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Author Topic: Sanskar Stories !!!  (Read 63734 times)

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Offline SaiSonu

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Re: Sanskar Stories !!!
« Reply #30 on: April 05, 2013, 11:29:17 AM »
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    पत्थर काटने वाले की कहानी :

    एक पत्थर काटने वाला मजदूर अपनी दिहाड़ी करके अपना बिता रहा था, पर मन ही मन असंतुष्ट था। एक दिन ऐसे ही उसे लगा कि उसको कोई शक्ति प्राप्त हो गयी है जिससे उसकी सारी इच्छा पूरी हो सकती है। शाम को एक व्यापारी के बड़े घर के सामने से गुजरते हुए उसने व्यापारी के ठाट बाठ देखे, गाड़ी घोड़ा, घर की सजावट देखी। अब उसके मन में इच्छा हुयी कि क्या पत्थर काटते काटते जिन्दगी गुजारनी है। क्यों न वो व्यापारी हो जाए। अचानक उसकी इच्छा पूरी हो गयी, धन प्राप्त हो गया, नया घर, नयी गाडी, सेवक सेविका, मतलब पूरा ठाटबाट।

    एक दिन एक बड़ा सेनापति उसके सामने से निकला अपने सैनिको के साथ, उसने देखा कि क्या बात है? कोई कितना भी धनी क्यों न हो, इस सेनापति के आगे सर झुकाता है। मुझे सेनापति बनना है। बस शक्ति से वो सेनापति बन गया। अब वो गर्व से बीच में बने सिंहासन पर बैठ सकता था, जनता उसके सामने दबती थी। सैनिको को वो मनचाही का आदेश दे सकता था। पर एक दिन तपती धुप में उसे गरमी के कारण उठना पडा, क्रोध से उसने सूर्य को देखा। पर सूर्य पर उसका कोई प्रभाव नहीं पडा, वो मस्ती से चमकता रहा। ये देखकर उसके मन में आया, अरे सूर्य तो सेनापति से भी ज्यादा ताकतवर है, देखो इस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। उसने इच्छा की कि वो सूर्य बन जाए। देखते ही देखते वो सूर्य बन गया।

    अब सूर्य बनकर उसकी मनमानी चलने लगी, अपनी तपन से उसने संसार को बेहाल कर दिया। किसानो की फसल तक जल गयी, इसको देख कर उसे अपनी शक्ति का अहसास होता रहा और वो प्रसन्न हो गया। पर अचानक एक दिन एक बादल का टुकडा आकर उसके और धरती के बीच में खडा हो गया। ओह ये क्या, एक बादल का टुकडा सूर्य की शक्ति से बड़ा है, क्यों न मैं बादल बन जाऊं। अब वो बादल बन गया।

    बादल बन कर जोर से गरज कर वो अपने को संतुष्ट समझता रहा। जोर से बरसात भी करने लगा। अचानक वायु का झोंका आया और उसको इधर से उधर धकेलने लगा, अरे ये क्या हवा ज्यादा शक्तिशाली, क्यों न मैं हवा बन जाऊं। बन गया वो हवा।

    हवा बन कर फटाफट पृथिवी का चक्कर लगाने लगा। पर फिर गड़बड़ हो गयी, एक पत्थर सामने आ गया। उसको वो डिगा नहीं पाया। सोचा चलो पत्थर शक्तिशाली है मैं पत्थर बन जाता हूँ। बन गया पत्थर। पर ये भी ज्यादा देर नहीं चल पाया। क्योंकि एक पत्थर काटने वाला आया और उसे काटने लगा। फिर सोच में पड़ गया कि ओह पत्थर काटने वाला ज्यादा शक्तिशाली है। ओह यह मैंने क्या किया। मैं तो पत्थर काटने वाला ही था !!! इतनी देर में उसकी नींद खुल गयी और स्वप्न भंग हो गया। पर फर्क था - वो अपने से संतुष्ट था।


    शिक्षा - हमें अपने अन्दर की शक्ति और क्षमता का पता नहीं होता, और जो दीखते किसी काम के नहीं, वही किसी न किसी काम के जरूर होते हैं। बस अपने को पहचानिए। अपनी लाइन को पहचानिए।


    ॐ साईं राम
    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #31 on: May 27, 2013, 11:57:49 PM »
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  • OM SAI RAM !!!

    A POUND OF BUTTER


    There was a farmer who sold a pound of butter to the baker.
    One day the baker decided to weigh the butter to see if he was
    getting a pound and he found that he was not. This angered him
    and he took the farmer to court. The judge asked the farmer if he
    was using any measure. The farmer replied, amour Honor, I am primitive.
    I don't have a proper measure, but I do have a scale." The judge asked,
    "Then how do you weigh the butter?" The farmer replied "Your Honor,
    long before the baker started buying butter from me, I have been
    buying a pound loaf of bread from him. Every day when the baker
    brings the bread, I put it on the scale and give him the same weight
    in butter. If anyone is to be blamed, it is the baker."

    What is the moral of the story? We get back in life what we give to others.
    Whenever you take an action, ask yourself this question: Am I giving
    fair value for the wages or money I hope to make? Honesty and
    dishonesty become a habit. Some people practice dishonesty and
    can lie with a straight face. Others lie so much that they don't even
    know what the truth is anymore. But who are they deceiving? Themselves


    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #32 on: May 29, 2013, 02:17:40 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    Education does not mean Good Judgement

    There is a story about a man who sold hot dogs by the roadside.
    He was illiterate, so he never read newspapers . He was hard
    of hearing, so he never listened to the radio. His eyes were weak,
    so he never watched television. But enthusiastically, he sold lots
    of hot dogs. His sales and profit went up. He ordered more meat
    and got himself a bigger and a better stove. As his business was
    growing, the son, who had recently graduated from college, joined
    his father. Then something strange happened. The son asked,
    "Dad, aren't you aware of the great recession that is coming our way?"
    The father replied, "No, but tell me about it." The son said,
    "The international situation is terrible. The domestic is even worse.
    We should be prepared for the coming bad time." The man thought
    that since his son had been to college, read the papers, and listened
    to the radio, he ought to know and his advice should not be taken lightly.
    So the next day, the father cut down his order for the meat and buns,
    took down the sign and was no longer enthusiastic. Very soon, fewer
    and fewer people bothered to stop at his hot dog stand. And his
    sales started coming down rapidly. The father said to his son,
    "Son, you were right. We are in the middle of a recession.
    I am glad you warned me ahead of time."

    What is the moral of the story?

    1. Many times we confuse intelligence with good judgment.
    2. A person may have high intelligence but poor judgment.
    3. Choose your advisers carefully and use your judgment.
    4. A person can and will be successful with or without formal education if they have the 5 Cs:
    -  Character Commitment
    -  Conviction
    -  Courtesy
    -  Courage
    5. The tragedy is that there are many walking encyclopedias who are living failure


    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #33 on: June 19, 2013, 03:53:00 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा,
    अपने पापा की दुकान पर चला गया । वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम
    करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को
    पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को
    अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा
    नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ?
    पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से
    आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं,
    और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर
    पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

    उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है,
    और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा
    ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को
    पैर के नीचे रखता हूं........!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #34 on: June 19, 2013, 05:05:56 AM »
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    रोना क्यों  ???



    सूफी-संतों में राबिया का स्थान बहुत ऊंचा था| वे बड़ी सादगी का जीवन बितातीं थीं और सबको बेहद प्यार करती थीं| ईश्वर में उनकी अगाध श्रद्धा थी| उन्होंने अपना सब कुछ उन्हीं को सौंप रखा था|

    एक दिन एक व्यक्ति राबिया के पास आया|

    उसके सिर पर पट्टी बंधी थी| राबिया ने पूछा - "क्यों भाई क्या बात है? यह पट्टी क्यों बांध रखी है?"

    वह आदमी बोला - "सिर में बड़ा दर्द है|"

    राबिया ने पूछा - "तुम्हारी कितनी उम्र है?"

    उत्तर मिला - "यही कोई तीस-एक साल की है|"

    "अच्छा यह बताओ|" राबिया ने आगे सवाल किया - "इन तीस वर्षों में तुम तंदुरुस्त रहे या बीमार?"

    उसने कहा - "मैं हमेशा तंदुरुस्त रहा| कभी बीमार नहीं पड़ा|"

    तब राबिया मुस्कराकर बोलीं - "भले आदमी, तुम इतने साल तंदुरुस्त रहे, पर तुमने एक दिन इसके शुकराने में पट्टी नहीं बांधी और अब जरा सिर में दर्द हो गया तो शिकायत की पट्टी बांध ली!"

    राबिया की बात सुनकर वह आदमी बहुत शर्मिंदा हुआ और कुछ न बोल सका चुपचाप सिर झुकाकर चला गया|

    राबिया की ये बात सुनने में तो मामूली लगती है, लेकिन इससे उनका मतलब था कि सुख में तो हम भगवान को याद नहीं करते हैं और दुखों के आते ही भगवान के सामने अपने दुखों का रोना शुरू कर देते हैं|




    ॐ साईं नाथाय नमः



    मेरे दू:ख के दिनो में वो ही-मेरे काम आते हैं, जब कोई नहीं आता तो मैरे साईं आते हैं..

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #35 on: June 20, 2013, 04:24:03 AM »
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    ज्ञान का दीपक



    काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’ संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’ बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा, ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।’ शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया। वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ? इतना डरे हुए क्यों हो?’ शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांप है।’

    संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा। कमरे में सांप कहां से आएगा। तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना। सांप होगा तो भाग जाएगा।’ शिष्य दोबारा कमरे में गया। उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था। वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला, ‘सांप वहां से जा नहीं रहा है।’ संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ। सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’

    शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है। सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी। अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था। बाहर आकर शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है। अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।’ संत ने कहा, ‘वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं। संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है। ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है लेकिन अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रम जाल पाल लेते हैं और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते। यह आंतरिक दीपक का प्रकाश संतों और ज्ञानियों के सत्संग से मिलता है। जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा, लोगबाग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।


    ॐ साईं नाथाय नमः

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #36 on: June 21, 2013, 12:53:13 AM »
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    अहंकार का रहस्य


    एक राजा था| उसकी एक लड़की थी| जब राजकुमारी बड़ी हुई तो रानी को उसके विवाह की चिंता होने लगी| राजा के महल में एक जमादारिन सफाई करने आती थी| एक दिन रानी को उदास देखकर उसने उनकी उदासी का कारण पूछा, तो रानी ने कहा - "क्या कहूं? लड़की बड़ी हो गई है| उसके ब्याह की चिंता मुझे रात-दिन खाए जा रही है|"

    सुनकर जमादारिन हंस पड़ी - "रानी जी, आप चिंता क्यों करती हैं, मेरा लड़का जो है|"

    उसकी बात सुनकर रानी को बड़ा बुरा लगा| उसने कहा - "खबरदार, जो ऐसी बात मुंह से निकाली!"

    जमादारिन चली गई| अगले दिन उसने पूछा - "कोई लड़का मिला?"

    रानी ने कहा - "नहीं|"

    जमादारिन बोली - "आप तो बेकार परेशान होती हैं, मेरे लड़के की बराबरी कोई नहीं कर सकता|"

    रानी और ज्यादा नाराज हुई और उसे महल से निकलवा दिया| रात को रानी ने राजा को जमादारिन की गुस्ताखी उन्हें बताई| राजा ने पूछा - "वह कहां खड़े होकर बात कर रही थी?" रानी ने बता दिया|

    राजा ने कहा - "रानी तुम समझती नहीं वो वाक्य जमादारिन नहीं और कोई बोलता था|"

    रानी ने आश्चर्य से कहा - "और कोई वहां था ही नहीं|"

    राजा ने कहा - "अच्छा!"

    अगले दिन राजा ने वह जगह खुदवाई तो वहां अशर्फियों से भरे कलश निकले| कलश निकलवाकर राजा ने रानी से कहा - "अब तुम जमादारिन से बात करना|"

    दूसरे दिन जमादारिन आई तो रानी ने बेटी के ब्याह की चर्चा चलाई| जमादारिन ने कोई जवाब नहीं दिया| रानी ने कहा - "अरे तेरे लड़के का क्या हुआ?"

    जमादारिन गिड़गिड़ाकर बोली - "रानी जी, कहां आप और कहां हम!"

    रानी समझ गई कि जमादारिन के अहंकार का रहस्य क्या था|



    ॐ साईं नाथाय नमः


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    Offline PiyaSoni

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #37 on: June 21, 2013, 04:13:00 AM »
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    Mother’s Love

    A little boy came up to his mother in the kitchen one evening while she was fixing supper, and handed her a piece of paper that he had been writing on. After his Mom dried her hands on an apron, she read it, and this is what it said:
    For cutting the grass: $5.00
    For cleaning up my room this week: $1.00
    For going to the store for you: $.50
    Baby-sitting my kid brother while you went shopping: $.25
    Taking out the garbage: $1.00
    For getting a good report card: $5.00
    For cleaning up and raking the yard: $2.00
    Total owed: $14.75
    Well, his mother looked at him standing there, and the boy could see the memories flashing through her mind. She picked up the pen, turned over the paper he’d written on, and this is what she wrote:
    For the nine months I carried you while you were growing inside me:
    No Charge
    For all the nights that I’ve sat up with you, doctored and prayed for you:
    No Charge
    For all the trying times, and all the tears that you’ve caused through the years:
    No Charge
    For all the nights that were filled with dread, and for the worries I knew were ahead:
    No Charge
    For the toys, food, clothes, and even wiping your nose:
    No Charge
    Son, when you add it up, the cost of my love is:
    No Charge.
    When the boy finished reading what his mother had written, there were big tears in his eyes, and he looked straight at his mother and said, “Mom, I sure do love you.” And then he took the pen and in great big letters he wrote: “PAID IN FULL”.


    Lessons:

    You will never know your parents worth till you become a parent
    Be a giver not an acquirer, especially with your parents. there is a lot to give, besides money.


    BECAUSE MONEY IS THE WORST WAY OF MEASURING HAPPINESS
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #38 on: June 28, 2013, 04:15:11 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है।
    देवदूत के हाथ में एक सूची है।
    उसने कहा, ‘यह उन लोगों की सूची है, जो प्रभु से प्रेम करते हैं।’
    संत ने कहा, ‘मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूं।
    मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा।’
     देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आप का नाम नहीं है।’

    संत उदास हो गए।
    फिर उन्होंने पूछा, ‘इसमें मेरा नाम क्यों नहीं है।
    मैं ईश्वर से ही प्रेम नहीं करता बल्कि गरीबों से भी प्रेम करता हूं।
    मैं अपना अधिकतर समय गरीबों की सेवा में लगाता हूं।
    उसके बाद जो समय बचता है उसमें प्रभु का स्मरण करता हूं।’
    तभी संत की आंख खुल गई।

    दिन में वह स्वप्न को याद कर उदास थे।
    एक शिष्य ने उदासी का कारण पूछा तो संत ने स्वप्न की बात बताई और कहा,
    ‘वत्स, लगता है सेवा करने में कहीं कोई कमी रह गई है।’
    दूसरे दिन संत ने फिर वही स्वप्न देखा।
    वही देवदूत फिर उनके सामने खड़ा था।
    इस बार भी उसके हाथ में कागज था।
    संत ने बेरुखी से कहा, ‘अब क्यों आए हो मेरे पास।
    मुझे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए।’

    देवदूत ने कहा, ‘आपको प्रभु से कुछ नहीं चाहिए,
    लेकिन प्रभु का तो आप पर भरोसा है।
    इस बार मेरे हाथ में दूसरी सूची है।’
    संत ने कहा, ‘तुम उनके पास जाओ जिनके नाम इस सूची में हैं।
    मेरे पास क्यों आए हो?’

    देवदूत बोला, ‘इस सूची में आप का नाम सबसे ऊपर है।’
    यह सुन कर संत को आश्चर्य हुआ। बोले,
    ‘क्या यह भी ईश्वर से प्रेम करने वालों की सूची है।’
    देवदूत ने कहा, ‘नहीं, यह वह सूची है जिन्हें प्रभु प्रेम करते हैं।
    ईश्वर से प्रेम करने वाले तो बहुत हैं,
    लेकिन प्रभु उसको प्रेम करते हैं जो गरीबों से प्रेम करते हैं।
    प्रभु उसको प्रेम नहीं करते जो दिन
    रात कुछ पाने के लिए प्रभु का गुणगान करते है।’
    तभी संत की आंख खुल गई।

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #39 on: July 03, 2013, 06:50:02 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    काशी में गंगा के तट पर एक संत का आश्रम था।
     एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा,
     ‘गुरुवर, शिक्षा का निचोड़ क्या है?’
    संत ने मुस्करा कर कहा, ‘एक दिन तुम खुद-ब-खुद जान जाओगे।’
    बात आई और गई। कुछ समय बाद एक रात संत ने उस शिष्य से कहा,
    ‘वत्स, इस पुस्तक को मेरे कमरे में तख्त पर रख दो।’
    शिष्य पुस्तक लेकर कमरे में गया लेकिन तत्काल लौट आया।
    वह डर से कांप रहा था। संत ने पूछा, ‘क्या हुआ?
    इतना डरे हुए क्यों हो?’
    शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, कमरे में सांप है।’

    संत ने कहा, ‘यह तुम्हारा भ्रम होगा।
    कमरे में सांप कहां से आएगा।
    तुम फिर जाओ और किसी मंत्र का जाप करना।
    सांप होगा तो भाग जाएगा।’
    शिष्य दोबारा कमरे में गया।
    उसने मंत्र का जाप भी किया लेकिन सांप उसी स्थान पर था।
    वह डर कर फिर बाहर आ गया और संत से बोला,
    ‘सांप वहां से जा नहीं रहा है।’
    संत ने कहा, ‘इस बार दीपक लेकर जाओ।
    सांप होगा तो दीपक के प्रकाश से भाग जाएगा।’

    शिष्य इस बार दीपक लेकर गया तो देखा कि वहां सांप नहीं है।
    सांप की जगह एक रस्सी लटकी हुई थी।
    अंधकार के कारण उसे रस्सी का वह टुकड़ा सांप नजर आ रहा था।
    बाहर आकर शिष्य ने कहा, ‘गुरुवर, वहां सांप नहीं रस्सी का टुकड़ा है।
    अंधेरे में मैंने उसे सांप समझ लिया था।’
    संत ने कहा, ‘वत्स, इसी को भ्रम कहते हैं।
    संसार गहन भ्रम जाल में जकड़ा हुआ है।
    ज्ञान के प्रकाश से ही इस भ्रम जाल को मिटाया जा सकता है
    लेकिन अज्ञानता के कारण हम बहुत सारे भ्रम जाल पाल लेते हैं
    और आंतरिक दीपक के अभाव में उसे दूर नहीं कर पाते।
    यह आंतरिक दीपक का प्रकाश संतों और ज्ञानियों के सत्संग से मिलता है।
    जब तक आंतरिक दीपक का प्रकाश प्रज्वलित नहीं होगा,
    लोगबाग भ्रमजाल से मुक्ति नहीं पा सकते।

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #40 on: July 09, 2013, 01:27:53 AM »
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    एक छोटा बच्चा अपनी माँ से नाराज होकर
    चिल्लाने लगा मे तुमसे नफरत करता हूँ
    उसके बाद वह फटकारे जाने के डर से घर से भाग गया
    वह पहाड़ियों के पास जाकर चीखने लगा

    “मै तुमसे नफरत करता हूँ” और वही आवाज पहाड़ों मे गूँज ने लगी
    उसने जिंदगी मे पहली बार कोई गूँज सुनी थी
    वह डर कर बचाव के लिये माँ के पास भागा और बोला
    घाटी मे एक बुरा बच्चा है जो चिल्लाता है मे तुमसे नफरत करता हूँ

    उसकी माँ समझ गई और उसने अपने बेटे से कहा कि
    वह पहाड़ी पर जा कर फिर चिल्ला कर कहै मै तुम्हें प्यार करता हूँ
    और बच्चे ने ऐसा ही किया ओर
    वही आवाज गूँजी इस घटना से बच्चे को एक सीख मिली

    हमारा जीवन एक गूँज की तरह है हमें वही वापस मिलता है
    जो हम देते है जब आप दूसरों के लिये अच्छे बन जाते हो
    तो खुद के लिये और भी बेहतर बन जाते हो….!!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #41 on: July 10, 2013, 12:29:49 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    Saint and Sparrow

    Once upon a time a saint was meditating under a banyan tree
    when a sparrow came chirping and disturbed him. The sparrow
    got afraid that the saint would now curse her. But the saint was
    strong in character and did not appear to be perturbed.

    Human behaviour tends to be deceptive. The saint showed great
    character in tolerating the sparrow but there was something hidden
    in his behaviour. He could tolerate because with all his accomplishments
    he considered a sparrow’s life inconsequential. Such calmness can
    sometimes be attributed to the feeling of being superior. The saint still
    had a tinge of arrogance left in him. While he did not want to chide the
    sparrow, he had a clear intention to make her realize how important
    an activity he was involved in. He thus spoke.

    “O little sparrow, where do you come from and where are you going?”.

    “I was away the whole day in search of food. My nest is nearby on the
    other banyan tree. I am going back to feed my babies”.

    “That is fine. But do you know where do you actually come from and
    where you finally go?”.

    “Why is he repeating the question? He looks like a great saint.
    He would not be so stupid to ask the same question again and again.”
    said the sparrow to herself.

    “Pardon me O great saint. I probably did not understand your question.
    Did I not just answer your question?”.

    “You did, in your own capacity. But my question was about your life not
    about your day to day activity. Do you understand what lies beyond just
    flying here and there for food and roaming around making noise?”

    The sparrow, intimidated by the high import of the question, replied in
    negative and continued “O great saint!, busy with my day to day activities
    I have not had enough time to think about what lies beyond.”

    “Thought as much. It is a pity that you, like all other people of the world,
    seem so busy with your day to day life that you have become so insensitive
    to the life beyond, to the nature, to the creation and the creator. I wonder
    if you even think about God and try to understand His creation and
    understand the purpose of life. You may carry on with your business now.”

    The sparrow understood that the saint was correct but she was also sure
    that he had grossly mistaken worldly life. While he was true about most
    beings he completely disregarded what day to day life could teach us if
    only we have an open mind. Somewhat offended, the sparrow said.
    “O great saint, I would definitely leave you alone and never disturb you
    again but listen to what I have to say. Your words have hurt me. I may not
    be so accomplished as you but life has expressed a few things to me.
    You, of all the people, must know how to see beyond what is visible.”
    “Oh really? Tell me little sparrow. What has life taught you?”

    “Life has taught me to see my creator all around me. When I fly high and
    see the vast horizon, I see the expression of God’s vastness.

    When a strong wind blows me away, I realize His strength. But when
    I still manage to find a shelter in the storm, I see His compassion.

    When the kids jump with joy looking at me flying so swiftly and chirping,
    I see the expression of His Joy on their faces.

    When I look at my babies, I see the expression of His tenderness.

    With all my limited capabilities I manage to find food for my babies at the
    end of the day. What is it if not His support.

    After all, what is this world if not His expression!

    O Great saint, by conversing with me you have given great importance
    to my life. I thank you for that. I will see you again sometime.”
    and the sparrow flew away.

    The saint was humbled by what the sparrow had said. He left his family
    and his people to understand life and God. While he had learned a lot through
    his practice now he also realized that he still has somethings to learn from the
    worldly life. He stood up and resolved to go back to his people again and
    lead a regular life and find meaning in it.


    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #42 on: July 23, 2013, 04:26:14 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करेगा
    धर्म के सहारे आगे बढ़ेंगे तो आपका कभी अहित नही होगा ॥


    श्यामगढ़ नगरी का राजा बड़ा धर्मांत्मा और दानी था एक दिन उसके दरबार मे भीक्षा माँगने
    एक साधु आये उन्होंने राजा से कहाँ या तो आप 12 साल के लिए अपना राज्य मुझे दे दे या
    फिर अपना धर्म मुझे दे देँ राजा ने कहा धर्म तो मेरे प्राण है उसे नही दे पाऊंगा आप मेरा
    राज्य ले ले राजा अपना राजपाट साधु को सौंप कर खुद जंगल मे खुशी खुशी चला गया और
    वही जंगल मे कुटिया बनाकर रहने लगा॥

    एक दिन उसे एक युवती मिली उसने राजा को बताया कि वह एक राजकुमारी है और शत्रुओ
    ने उसके पिता को मार डाला है और अब मेरी जान को भी खतरा है सो अब मे इस राज्य मे
    नही रह सकती हूँ क्योंकि यहाँ मेरी जान कभी भी दुश्मन ले सकता है तब वह राजा उस युवती
    के कहने पर दूसरे राज्य की नगरी मे रहना स्वीकार कर लिया॥

    जब भी उस राजा को कुछ चीज की जरूरत होती वह किसी न किसी तरह उसका प्रबंध
    करा देती थी और राजा उसकी रक्षा मे मे लगा रहता जब उस राज्य के राजा को पता चला की
    हमारे राज्य मे कोई राज्य राजपाट त्याग कर रहने लगा है तो उसने उनसे मिलने का विचार
    किया और उनके पास पहुँच गए॥

    उनसे मिलने के बाद दोनों मे मित्रता हो गई कइ बार राजा ने अपने मित्र को अपने महल मे
    बुलाकर भोजन कराया करता था एक दिन त्याग करने वालेराजा ने दूसरे राजा से कहाँ कि
    मेने आपके यहाँ बहुत बार भोजन किया है अब आप कल मेरे यहाँ आपकी पुरी सेना के साथ
    भोजन के लिए पधारे उसका प्रस्ताव सुनकर सभा मे बैठे सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ
    आखिर जिसके पास कुछ नही वह सबको कैसे भोजन कराएगा राजा घर आया तो वह युवती
    को सभी के भोजन के विषय मे बताया तो युवती बोली आप चिंता न करे
    कल सब व्यवस्था हो जाएगी दूसरे रोज राजा अपनी पुरी सेना के साथ वहाँ पधारे तो उनका
    बहुत अच्छे से स्वागत सत्कार किया गया और सभी को तरह तरह का स्वादिष्ट भोजन
    कराया गया॥

    सभी ने भोजन करने के बाद त्यागी राजा से विदा ली आखिर मे त्यागी राजा ने
    युवती से पूछा आखिर इतने कम समय मे तुमने ये सारी व्यवस्था कैसे की ?

    उस युवती ने इसका कोई जवाब नही दिया और बस इतना ही कहा महाराज आपके दान
    की अवधि बीत चुकी है जाकर पुनः राजपाट संभाले राजा ने उसका असली परिचय पूछा
    तभी उस युवती की जगह धर्मदेव प्रकट हुए उन्होंने कहा राजन् आपने मेरी खातिर राजपाट
    छोड़ा इसलिए मैने युवती के रूप मे आपकी मदद की जो धर्म की रक्षा करता है धर्म
    उसकी रक्षा करेगा ही धर्म के सहारे आगे बढ़ेगे तो आपका कभी अहित नही होगा !!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #43 on: July 26, 2013, 03:21:48 AM »
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    तीर्थ पर न जाकर भी मिला तीर्थयात्रा का फल"""""""""""

    हरिहर एक सीधा-साधा किसान था। दिन भर खेतों में मेहनत से काम करता
    और शाम को प्रभु का गुणगान करता। उसके मन की एक ही साध थी। वह उडुपि
    के भगवान कृष्ण के दर्शन करना चाहता था। उडुपि दक्षिण कन्नड़ जिले का प्रमुख
    तीर्थ था। प्रतिवर्ष जब तीर्थयात्री जाने को तैयार होते हो हरिहर का मन भी मचल
    जाता किंतु धन की कमी के कारण जाना न हो पाता। इसी तरह कुछ वर्ष बीत गए।

    हरिहर ने कुछ पैसे जमा कर लिए। घर से निकलते समय पत्नी ने बहुत-सा
    खाने-पीने का सामान बाँध दिया। उन दिनों यातायात के साधनों का अभाव था।
    तीर्थयात्री पैदल ही जाय़ा करते। रास्ते में हरिहर की भेंट एक बूढ़े व्यक्ति से हुई।
    बूढ़े के कपड़े फटे-पुराने थे और पाँव में जूते तक न थे। अन्य तीर्थयात्री उससे
    कतराकर निकल गए किंतु हरिहर से न रह गया। उसने बूढ़े से पूछा-‘बाबा,
    क्या आप भी उडुपि जा रहे हैं?’ बूढ़े की आँखों में आँसू आ गए। उसने रूँधे स्वर
    में उत्तर दिया-‘मैं भला तीर्थ कैसे कर सकता हूँ? एक बच्चा तो बीमार है और
    दूसरे बेटे ने तीन दिन से कुछ नहीं खाया।’

    हरिहर भला व्यक्ति था। उसका मन पसीज गया। उसने निश्चय किया कि वह उडुपि
     जाने से पहले बूढ़े के घर जाएगा। बूढ़े के घर पहुँचते ही हरिहर ने सबको भोजन खिलाया।
    बीमार बच्चे को दवा दी। बूढ़े के खेत, बीजों के अभाव में खाली पड़े थे। लौटते-लौटते
    हरिहर ने उसे बीजों के लिए भी धन दे दिया।

    जब वह उडुपि जाने लगा तो उसने पाया कि सारा धन को खत्म हो गया था। वह चुपचाप
    अपने घर लौट आया। उसके मन में तीर्थयात्रा न करने का कोई दुख न था बिल्क उसे
    खुशी थी कि उसने किसी का भला किया है।

    हरिहर की पत्नी भी उसके इस कार्य से प्रसन्न थी। रात को हरिहर ने सपने में
    भगवान कृष्ण को देखा। उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया और कहा-‘हरिहर, तुम मेरे सच्चे
    भक्त हो। जो व्यक्ति मेरे ही बनाए मनुष्य से प्रेम नहीं करता, वह मेरा भक्त कदापि नहीं
    हो सकता।’ तुमने उस बूढ़े की सहायता की और रास्ते से ही लौट आए। उस बूढ़े व्यक्ति
     के वेष में मैं ही था। अनेक तीर्थयात्री मेरी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ गए, एक तुमने ही
    मेरी विनती सुनी। मैं सदा तुम्हारे साथ रहूँगा। अपने स्वभाव से दया, करुणा और प्रेम
    का त्याग मत करना। हरिहर को तीर्थयात्रा का फल मिल गया था। !!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #44 on: July 27, 2013, 04:38:22 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    सांच को आंच नहीं

    किसी नगर में एक जुलाहा रहता था| वह बहुत बढ़िया कम्बल तैयार करता था|
    कत्तिनों से अच्छी ऊन खरीदता और भक्ति के गीत गाते हुए आनंद से कम्बल बुनता|
    वह सच्चा था, इसलिए उसका धंधा भी सच्चा था,
    रत्तीभर भी कहीं खोट-कसर नहीं थी|

    एक दिन उसने एक साहूकार को दो कम्बल दिए|
    साहूकार ने दो दिन बाद उनका पैसा ले जाने को कहा|
    साहूकार दिखाने को तो धरम-करम करता था, माथे पर तिलक लगाता था,
    लेकिन मन उसका मैला था|
    वह अपना रोजगार छल-कपट से चलाता था|

    दो दिन बाद जब जुलाहा अपना पैसा लेने आया तो साहूकार ने कहा -
    "मेरे यहां आग लग गई और उसमें दोनों कम्बल जल गए अब मैं पैसे क्यों दूं?"

    जुलाहा बोला - "यह नहीं हो सकता मेरा धंधा सच्चाई पर चलता है
    और सच में कभी आग नहीं लग सकती|

    जुलाहे के कंधे पर एक कम्बल पड़ा था उसे सामने करते हुए उसने कहा -
     "यह लो, लगाओ इसमें आग|"

    साहूकार बोला - "मेरे यहां कम्बलों के पास मिट्टी का तेल रखा था|
    कम्बल उसमें भीग गए थे| इस लिए जल गए|

    जुलाहे ने कहा - "तो इसे भी मिट्टी के तेल में भिगो लो|"

    काफी लोग वहां इकट्ठे हो गए|
    सबके सामने कम्बल को मिट्टी के तेल में भिगोकर आग लगा दी गई|
    लोगों ने देखा कि तेल जल गया,
    लेकिन कम्बल जैसा था वैसा बना रहा|

    जुलाहे ने कहा - "याद रखो सांच को आंच नहीं|"

    साहूकार ने लज्जा से सिर झुका लिया और जुलाहे के पैसे चुका दिए|

    सच ही कहा गया है कि जिसके साथ सच होता है उसका साथ तो भगवान भी नहीं छोड़ता|!!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

     


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