जय सांई राम।।।
अरब के लोगों में हातिमताई अपनी उदारता के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। वह सबको खुले हाथों दान देता था। एक बार उसने एक बड़ी दावत दी। इसमें कोई भी शामिल हो सकता था। हातिमताई कुछ सरदारों को लेकर दूर के मेहमानों को बुलावा देने चला। रास्ते में उसने एक लकड़हारे को देखा, जो सिर पर लकड़ियां उठाए चला जा रहा था।
हातिमताई ने उससे कहा, 'ओ भाई! जब हातिमताई दावत दे रहा है तो उसमें क्यों नहीं शरीक हो जाते? तुम्हें इतनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी।' लकड़हारे ने जवाब दिया, 'जो खुद अपनी रोटी कमाते हैं, उन्हें हातिमताई की मदद की जरूरत नहीं होती।' हातिमताई अवाक रह गया।
ॐ सांई राम।।।