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Author Topic: रामायण – किष्किन्धाकान्ड - राम-सुग्रीव वार्तालाप  (Read 1696 times)

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Offline JR

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फिर राम ने सुग्रीव से कहा, "हे सूर्यपुत्र सुग्रीव! तुम उस राक्षस का पता लगा कर शीघ्र बताओ, मैं आज ही उसका वध कर के सीता को मुक्त कराउँगा।" राम को सीता के वियोग में इस प्रकार दुःखी देख सुग्रीव ने उन्हें आश्वासन दिया, "हे राघव! यद्यपि मैं रावण की शक्ति और ठिकाने से परिचित नहीं हूँ फिर भी मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं शीघ्र ही उसका पता लगवा कर सीता जी को उसके चंगुल से छुड़ाने का प्रयत्न करूँगा। आप धैर्य रखें। विपत्ति किस पर नहीं आती, परन्तु बुद्धिमान लोग उसे धैर्य के साथ सहते हैं और मूर्ख लोग व्यर्थ का शोक करते हैं। आप तो स्वयं विद्वान और विवेकशील हैं। इस विषय में इससे अधिक मैं आपसे क्या कहूँ।" सुग्रीव की बात सुन कर राम बोले, "हे वानरेश! तुम ठीक कहते हो। मैं भावुकता में बह गया था। तुम्हारे जैसे स्नेहमय मित्र बहुत कम मिलते हैं। तुम सीता का पता लगाने में मेरी सहायता करो और मैं तुम्हारे सामने ही दुष्ट बालि का वध करूँगा। तुम विश्वास करो, बालि मेरे हाथों से नहीं बच सकता। उसके विषय में तुम मुझे सारी बातें बताओ।"

राम की प्रतिज्ञा से सन्तुष्ट हो कर सुग्रीव बोले, "हे रघुकुलमणि! बालि ने मेरा राज्य छीन कर मेरी प्यारी पत्नी भी मुझसे छीन ली है। अब वह दिन रात मुझे मारने का उपाय सोचा करता है। उससे भयभीत हो कर मैं इस पर्वत पर निवास करता हूँ। उसके भय से मेरे सब साथी एक एक-करके मेरा साथ छोड़ गये हैं। अब ये केवल चार मित्र मेरे साथ रह गये हैं। बालि बड़ा बलवान है। उसके भय से मेरे प्राण सूखे जा रहे हैं। बह इतना बलवान है कि उसने दुंदुभि नामक बलिष्ठ राक्षस को देखते देखते मार डाला। जब वह साल के वृक्ष को अपनी भुजाओं में भर कर झकझोरता है तो उसके सारे पत्ते झड़ जाते हैं। उसके असाधारण बल को देख कर मुझे विश्वास नहीं होता कि आप उसे मार सकेंगे।"

सुग्रीव की आशंका को सुन कर लक्ष्मण ने हँसते हुये कहा, "हे सुग्रीव! तुम्हें इस बात का विश्वास कैसे होगा कि श्री रामचन्द्र जी बालि को मार सकेंगे?" यह सुन कर सुग्रीव बोला, " सामने जो साल के सात वृक्ष खड़े हैं उन सातों को एक-एक करके बालि ने बींधा हे, यदि राम इनमें से एक को भी बींध दें तो मुझे आशा बँध जायेगी। मैं उनके बल पर अविश्वास कर के ऐसा नहीं कह रहा, केवल बालि से भयभीत होने से कह रहा हूँ।" सुग्रीव के ऐसा कहने पर राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और बाण छोड़ दिया, जिसने भीषण टंकार करते हुये एक साथ सातों साल वृक्षों को और पर्वत शिखर को भी बींध डाला। राम के इस पराक्रम को देख कर बालि विस्मित रह गया और उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने लगा और बोला, "प्रभो! बालि को मार कर आप मुझे अवश्य ही निश्चिन्त कर दे।"

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