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Author Topic: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)  (Read 501057 times)

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Offline Dipika

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Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
« Reply #1065 on: November 18, 2010, 08:56:21 AM »
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  • If you look to me,I look to you   

    Sai baba

    Sitting in this Masjid, I speak the truth, nothing but the truth


    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम

    Sai Baba ji beh jao mere kol twannu tak di raha..Sai baba muh se kutch bhi nahi kehna..

    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1066 on: November 18, 2010, 11:47:38 AM »
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  • The life of this Saint is naturally sweet in and out. His various doings, eating, walking and His natural sayings are also sweet. His life is Bliss incarnate. Sai gave it out as a means of His devotee's remembrance to Him. He gave them various stories of duty and action, which ultimately led them to true religion. His object may be that people should live happily in this world, but they should be ever cautious and gain the object of their life, viz. self-realization. We get human body as a result of merits in past births and it is worth-while that with its aid, we should attain devotion and liberation in this life. So we should never be lazy, but always be on the alert to gain our end and aim of life.

    If you daily hear the Leelas (stories) of Sai, you will always see Him. Day and night you will remember Him in your mind, When you assimilate Sai in this way, your mind will lose its fickleness and if you go on in this manner, it will finally be merged in pure Consciousness.

    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1067 on: November 18, 2010, 11:50:42 AM »
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  • Baba never got angry with those from whom He asked Dakshina, and who did not give it. If any Dakshina was sent, through some friend, who forgot to hand over the same to Baba, He reminded him somehow of it and made him pay it. On some occasons, Baba used to return some sum from the amount tendered as Dakshina, and ask the donor to guard it or keep it in his shrine for worship. This procedure benefited the donor or devotee immensely. If anybody offered more than he originally intended to give, He returned the extra amount. Sometimes, He asked more Dakshina from some, than what they originally intended to give and, if they had no money, asked them to get or borrow from others. From some, He demanded Dakshina three or four times a day."

    "Out of the amount collected as Dakshina, Baba spent very little for His own sake, viz., for buying Chilim (clay pipe) and fuel for His Dhuni (sacred fire), and all the rest, He distributed as charity in varying proportions to various persons. All the paraphenalia of the Shirdi Sansthan was brought, by various rich devotees at the instance and suggestion of Radha-Krishna-Mai. Baba always used to get wild and scolded those, who brought costly and rich articles. He said to Mr. Nanasaheb Chandorkar, that all His property consisted of one koupin (codpiece), one stray piece of cloth, one Kafni and a tumrel (tinpot), and that all the people troubled Him by bringing all these unnecessary, useless and costly articles."

    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1068 on: November 19, 2010, 06:26:12 AM »
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  • सदगुरु के चरणों का आश्रय लेने मात्र से तीनों शक्तियों (ब्रहृ, विष्णु, और महेश) और परब्रहृ को नमन करने का श्रेय सहज ही प्राप्त हो जाता है । श्री सच्चिदानंद साई महाराज की जय हो ।


    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1069 on: November 19, 2010, 09:52:21 AM »
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  • OMSAIRAM!Faith in the Guru is a great merit in itself...even as doubt is a sin

    when Guru's grace is there as the umbrella and armour..what harm can come to one??


    Trust in the Guru fully,that is the only sadhana.


    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1070 on: November 20, 2010, 01:59:25 AM »
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  • यदि भक्त सचमुच में श्री साईबाबा की कुछ भेंट देना चाहता था और बाद में यदि उसे अर्पण करने की विस्मृति भी हो गई तो बाबा उसे या उसके मित्र दृारा उस भेंट की स्मृति कराते और भेंट देने के लिये कहते तथा भेंट प्राप्त कर उसे आशीष देते थे ।


     ;D

    Trust in the Guru fully,that is the only sadhana.


    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1071 on: November 20, 2010, 02:02:14 AM »
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  • बाबा का विचित्र बिस्तर

    पहले हम यह देखेंगे कि बबा किस प्रकार शयन करते थे । श्री नानासाहेब डेंगले एक चार हाथ लम्बा और एक हथेली चौड़ा लकड़ी का तख्ता श्री साईबाबा के शयन के हेतु लाये । तख्ता कहीं नीचे रक कर उस पर सोते, ऐसा न कर बाबा ने पुरानी चिन्दियों से मसजिद की बल्ली से उसे झूले के समान बाँधकर उस पर शयन करना प्रारम्भ कर दिया ।

    चिन्दियों के बिल्कुल पतली और कमजोर होने के कारण लोगों को उसका झूला बनाना एक पहेली-सा बन गया । चिन्दियाँ तो केवल तख्ते का भी भार वहन नहीं कर सकतती थी । फिर वे बाबा के शरीर का भार किस प्रकार सहन कर सकेंगी । जिस प्रकार भी हो, यह तो राम ही जानें, परन्तु यह तो बाबा की एक लीला थी, जो फटी चिन्दियाँ तख्ते तथा बाबा का भार सँभाल रही थी । तख्ते के चारों कोनों पर दीपक रात्रि भर जला करते थे । बाबा को तख्ते पर बैठे या शयन करते हुए देखना, देवताओं को भी दुर्लभ दृश्य था । सब आश्चर्यचकित थे कि बाबा किस प्रकार तख्ते पर चढ़ते होंगे और किस प्रकार नीचे उतरते होंगे । कौतूहलवश लोग इस रहस्योद्घघाटन के हेतु दृष्टि लगाये रहते थे, परंतु यह समझने में कोई भी सफल न हो सका और इस रहस्य को जानने के लिये भीड़ उत्तरोत्तर ही बढ़ने लगी । इस कारण बाबा ने एक दिन तख्ता तोड़कर बाहर फेंक दिया । यघपि बाबा को अष्ट सिद्घियाँ प्राप्त था, परन्तु उन्होंने कभी भी उनका प्रयोग नहीं किया और न कभी उनकी ऐसी इच्छा ही हुई । वे तो स्वतः ही स्वाभाविक रुप से पू्र्णता प्राप्त होने के कारण उनके पास आ गई थी ।

    Trust in the Guru fully,that is the only sadhana.


    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1072 on: November 20, 2010, 04:16:03 AM »
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  • बाबा का उपदेश

    जब यह उपदेश समाप्त हो गया तो बाबा उन महाशय से बोले कि अच्छा, महाशय । आपकी जेब में पाँच रुपये के पचास गुने रुपयों के रुप में ब्रहृ है, उसे कृपया बाहर निकालिये । उसने नोटों की गड्डी बाहर निकाली और गिनने पर सबको अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि वे दस-दस के पच्चीस नोट थे । बाबा की यह सर्वज्ञता देखकर वे महाशय द्रवित हो गये और बाबा के चरणों पर गिरकर आशर्वाद की प्रार्थना करने लगे । तब बाबा बोले कि अपना ब्रहा का (नोटों का) यह बण्डल लपेट लो । जब तक तुम्हारा लोभ और ईष्र्या से पूर्ण छुटकारा नही हो जाता, तबतक तुम ब्रहृ के सत्यस्वरुप को नहीं जान सकते । जिसका मन धन, सन्तान और ऐश्वर्य में लगा है, वह इन सब आसक्तियों को त्यागे बिना कैसे ब्रहृ को जानने की आशा कर सकता है । आसक्ति का भ्रम और धन की तृष्णा दुःख का एक भँवर (विवर्त) है, जिसमेंअहंकारा और ईष्र्या रुपी मगरों को वास है । जो निरिच्छ होगा, केवल वही यह भवसागर पार कर सकता है । तृष्णा और ब्रहृ के पारस्परिक संबंध इसी प्रकार के है । अतः वे परस्पर कट्टर शत्रु है ।

    तुलसीदास जी कहते है –

    जहाँ राम तहँ काम नहिं, जहाँ काम नहिं राम । तुलसी कबहूँ होत नहिं, रवि रजनी इक ठाम ।।

    जहाँ लोभ है, वहाँ ब्रहृ के चिन्तन या ध्यान कीगुंजाइश ही नहीं है । फिर लोभी पुरुष को विरक्ति और मोक्ष की प्राप्ति कैसे हो सकती है । लालची पुरुष को न तो शान्ति है और न सन्तोष ही, और न वह दृढ़ निश्चयी ही होता है । यदि कण मात्र भी लोभ मन में शेष रह जाये तो समझना चाहिये कि सब साधनाएँ व्यर्थ हो गयी । एक उत्तम साधक यदि फलप्राप्ति की इछ्छा या अपने कर्तव्यों का प्रतिफल पाने की भावना से मुक्त नहीं है और यदि उनके प्रति उसमें अरुचि उत्पन्न न हो तो सब कुछ व्यर्थ ही हुआ । वह आत्मानुभूति प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता । जो अहंकारी तथा सदैव विषय-चिंतन में रत है, उन पर गुरु के उपदेशों तथा शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । अतः मन की पवित्रता अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि उसके बिना आध्यात्मिक साधनाओं का कोई महत्व नहीं तथा वह निरादम्भ ही है । इसीलिये श्रेयस्कर यही है कि जिसे जो मार्ग बुद्घिगम्य हो, वह उसे ही अपनाये । मेरा खजाना पूर्ण है और मैं प्रत्येक की इच्छानुसार उसकी पूर्ति कर सकता हूँ, परन्तु मुझे पात्र की योग्यता-अयोग्यता का भी ध्यान रखना पड़ता है । जो कुछ मैं कह रहा हूँ, यदि तुम उसे एकाग्र होकर सुनोगे तो तुम्हें निश्चय ही लाभ होगा । इस मसजिद में बैठकर मैं कभी असत्य भाषण नहीं करता । जब घर में किसी अतिथि को निमंत्रण दिया जाता है तो उसके साथ परिवार, अन्य मित्र और सम्बन्धी आदि भी भोजन करने के लिये आमंत्रित किये जाते है । बाबा द्घारा धनी महाशय को दिये गये इस ज्ञान-भोज में मसजिद में उपस्थित सभी जन सम्मलित थे । बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर सभी लोग उन धनी महाशय के साथ हर्ष और संतोषपूर्वक अपने-अपने घरों को लौट गये ।

    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1073 on: November 20, 2010, 04:17:24 AM »
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  • बाबा का वैशिष्टय

    ऐसे सन्त अनेक है, जो घर त्याग कर जंगल की गुफाओं या झोपड़ियों में एकान्त वास करते हुए अपनी मुक्ति या मोक्ष-प्राप्ति का प्रयत्न करते रहते है । वे दूसरों की किंचित मात्र भी अपेक्षा न कर सदा ध्यानस्थ रहते है । श्री साईबाबा इस प्रकृति के न थे । यघपि उनके कोई घर द्घार, स्त्री और सन्तान, समीपी या दूर के संबंधी न थे, फिर भी वे संसार में ही रहते थे । वे केवल चार-पाँच घरों से भिक्षा लेकर सदा नीमवृक्ष के नीचे निवास करते तथा समस्त सांसारिक व्यवहार करते रहते थे । इस विश्व में रहकर किस प्रकार आचरण करना चाहिये, इसकी भी वे शिक्षा देते थे । ऐसे साधु या सन्त प्रायः बिरले ही होते है, जो स्वयं भगवत्प्राप्ति के पश्चात् लोगों के कल्याणार्थ प्रयत्न करें । श्री साईबाबा इन सब में अग्रणी थे, इसलिये हेमाडपंत कहते है-

    वह देश धन्य है, वह कुटुम्ब धन्य है तथा वे माता-पिता धन्य है, जहाँ साईबाबा के रुप में यह असाधारण परम श्रेष्ठ, अनमोल विशुदृ रत्न उत्पन्न हुआ ।


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1074 on: November 20, 2010, 10:57:01 PM »
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  • OMSAIRAM!Deva Happy Gurpurab :)  :)

      ;D

    Happy Gurpurab :)  :)


    Gurpurab di lakh lakh Wadhayi ji sab nu

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    « Last Edit: November 21, 2010, 12:07:29 AM by diPika »
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1075 on: November 20, 2010, 11:26:29 PM »
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1076 on: November 21, 2010, 07:32:08 AM »
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1077 on: November 21, 2010, 11:16:30 AM »
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  • सन्ध्या समय दादा भट ने बाबा से पूछा, क्या कारण है कि आर दूसरों को तो मस्तक पर चन्दन नहीं लगाने देते, परन्तु डाँक्टर पंडित को आपने कुछ भी नहीं कहा बाबा कहने लगे, डाँक्टर पंडित ने मुझे अपने गुरु श्री रघुनाथ महाराज धोपेश्वरकर, जो कि काका पुराणिक के नाम से प्रसिदृ है, के ही समान समझा और अपने गुरु को वे जिस प्रकार चन्दन लगाते थे, उसी भावना से उन्होंने मुझे चन्दन लगाया । तब मैं कैसे रोक सकता था । पुछने पर डाँक्टर पंडित ने दादा भट से कहा कि मैंने बाबा को अपने गुरु काका पुराणिक के समान ही डालकर उन्हें त्रिपुण्डाकार चन्दन लगाया है, जिस प्रकार मैं अपने गुरु को सदैव लगाया करता था ।

    Saints work in Unison!



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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1078 on: November 22, 2010, 03:02:02 AM »
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  • The wretched and miserable will rise to joy and happiness as soon as they climb the steps of the mosque


    If you look to me, I look to you.


    If you cast your burden on me, I shall surely bear it


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1079 on: November 22, 2010, 11:37:38 AM »
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  • Dukh Mein Simran Sab Kare, Sukh Mein Kare Na Koye Jo Sukh Mein Simran Kare, Tau Dukh Kahe Ko Hoye

    In anguish everyone prays to him,in joy no one does...the one who prays in happiness,how can sorrow come to such a one.

    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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