Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: रामायण - बालकान्ड - मारीच और सुबाहु का वध  (Read 2139 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline JR

  • Member
  • Posts: 4611
  • Blessings 35
  • सांई की मीरा
    • Sai Baba
दूसरे दिन ब्राह्म मुहूर्त में उठ कर तथा नित्यकर्म और सन्ध्या-उपसना आदि निवृत होकर राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के पास जा कर बोले, "गुरुदेव! कृपा करके हमें यह बताइये कि राक्षस यज्ञ में विघ्न डालने के लिये किस समय आते हैं। यह हम इसलिये जानना चाहते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि हमारे अनजाने में ही वे आकर उपद्रव मचाने लगेँ।"

दशरथ के वीर पुत्रों के इन उत्साहभरे इन वचनों को सुन कर वहाँ पर उपस्थित समस्त ऋषि-मुनि अत्यंत प्रसन्न हुये और बोले, "हे रघुकुलभूषण राजकुमारों! यज्ञ की रक्षा करने के लिये तुमको आज से छः रात्रियों तक पूर्ण रूप से सावधान मुद्रा में और सजग रहना होगा। इन छः रात्रियों मे विश्वामित्र जी मौन होकर निःशब्द यज्ञ करेंगे। इस समय भी वे तुम्हारे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे क्योंकि वे यज्ञ की दीक्षा ले चुके हैं।"

इस सूचना को पा कर राम और लक्ष्मण दोनों भाई अपने समस्त शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर यज्ञ की रक्षा में तत्पर हो गये। पाँच दिन और पाँच रात्रि तक वे निरन्तर बिना किसी विश्राम के सतर्कता के साथ यज्ञ की रक्षा करते रहे किन्तु इस अवधि में किसी भी प्रकार की विघ्न-बाधा नहीं आई। छठवें दिन राम ने लक्ष्मण से कहा, "भाई सौमित्र! यज्ञ का आज अन्तिम दिन है और उपद्रव करने के लिये राक्षसों की आने की पूरी पूरी सम्भावना है। आज हमें विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है। तनिक भी असावधानी से मुनिराज का यज्ञ और हमारा परिश्रम निष्फल और निरर्थक हो सकते हैं।" राम ने लक्ष्मण को अभी सचेष्ट किया ही था कि यज्ञ सामग्री, चमस, समिधा आदि अपने आप भभक कर जल उठे। आकाश से ऐसी ध्वनि आने लगी जैसे बादल गरज रहे हों और सैकड़ों बिजलियाँ तड़क रही हों। इसके पश्चात् मारीच और सुबाहु की राक्षसी सेना रक्त, माँस, मज्जा, अस्थियों आदि की वर्षा करने लगी। रक्त गिरते देखकर राम ने उपद्रवकारियों पर एक खोजपूर्ण दृष्टि डाली। आकाश में मायावी राक्षसों की सेना को देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, "लक्ष्मण! तुम धनुष पर शर-संधान करके सावधान हो जाओ। मैं मानवास्त्र चला कर इन महापापियों की सेना का अभी नाश किये देता हूँ।" यह कह कर राम ने असाधारण फुर्ती और कौशल का प्रदर्शन करते हुये उन पर मानवास्त्र छोड़ा। मानवास्त्र आँधी के वेग से जाकर मारीच की छाती में लगा और वह उसके वेग के कारण उड़कर एक सौ योजन अर्थात् चार सौ कोस दूर समुद्र में जा गिरा। इसके पश्चात् राम ने आकाश में आग्नेयास्त्र फेंका जिससे अग्नि की एक भयंकर ज्वाला प्रस्फुटित हुई और उसने सुबाहु को चारों ओर से आवृत कर लिया। इस अग्नि की ज्वाला ने क्षण भर में उस महापापी को जला कर भस्म कर दिया। जब उसका जला हुआ शरीर पृथ्वी पर गिरा तो एक बड़े जोर का धमाका हुजआ। उसके आघात से बहुत से पेड़ टूट कर भूमि पर गिर पड़े। मारीच और सुबाहु पर आक्रमण समाप्त करके राम ने बचे खुचे राक्षसों का नाश करने के लिये वायव्य नामक अस्त्र छोड़ दिया। उस अस्त्र के प्रहार से राक्षसों की विशाल सेना के वीर मर मर कर ओलों की भाँति भूमि पर गिरने लगे। इस प्रकार थोड़े ही समय में सम्पूर्ण राक्षसी सेना का नाथ हो गया। सभी ओर राम की जय जयकार होने लगी तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। निर्विघ्न यज्ञ समाप्त करके मुनि विश्वामित्र यज्ञ वेदी से उठे और राम को हृदय से लगाकर बोले, "हे रघुकुल कमल! तुम्हारे भुबजल के प्रताप और युद्ध कौशल से आज मेरा यज्ञ सफल हुआ। उपद्रवी राक्षसों का विनाश करके तुमने वास्तव में आज सिद्धाश्रम को कृतार्थ कर दिया।"

सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

Sai Baba | प्यारे से सांई बाबा कि सुन्दर सी वेबसाईट : http://www.shirdi-sai-baba.com
Spiritual India | आध्य़ात्मिक भारत : http://www.spiritualindia.org
Send Sai Baba eCard and Photos: http://gallery.spiritualindia.org
Listen Sai Baba Bhajan: http://gallery.spiritualindia.org/audio/
Spirituality: http://www.spiritualindia.org/wiki

 


Facebook Comments