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Main Section => Spiritual influence on Lifestyle => Topic started by: hanushasai on February 20, 2012, 02:24:04 AM

Title: निराकार देवत्व की अनुभूति ही महाशिवरात्रि है !
Post by: hanushasai on February 20, 2012, 02:24:04 AM

निराकार देवत्व की अनुभूति ही महाशिवरात्रि है
- श्री श्री रविशंकर॥

शिव वहां होते हैं, जहां मन का विलय होता है। ईश्वर को पाने के लिए लंबी तीर्थ यात्रा पर जाने की आवश्यकता नहीं। हम जहां पर हैं, वहां अगर ईश्वर नहीं मिलता, तो अन्य किसी भी स्थान पर उसे पाना असंभव है। जिस क्षण हम स्वयं में स्थित, केंद्रित हो जाते हैं, तो पाते हैं कि ईश्वर हर जगह मौजूद है। शोषितों में, वंचितों में, पेड़-पौधों, जानवरों में... सभी जगह। इसी को ध्यान कहते हैं।

शिव के कई नामों में से एक है- विरुपाक्ष। अर्थात जो निराकार है, फिर भी सब देखता है। हमारे चारों ओर हवा है और हम उसे महसूस भी करते हैं, लेकिन अगर हवा हमें महसूस करने लगे तो क्या होगा? आकाश हमारे चारों ओर है, हम उसे पहचानते हैं, लेकिन कैसा होगा अगर वह हमें पहचानने लगे और हमारी उपस्थिति को महसूस करे? ऐसा होता है।

केवल हमें इस बात का पता नहीं चलता। वैज्ञानिकों को यह मालूम है और वे इसे सापेक्षता का सिद्धांत कहते हैं। जो देखता है और जो दिखता है, दोनों दिखने पर प्रभावित होते हैं। ईश्वर हमारे चारों ओर है और हमें देख रहा है। वह हमारा पूरा परिवेश है। वह द्रष्टा, दृश्य और दृष्टित है। यह निराकार देवत्व शिव है और इस शिव तत्व का अनुभव करना शिवरात्रि है।

आम तौर पर उत्सव में जागरूकता खो जाती है, लेकिन उत्सव में जागरूकता के साथ गहरा विश्राम शिवरात्रि है। जब हम किसी समस्या का सामना करते हैं, तब सचेत व जागृत हो जाते हैं। जब सब कुछ ठीक होता है, तब हम विश्राम में रहते हैं। अद्यंतहिनम् अर्थात जिसका न तो आदि है न अंत, सर्वदा वही शिव है। सबका निर्दोष शासक, जो निरंतर हर जगह उपस्थित है। हमें लगता है शिव गले में सर्प लिए कहीं बैठे हुए हैं। लेकिन शिव वह हैं, जहां से सब कुछ जनमा है। जो इसी क्षण सब कुछ घेरे हुए है। जिसमें सारी सृष्टि विलीन हो जाती है।

इस सृष्टि में जो भी रूप देखते हैं, सब उसी का रूप है। वह सारी सृष्टि में व्याप्त है। न वह कभी जनमा है न ही उसका कोई अंत है। वह अनादि है। शिव के पांच रूप हैं- जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। इन पांचों तत्वों की समझ तत्व ज्ञान है। शिव तत्व में हम उनके पांचों रूपों का आदर करते हैं। हम उदार हृदय से शुभेच्छा करें कि संसार में कोई भी व्यक्ति दुखी न रहे। सर्वे जन: सुखिनो भवंतु..। पृथ्वी के सभी तत्वों में देवत्व है।

वृक्षों, पर्वतों, नदियों और लोगों का सम्मान किए बिना कोई पूजा पूरी नहीं होती। सब के सम्मान को 'दक्षिणा' कहते हैं। दक्षिणा का अर्थ है कुछ देना। जब हम किसी भी विकृति के बिना, कुशलता से समाज में रहते हैं, क्रोध, चिंता, दुख जैसी सब नकारात्मक मन की वृत्तियों का नाश होता है। हम अपने तनाव, चिताएं और दुख दक्षिणा के रूप में प्रकृति और परिवेश को दे दें और अपना समय दुखियों-पीड़ितों की सेवा को समर्पित कर दें। यही शिव की सच्ची उपासना सिद्ध होगी।

एक बार किसी ने प्रश्न किया शिवरात्रि ही क्यों ? शिव दिन क्यों नहीं ? रात्रि का मतलब है , जो आपको अपनी गोद में लेकर सुख और विश्राम प्रदान करे। रात्रि हर बार सुखदायक होती है , सभी गतिविधियां ठहर जाती हैं , सब कुछ स्थिर और शांतिपूर्ण हो जाता है , पर्यावरण शांत हो जाता है , शरीर थकान के कारण निद्रा में चला जाता है। शिवरात्रि गहन विश्राम की अवस्था है। जब मन , बुद्धि और अहंकार दिव्यता की गोद में विश्राम करते हैं तो वह वास्तविक विश्राम है। यह दिन शरीर व मन की कार्य प्रणाली को विश्राम देने का उत्सव है।  

प्रस्तुति : राजेश मिश्रा


Source: Speaking Tree NBT