साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम
सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम
राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम राधे श्याम
सबका मालिक एक सबका मालिया एक सबका मालिक एक सबका मालिक एक सबका मालिक एक
"ईश्वर अल्लाह जीजस नानक ,
सबमे साईं का ही वास है,
फिर भी तू मूरख अज्ञानी ,
करता अलग -अलग की बात है "
प्रारब्ध अपरिहार्य ओर अटल है .ये दृश्य की भाति जीवन की घटनाओ का अनुक्रम है
बाबा ने बहुत ही सहज तरीके से अपनी लीला के माध्यम से इस को समझाया है .
एक दरिद्र ब्रह्मण अपनी दरिद्रता मिटाने हेतु बाबा के पास पंहुचा . उसे
यही ज्ञात था कि बाबा बहुत ही दयालु है ओर सदा ही दान दिया करते है .
बाबा से दान मिलने पर उसकी दरिद्रता दूर हो जाएगी .
बाबा ने उस दिन महा भोज का प्रबंध किया था ओर उसकी तैयारियो मे बाबा
ओर प्रेमीगन व्यस्त थे. दरिद्र ब्रह्मण ने बाबा से दरिद्रता दूर करने की
प्राथना की . बाबा ने बड़े ही सहज ओर सरलता से सामने जो भक्त मांस
काट रहा था ,उससे कहा कि इस दरिद्र ब्रह्मण की झोली मे कुछ मांस के टुकड़े
दाल दो . ये आदेश देने के पश्च्यात बाबा वह से चले गये. भक्त ओर ब्रह्मण
दोनों ही बहुत ही असमंझस मे पड़ गये. भक्त के मन मे विचार आने लगा की क्या
एक ब्रह्मण को मांस देना पाप करना तो नहीं .उधर ब्रह्मण भी यही विचार मे पड़
गया की क्या मांस ग्रहण करना एक पाप के सामान नहीं होगा . पर बाबा के आदेश की
अवहेलना करने की शक्ति दोनों मे ना थी . अनचाहे मान से भक्त ने कुछ टुकड़े
ब्रह्मण की झोली मे डाल दिये और ब्रह्मण ने भी अनचाहे मन से उसे ग्रहण
कर लिया ओर घर की ओर प्रस्थान कर दिया. निराश और मायूस ब्रह्मण
यही सोचता रहा की उच्च कुल मे जन्म लिया है ओर यदि इन मांस के टुकडो
को लेकर गांव पंहुचा तो बहुत ही शर्मिंदी का सामना करना पड़ेगा और हो सकता
है कि गांव ओर समाज से वहिस्कृत ना कर दिया जाऊ . ऐसा विचार कर रास्ते
मे पड़ने वाली नदी मे उसने स्नान किया ओर आपनी झोली को बहते पानी
मे उल्टा कर फेक दिया . तभी अचानक ब्रह्मण की नजर नदी के तलहटी पर
पड़ी तो आँखे अच्चम्भित ओर खूली की खूली रह गई . जिसे वो मांस
के टुकड़े समझ कर फेका था वो मांस के टुकड़े नहीं बलकी सोने
की अशरफिया थी . पानी के तेज बहाव मे सब देखते ही देखते अशरफिया उसकी
आखो से ओझल हो चुकी थी. अपनी किस्मत को कोसता हुआ ब्रह्मण वही
रोते-रोते बाबा से छमा -याचना करने लगा .
इधर बाबा भक्तो से कहते है कि मुझे उस दरिद्र ब्रह्मण ओर उसके बच्चो पर
बहुत ही तरस आ रहा है. मैंने उसकी ओर उसके बच्चो की दरिद्रता मिटने की
भरपूर कोशिस की पर उसके प्रारब्ध मे ये सुख नहीं था.
साईं राम