सदगुरु की तुलना तो सब कामनाओ को पूर्ण करने वाली इच्छामणि से भी नही करी जा सकती, क्योंकि उस मणि से प्राप्त करने के लिये हमको पहले इच्छा करनी होती है | परन्तु सदगुरु अपने शिष्य की इच्छाओ के जन्म लेने से पहले ही उनको पूर्ण कर देते | यहाँ कोई यह प्रश्न उठा सकता है कि जब इच्छा हुई ही नही तो उसे पूर्ण कैसे किया जा सकता है | इस प्रश्न कि विवेचना के लिये हमको थोड़ा गहरे से चिंतन करना होगा |
वस्तुत: यदि देखा जाये तो इस संसार में समस्त प्राणी चेतनाओ के विभिन्न स्तर है, जिसका हम लोग अपने सामान्य ज्ञान के आधार पर वर्गीकरण कर लेते है | जैसे यह कहना कि, अमुक जानवर अमुक जानवर से ज्यादा समझदार होता है या, मनुष्य जानवरों की अपेक्षा अधिक समझदार है, अमुक मनुष्य अमुक मनुष्य से ज्यादा ज्ञानी है |
हर चेतना के स्तर पर होने वाली घटनाये, परिस्तिथिया और उनका उस चेतना के प्राणी पर प्रभाव व उस प्राणी की प्रतिक्रिया, यह सभी आपस में मजबूती से सम्बद्ध है | प्राणी अपनी शुरुआत चेतना के किसी एक स्तर से करता है और आपने कर्मो के अनुसार अपने चेतना स्तर को उठता या गिराता है | यदि वह लगातार आपनी चेतना के स्तर को उठता चला जाये तो वह चेतना के उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता, वह शिखर ही परमात्मा है, ब्रह्म है |
सदगुरु अपनी चेतना के उच्चतम शिखर पर पहुँचे हुये होते है, इसलिये गुरु और गोविन्द में कोई भेद नही है | यदि यह दोनों एक ही है तो फ़िर कबीर ने गुरु को ईश्वर से भी उच्च दर्जा कैसे दिया ......
"गुरु गोविन्द दोनों खडे, काके लागूं पायं |"
"बलिहारी गुरु आपणे गोविन्द दियो मिलाय ||"
आयु बढ़ने के साथ साथ संसार में हमारी समझ और अनुभव बढता है | चूँकि सदगुरु चेतना के उच्चतम स्तर है, इसलिये उनको चेतना के प्रत्येक स्तर का सम्पूर्ण ज्ञान होता है और इसी कारण से वे हमारी तात्कालिक ही नही बल्कि भविष्य की भी चेतना और उसमें होने वाली परिस्तिथिया जानते है |
यह सदगुरु की करुणा ही है की वह हम सब प्राणियो का मार्गदर्शन करते है, हर प्राणी को उसकी तात्कालिक चेतना के अनुसार, उच्च चेतना के मार्ग पर आगे बढाते है, और हमारी चेतानाओ के कारण उत्पन्न होने वाली स्तिथियो में हमारी रक्षा करते है | कबीर के ही शब्दों में ....
सदगुरू की महिमा अनंत, अनंत कियो उपकार |
अनंत लोचन उघडिया, अनंत दिखावनहार ||
ॐ साई राम