झुकी नज़र
मै साईंनाथ के सामने बैठी थी
मै साईंनाथ की नजरो की तरफ देख रही थी
साईंनाथ मेरी नजरो की तरफ देख रहे थे
देखते ही देखते मेरी नज़रे झुक गयी
मेरी झूकी नज़रे बहुत कुछ कह रही थी
वोह कह रही थी............
मेरे ओर साईं मे अभी भी बहुत फासला है
अभी भी मेरे अन्दर बहुत कमिया है
अभी भी मेरा मन शान्त नहीं है
अभी भी मेरे मन मे बहुत भाव उमड़ रहे है
मै जिससे नज़रे मिला रही हूँ
वोह तो जग के अंतर्यामी है
वोह तो सृष्टि के रचक है
आज उसके समक्ष खड़े होने के लिए
मेरे अन्दर ध्रेये ओर विश्वास चाहिए
हम बाते बहुत करते है
बाते कहने में ओर करने में बहुत अंतर होता है
आज में बाबा से प्राथना करती हूँ
आप मुझे हिम्मत ओर शक्ति दे
ताकि में आपके समक्ष कभी भी खड़ी हूँ
आपसे नज़रे झुकाके नहीं नज़रे मिलकर खड़ी हूँ
जय साईंराम .......................................