Join Sai Baba Announcement List


DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018





Author Topic: रामायण – लंकाकाण्ड – लक्ष्मण मेघनाद युद्ध  (Read 1617 times)

0 Members and 1 Guest are viewing this topic.

Offline JR

  • Member
  • Posts: 4611
  • Blessings 35
  • सांई की मीरा
    • Sai Baba
विभीषण की सम्मति सुनकर रामचन्द्र जी ने लक्ष्मण जी को आज्ञा दी कि वे अपने रणकौशल का परिचय देकर मेघनाद का वध करें। अपने बड़े भ्राता की आज्ञा पाते ही लक्ष्मण कवच पहन, हाथ में धनुष बाण ले राम के चरणस्पर्श कर मेघनाद का वध करने के लिये चल पड़े। उनके पीछे-पीछे विभीषण, सुग्रीव, हनुमान, जाम्बवन्त तथा वानरों की विशाल सेना चली। मन्दिर के निकट उन्होंने देखा कि मेघनाद की विशाल पैदल सेना के साथ असंख्य पराक्रमी राक्षस हाथी, घोड़ों एवं रथों पर सवार युद्ध के लिये सन्नद्ध खड़े थे। लक्ष्मण को सेना सहित आते देख उन्होंने भयंकर हुंकार की।
 
हुंकार कि चिन्ता न कर लक्ष्मण तथा अंगद मारकाट करते हुये राक्षस सेना में घुस गये। शेष वानर सेना ने भी उनका अनुसरण किया और वृक्षों, पत्थरों तथा शिलाओं की मार से राक्षसों का विनाश करने लगे। बदले में वे भी तीर, भालों, तलवारों तथा गदाओं से वानरों पर प्रत्याक्रमण करने लगे। दोनों ओर से होने वाली गर्जनाओं से सम्पूर्ण लंकापुरी का वातावरण गूँज उठा। दोनों ओर भयंकर कारकाट मच रही थी. सैनिकों के मस्तक, धड़, हाथ-पैर आदि कट-कट कर शोणित की सरिता में बह रहे थे। लोथों का एकत्रित ढेर रुधिर सरिता में द्वीप की भाँति प्रतीत हो रहा था। अंगद, हनुमान और लक्ष्मण की भयंकर मार से राक्षस सेना त्राहि-त्राहि कर उठी इस त्राहि-त्राहि का आर्तनाद सुनकर मेघनाद यज्ञ पूरा किये बिना ही क्रुद्ध होकर युद्ध करने के लिये मन्दिर से निकल पड़ा। जब उसने लक्ष्मण के साथ विभीषण को भी देखा तो क्रोध से उसका मुख तमतमा गया। वह भ्रकुटि चढ़ाकर उससे बोला, "हे राक्षसकुलकलंक! तुम परम तेजस्वी पुलस्त्य वंश पर काला धब्बा हो जिसने अपने सहोदर भाई के साथ विश्‍वासघात करके शत्रु का पल्ला पकड़ा है। राम न तो हमारे वंश का है, न हमारा मित्र है और न कोई धर्मपरायण व्यक्‍ति ही है। फिर तुम उसके आगे दुम हिलाने के लिये क्यों गये हो? यह मत भूलो कि अपना अपना होता है और पराया पराया ही होता है। धिक्कार है तुम्हारी बुद्धि पर जो तुम स्वयं दास बनकर सम्पूर्ण राक्षस जाति को एक विदेशी का दास बनाने के उद्यत हो गये। तुम याद रखना कि राम कभी तुम्हारा सगा नहीं बनेगा। वह यह करकर तुम्हें मरवा देगा कि जो अपने सगे भाई का नहीं हुआ, वह हमारा क्या होगा?"

मेघनाद के कठोर वचन सुनकर विभीषण ने उत्तर दिया, "हे दुर्बुद्धे! तुझे प्रलाप करते समय यह भी ध्यान नहीं रहा कि मैं तेरे पिता का भ्राता हूँ। इसलिये तुझे मेरे साथ सम्मानपूर्वक वार्तालाप करना चाहिये। स्मरण रख, राक्षस कुल में जन्म लेकर भी मैं क्रूर व्यक्‍तियों की संगति से सदा बचता रहा हूँ। मैंने तुम्हारे पिता को भी उचित सम्मति दी थी, परन्तु उसे मानना तो एक ओर, उन्होंने भरी सभा में मेरा घोर अपमान किया। तुम लोग नीतिवान होने का दम्भ करके भी इस साधारण सी बात को भूल गये कि पराई स्त्री का हरण करना, पराया धन बलात् लेना और मित्र पर विश्‍वास न करना, तीनों ही विनाश के कारण बनते हैं। ये तीनों दुर्गुण तेरे पिता में आ गये हैं, इसलिये अब राक्षस वंश का नाश होने जा रहा है।"

विभीषण के इन शब्दों ने मेघनाद की क्रोधाग्नि में घी का काम किया और वह क्रोधित होकर अपने तीक्ष्ण बाणों से वानरों का संहार करने लगा। यह देख लक्ष्मण के क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने मेघनाद को ललकार कर उसके रथ को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया। मेघनाद ने इन बाणों को काटकर अने बाण एक साथ छोड़े। दोनों में से कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता था। वे गरज-गरज कर रणोन्मत्त सिंहों की भाँति युद्ध कर रहे थे। मेघनाद की गति जब मन्द पड़ने लगी तो वानर सेना ने उत्साहित होकर लक्ष्मण का जयघोष किया। इससे मेघनाद को बहुत क्रोध आया। उसने एक साथ असंख्य बाण छोड़कर वानर सेना को पीछे धकेल दिया। तब लक्ष्मण ने तीक्ष्ण नोक वाले साते बाण छोड़कर उसका दुर्भेद्य कवच तोड़ डाला जिससे वह टुकड़े-टुकड़े होकर पृथ्वी पर बिखर गया। फिर तो मेघनाद के कवचहीन ऋरीर में नुकीले तीर घुसकर उसके शरीर को छलनी करने लगे।

इस भयंकर वार से विचलित होकर इन्द्रजित रणोन्मत्त हो गया। और उसने एक हजार बाण मारकर लक्ष्मण के कवच के भी टुकड़े-टुकड़े कर डाले। अब दोनों मतवाले वीर बिना कवच के युद्ध करने लगे। दोनों के शरीरों में एक दूसरे के तीक्ष्ण बाण घुसकर शोणित की धाराएँ प्रवाहित करने लगे। साथ ही उनके बाण एक दूसरे के बाणों को काटकर चिनगारी भी उगलते जाते थे। उनके रक्‍तरंजित शरीर ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वन में टेसू और सेमल के फूल खिल रहे हों। दोनों सेनाएँ इन वीर महारथियों का पराक्रम देखकर विस्मित हो रही थीं जो युद्ध से न हटते थे और न थकते थे।

सबका मालिक एक - Sabka Malik Ek

Sai Baba | प्यारे से सांई बाबा कि सुन्दर सी वेबसाईट : http://www.shirdi-sai-baba.com
Spiritual India | आध्य़ात्मिक भारत : http://www.spiritualindia.org
Send Sai Baba eCard and Photos: http://gallery.spiritualindia.org
Listen Sai Baba Bhajan: http://gallery.spiritualindia.org/audio/
Spirituality: http://www.spiritualindia.org/wiki

 


Facebook Comments