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Indian Spirituality => Stories from Ancient India => Topic started by: JR on February 12, 2007, 08:37:05 AM

Title: महाभारत - अर्जुन गन्धर्वराज युद्ध
Post by: JR on February 12, 2007, 08:37:05 AM
पाञ्चाल देश की यात्रा करते-करते पाण्डव रात्रि के समय श्रायण तीर्थ में पहुँचे। वहाँ पर गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विहार कर रहे थे। पाण्डवों को आते देख चित्ररथ ने दूर ही से कहा, "सावधान! इस समय यहाँ पर किसी का भी प्रवेश वर्जित है क्योंकि रात्रि के समय जल पर पूर्ण रूप से गन्धर्वों का अधिकार होता है। तुम लोग प्रातःकाल होने के पश्चात् ही यहाँ प्रवेश कर सकते हो।" चित्ररथ के वचनों को सुन कर अर्जुन क्रोधित होकर बोले, "अरे मूर्ख! नदी, पहाड़, समुद्र पर किसी का भी कोई अधिकार नहीं होता। फिर गंगा तो सबकी माता है, इन पर तो किसी का अधिकार हो ही नहीं सकता।" अर्जुन के ऐसा कहने पर चित्ररथ ने अर्जुन पर विषैले बाणों की बौछार करना आरम्भ कर दिया। उन विषैले बाणों का जवाब अर्जुन ने आग्नेय बाणों से दिया और चित्ररथ उनके बाणों के लगने पर घायल होकर भूमि में गिर पड़े। तत्काल अर्जुन उसके बालों को पकड़ कर उसे घसीटते हुये युधिष्ठिर के पास ले गये। चित्ररथ की दुर्दशा देख कर कुम्भानसी नामक उसकी पत्नी विलाप करती हुई युधिष्ठिर के पास पहुँची और अपने पति के प्राणों की भिक्षा माँगने लगी। स्त्री की प्रार्थना से द्रवित हो कर युधिष्ठिर ने चित्ररथ को क्षमादान करते हुये मुक्त कर दिया।

कान्तिहीन चित्ररथ ने पाण्डवों से क्षमायाचना करते हुये कहा, "मैं आप लोगों के बल-पौरुष से अत्यन्त प्रभावित हुआ हूँ तथा अपनी भूल स्वीकार करता हूँ। यदि आप लोगों को स्वीकार हो तो मैं आपके साथ मित्रता करना चाहता हूँ।" पाण्डवों ने उसकी मित्रता स्वीकार कर ली। मित्रता हो जाने पर चित्ररथ ने पाण्डवों को चाक्षुसी विद्या का प्रयोग सिखाया जिससे वे सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु को देख सकते थे किन्तु वे किसी को दृष्टिगोचर नहीं हो सकते थे। इसके बदले में अर्जुन ने गन्धर्वराज चित्ररथ को आग्नेयास्त्र का प्रयोग सिखाया। इसके पश्चात् चित्ररथ गन्धर्वलोक चले गये और पाण्डवों ने पाञ्चाल के लिये प्रस्थान किया।

मार्ग में पाण्डवों की भेंट धौम्य नामक ब्राह्मण से हुई और वे उसके साथ ब्राह्मणों का वेश धर कर द्रुौपदी के स्वयंवर में पहुँचे।