उससे विप्रवत् और उत्तानपाद नामक दो पुत्र, काम्या नामक एक पुत्री उत्पन्न हुई । काम्या के चार पुत्र सम्राट, रुक्षि, विराट और प्रभु हुए । उत्तानपाद ने चार पुत्र उत्पपन्न किए । ध्रुव, कीर्तिमान, शिव और अस्वपति । ध्रुव ने घोर तपस्या की । ब्रहृ ने उन्हें उच्च लोक प्रदान किया । धुव्र के तीन पुत्र हुए । कालान्तर में इसी वंश में वेन हुआ । वह देवताओं का द्रोही निकला । तब मुनियों ने उसकी दक्षिण भुजा कर मंथन का पृथृ नामक पुत्र को जन्म दिया । पृथू राजसूय यज्ञ का अनुष्टान करने वाला पहला राजा हुआ । पृथू राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला पहला राजा हुआ । पृथू ने प्राणियों को, जीवन दान देने के उद्देश्य से देवता, दानव, गंंधर्व, अप्सरा, सर्प, यज्ञ, लता, पर्वतादि से मिलकर सबको बछड़ा बनाकर पृथ्वी का दोहन किया । तब पृथ्वी ने अन्नादि दुग्ध प्रदान किया, तो सबकी जीविका का साधन बनी । आगे चलकर इसी पृथू वंश के प्रचेता की उदासीनता के कारण पृथ्वी वृक्ष-विहीन हो गई । तब वृक्षों के अधिपति सोम ने प्रजापति का सहारा लिया । तब चन्द्रमा के अंश से दक्ष प्रजापति उत्पन्न हुए । दक्ष प्रजापति ने चन्द्रवंश का विस्तार किया ।
मुनिवरों दक्ष प्रजापति के समय से मैथुनी सृष्टि प्रारम्भ हो गयी । इसमें नारद ने बाधा डाली । दक्ष प्रजापति ने उनको शाप देकर भस्म कर दिया । तब देवताओं के अनुरोध पर ब्रहृ ने दक्ष प्रजापति से एक कन्या लेकर नारद को पुनर्जन्म दिया । दक्ष प्रजापति का वंश बढ़ता गया । बहुत काल बाद दिति के गर्भ से कश्यप ने अत्यन्त बलवान पुत्र उत्पन्न किए । उनके नाम हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष थे । प्रहलाद हिरण्यकशिपु का ही पुत्र था ।
सूतजी बोले, आगे चलकर ब्रहृ ने चन्द्रमा को ब्राहणो, नक्षत्रो, ग्रहो, यज्ञों और तपस्याओं का अधिपति बनाया । वरुण को जल का, कुबेर को धन का, वृहस्पति को सम्पूर्ण विश्वका अधिपति नियुक्त किया । भृगुवंशियों के अधिपति शुक्राचार्य बने । आदित्यों के विष्णु, वसुओं के अधिपति अग्नि बनाये गये । प्रजापतियों के दक्ष, दैत्यों के प्रहलाद, मरुतों के इन्द्र, पितरों के सूर्यपुत्र यम, रुद्रों के भगवान शिव और षोडष मात्रिकाओं, व्रती, मंत्री, गौत्रों, यक्षो, राक्षसों, राजाओ, साध्यों के अधिपति भगवान विष्णु बनाये गये ।
मुनिवरों, इसी प3कार विप्रचित दानवों के, शिव भूत-प्रेत, पिशाचों के, हिमवान पर्वतों के, समुद्र नदियों के, अशरीरी प्राणियों के और शब्दों के वायु, गंधर्वों के चित्ररथ, नागों के वासुकि, सर्पों के तक्षक, हाथियों के ऐरावत, घोड़ों के उच्चैक्षवा, पक्षियों के गरुड़, मृगों के सिंह, गौवों के वृषभ, वृत्रों के पीपल, गंधर्वों, अप्सराओं के कामदेव और ऋतु, मास, पक्ष, दिन, रात, मुहूर्त, कला, काष्ण, ऋतु, अयन, योग, गणित का अधिपति संवत्सर को बनाया । इस प्रकार का कार्य विभाजन कर तब ब्रहजी ने दिगपालों की नियुक्ति की । सूतजी बोले, मुनिवरों तब ब्रहृ ने सुधन्वा को पूर्व का, शंखपदम् को दक्षिण का, अच्युत केतुमान को पश्चिम का, हिरण्यरोमा को उत्तर का दिग्पाल बनाकर सबको पृथु के अधीन कर दिया । तब शौनक जी बोले, सूतजी, वेन तो महादुरात्मा था, तब उसका पुत्र पृथृ क्योंकर इतना प्रतापी हुआ ।