DwarkaMai - Sai Baba Forum
Indian Spirituality => Stories from Ancient India => Topic started by: JR on February 13, 2007, 01:24:38 AM
-
महाराज पिछली कथा सुनाते हुये बोले, "कौशल्ये! मैं अपने विवाह से पूर्व की बात बताता हूँ। सन्ध्या का समय था पर न जाने क्यों मेरे मन में शिकार पर जाने का विचार उठा और मैं धनुष बाण ले रथ पर सवार हो शिकार के लिये चल दिया। जब सरयू नदी के तट के साथ-साथ रथ में चला जा रहा था तो मुझे ऐसा शब्द सुनाई पड़ा मानो वन्य हाथी गरज रहा हो। किन्तु वास्तव में वह शब्द जल में डूबते हुये घड़े का था। हाथी को मारने के लिये मैंने तीक्ष्ण शब्दभेदी बाण छोड़ा। जहाँ वह बाण गिरा वहीं जल में गिरते हुये मनुष्य के मुख से निला, "हाय मैं मरा! मुझ निरपराध को किसने मारा? हे पिता! मे माता! अब तुम जल के बिना प्यासे ही तड़प-तड़प कर मर जाओगे। हाय किस पापी ने एक ही बाण से मेरी और मेरे माता-पिता की हत्या कर डाली।"
उस वाणी को सुन कर मेरे हाथ काँपने लगे मेरे हाथों से धनुष गिर गया। मैं दौड़ा हुआ वहाँ पहुँचा और देखा कि एक वनवासी युवक रक्तरंजित पड़ा है तथा औंधा घड़ा जल में पड़ा है। मुझे देखते ही वह क्रुद्ध स्वर में बोला, "राजन! आपने किस अपराध में मुझे मारा है? मैं अपने प्यासे वृद्ध माता-पिता के लिये जल लेने आया था। क्या यही मेरा अपराध है? यदि आप में तनिक भी दया है तो मेरे प्यासे माता-पिता को जल पिला आओ जो इसी पगडंडी के सिरे पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस बाण को मेरे कलेजे से निकालो जिसकी पीड़ा से मैं तड़प रहा हूँ। मैं वनवासी होते हुये भी ब्राह्मण नहीं हूँ। मेरे पिता वैश्य और मेरी माता शूद्र है। इसलिये मेरे मरने से तुम्हें ब्रह्महत्या का दोष नहीं लगेगा। जब मैंने उसके हृदय से बाण खींचा तभी उसने प्राण त्याग दिये। मैं अपने कृत्य पर पश्चाताप करता हुआ घड़े में जल भर कर उस पगडंडी पर चलता हुआ उसके माता पिता के पास पहुँचा। मैंने देखा, वे अत्यन्त दुर्बल और नेत्रहीन थे। उनकी दशा देख कर मेरा दुःख और भी बढ़ गया। मेरी आहट पाकर वे बोले - बेटा श्रवण! इतनी देर कहाँ लगाई? तुम्हारी माँ तो प्यास से व्याकुल हो रही है। पहले इसे पानी पिला दो।
"श्रवण के पिता के यह वचन सुन कर मैंने डरते-डरते कहा, "महामुने! मैं अयोध्या का राजा दशरथ हूं। मैंने हाथी के धोखे में अंधकार के कारण तुम्हारे निरपराध पुत्र की हत्या कर दी है। अज्ञान के कारण किये हुये इस पाप से मैं बहुत दुःखी हूँ। अब उसके दण्ड पाने के लिये तुम्हारे पास आया हूँ। हे सुभगे! पुत्र की मृत्यु का समाचार सुन कर दोनों विलाप करते हुये कहने लगे - यदि तुमने स्वयं आकर अपना अपराध स्वीकार न किया होता तो मैं अभी शाप देकर तुम्हें भस्म कर देता और तुम्हारे सिर के सात टुकड़े कर देता। अब तुम हमें हमारे श्रवण के पास ले चलो। मैं उन्हें लेकर जब श्रवण के पास पहुँचा तो वे उसके मृत शरीर पर हाथ फेर-फेर कर हृदय-विदारक विलाप करने लगे। फिर अपने पुत्र को जलांजलि देकर मुझसे बोले - हे राजन्! जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में मर रहे हैं, उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में घोर कष्ट उठा कर मरोगे। इस प्रकार शाप देकर उन्होंने अपने पुत्र की चिता बनाई और फिर स्वयं भी वे दोनों अपने पुत्र के साथ ही चिता में बैठ जल कर भस्म हो गये।"