जय सांई राम।।।
एक ऋषि भोजन करने बैठे थे कि एक याचक ने आकर भोजन की मांग की। खाना पर्याप्त न होने के कारण ऋषि ने साफ मना कर दिया। याचक बोला, 'भोजन न कराएं, पर यह तो बताएं कि आप किस देवता की उपासना करते हैं?' ऋषि बोले, 'मैं प्राण की उपासना करता हूं।' याचक ने पूछा, 'यह प्राण क्या है और आप उसकी कैसे उपासना करते हैं?' ऋषि बोले, 'प्राण तो सर्वव्यापक है। वह सब में विराजमान है। हम इसी इष्टदेव के लिए सब कुछ करते हैं।'
याचक बोला, 'आपके कथनानुसार तो आपका इष्टदेव मेरे अंदर भी विद्यमान है और वही आज आपके समक्ष आहार-याचक बनकर खड़ा है। फिर आप अपने उपास्य की अवमानना क्यों कर रहे हैं?' ऋषि को अपनी भूल का एहसास हुआ। वे बोले, 'आओ, हम मिलकर भोजन करें। तुम्हीं मेरे इष्टदेव हो।'
ॐ सांई राम।।।