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Indian Spirituality => Stories from Ancient India => Topic started by: JR on February 13, 2007, 01:17:34 AM
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सुमन्त के रथ ले आने पर राम, सीता और लक्ष्मण ने सभी लोगों का अभिवादन किया और रथ पर चढ़कर चलने को उद्यत हुये। ज्योंही सुमन्त ने अश्वों की रास सम्भालकर रथ हाँका, त्योंही अयोध्या के लाखों नागरिक 'हा राम! हा राम!!' कहते हुये उस रथ के पीछे दौड़ पड़े। जब रथ की गति कुछ तेज हुई और नगर निवासी रथ के साथ-साथ न दौड़ सके तो वे बड़े जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर कहने लगे, "रोको-रोको, हम राम के दर्शन करेंगे। न जाने भगवान फिर कब हमें इनके दर्शन करायगा।" उधर राजा दथरथ भी कैकेयी के प्रकोष्ठ से निकल कर'हाय राम! हे राम!!' कहते-कहते उन्मत्त की भाँति रथ के पीछे दौड़ने लगे। महाराज को हाँफते हुये दौड़ते देखकर रथ को रोक कर मन्त्री सुमन्त बोले, "पृथ्वीपति! ठहर जाइये। इस प्रकार राजकुमारों के पीछे न दौड़िये। ऐसा करना पाप है। राम तो आपकी आज्ञा से ही वन जा रहे हैं, इसलिये उन्हें रोकना सर्वथा अनुचित है।" मन्त्री की बात सुन राजा वहीं रुक गये।
रथ आगे बढ़ गया और प्रजाजन रोते बिलखते पीछे पीछे दौड़ते रहे। जब तक रथ की धूलि दिखाई देती रही, महाराज अपने स्थान पर चित्रलिखित से उसे एकटक निहारते रहे। जब धूलि दिखना भी बन्द हो गया तो वे वहीं 'हा राम! हा लक्ष्मण!!' कहतकर भूमि पर गिर पड़े और मूर्छित हो गये। तत्काल उन्हें उठाकर मन्त्रियों ने एक स्थान पर लिटाया। मूर्छा भंग होने पर वे मृतप्राय व्यक्ति की भाँति अस्फुट स्वर में धीरे-धीरे कहने लगे, "अब मेरा जीवन व्यर्थ है। इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में मेरे जैसा अभागा व्यक्ति शायद ही कोई होगा जिसके दो-दो पुत्र एक साथ वृद्ध पिता को बिलखता छोड़कर घर से चले जायें।" फिर मन्त्रियों से बोले, "मुझे महारानी कौशल्या के महल में ले चलो। वहाँ के अतिरिक्त मुझे अन्यत्र कहीं भी शान्ति नहीं मिलेगी। मैं अपना शेष जीवन वहीं काटना चाहता हूँ।"
कौशल्या के महल में महाराज राम और लक्ष्मण के वियोग में एक बार फिर से मूर्छित हो गये। महारानी कौशल्या विलाप करने लगीं। उनके विलाप को सुनकर महारानी सुमित्रा भी वहाँ गईं। उन्होंने कौशल्या को बहुत प्रकार से समझाकर शान्त किया। इसके पश्चात् दोनों रानियाँ महाराज दशरथ की मूर्छा भंग करने के प्रयास में जुट गईं।