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Indian Spirituality => Stories from Ancient India => Topic started by: Admin on February 12, 2007, 04:44:44 AM
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प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।
गर्भ पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली को चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
समय आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।
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this is not wht had happened there actually lord parashar ko agyaa hui thi ki hari isi vkt prakat hona chahte h .
3 years back when i wasn't on this forum i read this post , at that time i believed on this and thought that this story tells us that brahmin may marry a kshtriy .but no actually we can't rely only on internet. i talked to baba about it and baba told to me to keep quiet about this matter because i know nothing about parashar ji...
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Ye baate apke liy prachaar krna paap bdhaayega ise edit kijiye ... m abhi iski story likhti hu
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Mulukpithadhishwar rajendardaas ji maharaj -
महाराज पराशर को श्री हरी ने उनके ध्यान में आदेश दिया की मै अभी आपके पुत्र रूप में प्रकट होना चाहता ह, कुछ संत ऐसा भी कहते हैं की उस समय ऐसा दिव्य योग था की सभी शास्त्रों वेदों और पुराणो का ज्ञान जन साधारण को प्रकट करने वाले श्री हरी के अंश पृथ्वी पर जन्म लेंगे।।
पराशर ऋषि में काम का आरोप करना गलत हैं । वे सर्वथा हमारे माननीय हैं और रहेंगे।
इसिलिय पवित्र शीलवती सत्यवती की नाभि में उन्होंने केवल स्पर्श किया और वहाँ किशोरावस्था में वेद व्यास प्रकट हो गये।
वेद व्यास को अत्यंत घृणित सहवास करने की जरूरत नही पड़ी जब पांडू और ध्रितराष्ट्र का जन्म हुआ, उनका तेज़ इतना था तो उनके पिता की क्या बात की जाए।।।