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Main Section => SAMARPAN - Spiritual Sai Magazine => Topic started by: arti sehgal on March 05, 2010, 02:19:25 AM
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दया द्रिस्टी
साईनाथ दयाद्रिस्टी हम पर डालिए
मैं गिरने लगा हूँ मुझे संभालिए
तेरा परम भक्त हूँ
तेरी सेवा करना चाहता हूँ
तेरी किरपा जिस पर पड़े
उसकी किस्मत खुल जाये
तेरी लीला अपरम्पार है
जिस पर पड़े
उसका बेडापार है
अपनी द्रिस्टी से करुणा झलका
मेरी सुनी ज़िन्दगी में रंग भर्जा
अपनी ममता की छाव में
आज मुझको चुपाले
इस संसार रुपी जाल से
मुझे बचाले
तू इश्वर है
मुझे तुझ पर मान है
तेरा भक्त होने का मुझे अभिमान है
मुझे अपनी हर भूल का एहसास है
तेरे अंदर शमा का वास है
तेरे रंग में रंगना चाहता हूँ
जीवन में झूमना चाहता हूँ
दुखों से मेरा कोई नाता नहीं
सुखो में जीना चाहता हूँ
तेरी कल्पना करके साईनाथ
तुझे अपना बंनाना चाहता हूँ
सृष्टी की रचना तुझसे है
तू सबका भाग्याविदाता है
तेरी हर आहट को पहचाना चाहता हूँ
तुझमे डूब जाना चाहता हूँ
तुझे भूल न पाऊ साईं रे
मैं खुद को भूल जाना चाहता हूँ
इसको प्रतिदिन गायजा
ओरो को बताई जा
आओ हम मिलकर करे संचार
यही था साईनाथ का विचार
साईराम