण स्वत: हो जाएगा। हमें जागरूक रहना है कि मन में बुरे विचार न आएं, बुरी कल्पना न आए, बुरे भाव न आएं। यह जागरूकता बढ़ जाए तो शक्ति अपने आप जाग उठती है।

ॐ साईं राम

Title: Re: अमृत वचन
Post by: Pratap Nr.Mishra on April 13, 2013, 01:17:54 PM

ॐ साईं नाथाय नमः

व्यक्ति स्वयम के दृष्टिकोण से सत्य को परिभाषित कर लेता है जबकि वास्तविकता इससे भिन्न होती है | इसलिए अव्सकता है अहंकार रहित सोच की |

साईं राम