अंधेरे का बंदी और रोशनी का साक्षी
-आचार्य शिवेंद्र नागर
संसार में दो तरह के गुरु होते हैं। एक वो जो अंधेरे रास्ते में आपके साथ मशाल लेकर चलते हैं। एक वो जो आपके हाथ में मशाल देकर आपको छोड़ देते हैं, आगे बढ़ो, अपनी राह खुद तलाश करो। मशाल लेकर चलने वाला गुरु जब तक आपके साथ चलता है, शिष्य को सुविधा रहती है। जब कहीं भटके, गुरु ने तुरंत चेतावनी दे दी। लेकिन ऐसा गुरु जब संसार छोड़ता है, तो उसके शिष्य भटक जाते हैं।
दूसरे किस्म के गुरु अपने शिष्य के हाथ में मशाल देकर उसे आत्मनिर्भर बनने को कहता है। मशाल दे दी, यही बहुत है। अब इसके सहारे चल पड़ो। आदि शंकराचार्य ऐसे ही गुरुओं में से एक थे। उन्होंने अपने शिष्यों के हाथों में ज्ञान की मशाल थमा दी।
तो गुरु के निर्देश समझ कर, तुम अपने में ही स्थित प्रभु को देखो। अपनी अंतरात्मा में स्थित प्रभु को हम तभी देख सकते हैं, जब मन को संयमित कर लें और इंद्रियों को काबू में कर लें। संसार के बंधनों को छोड़ दें। बंधन छोड़ने का मतलब यह नहीं है कि आप सारे रिश्ते-नाते नकार दें। मतलब यह है कि आप दूसरे आदमी को स्वतंत्र कर दें।
प्लेटो एक ग्रीक दार्शनिक थे। उन्होंने बड़ी सुंदर कल्पना की है। कल्पना यह है कि पूरी मानवता एक गुफा के अंदर कैद है। वह वहां कई सालों से रह रही है। एक नवयुवक उस अंधेरे से उठता है और कहता है कि उसे लगता है कि गुफा के बाहर भी कुछ है। ऐसा वह सोचता है, पर उसे यकीन के साथ नहीं पता कि जहां वह है, वहां अंधेरा है क्योंकि उसने रोशनी कभी देखी ही नहीं। वह गुफा के बाहर कभी आया ही नहीं।
अंधेर का अहसास तभी हो सकता है जब आपने उजाला देखा हो। युवक कहता है कि यह बंद गुफा है और इससे बाहर कुछ है। उसके रिश्तेदार कहते हैं कि गलत, जो है वह सब कुछ यहीं है। सदियों से हमारे पूर्वज यही बताते आए हैं। वे यहीं रहते रहे हैं। क्या तुम उन सबसे ज्यादा जानते हो?
लेकिन थी तो वो असल में गुफा ही। उन्हें पता नहीं था कि वह गुफा है। युवक एक दिन अपने सगे-संबंधियों को छोड़ कर निकल पड़ता है। चलता रहता है, चलता रहता है। काफी देर चलने के बाद वह दुखी हो जाता है। ना तो उसे कोई रास्ता नजर आ रहा है, न हलचल नजर आ रही है। परिवार से भी बहुत दूर निकल आया है।
लेकिन तभी दूर एक रोशनी नजर आती है। एक तारा नजर आता है। वह तारा असल में गुफा का दरवाजा है। उस तारे के सहारे चलते-चलते वह गुफा से बाहर निकल आता है। एक नया संसार। सूरज, चांद, पृथ्वी, धूप, छांव, हरियाली, खुशबू, फूल, पत्ते- जब वह इतने सुंदर संसार को देखता है, तो नाचने लगता है। गाने लगता है, पूरी तरह से मस्त हो जाता है।
काफी देर बाद ध्यान आता है कि अच्छा तो है, पर यहां मैं अकेला हूं। यह अकेलापन अच्छा नहीं लग रहा है। मेरा पूरा समाज गुफा के अंदर है। वह दोबारा गुफा में लौटता है। इस बार उसे वहां बदबू महसूस होती है। पहले बदबू नहीं आती थी, क्योंकि उसने खुशबू जैसी कोई चीज महसूस ही नहीं की थी। वहां अंधेरा नजर आता है। पहले नहीं लगता था, क्योंकि रोशनी कभी देखी ही नहीं थी। जब अच्छी चीज देख लो, तभी बुराई समझ में आती है। तो वह दूसरों को भी गुफा से बाहर निकलने को कहता है।
हमारे संत-महापुरुष भी उसी युवक की तरह होते हैं। पर हमें तो रोशनी तभी दिखेगी, जब हम खुद गुफा से बाहर निकलेंगे।
Source: NBT