Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: रामायण – अरण्यकाण्ड - सीता हरण  (Read 3422 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline JR

  • Member
  • Posts: 4611
  • Blessings 35
  • सांई की मीरा
    • Sai Baba
लक्ष्मण के जाने के पश्चात् सन्यासी का वेष धारण कर रावण सीता के पास आया और बोला, "हे रूपसी! तुम कोई वन देवी हो या लक्ष्मी अथवा कामदेव की प्रिया स्वयं रति हो? तुम्हारे जैसी रूपवती, लावण्यमयी युवती मैंने आज तक इस संसार में नहीं देखा है। मझे यह देख कर आश्चर्य हो रहा है कि जो सौन्दर्य महलों में होना चाहिये था आज इस वन में कैसे दिखाई दे रहा है। तुम कौन हो? किसकी कन्या हो? और इस वन में किस लिये निवास कर रही हो?"

रावण के प्रश्न को सुन कर सीता ने कहा, "हे सन्यासी! मैं तुम्हें और तुम्हारे वेश को नमस्कार करती हूँ। आप इस आसन पर बैठ कर यह जल और फल ग्रहण कीजिये। मेरा नाम सीता है। मैं मिथिलानरेश जनक की पुत्री और अयोध्यापति दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री रामचन्द्र की पत्नी हूँ। पिता की आज्ञा से मेरे पति अपने भाई भरत को अयोध्या का राज्य दे कर चौदह वर्ष के लिये वनवास कर रहे हैं। उन पराक्रमी सत्यपरायण वीर के साथ मेरे तेजस्वी देवर लक्ष्मण भी हैं। आप थोड़ी देर बैठिये, वे अभी आते ही होंगे। अब आप बताइये महात्मन्! आप कौन हैं और इधर किस उद्देश्य से पधारे हैं?" सीता का प्रश्न सुन कर रावण गरज कर बोला, "हे सीते! मैं तीनों लोकों, चौदह भुवनों का विजेता महाप्रतापी लंकापति रावण हूँ जिसके नाम से देवता, दानव, यक्ष, किन्नर, गन्धर्व, मुनि सब थर-थर काँपते हैं। इन्द्र, वरुण, कुबेर जैसे देवता जिसकी चाकरी कर के अपने आप को धन्य समझते हैं। मैं तुम्हारे लावण्यमय सौन्दर्य को देख कर अपनी सुन्दर रानियों को भी भूल गया हूँ और मैं तुम्हें ले जा कर अपने रनिवास की शोभा बढ़ाना चाहता हूँ। हे मृगलोचने! तुम मेरे साथ चल कर नाना देशों से आई हुई मेरी अतीव सुन्दर रानियों पर पटरानी बन कर शासन करो। मेरे देश लंका की सुन्दरता को देख कर तुम इस वन के कष्टों को भूल जाओगी। इसलिये मेरे साथ चलने को तैयार हो जाओ।"

रावण का नीचतापूर्ण प्रस्ताव सुन कर सीता क्रुद्ध स्वर में बोली, "हे अधम राक्षस! तुम परम तेजस्वी, अद्भुत पराक्रमी और महान योद्धा रामचन्द्र के प्रताप को नहीं जानते इसीलिये तुम मेरे सम्मुख यह कुत्सित प्रस्ताव रखने का दुःसाहस कर रहे हो। अरे मूर्ख! क्या तू वनराज सिंह के मुख में से उसके दाँत उखाड़ना चाहता है? क्या तेरे सिर पर काल नाच रहा है जो तू यह घृणित प्रस्ताव ले कर यहाँ आया है? इस विचार को ले कर यहाँ आने से पूर्व तूने यह भी नहीं सोचा कि तू अपने नन्हें से हाथों से सूर्य और चन्द्र को पकड़ कर अपनी मुट्ठी में बन्द करना चाहता है। वास्तव में तेरी मृत्यु तुझे यहाँ ले आई है।" सीता के ये अपमानजनक वाक्य सुन कर रावण के तन बदन में आग लग गई। वह आँखें लाल करते हुये बोला, "सीते! तू मेरे बल और प्रताप को नहीं जानती। मैं आकाश में खड़ा हो कर पृथ्वी को गेंद की भाँति उठा सकता हूँ। अथाह समुद्र को एक चुल्लू में भर कर पी सकता हूँ। मैं तुझे लेने के लिये आया हूँ और ले कर ही जाउँगा।" यह कह कर रावण ने गेरुये वस्त्र उतार कर फेंक दिया और दोनों हाथों से सीता को उठा कर अपने कंधे पर बिठा निकटवर्ती खड़े विमान पर जा सवार हुआ। इस प्रकार अप्रत्यशित रूप से पकड़े जाने पर सीता ने 'हा राम! हा राम!!' कहते हुये स्वयं को रावण के हाथों से छुड़ाने का प्रयास किया। परन्तु बलवान रावण के सामने उनकी एक न चली। उसने उन्हें बाँध कर विमान में एक ओर डाल दिया और तीव्र गति से लंका की ओर चल पड़ा। सीता निरन्तर विलाप किये जा रही थी, "हा राम! पापी रावण मुझे लिये जा रहा है। हे लक्ष्मण! तुम कहाँ हो? तुम्हारी बलवान भुजाएँ इस समय इस दुष्ट से मेरी रक्षा क्यों नहीं करतीं? हाय! आज कैकेयी की मनोकामना पूरी हुई।" इस प्रकार विलाप करती हुई सीता ने मार्ग में खड़े जटायु को देखा। जटायु को देखते ही सीता चिल्लाई, "हे आर्य जटायु! देखो, लंका का यह दुष्ट राजा रावण मेरा अपहरण कर के लिये जा रहा है। आप तो मेरे श्वसुर के मित्र हैं। इस नराधम से मेरी रक्षा करें। यदि आप मुझे इस नीच के फंदे से नहीं छुड़ा सकते तो यह वृतान्त मेरे पति से तो अवश्य ही कह देना।"

सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

Sai Baba | प्यारे से सांई बाबा कि सुन्दर सी वेबसाईट : http://www.shirdi-sai-baba.com
Spiritual India | आध्य़ात्मिक भारत : http://www.spiritualindia.org
Send Sai Baba eCard and Photos: http://gallery.spiritualindia.org
Listen Sai Baba Bhajan: http://gallery.spiritualindia.org/audio/
Spirituality: http://www.spiritualindia.org/wiki

 


Facebook Comments