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Author Topic: सूरदास के पद  (Read 21803 times)

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Offline OmSaiRamNowOn

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सूरदास के पद
« on: March 02, 2007, 01:09:56 PM »
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  • भाव भगति है जाकें
    रास रस लीला गाइ सुनाऊं।
    यह जस कहै सुनै मुख स्त्रवननि तिहि चरनन सिर नाऊं॥
    कहा कहौं बक्ता स्त्रोता फल इक रसना क्यों गाऊं।
    अष्टसिद्धि नवनिधि सुख संपति लघुता करि दरसाऊं॥
    हरि जन दरस हरिहिं सम बूझै अंतर निकट हैं ताकें।
    सूर धन्य तिहिं के पितु माता भाव भगति है जाकें॥

    विहाग राग पर आधारित इस पद में सूरदास कहते हैं कि मेरा मन चाहता है कि मैं भगवान् श्रीकृष्ण की रसीली रास लीलाओं का नित्य ही गान करूं। जो लोग भक्तिभाव से कृष्ण लीलाओं को सुनते हैं तथा अन्य लोगों को भी सुनाते हैं उनके चरणों में मैं शीश झुकाऊं। वक्ता व श्रोता अर्थात् कृष्ण लीलाओं का गान करने व अन्य को सुनाने के फल का मैं और क्या वर्णन करूं। इन सबका फल एक जैसा ही होता है। तब फिर इस जिह्वा से क्यों न कृष्ण लीलाओं का गान किया जाए। जो दीनभाव से इसका गान करता है, उसे अष्टसिद्धि व नव निधियां तथा सभी तरह की सुख-संपत्ति प्राप्त होती है। जिनका मन निर्मल है या जो हरिभक्त हैं, वह सबमें ही हरि स्वरूप देखते हैं। सूरदास कहते हैं कि वे माता-पिता धन्य हैं जिनकी संतानों में हरिभक्ति का भाव विद्यमान है।
    Om Sai Ram !

    -Anju

    "Abandon all varieties of religion and just surrender unto Me. I shall deliver you from all sinful reactions. Do not fear."

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: सूरदास के पद
    « Reply #1 on: March 02, 2007, 10:55:05 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    सूरदास-कृष्ण का नाम लिया जाए और मीराबाई का नाम ना आये ऐसा हो नही सकता, क्यों?

    चित्तौड़गढ़ के पुराने पत्थरों के नए किले में, कोमल हृदयी मीराबाई उन्मन बैठी थीं, नितांत अकेली। तभी राणा सांगा के पौत्र राणा को लगा कि यह अच्छा अवसर है, मीरा से अपने प्रेम के मनोभाव व्यक्त करने का। राणा जी आए। मीराबाई प्रेम-दीवानी थीं, जिस कृष्ण के प्रति उनका समर्पण था उनका ही वह आदर करती थीं। राजा के प्रलोभन से वह विचलित नहीं हुई। प्रेम और भक्ति में उनकी एकनिष्ठ आस्था थी। कामनाओं की पूर्ति न होने पर राणा जी मीरा से प्रतिशोध लेने के लिए आतुर हो उठे। उन्होंने अपने सेवक से एक अलंकृत मंजूषा में बंद विषैला नाग भिजवाया। मीरा ने मंजूषा अपने आराध्य को भेंट कर दी। थोड़ी देर बाद सर्प शांत हो गया। नाग-नथैया-कन्हैया, के आगे क्या करता? राणा जी अपनी असफलता से बौखला गए। वे स्वयं विष का चषक लेकर गए और उन्होंने उन्हें आत्महत्या करने को बाध्य किया। मीरा ने वह चषक कृष्णार्पित कर दिया। मीरा चरणामृत पी गई। कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। खीझकर राणा ने मीरा से राजप्रासाद त्यागने का आदेश दे दिया। 


    अपना सांई सबका सांई प्यारा और सबसे न्यारा सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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