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Author Topic: GURU KRIPA .............  (Read 101437 times)

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Offline ShAivI

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
Re: GURU KRIPA .............
« Reply #15 on: March 02, 2013, 03:03:25 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    कितने चतुर हैं हम, जो जाना जाता है उसमे भटकतें हैं, और जिस से जाना जाता है
    उसमे टिकते नहीं हैं. इन् दो गलतियों के अलावा सब ठीक है !


    परम पूज्य बापूजी

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #16 on: March 05, 2013, 01:38:51 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    First of all connect to yourself. When you go deep in yourself
    and let go of all the anxiety and know that you are loved by
    the universe, you get inner strength. The universe loves you,
    air loves you, space loves you, the sun and moon love you.
    So you are surrounded by that energy of love and you’ll just
    melt in meditation and that is what gives that inner strength;
    so solid, child like again. Free from inhibitions, free from
    worries, being natural!

    सर्वप्रथम अपने आप से सम्बन्ध स्थापित करो। जब तुम अपने भीतर जाते हो
    और चिंता छोड़ देते हो और जान लेते हो कि यह समष्टि तुमसे प्रेम करती है,
    तो तुममें आत्मबल आता है। यह ब्रह्माण्ड तुमसे प्रेम करता है, वायु, आकाश,
    सूर्या और चन्द्रमा सभी तुमसे प्रेम करते हैं। तुम प्रेम से घिरे हुए हो। तुम गहरे
    ध्यान में पिघल जाओगे और इससे आत्मबल आता है; ठोस, बच्चों की तरह,
    प्रावरोध-मुक्त और सहज।


    Sri Sri Ravi Shankar

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #17 on: March 05, 2013, 01:40:08 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जो अपना कल्याण चाहते हैं वे किसी के प्रति बुरी भावना ना रखें !


    परम पूज्य बापूजी

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #18 on: March 09, 2013, 01:56:21 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Every human being is a book in himself/herself - a novel.
    In a library we get all kinds of books.
    The whole world is a library.
    There is only One Author for all these books
    and He is flooding the market! Only a few, who are awake,
    see that these are all stories and rejoice. And you are one
    of those few. If you think you are not, become one right away.
    You have a lifelong membership in this library.

    हर व्यक्ति अपने आप में एक किताब है - एक उपन्यास।
    हमें पुस्तकालय में हर तरह की किताबें मिलती हैं।
    यह विश्व ही एक पुस्तकालय है।
    इन सभी किताबों का एक ही लेखक है
    और उसने बाज़ार भर दिया है! केवल कुछ ही, जो जागे हुए हैं,
    देख पाते हैं कि ये सब कहानियाँ हैं और आनंदित होते हैं।
    और तुम उन कुछ जनों में से हो। यदि तुम्हें लगता है कि
    तुम नहीं हो, तो बन जाओ। इस पुस्तकालय में तुम्हारी आजीवन सदस्यता है।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #19 on: March 09, 2013, 02:04:03 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    यह जो जीभ है न इसका एक सिरा दिल से व दूसरा दिमाग से जुडा है!
    इसलिए दिल और दिमाग को जोड़कर बोलना चाहिये!


    श्री सुधांशु महाराज

    JAI SAI RAM !!!

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #20 on: March 09, 2013, 02:05:25 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    जब तक देह के विकारी आकार्षणों में चित्त डूबा रहेगा तब तक ना तो संसार में रस मिलेगा
    और ना ही तत्त्व ज्ञान में रस मिलेगा !


    परम पूज्य बापूजी

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #21 on: March 12, 2013, 01:27:15 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Authenticity and skillfulness appear to be contradictory,
    but in fact they are complementary. Your intentions need
    to be authentic and your actions need to be skillful. Skill is
    required only when authenticity cannot have its way.
    Yet skill without authenticity makes you shallow. If you
    try to be authentic in your action but manipulative in your
    mind, that is when mistakes happen. Actions can never
    be perfect but our intentions can be perfect.

    प्रामाणिकता और कुशलता अंतर्विरोधी लगते हैं पर वे एक दुसरे के पूरक हैं।
    तुम्हारी मंशाएं प्रामाणिक होनी चाहियें और तुम्हारा कर्म कुशल। कुशलता
    तब चाहिए जब प्रामाणिकता से काम नहीं चलता। पर प्रामाणिकता के बिना
    कुशलता ओछी लगती है। यदि तुम कर्म में प्रामाणिक हो पर मन में चालाक,
    तब गलतियां होती हैं। कर्म कभी दोषहीन नहीं हो सकता पर मंशाएं हो सकती हैं।


    Sri Sri Ravi Shankar


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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #22 on: March 12, 2013, 01:29:16 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    अपने में दोष होता है तभी किसी के दोषों का चिंतन होता है !


    परम पूज्य बापूजी

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #23 on: March 12, 2013, 01:45:59 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    You do not have duty towards anyone or anything.
    If you have love and care, you will do what is needed

    आपका किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति कोई कर्त्तव्य नहीं है!
    अगर आपमें प्रेम और परवाह है, तो आप वोही करोगे जिसकी जरूरत है!


    Sadguru Jaggi Vasudev
    « Last Edit: March 12, 2013, 01:58:50 AM by ShAivI »

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #24 on: March 13, 2013, 05:19:07 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    There is a oneness in the existence and a uniqueness in all human beings.
    The essence of spirituality is recognise and enjoy this.

    अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर इंसान अपने आपमें अनूठा है.
    इसे पहचानना और इसका आनद उठाना ही आध्यात्मिकता का सार है.


    Sadguru Jaggi Vasudev

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #25 on: March 13, 2013, 05:20:25 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    ॐ ये अंतर्यामी प्रभुका नाम है , तुरंत ही भगवान स्वीकार करते है |
    मंदिर का तो चाबी लायेगा पुजारी दरवाजा खोलेगा तभी दर्शन होगा |
    लेकिन मंदिर के भगवान के दर्शन करने के लिये ये अन्तर्यामी भगवान होगा
     तभी दर्शन होंगे , तभी पूजन होगा , तभी मंदिर की स्थापना होगी |
    वैकुण्ठ के भगवान के बारे मे भी ये भगवान होगा तभी पता चलेगा |
    इसलिए जो हाजिर-हजूर भगवान है उसका आदर कीजिये | किसी बुद्धू के
    यहा कुटुंब परम्परा से पारस का पत्थर था , लेकिन वो पारस को सिलबट्टा
    मानकर चटनी घिसते थे | अब उसने ठान लिया के पारस से सोना बनता है ,
    तो वो घर छोड़कर गीरी गुफा और गंगोत्री मे पारस ढूढने निकला और खाक
    छानकर वापिस आया | दुनियाभर भटकने पर भी पारस नही मिला क्योंकी
    घरके पारस को सिलबट्टा मानता है तो पारस मिलेगा क्या | ऐसेही घरके
    अंतरात्मा परमात्मा देव को कुछ नही मानता और बाहर घूमता है तो थक
    जायेगा | श्रीकृष्ण कहते है कि बुद्धि योग उपषित मचीतस सत्तातंभव और
    नारदजी कहते है श्रद्धा पुर्वा सर्व धर्मा मनोरथा फलप्रदा | श्रद्धालु हो लेकिन
    तत्पर और इन्द्रिय सहित हो तो ज्ञान को आत्म-परमात्मा के ज्ञान के
    महत्व को समझता है |


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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #26 on: March 13, 2013, 05:26:30 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    People take pride in fighting for their rights. This is
    an ignorant pride. Asserting your rights makes you
    isolated and poor. Courageous people give away their
    rights. The degree to which you can give away your rights
    indicates your freedom, your strength. Only those who
    have rights can give them away! Demanding does not really
    bring rights to you and giving does not really take them away.
    Recognize that no one can take away your rights - that is freedom.

    लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने में गर्व करते हैं। यह अज्ञान का गर्व है।
    अपना अधिकार जताना तुम्हें वियुक्त और दीन कर देता है। निर्भय लोग अपने
    अधिकार दे देते हैं। जिस मात्रा तक तुम अपने अधिकार दे सकते हो, वह तुम्हारी
    अबद्धता, तुम्हारे बल को दर्शाता है। जिनके पास अधिकार हैं, केवल वे ही उन्हें
    दे सकते हैं! मांगने से अधिकार मिलते नहीं और देने से वे चले नहीं जाते।
    यह जानो कि कोई तुम्हारे अधिकार नहीं ले सकता - यह मुक्ति है।


    Sri Sri Ravi Shankar

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #27 on: April 01, 2013, 02:21:53 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    Despite what you may think, ego is not entirely bad.
    There is a positive aspect to it. Ego drives you to do work.
    A person will do a job either out of compassion or out of ego,
    and most of the work in society is done out of ego. Having
    said that, ego is also separateness and non-belongingness.
    It desires to prove and possess and is the shadow of doership.
    In itself, ego is neither good or bad. It simply is what it is.

    अहंकार पूर्णतः बुरा नहीं होता। उसका एक सकारात्मक पहलू भी है।
    अहंकार तुम्हें कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।
    एक व्यक्ति कोई कर्म या तो दया से करेगा या अहंकार से,
    और समाज में अधिकतर कर्म अहंकार से होता है। ऐसा होने पर भी,
    अहंकार भिन्नता और अलगाव की भावना है। वह सिद्ध करने और अधिकार
    जमाने की इच्छा करता है और कर्तापन की परछाईं है। वह स्वयं में न
    अच्छा है न बुरा। वह केवल जो है वही है।


    Sri Sri Ravi Shankar

    JAI SAI RAM !!!

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #28 on: April 01, 2013, 02:26:38 AM »
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  • OM SAI RAM!!!

    If you want to find out purpose of life,
    you need to look beyond the limitations of body and mind.

    अगर आप जिंदगी का मकसद जानना चाहते हैं,
    तो आपको शारीरिक और  मानसिक सीमाओं से परे देखना होगा.


    Sadguru Jaggi Vasudev

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    Re: GURU KRIPA .............
    « Reply #29 on: April 01, 2013, 02:28:02 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    अज्ञानी के रूप में जन्म लेना कोई पाप नहीं,
    मूर्ख के रूप में पैदा होना कोई पाप नहीं लेकिन
    मूर्ख बने रहकर सुख-दुःख की थप्पड़े खाना
    और जीर्ण-शीर्ण होकर मर जाना महा पाप है।


    परम पूज्य बापूजी

    JAI SAI RAM !!!

     


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