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Author Topic: Sanskar Stories !!!  (Read 68729 times)

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Offline SaiSonu

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Re: Sanskar Stories !!!
« Reply #15 on: March 06, 2013, 12:16:01 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!

    प्रभु की सीख


    एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते? एक दिन उससे न रहा गया| वह भिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?"

    भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि  एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|"


    लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|



    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!

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    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline SaiSonu

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #16 on: March 07, 2013, 07:43:17 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!



    एक बार बुद्ध एक गांव में अपने किसान भक्त के यहां गए। शाम को किसान ने उनके प्रवचन का आयोजन किया। बुद्ध का प्रवचन सुनने के लिए गांव के सभी लोग उपस्थित थे, लेकिन वह भक्त ही कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। गांव के लोगों में कानाफूसी होने लगी कि कैसा भक्त है कि प्रवचन का आयोजन करके स्वयं गायब हो गया। प्रवचन खत्म होने के बाद सब लोग घर चले गए। रात में किसान घर लौटा। बुद्ध ने पूछा, कहां चले गए थे? गांव के सभी लोग तुम्हें पूछ रहे थे।

    किसान ने कहा, दरअसल प्रवचन की सारी व्यवस्था हो गई थी, पर तभी अचानक मेरा बैल बीमार हो गया। पहले तो मैंने घरेलू उपचार करके उसे ठीक करने की कोशिश की, लेकिन जब उसकी तबीयत ज्यादा खराब होने लगी तो मुझे उसे लेकर पशु चिकित्सक के पास जाना पड़ा। अगर नहीं ले जाता तो वह नहीं बचता। आपका प्रवचन तो मैं बाद में भी सुन लूंगा। अगले दिन सुबह जब गांव वाले पुन: बुद्ध के पास आए तो उन्होंने किसान की शिकायत करते हुए कहा, यह तो आपका भक्त होने का दिखावा करता है। प्रवचन का आयोजन कर स्वयं ही गायब हो जाता है।

    बुद्ध ने उन्हें पूरी घटना सुनाई और फिर समझाया, उसने प्रवचन सुनने की जगह कर्म को महत्व देकर यह सिद्ध कर दिया कि मेरी शिक्षा को उसने बिल्कुल ठीक ढंग से समझा है। उसे अब मेरे प्रवचन की आवश्यकता नहीं है। मैं यही तो समझाता हूं कि अपने विवेक और बुद्धि से सोचो कि कौन सा काम पहले किया जाना जरूरी है। यदि किसान बीमार बैल को छोड़ कर मेरा प्रवचन सुनने को प्राथमिकता देता तो दवा के बगैर बैल के प्राण निकल जाते। उसके बाद तो मेरा प्रवचन देना ही व्यर्थ हो जाता। मेरे प्रवचन का सार यही है कि सब कुछ त्यागकर प्राणी मात्र की रक्षा करो। इस घटना के माध्यम से गांव वालों ने भी उनके प्रवचन का भाव समझ लिया।


    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!
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    Offline SaiSonu

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #17 on: March 09, 2013, 04:21:26 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!




    प्रार्थना क्या है? – प्रेम और समर्पण. जहां प्रेम नहीं है, वहां प्रार्थना नहीं है.
     
    प्रेम के स्मरण में एक अद्भुत घटना का उल्लेख है. नूरी, रक्काम एवं कुछ अन्य सूफी फकीरों पर काफिर होने का आरोप लगाया गया था और उन्हें मृत्यु दण्ड दिया जा रहा था.
    जल्लाद जब नंगी तलवार लेकर रक्काम के निकट आये, तो नूरी ने उठकर स्वयं को अपने मित्र के स्थान पर अत्यंत प्रसन्नता और नम्रता के साथ पेश कर दिया. दर्शक स्तब्ध रह गये. हजारों लोगों की भीड़ थी. उनमें एक सन्नाटा दौड़ गया. जल्लाद ने कहा, “हे युवक, तलवार ऐसी वस्तु नहीं है, जिससे मिलने के लिए लोग इतने उत्सुक और व्याकुल हों. और फिर तुम्हारी अभी बारी भी नहीं आयी है.”
    और, पता है कि फकीर नूरी ने उत्तर में क्या कहा? उन्होंने कहा, “प्रेम ही मेरा धर्म है. मैं जानता हूं कि जीवन संसार में सबसे मूल्यवान वस्तु है, लेकिन प्रेम के मुकाबले वह कुछ भी नहीं है. जिसे प्रेम उपलब्ध हो जाता है, उसके लिए जीवन खेल से ज्यादा नहीं है. संसार में जीवन श्रेष्ठ है लेकिन प्रेम जीवन से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि वह संसार का नहीं, सत्य का अंग है. और प्रेम कहता है कि जब मृत्यु आये, तो अपने मित्रों के आगे हो जाओ और जब जीवन मिलता हो तो पीछे. इसे हम प्रार्थना कहते हैं.”
    प्रार्थना का कोई ढांचा नहीं होता है. वह तो हृदय का सहज अंकुरण है. जैसे पर्वत से झरने बहते हैं, ऐसे ही प्रेम-पूर्ण हृदय से प्रार्थना का आविर्भाव होता है.


    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #18 on: March 12, 2013, 03:48:15 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!

    प्रभु को भी प्रिय है सरलता


    सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।

    कुठार लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला - 'सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है। टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।'

    चंदन का वृक्ष धीरे से बोला - 'भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं। मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।'

    लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्‍गति को प्राप्त हुआ। उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी। मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।

    यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आवश्यकता थी। लकड़हारे उसी वन प्रांतर में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगा जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे। अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया। उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे।

    यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था। वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बन चंदन बोला - 'आओ मित्र! ईश्वर की इच्‍छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया। अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है। मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।

    पलाश बोला - 'देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे। मुझे भय लग रहा है। ‍अब बिछड़ना ही पड़ेगा।'

    चंदन ने कहा - 'भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बनाकर धन्य कर‍ दिया तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते। सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना। सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं। सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।'

    बाबा तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है -

    निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
    मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

    अचानक पलाश का मुख एक आध्‍यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।


    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!


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    Offline SaiSonu

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #19 on: March 13, 2013, 12:58:17 AM »
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  • ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!


    ईश्वर का स्थान



    एक बार ब्रह्माजी दुविधा में पड़ गए। लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यावहारिक मुश्किलें आ रही थीं। कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो ब्रह्माजी के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता। उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। ब्रहाजी इससे दुखी हो गए थे। अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले, ‘देवताओं, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं। कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता है, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।’

    ब्रह्माजी के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। गणेश जी बोले, ‘आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं।’ ब्रह्माजी ने कहा, ‘यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में है। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।’ इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं। वरुण देव बोले ‘आप अंतरिक्ष में चले जाइए।’

    ब्रह्माजी ने कहा, ‘एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।’ ब्रह्माजीनिराश होने लगे थे। वह मन ही मन सोचने लगे, ‘क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं है, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं।’ अंत में सूर्य देव बोले, ‘आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य इस स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा।’ ब्रह्माजी को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया। वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ब्रह्माजीको ऊपर ,नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहे। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए देवता को नहीं देख पा रहा है।



    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!

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    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #20 on: March 14, 2013, 12:15:17 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    अकबर का नाम तो आप सबने सुना ही होगा। भारत में अंग्रेजों से पहले मुगलों का राज्य था
    और अकबर एक मुगल शासक था। उसके नवरत्नों में उसका मन्त्री बीरबल भी था। वह बहुत
    बुद्धिमान था। एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार
    में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल
    के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?
    और वह करता क्या है?’’ बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन
    प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।"

    जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे। उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया-
     ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?
    और वह करता क्या है?’ पूछे हैं।

    मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कल दरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र
    ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह
    के प्रश्नों के उत्तर दूँगा।’’

    पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को
    देख कर बादशाह अकबर ने कहा- ‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तर दो। बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह
    आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’

    अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र
    ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है?
    अकबर ने दूध चखा और कहा कि ये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर
    दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार
    संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है।

    बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’
    बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के
    पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा-
    ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह!
    मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’

    बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’
    बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’
    अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुम गुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह गुरू
    तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर
    दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके
    अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब? मैं कुछ समझा नहीं।’’
    बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है
    और भिखारी को सम्राट बना देता है।

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
    « Last Edit: March 14, 2013, 12:17:26 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #21 on: March 14, 2013, 02:01:56 AM »
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    अंतर की स्वच्छता




    किसी कस्बे में दो आदमी रहते थे| एक का नाम था प्रेम दूसरे का नाम विनय| दोनों के घर आमने-सामने थे| एक दिन संयोग से किसी बात पर उनमें तनातनी हो गई| बात छोटी-सी थी, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ गई| दोनों ही बेहद उत्तेजित हो उठे| प्रेम आपे से बाहर हो गया| वह बोला - "शैतान के बच्चे, तेरी अकल घास चरने चली गई है|"

    इतना सुनना था कि विनय दांत पीसकर बोला - "तूने मेरे बाप को गाली दी है! तेरी इतनी हिम्मत!"

    वह दौड़कर अपने घर से तलवार ले आया और प्रेम पर वार कर दिया| प्रेम ने वार रोकने की कोशिश की तो तलवार उसके हाथ में लग गई| जिससे घाव हो गया| खून बहने लगा, तभी मोहल्ले के लोगों ने आकर बीच-बचाव कर दिया| दोनों अपने-अपने घर चले गए|

    कुछ दिन बीत गए| प्रेम के हाथ का घाव ठीक हो गया| वह उस घटना को भूल गया, पर विनय का मन साफ नहीं हुआ| वह जैसे ही प्रेम को देखता तो मुंह फेरकर निकल जाता|

    एक दिन वे दोनों आमने-सामने आ गए| जब विनय बचकर जाने लगा तो प्रेम ने जी कड़ा करके उसका हाथ पकड़ लिया और कहा - "क्यों क्या बात है? यह देखो मेरा घाव ठीक हो गया|"

    इतना कहकर उसने अपना हाथ विनय के आगे कर दिया| विनय ने उसे देखा नहीं| दूसरी ओर को मुंह करके कहा - "तलवार का घाव भर जाता है, पर बात का घाव कभी नहीं भरता| वह हमेशा टीसता रहता है|"

    प्रेम की आंखें डबडबा आईं - "लेकिन जो सच्चे हृदय से अपनी भूल स्वीकार कर लेता है, उसे क्षमा मिलनी चाहिए|" विनय ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन प्रेम ने नहीं छोड़ा| अंतर के आवेग से उसका हाथ कांप रहा था| उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे| विनय का तनाव ढीला हो गया| प्रेम के हृदय की निर्मलता ने उसके भीतर की गांठ को खोल दिया| उसने अनुभव किया कि घाव तलवार का हो या बात का वह असाध्य अंदर के विष से बनता है| अंतर की स्वच्छता से बढ़कर और कुछ नहीं है|



    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!
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    साधना का दृष्टिकोण
    « Reply #22 on: March 15, 2013, 04:39:24 AM »
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  • ॐ साईं नाथाय नमः

    साधना का  दृष्टिकोण 

    एक बार कबीरदास जी को लगने लगा की उनके पास साधक कम और सांसारिक इच्छा की पूर्ती करनेवाले लोग अधिक आने लगे हैं अतः एक दिन उन्होंने सबके सामने एक वैश्या के घर चले गए | वहां उपस्थति अधिकांश लोग कानाफूसी करने लगे और कहने लगे " देखा, मैंने तो पहले ही कहा था की ये ढोंगी हैं चलो अच्छा हुआ कि उनकी कलाई खुल गयी " और सब प्रवचन स्थल से चले गए | एक घंटे पश्चात कबीर दस जी लौटे तो देखा की पूरा मैदान खली था और मात्र पांच लोग वहां बैठे थे , जैसे ही उन्होंने उन्हें देखा उनके चरण स्पर्श किये |

    कबीरदासजी बोले " अरे तुमने देखा नहीं मैं अभी कहाँ गया था" !! वहां उपस्थित एक साधक ने कहा "महाराज, हम सब तो यह जानते हैं की उस वैश्य ने निश्चित ही कुछ पुण्य किये होंगे जो आपकी चरण धूलि उसके आँगन तक पहुँच गयी , उसके तो भाग्य जग गए " !!! कबीरदास जी मुस्कुराये और बोले बैठो " भिखमंगो की भीड़ लग गयी थी इसलिए उन्हें भगाने के लिए यह सब नाटक करना पड़ा और उन्होंने उन पांचो को ज्ञान दिए !! संतों की लीला का हम अपनी बुद्धि से कभी भी समीक्षा नहीं कर सकते हैं उनकी प्रत्येक लीला निराली होती है


    ॐ साईं राम

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #23 on: March 15, 2013, 04:53:49 AM »
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    विश्वास की शक्ति



    एक बार नारदजी एक पर्वत से गुजर रहे थे। अचानक उन्होंने देखा कि एक विशाल वटवृक्ष के नीचे एक तपस्वी तप कर रहा है। उनके दिव्य प्रभाव से वह जाग गया और उसने उन्हें प्रणाम करके पूछा कि उसे प्रभु के दर्शन कब होंगे। नारदजी ने पहले तो कुछ कहने से इनकार किया, फिर बार-बार आग्रह करने पर बताया कि इस वटवृक्ष पर जितनी छोटी-बड़ी टहनियां हैं उतने ही वर्ष उसे और लगेंगे। नारदजी की बात सुनकर तपस्वी बेहद निराश हुआ। उसने सोचा कि इतने वर्ष उसने घर-गृहस्थी में रहकर भक्ति की होती और पुण्य कमाए होते तो उसे ज्यादा फल मिलते। वह बोला, ‘मैं बेकार ही तप करने आ गया।’ नारदजी उसे हैरान-परेशान देखकर वहां से चले गए।

    आगे जाकर संयोग से वह एक ऐसे जंगल में पहुंचे, जहां एक और तपस्वी तप कर रहा था। वह एक प्राचीन और अनंत पत्तों से भरे हुए पीपल के वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था। नारदजी को देखते ही वह उठ खड़ा हुआ और उसने भी प्रभु दर्शन में लगने वाले समय के बारे में पूछा। नारदजी ने उसे भी टालना चाहा, मगर उसने बार-बार अनुरोध किया। इस पर नारदजी ने कहा कि इस वृक्ष पर जितने पत्ते हैं उतने ही वर्ष अभी और लगेंगे। हाथ जोड़कर खड़े उस तपस्वी ने जैसे ही यह सुना, वह खुशी से झूम उठा और बार-बार यह कहकर नृत्य करने लगा कि प्रभु उसे दर्शन देंगे। उसके रोम-रोम से हर्ष की तरंगें उठ रही थीं।

    नारदजी मन ही मन सोच रहे थे कि इन दोनों तपस्वियों में कितना अंतर है। एक को अपने तप पर ही संदेह है। वह मोह से अभी तक उबर नहीं सका और दूसरे को ईश्वर पर इतना विश्वास है कि वह वर्षों प्रतीक्षा के लिए तैयार है। तभी वहां अचानक अलौकिक प्रकाश फैल गया और प्रभु प्रकट होकर बोले, ‘वत्स! नारद ने जो कुछ बताया वह सही था पर तुम्हारी श्रद्धा और विश्वास में इतनी गहराई है कि मुझे अभी और यहीं प्रकट होना पड़ा।’


    ॐ श्री साईं नाथाय नमः!!!
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    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू


    ॐ साईं नाथाय नमः

    एकबार अन्धकार ब्रह्माजी  के पास पहुंचा और फरियाद  करने लगा की सूर्य  मुझे बहुत कष्ट देता है । उसके भय के कारण ही मै निरंतर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में इधर-उधर भागता रहता हूँ विश्राम भी नहीं कर पाता । प्रातःकाल से संधाकाल तक मेरा पीछा करता रहता है और मै भागता रहता हूँ । संध्या के बाद थोडा विश्राम करने की  सोचता हूँ तो पुनः प्रातःकाल हो जाती है और मुझे फिर भागना पड़ता है । ब्रह्माजी आप सूर्य को समझाइये और  मुझे इस तरह से मेरा पीछा  और भयभीत करने के लिए मना कीजिये ।

    ब्रह्माजी ने सूर्य को बुलाया और पूछने लगे की क्यों तुम अन्धकार का पीछा करते रहते हो और उसको यहाँ-वहां भागने के लिए बाध्य करते रहते हो । सूर्य ने कहा ; प्रभु मै निरंतर अनंतकाल से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड  का भ्रमण करता रहता हूँ पर आजतक मेरी अन्धकार से कोई भेट ही नहीं हुई बड़ा आश्चर्य की बात है ! अगर मैंने अनजाने में उसको को कष्ट पहुँचाया है तो प्रभु आप उसको बुला दीजिये मै क्षमा मांग लूँगा । सूर्य की उपस्थिति में अन्धकार का आना/होना असंभव है । जिस वास्तु का कोई अपना अस्तित्व ही नहीं वो सच कैसे हो सकती है ।

    अन्धकार का कोई अपना अस्तित्व नहीं  वो प्रकाश के ना होने की ही  भ्रान्ति  है । प्रकाश के होते ही वो उसमे विलीन हो जाता है ।

    साईं राम



     

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #25 on: March 20, 2013, 03:28:07 AM »
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    धीरज और शांति का महत्त्व



    एक दिन भगवान बुद्ध कहीं जा रहे थे| उनका शिष्य आनंद भी साथ था| वे पैदल चलते-चलते बहुत दूर निकल गए| ज्यादा चलने के कारण वे थक गए थे| रास्ते में आराम करने के लिए वे एक पेड़ के नीचे रुक गए| भगवान बुद्ध को बहुत जोर की प्यास लगी| उन्होंने अपने शिष्य आनंद को पानी लाने के लिए कहा|

    पास में ही एक नाला बहता था शिष्य आनंद वहां गया और थोड़ी देर में खाली हाथ लौट आया और बोला - "भंते उस नाले में से अभी-अभी गाड़ियां निकली हैं| गाड़ियां निकलने के कारण पानी गंदा हो गया है और वह पानी पीने योग्य नहीं है| मैं अभी जाकर नदी से पानी लेकर आता हूं|"

    नदी वहां से कुछ दूर थी| बुद्ध ने कहा - "नहीं, पानी नाले से ही लाओ|"

    आनंद गया, पर पानी अब भी गंदला था| वह लौट आया| बोला - "नदी दूर है तो क्या, मैं अभी दौड़कर पानी लेकर आता हूं|"

    बुद्ध ने कहा - "नहीं-नहीं पानी उस नाले से ही लाओ|"

    बेचारा आनंद लाचार होकर तीसरी बार नाले पर गया तो देखता क्या है, कीचड़ नीचे जम गई है, पत्तियां इधर-उधर हो गई हैं| पानी एकदम निर्मल है वह खुशी-खुशी पानी लेकर बुद्ध के पास आ गया|

    बुद्ध ने कहा - "आनंद आदमी के लिए धीरज और शांति बहुत आवश्यक हैं बिना उसके निर्मलता प्राप्त नहीं होती|"



    ॐ साईं नाथाय नमः

    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    ॐ साईं नाथाय नमः


    श्री भगवत पुराण  

    भगवान् श्री कृष्ण के इस पृत्वी को त्यागके आपने वैकुंटलोक के गमन के पूर्व उद्धवजी ने कहा की प्रभु संसार को असुरी शक्तिओं से मुक्त करने और पृथ्वी का भार हल्का करने हेतु आपने मनुष्य शारीर धारण कर नाना लीला रची ,पर आपके इस लोक को त्यागते ही कलयुग समस्त संसार पर अपना अधिपत्य जमा लेगा तब ये मनुष्य नाना प्रकार के कष्टों को धारण करेगा | हे जगत पिता क्या कोई समाधान नहीं है जिससे इन मनुष्यों के कष्टों का निवारण हो सके |

    भगवान् ने कहा की मै ही स्वयं को इस भगवत में आज से वास करूँगा और जो भी इस श्रवण ,पठन और भजन करेगा मै उसके सभी कष्टों का निवारण करूँगा एवंग मार्गदर्शक बन जाऊंगा जैसे पांडवों के लिए किया | जब कोई इसको शुद्ध भक्ति से धारण करेगा मै उसको धारण करूँगा | जो प्रेम इसको करेगा उसको मै भी प्रेम करूँगा | इसको त्यागना मुझे त्यागने के सामान ही है |

    भावार्थ : परमात्मा तो अपने अनंत स्वरूपों में सब जगह विद्यमान हैं इसलिए उनके किसी भी स्वरुप को त्यागना स्वयं उनको त्यागने के सामान है | उसके समस्त स्वरूपों से प्रेम करना ही उस परमात्मा से प्रेम  करना है |



    ॐ साईं राम

    « Last Edit: March 20, 2013, 04:23:41 AM by Pratap Nr.Mishra »

    Offline SaiSonu

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #27 on: March 28, 2013, 09:17:59 AM »
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    एक गांव में एक आदमी अपने प्रिय तोते के साथ रहता था, एक बार जब वह आदमी किसी काम से दूसरे गांव जा रहा था, तो उसके तोते ने उससे कहा – मालिक, जहाँ आप जा रहे हैं वहाँ मेरा गुरु-तोता रहता है. उसके लिए मेरा एक संदेश ले जाएंगे ? क्यों नहीं ! – उस आदमी ने जवाब दिया, मेरा संदेश है, तोते ने कहा - आजाद हवाओं में सांस लेने वालों के नाम एक बंदी तोते का सलाम | वह आदमी दूसरे गांव पहुँचा और वहाँ उस गुरु-तोते को अपने प्रिय तोते का संदेश बताया, संदेश सुनकर गुरु-तोता तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया | जब वह आदमी अपना काम समाप्त कर वापस घर आया, तो उस तोते ने पूछा कि क्या उसका संदेश गुरु-तोते तक पहुँच गया था, आदमी ने तोते को पूरी कहानी बताई कि कैसे उसका संदेश सुनकर उसका गुरु - तोता तत्काल मर गया था | यह बात सुनकर वह तोता भी तड़पा, फड़फड़ाया और मर गया | उस आदमी ने बुझे मन से तोते को पिंजरे से बाहर निकाला और उसका दाह-संस्कार करने के लिए ले जाने लगा, जैसे ही उस आदमी का ध्यान थोड़ा भंग हुआ, वह तोता तुरंत उड़ गया और जाते जाते उसने अपने मालिक को बताया – मेरे गुरु-तोते ने मुझे संदेश भेजा था कि अगर आजादी चाहते हो तो पहले मरना सीखो . . . . . . . . बस आज का यही सन्देश कि अगर वास्तव में आज़ादी की हवा में साँस लेना चाहते हो तो उसके लिए निर्भय होकर मरना सीख लो . . . क्योकि साहस की कमी ही हमें झूठे और आभासी लोकतंत्र के पिंजरे में कैद कर के रखती है.




    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

    Offline SaiSonu

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #28 on: March 29, 2013, 10:17:53 AM »
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    ईर्ष्या का बोझ -

    यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो।

    एक बार एक गुरु ने अपने सभी शिष्यों से अनुरोध किया कि वे कल प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैली में बड़े-बड़े आलू साथ लेकर आएं। उन आलुओं पर उस व्यक्ति का नाम लिखा होना चाहिए, जिनसे वे ईर्ष्या करते हैं।

    जो शिष्य जितने व्यक्तियों से ईर्ष्या करता है, वह उतने आलू लेकर आए।
    अगले दिन सभी शिष्य आलू लेकर आए।किसी के पास चार आलू थे तो किसी के पास छह।

    गुरु ने कहा कि अगले सात दिनों तक ये आलू वे अपने साथ रखें। जहां भी जाएं, खाते-पीते, सोते-जागते, ये आलू सदैव साथ रहने चाहिए। शिष्यों को कुछ समझ में नहीं आया, लेकिन वे क्या करते,गुरु का आदेश था। दो-चार दिनों के बाद ही शिष्य आलुओं की बदबू से परेशान हो गए। जैसे-तैसे उन्होंने सात दिन बिताए और गुरु के पास पहुंचे।

    गुरु ने कहा, 'यह सब मैंने आपको शिक्षा देने के लिए किया था।
    जब मात्र सात दिनों में आपको ये आलू बोझ लगने लगे, तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या करते हैं, उनका कितना बोझ आपके मन पर रहता होगा। यह ईर्ष्या आपके मन पर अनावश्यक बोझ डालती है, जिसके
    कारण आपके मन में भी बदबू भर जाती है, ठीक इन आलूओं की तरह। इसलिए अपने मन से गलत भावनाओं को निकाल दो, यदि किसी से प्यार नहीं कर सकते तो कम से कम नफरत तो मत करो। इससे आपका मन स्वच्छ और हल्का रहेगा।'

    यह सुनकर सभी शिष्यों ने आलुओं के साथ-साथ अपने मन से ईर्ष्या को भी निकाल फेंका।

    इसलिए हमें किसी से भी नफरत नहीं करनी चाहिए सब से प्रेम करो हमारे भगवान्, अल्लाह साईं राम नानक जीजस भी तो प्रेम करना ही सिखाते है अपने बच्चो को, वह तो परम दयालु है इसलिए हमें भी सब से दया करनी चाहिए प्यार करना चाहिए सिर्फ प्यार .


    ॐ साईं नाथाय नमः
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

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    डरो मत !
    « Reply #29 on: April 03, 2013, 01:44:46 AM »
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    डरो मत ! स्वामी विवेकानंद

    स्वामी  विवेकानंद  बचपन  से  ही  निडर  थे , जब  वह  लगभग  8 साल  के  थे  तभी  से  अपने  एक  मित्र  के  यहाँ  खेलने  जाया  करते  थे , उस  मित्र  के  घर  में  एक  चम्पक  पेड़  लगा  हुआ  था . वह  स्वामी  जी  का  पसंदीदा  पेड़  था  और  उन्हें  उसपर  लटक कर  खेलना  बहुत  प्रिय  था .

    रोज  की  तरह  एक  दिन  वह  उसी  पेड़  को  पकड़  कर  झूल  रहे  थे  की  तभी   मित्र  के  दादा  जी  उनके  पास  पहुंचे , उन्हें  डर था  कि  कहीं  स्वामी  जी  उसपर  से  गिर  न  जाए  या  कहीं  पेड़  की  डाल  ही  ना  टूट  जाए  , इसलिए  उन्होंने  स्वामी  जी  को  समझाते  हुआ  कहा , “ नरेन्द्र   ( स्वामी  जी  का  नाम ) , तुम  इस  पेड़  से  दूर  रहो  , अब  दुबारा  इसपर  मत  चढना ”

    “क्यों  ?” , नरेन्द्र  ने  पूछा .

    “ क्योंकि  इस  पेड़  पर  एक  ब्रह्म्दैत्य  रहता  है  , वो रात  में  सफ़ेद  कपडे  पहने  घूमता  है , और   देखने  में  बड़ा  ही  भयानक  है .” उत्तर  आया .

    नरेन्द्र  को  ये  सब  सुनकर  थोडा  अचरज  हुआ  , उसने दादा जी  से  दैत्य  के  बारे  में  और  भी  कुछ  बताने  का  आग्रह  किया  .

    दादा जी  बोले ,”  वह  पेड़  पर  चढ़ने  वाले  लोगों  की  गर्दन  तोड़  देता  है .”

    नरेन्द्र  ने  ये  सब  ध्यान  से  सुना  और  बिना  कुछ  कहे  आगे  बढ़  गया . दादा  जी  भी  मुस्कुराते  हुए  आगे  बढ़  गए , उन्हें  लगा  कि  बच्चा  डर  गया  है . पर  जैसे  ही  वे  कुछ  आगे  बढे  नरेन्द्र  पुनः  पेड़  पर  चढ़  गया  और  डाल  पर  झूलने  लगा .

    यह  देख  मित्र  जोर  से  चीखा , “ अरे  तुमने  दादा  जी  की  बात  नहीं  सुनी , वो  दैत्य  तुम्हारी  गर्दन  तोड़  देगा .”

    बालक नरेन्द्र  जोर  से  हंसा  और  बोला   , “मित्र डरो मत ! तुम  भी  कितने  भोले  हो  ! सिर्फ  इसलिए  कि  किसी  ने  तुमसे  कुछ  कहा  है  उसपर  यकीन  मत  करो ; खुद  ही  सोचो  अगर  दादा  जी  की  बात  सच  होती  तो  मेरी  गर्दन  कब  की  टूट चुकी  होती .”


    ॐ साईं राम

     


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