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Indian Spirituality => Stories from Ancient India => Topic started by: OmSaiRamNowOn on March 02, 2007, 01:13:47 PM
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हनुमान जी
अजर, अमर, गुणनिधि, सुत होहु यह वरदान माता जानकी जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में दिया था। स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- सुन कपि तोहि समान उपकारी, नहि कोउ सुर, नर, मुनि, तुनधारी। बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमान जी राम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। पवनसुत हनुमानजी भगवान् शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। अञ्जना के पुत्र हनुमानजी का अवतार भगवान् राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। बाल्यावस्था में भूख से व्याकुल होकर उन्होंने उदयकाल के समय सूर्य की लालिमा को फल समझकर उसे ही मुँह में दबा लिया था। देवताओं के अनुरोध करने पर उन्होंने सूर्य को छोड़ा। इसी दौरान इन्द्र के वज्र प्रहार से बजरंगबली की ठुड्डी (हनु) टूट गयी थी जिससे उनका नाम हनुमान पड़ा। हनुमान जी की अपरिमित शक्ति और बुद्धि से प्रभावित देवताओं ने उसी समय उन्हें कई वरदान दिये। ब्रह्माजी ने कहा कि कोई भी शस्त्र इनके अंग को छेद नहीं कर सकता। इन्द्र ने कहा कि इसका शरीर वज्र से भी कठोर होगा। सूर्यदेव ने कहा कि मैं इसे अपने तेज का शतांश प्रदान करता हूँ, साथ ही शास्त्र मर्मज्ञ होने का भी आशीर्वाद दिया। वरुण ने कहा मेरे पाश और जल से यह बालक सदा सुरक्षित रहेगा। यमदेव ने अवध्य और नीरोग रहने का आशीर्वाद दिया। यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा आदि देवों ने भी अमोघ वरदान दिये।
इन्होंने जिस तरह से राम के साथ सुग्रीव की मैत्री करायी और फिर वानरों की मदद से राक्षसों का मर्दन किया, यह सर्वविदित है।
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ॐ सांई राम~~~
वीर हनुमाना अति बलवाना~
राम राम रटीयो रे~
मेरे मन बसियो रे~~~
न कोई संगी साथ की तंगी~
विनती सुनियो रे~~~ मेरे मन बसियो रे~~~
जय सांई राम~~~
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ॐ सांई राम~~~
संकटमोचन हनुमानाष्टक~~~
मत्तगयन्द छन्द~~
बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो ।
ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥
बालि की त्रास कपीस बसै जिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन विचार विचारो ।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निहारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ २ ॥
अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह वैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो ।
हरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया सुधि प्रान उबारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ३ ॥
रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सुदै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ४ ॥
बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु वीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्रान उबारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ५ ॥
रावन जुद्ध अजान कियो तब नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेस तबै हनुमान जु बंधन काटि सुत्रास निवारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ६ ॥
बंधु समेत जबै अहिरावन लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि देहु सबै मिलि मंत्र बिचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही अहिरावन सैन्य समेत सँहारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ७ ॥
काज कियो बड़ देवन के तुम बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को जो तुम्सों नहिं जात है टरो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु जो कुछ संकट होय हमारो ।
को नहिं जानत है जगमें कपि संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ८ ॥
दोहा~~~
लाल देह लाली लसे अरू धरि लाल लँगूर ।
बज्र देह दानव दलन जय जय कपि सूर ॥
सियावर रामचन्द्र पद गहि रहुँ ।
उमावर शम्भुनाथ पद गहि रहुँ ।
महावीर बजरँगी पद गहि रहुँ ।
शरणा गतो हरि ॥
इति गोस्वामि तुलसीदास कृत संकटमोचन हनुमानाष्टक सम्पूर्ण ॥
जय सांई राम~~~
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Sankat Kate mite sab pira
Jo sumire Hanumat Balbira
Sankat te Hanuman Chhudawe
Maan, Vachan, Karam Dhyan Jo lawe
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