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Author Topic: WISDOM THOUGHTS  (Read 205693 times)

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
Re: WISDOM THOUGHTS
« Reply #825 on: August 21, 2015, 12:33:12 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #826 on: August 23, 2015, 03:09:32 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #827 on: August 23, 2015, 03:11:49 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #828 on: August 23, 2015, 03:41:56 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #829 on: August 25, 2015, 02:41:20 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #830 on: August 27, 2015, 02:27:40 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #831 on: August 30, 2015, 07:20:57 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #832 on: September 19, 2015, 04:33:35 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    बुद्ध के पास ऐसा हुआ था। एक राजकुमार दीक्षित हुआ था। पहले दिन ही वह भिक्षा मांगने गया था।
    उसने, जिस द्वार पर बुद्ध ने भेजा था, भिक्षा मांगी। उसे भिक्षा मिली। उसने भोजन किया,
    वह भोजन करके वापस लौटा। लेकिन उसने बुद्ध को जाकर कहा, क्षमा करें, वहां मैं दुबारा नहीं जा सकूंगा।

    बुद्ध ने कहा, ‘क्या हुआ?’

    उसने कहा कि ‘यह हुआ कि जब मैं गया, दो मील का फासला था, रास्ते में मुझे वे भोजन स्मरण आए,
    जो मुझे प्रीतिकर हैं।
    और जब मैं उस द्वार पर गया, तो उस श्राविका ने वे ही भोजन बनाए थे।

    मैं हैरान हुआ। मैंने सोचा, संयोग है। लेकिन फिर यह हुआ कि जब मैं भोजन करने बैठा,
    तो मेरे मन में यह खयाल आया कि रोज अपने घर था, भोजन के बाद दो क्षण विश्राम करता था।
    आज कौन विश्राम करने को कहेगा!

    और जब मैं यह सोचता था, तभी उस श्राविका ने कहा, भंते, अगर भोजन के बाद दो क्षण रुकेंगे
    और विश्राम करेंगे, तो अनुग्रह होगा, तो कृपा होगी, तो मेरा घर पवित्र होगा। तो मैं हैरान हुआ था।

    फिर भी मैंने सोचा कि संयोग होगा कि मेरे मन में खयाल आया और उसने भी कह दिया।
    फिर मैं लेटा और विश्राम करने को था कि मेरे मन में यह खयाल उठा कि आज न अपनी कोई शय्या है,
    न कोई साया है। आज दूसरे का छप्पर और दूसरे की दरी पर, दूसरे की चटाई पर लेटा हूं।

    और तभी उस श्राविका ने पीछे से कहा, भिक्षु, न शय्या आपकी है, न मेरी है। और न साया आपका है,
    न मेरा है। और तब मैं घबरा गया। अब संयोग बार-बार होने मुश्किल थे।

    मैंने उस श्राविका को कहा, क्या मेरे विचार तुम तक पहुंच जाते हैं? क्या मेरे भीतर चलने वाली विचारधाराएं
    तुम्हें परिचित हो जाती हैं?

    उस श्राविका ने कहा, ध्यान को निरंतर करते-करते अपने विचार शून्य हो गए हैं और अब दूसरों के विचार भी
    दिखायी पड़ते हैं। तब मैं घबरा गया और मैं भागा हुआ आया हूं। और मैं क्षमा चाहता हूं, कल मैं वहां नहीं जा सकूंगा।’

    बुद्ध ने कहा, ‘क्यों?’ उसने कहा कि ‘इसलिए कि…कैसे कहूं, क्षमा कर दें और न कहें वहां जाने को।’

    लेकिन बुद्ध ने आग्रह किया और उस भिक्षु को बताना पड़ा।

    उस भिक्षु ने कहा, ‘उस सुंदर युवती को देखकर मेरे मन में विकार भी उठे थे, वे भी पढ़ लिए गए होंगे।

    मैं किस मुंह से वहां जाऊं? कैसे मैं उस द्वार पर खड़ा होऊंगा? अब दुबारा मैं नहीं जा सकता हूं।’

    बुद्ध ने कहा, ‘वहीं जाना होगा। यह तुम्हारी साधना का हिस्सा है। इस भांति तुम्हें विचारों के प्रति जागरण
    पैदा होगा और विचारों के तुम निरीक्षक बन सकोगे।’

    मजबूरी थी, उसे दूसरे दिन फिर जाना पड़ा। लेकिन दूसरे दिन वही आदमी नहीं जा रहा था। पहले दिन
    वह सोया हुआ गया था रास्ते पर। पता भी न था कि मन में कौन-से विचार चल रहे थे। दूसरे दिन वह सजग गया,
    क्योंकि अब डर था। वह होशपूर्वक गया। और जब उसके द्वार पर गया, तो क्षणभर ठहर गया सीढ़ियां चढ़ने के पहले।
    अपने को उसने सचेत कर लिया। उसने भीतर आंख गड़ा ली।

    बुद्ध ने कहा था, भीतर देखना और कुछ मत करना। इतना ही स्मरण रहे कि अनदेखा कोई विचार न हो,
    अनदेखा कोई विचार न हो। बिना देखे हुए कोई विचार निकल न जाए, इतना ही स्मरण रखना बस।

    वह सीढ़ियां चढ़ा, अपने भीतर देखता हुआ। उसे अपनी सांस भी दिखायी पड़ने लगी। उसे अपने हाथ-पैर का
    हलन-चलन भी दिखायी पड़ने लगा। उसने भोजन किया, एक कौर भी उठाया, तो उसे दिखायी पड़ा।
    जैसे कोई और भोजन कर रहा था और वह देखता था।

    जब आप दर्शक बनेंगे अपने ही, तो आपके भीतर दो तत्व हो जाएंगे, एक जो क्रियमाण है और
    एक जो केवल साक्षी है। आपके भीतर दो हिस्से हो जाएंगे, एक जो कर्ता है और एक जो केवल द्रष्टा है।

    उस घड़ी उसने भोजन किया। लेकिन भोजन कोई और कर रहा था और देख कोई और रहा था। और
    हमारा मुल्क कहता है–और सारी दुनिया के जिन लोगों ने जाना है, वे कहते हैं–कि जो देख रहा है,
    वह आप हैं; और जो कर रहा है, वह आप नहीं हैं।

    उसने देखा, वह हैरान हुआ। वह नाचता हुआ वापस लौटा। और उसने बुद्ध को जाकर कहा,
    ‘धन्य है, मुझे कुछ मिल गया। दो अनुभव हुए हैं; एक तो यह अनुभव हुआ कि जब मैं बिलकुल सजग
    हो जाता था, तो विचार बंद हो जाते थे।’

    उसने कहा, ‘एक अनुभव तो यह हुआ कि जब मैं बिलकुल सजग होकर देखता था भीतर,
    तो विचार बंद हो जाते थे। दूसरा अनुभव यह हुआ कि जब विचार बंद हो जाते थे,
    तब मैंने देखा, कर्ता अलग है और द्रष्टा अलग है।’

    बुद्ध ने कहा, ‘इतना ही सूत्र है। जो इसे साध लेता है, वह सब साध लेता है।’

    विचार के द्रष्टा बनना है, विचारक नहीं। स्मरण रहे, विचारक नहीं, विचार के द्रष्टा।


    ॐ साईं राम, श्री साईं  राम, जय जय साईं राम !!!



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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #833 on: October 05, 2015, 04:50:15 AM »
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    « Reply #834 on: October 29, 2015, 12:19:42 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #835 on: October 29, 2015, 01:53:47 AM »
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  • shaiviji
    sabi thoughts me kuch samjnewali bathe hai sabi thoughts bhut ache hai

    om sai ram

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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #836 on: November 07, 2015, 10:21:52 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #837 on: November 14, 2015, 06:51:07 AM »
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    Re: WISDOM THOUGHTS
    « Reply #838 on: November 14, 2015, 11:20:16 PM »
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    « Reply #839 on: November 18, 2015, 11:57:15 PM »
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