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Author Topic: Sanskar Stories !!!  (Read 63758 times)

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Offline Pratap Nr.Mishra

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  • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
Re: Sanskar Stories !!!
« Reply #45 on: November 16, 2013, 01:46:21 AM »
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  • एक समय की बात है , एक बच्चे का जन्म होने वाला था.
    जन्म से कुछ क्षण पहले उसने भगवान् से पूछा :
     " मैं इतना छोटा हूँ, खुद से कुछ कर भी नहीं पाता ,
    भला धरती पर मैं कैसे रहूँगा , कृपया मुझे अपने पास
    ही रहने दीजिये , मैं कहीं नहीं जाना चाहता." भगवान् बोले,
    " मेरे पास बहुत से फ़रिश्ते हैं , उन्ही में से एक मैंने तुम्हारे लिए चुन लिया है,
    वो तुम्हारा ख़याल रखेगा.
    "पर आप मुझे बताइए , यहाँ स्वर्ग में मैं कुछ नहीं करता बस गाता और मुस्कुराता हूँ ,
    मेरे लिए खुश रहने के लिए इतना ही बहुत है."
    " तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हारे लिए गायेगा और हर रोज़ तुम्हारे लिए मुस्कुराएगा भी .
    और तुम उसका प्रेम महसूस करोगे और खुश रहोगे."

    " और जब वहां लोग मुझसे बात करेंगे तो मैं समझूंगा कैसे , मुझे
    तो उनकी भाषा नहीं आती ?"
    " तुम्हारा फ़रिश्ता तुमसे सबसे मधुर और प्यारे शब्दों में
    बात करेगा, ऐसे शब्द जो तुमने यहाँ भी नहीं सुने होंगे, और
    बड़े धैर्य और सावधानी के साथ तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे
    बोलना भी सीखाएगा ."

    " और जब मुझे आपसे बात करनी हो तो मैं क्या करूँगा?"
    " तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे हाथ जोड़ कर
    प्रार्थना करना सीखाएगा, और इस तरह
    तुम मुझसे बात कर सकोगे."

    "मैंने सुना है कि धरती पर बुरे लोग भी होते हैं . उनसे मुझे
    कौन बचाएगा ?"
    " तुम्हारा फ़रिश्ता तुम्हे बचाएगा , भले
    ही उसकी अपनी जान पर खतरा क्यों ना आ जाये."

    "लेकिन मैं हमेशा दुखी रहूँगा क्योंकि मैं आपको नहीं देख
    पाऊंगा."
    " तुम इसकी चिंता मत करो ;
    तुम्हारा फ़रिश्ता हमेशा तुमसे मेरे बारे में
    बात करेगा और तुम वापस मेरे पास कैसे आ सकते
    हो बतायेगा."

    उस वक़्त स्वर्ग में असीम शांति थी , पर पृथ्वी से किसी के
    कराहने की आवाज़ आ रही थी..बच्चा समझ गया कि अब
    उसे जाना है , और उसने रोते-रोते भगवान् से पूछा ," हे
    ईश्वर, अब तो मैं जाने वाला हूँ ,कृपया मुझे उस फ़रिश्ते
    का नाम बता दीजिये ?'

    भगवान् बोले, " फ़रिश्ते के नाम का कोई महत्त्व नहीं है ,
    बस इतना जानो कि तुम उसे "माँ" कह कर पुकारोगे ."

    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #46 on: April 05, 2014, 02:03:06 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    ये कहानी जरूर पढ़े, यक़ीनन आपकी सोच बदल
    देगी...


    रेगिस्तानी मैदान से एक साथ कई ऊंट अपने मालिक के साथ जा रहे थे।
    अंधेरा होता देख मालिक एक सराय में रुकने का आदेश दे दिया।
    निन्यानवे ऊंटों को जमीन में खूंटियां गाड़कर उन्हें रस्सियों से बांध दिया
    मगर एक ऊंट के लिए खूंटी और रस्सी कम पड़ गई।
    सराय में खोजबीन की , पर व्यवस्था हो नहीं पाई।
    तब सराय के मालिक ने सलाह दी कि तुम खूंटी गाड़ने जैसी चोट करो
    और ऊंट को रस्सी से बांधने का अहसास करवाओ।
    यह बात सुनकर मालिक हैरानी में पड़ गया , पर दूसरा कोई रास्ता नहीं था ,
    इसलिए उसने वैसा ही किया।

    झूठी खूंटी गाड़ी गई , चोटें की गईं।
    ऊंट ने चोटें सुनीं और समझ लिया कि बंध चुका है।
    वह बैठा और सो गया।
    सुबह निन्यानबे ऊंटों की खूटियां उखाड़ीं और रस्सियां खोलीं ,
    सभी ऊंट उठकर चल पड़े , पर एक ऊंट बैठा रहा।
    मालिक को आश्चर्य हुआ - अरे , यह तो बंधा भी नहीं है ,
    फिर भी उठ नहीं रहा है।

    सराय के मालिक ने समझाया -
    तुम्हारे लिए वहां खूंटी का बंधन नहीं है मगर ऊंट के लिए है।
    जैसे रात में व्यवस्था की , वैसे ही अभी खूंटी उखाड़ने और बंधी रस्सी खोलने
    का अहसास करवाओ। मालिक ने खूंटी उखाड़ दी जो थी ही नहीं ,
    अभिनय किया और रस्सी खोल दी जिसका कोई अस्तित्व नहीं था।
    इसके बाद ऊंट उठकर चल पड़ा।

    न केवल ऊंट बल्कि मनुष्य भी ऐसी ही खूंटियों से और रस्सियों से बंधे होते हैं
    जिनका कोई अस्तत्व नहीं होता। मनुष्य बंधता है अपने ही गलत
    दृष्टिकोण से , मिथ्या सोच से , विपरीत मान्यताओं की पकड़ से।
    ऐसा व्यक्ति सच को झूठ और झूठ को सच मानता है।
    वह दुहरा जीवन जीता है।
    उसके आदर्श और आचरण में लंबी दूरी होती है।

    इसलिए जरूरी है कि मनुष्य का मन जब भी जागे ,
    लक्ष्य का निर्धारण सबसे पहले करे।
    बिना उद्देश्य मीलों तक चलना सिर्फ थकान ,
    भटकाव और नैराश्य देगा , मंजिल नही। स्वतंत्र
    अस्तित्व के लिए मनुष्य में चाहिए सुलझा हुआ
    दृष्टिकोण, देश , काल , समय और
    व्यक्ति की सही परख , दृढ़ संकल्प शक्ति , पाथेय
    की पूर्ण तैयारी , अखंड आत्मविश्वास और स्वयं की पहचान।|!!!

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #47 on: May 02, 2014, 03:16:01 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    THE OVERFLOWING CUP - A story shared by Sri Sri Ravi Shankar

    Once a disciple went to the Master, and asked him one question after another,
    but was not satisfied with any answer the master gave.

    Finally, the master said, “Come. Let us have tea.”
    So the master started pouring tea into the disciple’s cup.
    The cup got full but he kept pouring.

    The tea overflowed from the cup and spilled onto the table and the floor.
    The student asked, “Master, why are you doing this? The cup is full.
    You can see the tea spilling all over the carpet!”

    The Master smiled and said, “That is what the situation is.
    Your cup is so full that it has no more space to take anymore, but you want more.
    First empty your cup, drink what you have.’

    When the mind is restless, no matter what the answer is, it does not get in.
    When you are quiet, the answers come up from within you.
    This is why a few moments of relaxation are essential.


    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM !!!

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #48 on: May 07, 2014, 03:16:59 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    नम्रता द्रारा नव निर्माण

    बात बहुत पुरानी है। एक बहुत सुन्दर बाग़ था।
    उस में तरह तरह के फूल खिले हुए थे।
    बाग़ में एक तरफ फूलों की ही क्यारी थी।
    उन गुलाबों में एक गुलाब सब से बड़ा था।
    सारे फूल उसे ' राजा गुलाब ' कह कर पुकारते थे।
    अब राजा गुलाब अपने को इस तरह सम्मान
    मिलते देख कर घमण्डी हो गया था।
    वह किसी भी फूल से सीधे मुँह बात नहीं करता था।
    परन्तु अन्य फूल उसकी यह नादानी समझते हुए भी
    उसे सम्मान देते रहे। अक्सर ऐसा होता है।
    हम अपनी विशेषता के आगे दुसरो को कम समझते है।
    और यही हुआ।

    राजा गुलाब के पौधे की जड़ के पास एक
    बड़ा काला पत्थर जमीन में गड़ा हुआ था।
    वह अक्सर उस पत्थर को डाँटता, ऒ काले पत्थर !
    तेरी कुरूपता के कारण मेरा सौन्दर्य बिगड़ता है।
    तू कहीं चला जा। पत्थर शान्त भाव से राजा गुलाब
    को समझाता , इतना घमण्ड ठीक नहीं।
    अपना सौन्दर्य देख दूसरों को
    तुच्छ बतलाना तुम्हारे हित में नहीं है।
    राजा गुलाब अकड़ कर कहता,
    अरे कुरूप पत्थर ! तेरा मेरे आगे क्या सामना ?
    तू तो मेरे चरणो में पड़ा है।

    एक दिन एक व्यक्ति उस बाग़ में आया।
    घूमते - घूमते नज़र उस राजा गुलाब के पास
    पड़े हुऐ काले पत्थर पर पड़ी।
    उसने वह गड़ा हुआ पत्थर वहाँ से
    उखाड़ा और उसे अपने साथ ले गया।
    राजा गुलाब की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा उसने सोचा,
    अच्छा हुआ जो यह काला पत्थर यहाँ से हट गया !
    इसकी कुरूपता मेरा सौन्दर्य नष्ट करती थी।

    कुछ दिन के बाद वहाँ पर एक और व्यक्ति आया।
    उसने राजा गुलाब को तोड़ा और एक मन्दिर में जाकर
    भगवन की मूर्ति के चरणों में समर्पित कर दिया।
    राजा गुलाब को वहाँ बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा।
    वो वहाँ पड़े - पड़े बाग़ में मिलने वाले सम्मान की बात
    सोच ही रहा था कि उसे हँसने की आवाज़ सुनाई दी।
    उसने इधर- उधर देखा, परन्तु कोई दिखाई न दिया।
    उसे आवाज़ सुनाई दी,
    राजा गुलाब, इधर - उधर क्या देखते हो?
    मुझे देखो, मै उसी पत्थर की मूर्ति हूँ
    जिसे तुम हमेशा डाँटते रहते थे, तुच्छ समझते थे।
    आज तुम मेरे ही चरणों में पड़े हो।
    तुम, तुम यहाँ कैसे आये?
    राजा गुलाब ने आश्चर्य से पूछा।
    मूर्ति रुपी पत्थर ने कहा, जो व्यक्ति मुझे ले गया था
    वह एक मूर्तिकार था।
    उसने ही तराश कर मुझे इस रूप में ढाला है।
    राजा गुलाब अपने किये पर पछतावा करने लगा।
    उसने मूर्ति रुपी पत्थर से क्षमा माँगी और कहा,
    मुझे मालूम हो गया कि घमण्डी का सिर हमेशा नीचा होता है।

    अंतः अपने अहंभाव की इस हद तक त्याग दो
    कि आपकी अपनी हस्ती रहे ही नहीं,
    जिसके लिए किसी ने सच ही तो कहा है -

    मिटा दे अपनी हस्ती को, अगर तू मर्तबा चाहे।
    कि दाना मिट्टी में मिलकर ही, गुले गुलजार होता है।।

    सीख- कभी कभी हमें चाहे कितना भी धन या सम्मान मिले
    लेकिन उस का अहंकार या अभिमान न हो।

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

    Offline ShAivI

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #49 on: July 26, 2014, 02:17:36 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    नम्रता और समर्पित भावना

    एक बर्फ बनाने की विशाल फैक्ट्री थी!
    हजारों टन बर्फ हमेशा बनता था !
    सैकड़ों मजदूर व अन्य कर्मचारी एवं
    अधिकारी वहां कार्य करते थे ! उन्ही में से
    था एक कर्मचारी अखिलेश ! अखिलेश उस
    फैक्ट्री में पिछले बीस वर्षों से कार्य कर रहा था !
    उसके मृदु व्यहार, ईमानदारी,एवं काम
    के प्रति समर्पित भावना के कारण
    वो उन्नति करते करते उच्च सुपरवाइजर के
    पद पर पहुँच गया था ! उसको फैक्ट्री के हर
    काम की जानकारी थी ! जब भी कोई
    मुश्किल घडी होती सब,
    यहाँ तक की फैक्ट्री के मालिक भी उसी को याद
    करते थे और वह उस मुश्किल
    पलों को चुटकियों में हल कर देता था !
    इसी लिए फैक्ट्री में
    सभी लोग ,कर्मचारी ,व् अन्य
    अधिकारी उसका बहुत मान करते थे !

    इन सब के अलावा उसकी एक
    छोटी सी अच्छी आदत और थी वह जब
    भी फैक्ट्री में प्रवेश करता फैक्ट्री के गेट पर
    तैनात सुरक्षा गार्ड से ले कर
    सभी अधिनिस्त कर्मचारियों से
    मुस्कुरा कर बात करता उनकी कुशलक्षेम पूछता
    और फिर अपने कक्ष में जा कर अपने
    काम में लग जाता !और यही सब वह जब
    फैक्ट्री का समय समाप्त होने पर घर पर जाते
    समय करता था !

    एक दिन फैक्ट्री के मालिक ने अखिलेश
    को बुला कर कहा " अखिलेश एक मल्टी
    नेशनल कम्पनी जो की आइसक्रीम
    बनती है ने हमें एक बहुत बड़ा आर्डर दिया है
    और हमें इस आर्डर को हर हाल में नीयत
    तिथि तक पूरा करना है
    ताकि कंपनी की साख और लाभ दोनों में
    बढ़ोतरी हो तथा और नई मल्टी नेशनल
    कंपनियां हमारी कंपनी से जुड़ सके ! इस
    काम को पूरा करने के लिए तुम कुछ भी कर
    सकते हो चाहे कर्मचारियों को ओवरटाइम
    दो बोनस दो या और नई भर्ती करो पर
    आर्डर समय पर पूरा कर
    पार्टी को भिजवाओ "अखिलेश ने कहा ठीक है
    में इस आर्डर को समय पर
    पूरा कर दूंगा ! मालिक ने मुस्कुरा कर
    अखिलेश से कहा "मुझे तुमसे इसी उत्तर
    की आशा थी" अखिलेश ने
    सभी मजदूरों को एकत्रित किया और
    आर्डर मिलाने की बात कही और कहा
    "मित्रो हमें हर हाल में ये आर्डर
    पूरा करना है इसके लिए
    सभी कर्मचारियों को ओवरटाइम, बोनस
    सभी कुछ मिलेगा साथ ही ये
    कंपनी की साख का भी सवाल है "!

    एकतो कर्मचारियों का अखिलेश के प्रति सम्मान की
    भावना तथा दूसरी और
    ओवरटाइम व बोनस मिलाने
    की ख़ुशी ,सभी कर्मचरियों ने हां कर दी !
    फैक्ट्री में दिन रात युद्धस्तर पर काम चालू
    हो गया !अखिलेश स्वयं
    भी सभी कर्मचारियों का होसला बढ़ाता हुआ
    उनके कंधे से कन्धा मिला कर काम कर
    रहा था ! उन सभी की मेहनत रंग लाइ और
    समस्त कार्य नीयत तिथि से पूर्व
    ही समाप्त हो गया ! साडी की साडी बर्फ
    शीतलीकरण (कोल्ड स्टोरेज) कक्ष जो एक
    विशाल अत्याधुनिक तकनीक से बना हुआ तथा कम्प्यूटराइज्ड था ,
    में पेक कर के जमा करदी गई !

    सभी कर्मचारी काम से थक गए थे
    इस लिए उस रोज काम बंद कर
    सभी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी गई
    सभी कर्मचारी अपने अपने घर की तरफ
    प्रस्तान करने लगे !

    अखिलेश ने सभी कार्य की जांच की और वह भी घर जाने
    की तैयारी करने लगा जाते जाते उसने
    सोचा चलो एक बार शीतलीकरण कक्ष
    की भी जाँच कर ली जाये
    की सारी की सारी बर्फ पैक्ड और सही है
    की नहीं ,यह सोच वो शीतलीकरण कक्ष को खोल कर
    उसमे प्रवेश कर गया ! उसने घूम
    फिर कर सब चेक किया और सभी कुछ
    सही पा कर वह जाने को वापस मुडा ! पर
    किसी तकनीकी खराबी के कारण
    शीतलीकरण कक्ष का दरवाजा स्वतः ही बंद
    हो गया ! दरवाजा ऑटोमेटिक था तथा बाहर से ही
    खुलता था इस लिए उसने दरवाजे
    को जोर जोर से थपथपाया पर
    सभी कर्मचारी जा चुके थे उसकी थपथपाहट
    का कोई असर नहीं हुआ उसने
    दरवाजा खोलने की बहुत कोशिश की पर
    सब कुछ बेकार रहा ! दरवाजा केवल बाहर से ही
    खुल सकता था !अखिलेशघबरा गया उसने और जोर से दरवाजे
    को पीटा जोर से चिल्लाया पर कोई
    प्रतिक्रिया नहीं हुई ! अखिलेश सोचने
    लगा की कुछ ही घंटों में शीतलीकरण कक्ष
    का तापक्रम शून्य डिग्री से भी कम हो जायेगा ऐसी दशा में मेरा खून
    का जमना निश्चित है ! उसे अपनी मोत
    नजदीक दिखाई देने लगी !उसने एक बार
    पुनः दरवाजा खोलने की कोशिश की पर सब
    कुछ व्यर्थ रहा !कक्ष का ताप धीरे धीरे कम
    होता जा रहा था ! अखिलेश का बदन अकड़ने लगा !
    वो जोर जोर से अपने आप को गर्म
    रखने के लिए भाग दौड़ करने लगा ! पर कब
    तक आखिर थक कर एक स्थान पर बैठ गया !
    ताप शुन्य डिग्री की तरफ बढ़ रहा था !
    अखिलेश की चेतना शुन्य होने लगी ! उसने
    अपने आप को जाग्रत रखने की बहुत कोशिश की पर सब निष्फल रहा !
    ताप के और कम होने पर उसका खून जमने के कगार
    पर आ गया ! और अखिलेश भावना शुन्य
    होने लगा ! मोत निश्चित जान वह अचेत
    हो कर वही ज़मीन पर गिर पड़ा !

    कुछही समय पश्चात दरवाजा धीरे से खुला !
    एक साया अंदर आया उसने अचेत अखिलेश
    को उठाया और शीतलीकरण कक्ष से बाहर
    ला कर लिटाया उसे गर्म कम्बल से ढंका और
    पास ही पड़ा फैक्ट्री के कबाड़ को एकत्रित
    कर उसमे आग जलाई ताकि अखिलेश
    को गर्मी मिल सके और उसका रक्तसंचार सुचारू हो सके !

    गर्मी पाकर अखिलेश के शरीर में कुछ शक्ति आई उसका रक्तसंचार
    सही होने लगा ! आधे घंटे के बाद अखिलेश
    के शरीर में हरकत होने लगी उसका रक्तसंचार सही हुआ
    और उसनेअपनी आँखे खोली !उसने सामने गेट पर
    पहरा देने वाले सुरक्षा गार्ड शेखर को पाया !

    उसने शेखर से पुछा मुझे बाहर किसने
    निकला और तुम तो में गेट पर रहते
    हो तुम्हारा तो फैक्ट्री के अंदर कोई कार्य
    भी नहीं फिर तुम यहाँ कैसे आये ?शेखर ने
    कहा "सर में एक मामूली सा सुरक्षा गार्ड हूँ !
    फैक्ट्री में प्रवेश करने वाले प्रत्येक पर
    निगाहे रखना तथा सभी कर्नचारियों व
    अधिकारियो को सेल्यूट करना ये
    ही मेरी ड्यूटी है ! मेरे अभिवादन पर अधिकतर कोई ध्यान
    नहीं देता कभी कभी कोई मुस्कुरा कर अपनो गर्दन हिला देता है !
    पर सर एक आपही ऐसे इंसान है जो प्रतिदिन मेरे
    अभिवादन पर मुस्कुरा कर अभिवादन
    का उत्तर देते थे साथ ही मेरी कुशलक्षेम
    भी पूछते थे ! आज सुबह भी मेने
    आपको अभिवादन किया आपने मुस्कुरा कर
    मेरे अभिवादन का उत्तरदिया और मेरे हालचाल पूछे!

    मुझे मालूम था की इन दिनों फैक्ट्री में बहुत काम चल
    रहा है जो आज समाप्त हो जायेगा ! और काम
    समाप्त भी हो गया सभी लोग अपने अपने
    घर जाने लगे ! जब सब लोग दरवाजे से निकल गए तो
    मुझे आप की याद आई की रोज आप मेरे से बात कर के घर जाते थे पर
    आज दिखी नहीं दिए ! मेने सोचा शायद
    अंदर काम में लगे होंगे ! पर सब के जाने के बाद
    भी बहुत देर तक आप बहार आते
    दिखी नहीं दिए तो मेरे दिल में कुछ शंकाएं उत्पन्न होने लगी !
    क्यों की फैक्ट्री के जाने आने
    का यही एकमात्र रास्ता है इसी लिए में
    आपको ढूंढते हुए फैक्ट्री के अंदर आ गया !

    मेने आपका कक्ष देखा मीटिंग हाल
    देखा बॉस का कक्ष देखा पर आप कही दिखाई नहीं दिए !मेरा मन शंका से
    भर गया की आप कहाँ गए ?कोई निकलने
    का दूसर रास्ता भी नहीं है !में वापस जाने
    लगा तो सोचा चलो शीतलीकरण कक्ष
    भी देख लू ! पर वो बंद था !में वापस जाने
    को मुडा पर मेरे दिल ने कहा की एक बार
    इस शीतलीकरण कक्ष को खोल कर भी देखूं !
    में आपात्कालीन चाबियाँ जो मेरे पास
    रहती है ,से कक्ष खोला तो आपको यहाँ बेहोश पाया !

    अखिलेश एक टक शेखर के चहरे की और देखे
    जा रहा था उसने सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी एक
    छोटी सी अच्छी आदत का प्रतिफल उसे
    इतना बड़ा मिलेगा !उसकी आँखों में आंसू
    भर आये उसने उठ कर शेखर को गले
    लगा लिया !

    अगर दोस्तों को इस कहानी में कुछ सार
    नजर आये तो कोशिश करे की इस ग्रुप के
    सभी सदस्य इस कहानी को पढ़ सके और
    एक अच्छी आदत चाहे वह
    छोटी सी ही क्यों ना हो अपने जीवन में
    उत्तर सकें.

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

    Offline PiyaSoni

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #50 on: August 28, 2014, 12:32:22 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    ऊँची समझ...

    एक संत के पास बहरा आदमी सत्संग सुनने आता था। उसे कान तो थे
    पर वे नाड़ियों से जुड़े नहीं थे। एकदम बहरा, एक शब्द भी सुन नहीं सकता था।
    किसी ने संतश्री से कहाः"बाबा जी ! वे जो वृद्ध बैठे हैं,
    वे कथा सुनते-सुनते हँसते तो हैं पर वे बहरे हैं।"

    बहरे मुख्यतः दो बार हँसते हैं – एक तो कथा सुनते-सुनते जब सभी हँसते हैं
    तब और दूसरा, अनुमान करके बात समझते हैं तब अकेले हँसते हैं।

    बाबा जी ने कहाः "जब बहरा है तो कथा सुनने क्यों आता है ? रोज एकदम
    समय पर पहुँच जाता है। चालू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी नहीं है, घंटों बैठा रहता है।"

    बाबाजी सोचने लगे, "बहरा होगा तो कथा सुनता नहीं होगा और कथा नहीं
    सुनता होगा तो रस नहीं आता होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं चाहिए,
     उठकर चले जाना चाहिए। यह जाता भी नहीं है !''

    बाबाजी ने उस वृद्ध को बुलाया और उसके कान के पास ऊँची आवाज में कहाः
    "कथा सुनाई पड़ती है ?"उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?"

    बाबाजी ने आवाज और ऊँची करके पूछाः "मैं जो कहता हूँ, क्या वह सुनाई पड़ता है ?"
    उसने कहाः "क्या बोले महाराज ?"बाबाजी समझ गये कि यह नितांत
    बहरा है। बाबाजी ने सेवक से कागज कलम मँगाया और लिखकर पूछा।
    वृद्ध ने कहाः "मेरे कान पूरी तरह से खराब हैं। मैं एक भी शब्द नहीं सुन सकता हूँ।"
    कागज कलम से प्रश्नोत्तर शुरू हो गया।

    "फिर तुम सत्संग में क्यों आते हो ?"
    "बाबाजी ! सुन तो नहीं सकता हूँ लेकिन यह तो समझता हूँ कि ईश्वरप्राप्त
    महापुरुष जब बोलते हैं तो पहले परमात्मा में डुबकी मारते हैं।
    संसारी आदमी बोलता है तो उसकी वाणी मन व बुद्धि को छूकर आती
    है लेकिन ब्रह्मज्ञानी संत जब बोलते हैं तो उनकी वाणी आत्मा को छूकर
    आती हैं। मैं आपकी अमृतवाणी तो नहीं सुन पाता हूँ पर उसके आंदोलन
    मेरे शरीर को स्पर्श करते हैं। दूसरी बात, आपकी अमृतवाणी सुनने के
    लिए जो पुण्यात्मा लोग आते हैं उनके बीच बैठने का पुण्य भी मुझे प्राप्त होता है।"

    बाबा जी ने देखा कि ये तो ऊँची समझ के धनी हैं। उन्होंने कहाः
    " दो बार हँसना, आपको अधिकार है किंतु मैं यह जानना चाहता हूँ कि
    आप रोज सत्संग में समय पर पहुँच जाते हैं और आगे बैठते हैं, ऐसा क्यों ?"

    "मैं परिवार में सबसे बड़ा हूँ। बड़े जैसा करते हैं वैसा ही छोटे भी करते हैं।
    मैं सत्संग में आने लगा तो मेरा बड़ा लड़का भी इधर आने लगा।
    शुरुआत में कभी-कभी मैं बहाना बना के उसे ले आता था।
    मैं उसे ले आया तो वह अपनी पत्नी को यहाँ ले आया,
    पत्नी बच्चों को ले आयी – सारा कुटुम्ब सत्संग में आने लगा,
    कुटुम्ब को संस्कार मिल गये।"

    ब्रह्मचर्चा, आत्मज्ञान का सत्संग ऐसा है कि यह समझ में
    नहीं आये तो क्या, सुनाई नहीं देता हो तो भी इसमें शामिल
    होने मात्र से इतना पुण्य होता है कि व्यक्ति के जन्मों-जन्मों के
    पाप-ताप मिटने एवं एकाग्रतापूर्वक सुनकर इसका
    मनन-निदिध्यासन करे उसके परम कल्याण में संशय ही क्या !


    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #51 on: September 04, 2014, 04:52:43 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    परमात्मा का शुक्र करें

    लाहौर में लाहौरी और शाहआलमी दरवाजों के बाहर कभी एक बाग़ था।
    वहाँ एक फ़क़ीर था। उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे।
    मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था।
    एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा - " पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? "
    उसने बताया - " जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ ,
    ' ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ' वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। "

    मैंने पूछा - " खाते कैसे हो बिना हाथों के ? "
    वह बोला - " खुद तो खा नहीं सकता। आने-जानेवालों को आवाज़ देता हूँ
    ' ओ जानेवालों ! प्रभु तुम्हारे हाथ बनाए रखे , मेरे ऊपर दया करो !
    रोटी खिला दो मुझे , मेरे हाथ नहीं हैं। ' हर कोई तो सुनता नहीं ,
    लेकिन किसी-किसी को तरस आ जाता है। वह प्रभु का प्यारा मेरे पास आ बैठता है।
    ग्रास तोड़कर मेरे मुँह में डालता जाता है , मैं खा लेता हूँ। "

    सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया - " पानी कैसे पीते हो ? "
    उसने बताया - " इस घड़े को टांग के सहारे झुका देता हूँ तो प्याला भर जाता है।
    तब पशुओं की तरह झुककर पानी पी लेता हूँ। "

    मैंने कहा - " यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि माथे पर मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? "

    वह बोला - " तब माथे को ज़मीन पर रगड़ता हूँ।
    कहीं और मच्छर काट ले तो पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। "

    हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !

    अरे , इस शरीर की निंदा मत करो ! यह तो अनमोल रत्न है !
    शरीर का हर अंग इतना कीमती है कि संसार का कोई भी खज़ाना उसका मोल नहीं चुका सकता।
    परन्तु यह भी तो सोचो कि यह शरीर मिला किस लिए है ?
    इसका हर अंग उपयोगी है। इनका उपयोग करो !

    स्मरण रहे कि ये आँखे पापों को ढूँढने के लिए नहीं मिलीं।
    कान निंदा सुनने के लिए नहीं मिले।
    हाथ दूसरों का गला दबाने के लिए नहीं मिले।
    यह मन भी अहंकार में डूबने या मोह-माया में फसने को नहीं मिला।

    ये आँख सच्चे सतगुरु की खोज के लिये मिली है,
    ये हाथ उसकी सेवा और आजीविका चलाने को मिले है।
    ये पैर उस रास्ते पर चलने को मिले है जो पूर्ण संत तक जाता हो।
    ये कान उस संदेश सुनने को मिले है जो जिसमे पूर्ण सतगुरु की पहचान बताई जाती हो।
    ये जिह्वा उस सतगुरु का गुण गान करने को मिली है
    जिसने आपको परमात्मा से मिलने की राह बताई हो।
    ये मन उस सतगुरु का लगातार शुक्र और
    सुमिरन करने को मिला है जिसने सही रास्ते डाल दिया है।

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!



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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #52 on: September 10, 2014, 03:06:58 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    उपदेश

    एक बार समर्थ स्वामी रामदासजी भिक्षा माँगते हुए
    एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी

    “जय जय रघुवीर समर्थ !”

    घर से महिला बाहर आयी।
    उसने उनकी झोलीमे भिक्षा डाली और कहा,
    “महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए !”

    स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।”

    दूसरे दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज दी,
    “जय जय रघुवीर समर्थ !”

    उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम-पिस्ते भी डाले थे।
    वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी।
    स्वामीजीने अपना कमंडल आगे कर दिया।
    वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि
    कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है।
    उसके हाथ ठिठक गए।

    वह बोली,“महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।”
    स्वामीजी बोले, “हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”

    स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी।
    दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।”

    स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न ?”
    स्त्री ने कहा : “जी महाराज !”

    स्वामीजी बोले, “मेरा भी यही उपदेश है।

    मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा-कचरा और
    बुरे संस्करो का गोबर भरा है,
    तब तक उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
    यदि उपदेशामृत पान करना है,
    तो प्रथम अपने मन को शुद्ध करना चाहिए,
    कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए,
    तभी सच्चे सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।”




    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!



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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #53 on: September 10, 2014, 03:17:05 AM »
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  • THANKS FOR SUCH A WONDERFUL LESSONS
    MAY SAI BLESS YOU
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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #54 on: September 10, 2014, 05:41:51 AM »
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  • shaivi & piyagolu tumre sabhi commits story bhut ache hai apki waijse ye sab padne ko mila samjne ko mila

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #55 on: September 12, 2014, 01:01:55 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और
    उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय
    पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था। वह
    बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में फिर...
    कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर
    नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक दिन
    चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ
    गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने वहां से
    जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन सुबह
    आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।
    साधु ने कहा, ‘तुम्हें सिर पर कुछ पत्थर रखकर
    पहाड़ पर चढ़ना होगा। वहां पहुंचने पर ही ईश्वर
    के दर्शन की व्यवस्था की जाएगी।’ चोर के सिर
    पर पांच पत्थर लाद दिए गए और साधु ने उसे
    अपने पीछे-पीछे चले आने को कहा। इतना भार
    लेकर वह कुछ दूर ही चला तो उस बोझ से
    उसकी गर्दन दुखने लगी। उसने अपना कष्ट
    कहा तो साधु ने एक पत्थर फिंकवा दिया।
    थोड़ी देर चलने पर शेष भार भी कठिन प्रतीत
    हुआ तो चोर की प्रार्थना पर साधु ने
    दूसरा पत्थर भी फिंकवा दिया। यही क्रम आगे
    भी चला। ज्यों-ज्यों चढ़ाई बढ़ी, थोडे़
    पत्थरों को ले चलना भी मुश्किल हो रहा था। चोर
    बार-बार अपनी थकान व्यक्त कर रहा था। अंत
    में सब पत्थर फेंक दिए गए और चोर
    सुगमतापूर्वक पर्वत पर चढ़ता हुआ ऊंचे शिखर
    पर जा पहुंचा।
    साधु ने कहा, ‘जब तक तुम्हारे सिर पर
    पत्थरों का बोझ रहा, तब तक पर्वत के ऊंचे
    शिखर पर तुम्हारा चढ़ सकना संभव
    नहीं हो सका। पर जैसे ही तुमने पत्थर फेंके वैसे
    ही चढ़ाई सरल हो गई। इसी तरह पापों का बोझ
    सिर पर लादकर कोई मनुष्य ईश्वर को प्राप्त
    नहीं कर सकता।’ चोर ने साधु का आशय समझ
    लिया। उसने कहा, ‘आप ठीक कह रहे हैं। मैं
    ईश्वर को पाना तो चाहता था पर अपने बुरे
    कर्मों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था।’ उस दिन
    से चोर पूरी तरह बदल गया।


    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
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    Offline bhuvana j s

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #56 on: September 19, 2014, 07:07:54 AM »
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  • shaivi apke sankar storis bhut ache hai

    Offline PiyaSoni

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #57 on: September 26, 2014, 02:24:34 AM »
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  • ॐ साईं राम

    किसान की घड़ी

    एक बार एक किसान
    की घड़ी कहीं खो गयी.
    वैसे तो घडी कीमती नहीं थी पर...
    किसान उससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था और
    किसी भी तरह उसे वापस
    पाना चाहता था.
    उसने खुद भी घडी खोजने का बहुत
    प्रयास किया, कभी कमरे में
    खोजता तो कभी बाड़े तो कभी अनाज के
    ढेर में ….पर तामाम कोशिशों के बाद
    भी घड़ी नहीं मिली.
    उसने निश्चय किया की वो इस काम में
    बच्चों की मदद लेगा और उसने आवाज लगाई , ”
    सुनो बच्चों , तुममे से जो कोई
    भी मेरी खोई घडी खोज
    देगा उसे मैं १०० रुपये इनाम में दूंगा.”
    फिर क्या था , सभी बच्चे जोर-शोर दे इस काम में
    लगा गए…वे हर जगह की ख़ाक छानने लगे , ऊपर-
    नीचे , बाहर, आँगन में ..हर जगह…पर
    घंटो बीत जाने पर
    भी घडी नहीं मिली.
    अब लगभग सभी बच्चे हार मान चुके थे और
    किसान को भी यही लगा की घड़ी नहीं मिलेगी,
    तभी एक लड़का उसके पास आया और बोला , ”
    काका मुझे एक मौका और दीजिये, पर इस बार मैं ये
    काम अकेले ही करना चाहूँगा.”
    किसान का क्या जा रहा था, उसे तो घडी चाहिए
    थी, उसने तुरंत हाँ कर दी.
    लड़का एक-एक कर के घर के कमरों में जाने लगा…और जब
    वह किसान के शयन कक्ष से निकला तो घड़ी उसके
    हाथ में थी.
    किसान घड़ी देख प्रसन्न हो गया और अचरज से
    पूछा ,” बेटा, कहाँ थी ये घड़ी , और
    जहाँ हम सभी असफल हो गए तुमने इसे कैसे ढूंढ
    निकाला ?”
    लड़का बोला,” काका मैंने कुछ नहीं किया बस मैं कमरे
    में गया और चुप-चाप बैठ गया, और
    घड़ी की आवाज़ पर ध्यान केन्द्रित
    करने लगा , कमरे में शांति होने के कारण मुझे
    घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे
    गयी , जिससे मैंने
    उसकी दिशा का अंदाजा लगा लिया और
    आलमारी के पीछे गिरी ये
    घड़ी खोज निकाली.”
    Friends, जिस तरह कमरे
    की शांति घड़ी ढूढने में मददगार साबित
    हुई उसी प्रकार मन की शांति हमें life
    की ज़रूरी चीजें समझने में
    मददगार होती है . हर दिन हमें अपने लिए
    थोडा वक़्त निकालना चाहिए ,  हम बिलकुल अकेले हों ,
    हम शांति से बैठ कर खुद से बात कर सकें और अपने
    भीतर की आवाज़ को सुन सकें ,
    तभी हम life को और अच्छे ढंग से
    जी पायेंगे !!


    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #58 on: January 07, 2015, 05:18:20 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    सत्य है तो सिध्दि, प्रसिध्दि और समृद्धि है....।

    बनारस में एक बड़े धनवान सेठ रहते थे।
    वह विष्णु भगवान् के परम भक्त थे और हमेशा सच बोला करते थे ।
    एक बार जब भगवान् सेठ जी की प्रशंशा कर रहे थे
    तभी माँ लक्ष्मी ने कहा ,
    ”स्वामी , आप इस सेठ की इतनी प्रशंशा किया करते हैं ,
    क्यों न आज उसकी परीक्षा ली जाए और जाना जाए कि
    क्या वह सचमुच इसके लायक है या नहीं ? ”

    भगवान् बोले , ” ठीक है ! अभी सेठ गहरी निद्रा में है
    आप उसके स्वप्न में जाएं और उसकी परीक्षा ले लें। ”
    अगले ही क्षण सेठ जी को एक स्वप्न आया।
    स्वप्न मेँ धन की देवी लक्ष्मी उनके सामनेँ आई और बोली ,
    ” हे मनुष्य ! मैँ धन की दात्री लक्ष्मी हूँ।”

    सेठ जी को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और
    वो बोले , ” हे माता आपने साक्षात अपने दर्शन देकर
    मेरा जीवन धन्यकर दिया है ,
    बताइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?”

    ” कुछ नहीं ! मैं तो बस इतना बताने आयी हूँ कि मेरा स्वाभाव चंचल है,
    और वर्षों से तुम्हारे भवन में निवास करते-करते मैं ऊब चुकी हूँ
    और यहाँ से जा रही हूँ। ”

    सेठ जी बोले , ” मेरा आपसे निवेदन है कि आप यहीं रहे ,
    किन्तु अगर आपको यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तो
    मैं भला आपको कैसे रोक सकता हूँ,
    आप अपनी इच्छा अनुसार जहाँ चाहें जा सकती हैं। ”

    और माँ लक्ष्मी उसके घर से चली गई।

    थोड़ी देर बाद वे रूप बदल कर पुनः सेठ के स्वप्न मेँ
    यश के रूप में आयीं और बोलीं ,
    ” सेठ मुझे पहचान रहे हो?”

    सेठ – “नहीं महोदय आपको नहीँ पहचाना।

    यश – ” मैं यश हूँ , मैं ही तेरी कीर्ति और प्रसिध्दि का कारण हूँ ।
    लेकिन अब मैँ तुम्हारे साथ नहीँ रहना चाहता
    क्योँकि माँ लक्ष्मी यहाँ से चली गयी हैं
    अतः मेरा भी यहाँ कोई काम नहीं। ”

    सेठ -” ठीक है , यदि आप भी जाना चाहते हैं तो वही सही। ”

    सेठ जी अभी भी स्वप्न में ही थे और उन्होंने देखा कि वह दरिद्र हो गए है
    और धीरे- धीरे उनके सारे रिश्तेदार व मित्र भी उनसे दूर हो गए हैं।
    यहाँ तक की जो लोग उनका गुणगान किया करते थे
    वो भी अब बुराई करने लगे हैं।

    कुछ और समय बीतने पर माँ लक्ष्मी धर्म का रूप धारण कर
    पुनः सेठ के स्वप्न में आयीं और बोलीं ,
    ” मैँ धर्म हूँ। माँ लक्ष्मी और यश के जाने के बाद मैं भी इस
    दरिद्रता में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता ,
    मैं जा रहा हूँ। ”

    ” जैसी आपकी इच्छा। ” , सेठ ने उत्तर दिया। और
    धर्म भी वहाँ से चला गया।

    कुछ और समय बीत जाने पर माँ लक्ष्मी सत्य के रूप में
    स्वप्न में प्रकट हुईं और बोलीं ,”मैँ सत्य हूँ।

    लक्ष्मी , यश, और धर्म के जाने के बाद अब मैं भी यहाँ से जाना चाहता हूँ.

    “ ऐसा सुन सेठ जी ने तुरंत सत्य के पाँव पकड़ लिए
    और बोले ,
    ” हे महाराज , मैँ आपको नहीँ जानेँ दुँगा।
    भले ही सब मेरा साथ छोड़ दें ,
    मुझे त्याग दें पर कृपया आप ऐसा मत करिये ,
    सत्य के बिना मैँ एक क्षण नहीँ रह सकता ,
    यदि आप चले जायेंगे तो
    मैं तत्काल ही अपने प्राण त्याग दूंगा। “

    ” लेकिन तुमने बाकी तीनो को बड़ी आसानी से जाने दिया ,
    उन्हें क्यों नहीं रोका। ” ,

    सत्य ने प्रश्न किया। सेठ जी बोले ,
    ” मेरे लिए वे तीनो भी बहुत महत्त्व रखते हैं
    लेकिन उन तीनो के बिना भी
    मैं भगवान् के नाम का जाप करते-करते उद्देश्यपूर्ण
    जीवन जी सकता हूँ , परन्तु यदि आप चले गए तो
    मेरे जीवन में झूठ प्रवेश कर जाएगा
    और मेरी वाणी अशुद्ध हो जायेगी ,
    भला ऐसी वाणी से मैं अपने भगवान्की 
    वंदना कैसे कर सकूंगा,
    मैं तो किसी भी कीमत पर आपके बिना नहीं रह सकता।

    सेठ जी का उत्तर सुन सत्य प्रसन्न हो गया ,
    और उसने कहा ,
    “तुम्हारी अटूट भक्ति नेँ मुझे यहाँ रूकनेँ पर विवश कर दिया
    और अब मैँ यहाँ से कभी नहीं जाऊँगा। ”
    और ऐसा कहते हुए सत्य अंतर्ध्यान हो गया।

    सेठ जी अभी भी निद्रा में थे।

    थोड़ी देर बाद स्वप्न में धर्म वापस आया और बोला ,
     “ मैं अब तुम्हारे पास ही रहूँगा क्योंकि यहाँ सत्य का निवास है .”

    सेठ जी ने प्रसन्नतापूर्वक धर्म का स्वागत किया।

    उसके तुरंत बाद यश भी लौट आया और बोला ,
    “जहाँ सत्य और धर्म हैं वहाँ यश स्वतः ही आ जाता है ,
    इसलिए अब मैं भी तुम्हारे साथ ही रहूँगा।

    सेठ जी ने यश की भी आव - भगत की। और अंत में माँ लक्ष्मी आयीं।

    उन्हें देखते ही सेठ जी नतमस्तक होकर बोले ,
    “ हे देवी ! क्या आप भी पुनः मुझ पर कृपा करेंगी ?”

    “अवश्य , जहां , सत्य , धर्म और यश हों वहाँ मेरा वास निश्चित है। ”,
    माँ लक्ष्मी ने उत्तर दिया।

    यह सुनते ही सेठ जी की नींद खुल गयी।
    उन्हें यह सब स्वप्न लगा पर वास्तविकता में
    वह एक कड़ी परीक्षा से उत्तीर्ण हो कर निकले थे।

    मित्रों, हमें भी हमेशा याद रखना चाहिए कि जहाँ सत्य का निवास होता है
    वहाँ यश, धर्म और लक्ष्मी का निवास स्वतः ही हो जाता है ।

    सत्य है तो सिध्दि, प्रसिध्दि और समृद्धि है....।



    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

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    Re: Sanskar Stories !!!
    « Reply #59 on: January 10, 2015, 07:36:49 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं,
    तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं,
    और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।।


    एक बार श्री कृष्ण और अर्जुन भ्रमण पर निकले
    तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते देखा....

    अर्जुन को उस पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को
    स्वर्ण मुद्राओ से भरी एक पोटली दे दी।

    जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के
    सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर लौट चला।

    किन्तु उसका दुर्भाग्य उसके साथ चल रहा था,
    राह में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।

    ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।
    अगले दिन फिर अर्जुन की दृष्टि जब उस ब्राहमण पर पड़ी तो
    उन्होंने उससे इसका कारण पूछा।

    ब्राहमण ने सारा विवरण अर्जुन को बता दिया,
    ब्राहमण की व्यथा सुनकर अर्जुन को
    फिर से उस पर दया आ गयी
    अर्जुन ने विचार किया और इस बार उन्होंने ब्राहमण को
    मूल्यवान एक माणिक दिया।

    ब्राहमण उसे लेकर घर पंहुचा उसके घर में एक पुराना घड़ा था
    जो बहुत समय से प्रयोग नहीं किया गया था,
    ब्राह्मण ने चोरी होने के भय से माणिक उस घड़े में छुपा दिया।

    किन्तु उसका दुर्भाग्य,
    दिन भर का थका मांदा होने के कारण उसे नींद आ गयी...
    इस बीच ब्राहमण की स्त्री नदी में जल लेने चली गयी
    किन्तु मार्ग में ही उसका घड़ा टूट गया, उसने सोंचा,
    घर में जो पुराना घड़ा पड़ा है
    उसे ले आती हूँ, ऐसा विचार कर वह घर लौटी
    और उस पुराने घड़े को ले कर
    चली गई और जैसे ही उसने घड़े को
    नदी में डुबोया वह माणिक भी
    जल की धारा के साथ बह गया।

    ब्राहमण को जब यह बात पता चली तो अपने भाग्य को
    कोसता हुआ वह फिर भिक्षावृत्ति में लग गया।

    अर्जुन और श्री कृष्ण ने जब फिर उसे इस दरिद्र अवस्था
    में देखा तो जाकर उसका कारण पूंछा।

    सारा वृतांत सुनकर अर्जुन को बड़ी हताशा हुई
    और मन ही मन सोचने लगे इस अभागे ब्राहमण के
    जीवन में कभी सुख नहीं आ सकता।

    अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई।

    उन्होंने उस ब्राहमण को दो पैसे दान में दिए।

    तब अर्जुन ने उनसे पुछा
    “प्रभु मेरी दी मुद्राए और माणिक भी
    इस अभागे की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो
    इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ?

    यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुरा भर दिए और
    अर्जुन से उस ब्राहमण के पीछे जाने को कहा।

    रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि
    "दो पैसो से तो एक व्यक्ति के लिए भी भोजन नहीं आएगा
    प्रभु ने उसे इतना तुच्छ दान क्यों दिया ?
    प्रभु की यह कैसी लीला है "?

    ऐसा विचार करता हुआ वह चला जा रहा था
    उसकी दृष्टि एक मछुवारे पर पड़ी,
    उसने देखा कि मछुवारे के जाल में एक मछली फँसी है,
    और वह छूटने के लिए तड़प रही है ।

    ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी।
    उसने सोचा
    "इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं।क्यों?
    न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"।

    यह सोचकर उसने दो पैसो में उस मछली का सौदा कर लिया
    और मछली को अपने कमंडल में डाल लिया।
    कमंडल में जल भरा और मछली को नदी में छोड़ने चल पड़ा।

    तभी मछली के मुख से कुछ निकला।
    उस निर्धन ब्राह्मण ने देखा ,
    वह वही माणिक था जो उसने घड़े में छुपाया था।

    ब्राहमण प्रसन्नता के मारे चिल्लाने लगा
    “मिल गया, मिल गया ”..!!!

    तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था
    जिसने ब्राहमण की मुद्राये लूटी थी।

    उसने ब्राह्मण को चिल्लाते हुए सुना
    “ मिल गया मिल गया ”
    लुटेरा भयभीत हो गया।
    उसने सोंचा कि ब्राहमण उसे पहचान गया है
    और इसीलिए चिल्ला रहा है,
    अब जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा।

    इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा।
    और उससे लूटी हुई सारी मुद्राये भी उसे वापस कर दी।

    यह देख अर्जुन प्रभु के आगे नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके।

    अर्जुन बोले,प्रभु यह कैसी लीला है?
    जो कार्य थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ
    और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका
    वह आपके दो पैसो ने कर दिखाया।

    श्री कृष्णा ने कहा “अर्जुन यह अपनी सोंच का अंतर है,
    जब तुमने उस निर्धन को थैली भर स्वर्ण मुद्राएँ
    और मूल्यवान माणिक दिया तब उसने मात्र अपने
    सुख के विषय में सोचा।

    किन्तु जब मैनें उसको दो पैसे दिए।
    तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा।
    इसलिए हे अर्जुन-सत्य तो यह है कि,
    जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है,
    जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं,
    तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं,
    और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।।



    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

     


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