जय साईं राम जी
वाह बहन!
आज सुबह मेरे मन में भी यही चिन्तन था, और आज सवेरे मैंने बाबा को कहा की
बाबा आप बिना किसी अस्त्र शस्त्र लिय बैठे हो क्यू की आप बिना शस्त्र के ही हमारा इतने अच्छे से रक्षण करते हो आप बिना अभय मुद्रा दिखाए अभय देते हो
हे प्रभु आप बहुत सुंदर हो।...
ऐसे आज मैंने बाबा का स्तवन किया फिर मेरी दृष्टि बाबा की उंगलियों पर गई और जो आपने लिखा हैं न ,वही हेमाडपंत जी के शब्द मेरे मन में आये।
तब मैंने सोचा क्या इसका और कोई भाव भी हो सकता हैं?
भगवान की एक लीला के ही अनेक भक्त अनेक अर्थ ग्रहण करते हैं और सबके भाव अलग होते हैं और जब वे आपस में अपने भावो को व्यक्त करते हैं तो रस आता हैं।
ऐसा सोचकर ही मैंने इसके और भाव क्या होगा ऐसा सोचा
बाबा का अंगूठा हैं बाबा के प्रति ईश्वर भाव से भक्ति ,योगक्षेम के लिय उन्ही पर आश्रित होना
तर्जनी ऊँगली हैं बाबा के प्रति गुरु भाव रखकर निष्ठां और समर्पण
और मध्यमा हैं बाबा को अपने माँ बाप मानकर उनके प्रति आदर , प्रेम
बाकी दो उंगलिया गौड़ भाव हैं, वात्सल्य और सख्य जो की बाकि भावो की अपेक्षा में कम भक्तो में होगी.
जो भक्त इन भावो से बाबा के चरणों का ध्यान करता हैं
अथवा इन भावों को या किसी एक को भी पकड़ कर साईं को पाना चाहे वह बाबा के कृपा कटाक्ष से उन के चरणों में जगह पा सकता हैं।
जब भक्त अनन्य भाव से साईं को आस भरी नजरो से देखता हैं तो साईं उसे निराश नही करते।
अनन्य का मतलब हैं की हम साईं जी के साईं जी हमारे हैं।और किसी से आस हम नही लगाते।
इन भावों में से अपना प्रेम प्रगाढ़ कर भक्त , साईं जी के दाहिने चरण तक पहुँचता हैं और बाबा कृपा कर उसे अपनी गोदी में ले लेते हैं। बाबा उसे प्रपंच के आकर्षण से बचाकर उसका समाधान कर देते है। भुक्ति मुक्ति प्रदान कर फिर उस से भी ऊपर, अपनी अहैतुकी कृपा उसपर करते हैं।
आशा हैं साईं जी मेरे हृदय में और सुन्दर भाव उदित कर मुझे अपने आनन्दमय स्वरुप की अनुभूति देंगे।
जय साईं राम