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Author Topic: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)  (Read 501455 times)

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Offline Dipika

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Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
« Reply #1095 on: November 26, 2010, 11:42:03 AM »
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  • (Vasudev Sadhashiv Joshi of Sitharam Co. and his friend Chidambar Rao K. Gadre were devoted to Baba They went to Shirdi of an on. Once Joshi gave Rs. 10/- to his friend and asked him to give it to Baba as Dakshina. He also made another request and that was to take a photograph of Baba and bring it back with him. Gadre left with the Rs. 10/- and went to Dwarakamai prostrated before Baba and gave Him Joshi's Dakshina. He was silent, as he did not have the courage to request permission for the photograph. Baba too was silent for a long time. Then just before his departure Baba Himself asked Gadre to take His photograph. Baba told him that the photographs should not be sold for a profit. He then give him Udi and Prasad.)

    http://heritageshirdi.blogspot.com/2009_01_03_archive.html


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1096 on: November 26, 2010, 11:46:00 AM »
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  • SHIRDI BABA’S MISSION
    A devotee objected to people going to Baba for temporal benefit e.g., employment, money, children, cure of disease.
    SAI BABA: Do not do that, My men first come to me on account of that only. They get their heart’s desire fulfilled; and comfortably placed in life, they then follow me and progress further. I bring my men to me from long distances under many pleas. I seek them and bring them to me. They do not come (of their own accord). I bring them to me. However distance – even thousands of miles away - my people might be, I draw them to myself, just as we pull bird to us with a string tied to their foot.
    (From Baba’s Charters and Sayings, #56)

    http://heritageshirdi.blogspot.com/2009_01_03_archive.html


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1097 on: November 26, 2010, 11:53:42 AM »
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  • बाबा ने शामा की ओर दृष्टिपात कर कहा – जो, प्रेमपूर्वक मेरा नामस्मरण करेगा, मैं उसकी समस्त इच्छायें पूर्ण कर दूँगा । उसकी भक्ति में उत्तरोत्तर वृदिृ होगी । जो मेरे चरित्र और कृत्यों का श्रदृापूर्वक गायन करेगा, उसकी मैं हर प्रकार से सदैव सहायता करुँगा । जो भक्तगण हृदय और प्राणों से मुझे चाहते है, उन्हें मेरी कथाऐं श्रवण कर स्वभावतः प्रसन्नता होगी । विश्वास रखो कि जो कोई मेरी लीलाओं का कीर्तन करेगा, उसे परमानन्द और चिरसन्तोष की उपलबि्ध हो जायेगी । यह मेरा वैशिष्टय है कि जो कोई अनन्य भाव से मेरी शरण आता है, जो श्रदृापूर्वक मेरा पूजन, निरन्तर स्मरण और मेरा ही ध्यान किया करता है, उसको मैं मुक्ति प्रदान कर देता हूँ ।

    जो नित्यप्रति मेरा नामस्मरण और पूजन कर मेरी कथाओं और लीलाओं का प्रेमपूर्वक मनन करते है, ऐसे भक्तों में सांसारिक वासनाएँ और अज्ञानरुपी प्रवृत्तियाँ कैसे ठहर सकती है । मैं उन्हें मृत्यु के मुख से बचा लेता हूँ ।

    मेरी कथाऐं श्रवण करने से मूक्ति हो जायेगी । अतः मेरी कथाओं श्रदृापूर्वक सुनो, मनन करो । सुख और सन्तोष-प्राप्ति का सरल मार्ग ही यही है । इससे श्रोताओं के चित्त को शांति प्राप्त होगी और जब ध्यान प्रगाढ़ और विश्वास दृढ़ हो जायगा, तब अखोड चैतन्यघन से अभिन्नता प्राप्त हो जाएगी । केवल साई साई के उच्चारणमात्र से ही उनके समस्त पाप नष्ट हो जाएगें ।

    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1098 on: November 27, 2010, 06:48:26 AM »
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  • जब बारात शिरडी में पहुँची तो खंडोबा के मंदिर के समीप म्हालसापति के खेत में एक वृक्ष के नीचे ठहराई गई । खंडोबा के मंदिर के सामने ही सब बैलगाड़ियाँ खोल दी गई और बारात के सब लोग एक-एक करके नीचे उतरने लगे । तरुण फकीर को उतरते देख म्हालसापति ने आओ साई कहकर उनका अभिनन्दन किया तथा अन्य उपस्थित लोगों ने भी साई शब्द से ही सम्बोधन कर उनका आदर किया । इसके पश्चात वे साई नाम से ही प्रसिदृ हो गये ।


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1099 on: November 27, 2010, 06:49:32 AM »
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  • सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात्

    सुधास्त्राविणं तित्तमप्यप्रियं तम् ।

    तरुं कल्पवृक्षाधिकं साधयन्तं

    नमानीश्वरं सद्गगुरुं साईनाथम् ।।


    अर्थात् मैं भगवान साईनाथ को नमन करता हूँ, जिनका सानिध्य पाकर नीम वृक्ष कटु तथा अप्रिय होते हुए भी अमृत वर्षा करता था । (इस वृक्ष का रस अमृत कहलाता है) इसमें अनेक व्याधियों से मुक्ति देने के गुण होने के कारण इसे कल्पवृक्ष से भी श्रेष्ठ कहा गया है ।

    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1100 on: November 27, 2010, 06:51:45 AM »
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  • जल का तेल में परिवर्तन

    बाबा को प्रकाश से बड़ा अनुराग था । वे संध्या समय दुकानदारों से भिक्षा में तेल मागँ लेते थे तथा दीपमालाओं से मसजिद को सजाकर, रात्रिभर दीपक जलाया करते थे । यह क्रम कुछ दिनों तक ठीक इसी प्रकार चलता रहा । अब बलिये तंग आ गये और उन्होंने संगठित होकर निश्चय किया कि आज कोई उन्हें तेल की भिक्षा न दे । नित्य नियमानुसार जब बाबा तेल माँगने पहुँचें तो प्रत्येक स्थान पर उनका नकारात्मक उत्तर से स्वागत हुआ । किसी से कुछ कहे बिना बाबा मसजिद को लौट आये और सूखी बत्तियाँ दियों में डाल दीं। बनिये तो बड़े उत्सुक होकर उनपर दृष्टि जमाये हुये थे । बाबा ने टमरेल उठाया, जिसमें बिलकुल थोड़ा सा तेल था । उन्होंने उसमें पानी मिलाया और वह तेल-मिश्रित जल वे पी गये । उन्होंने उसे पुनः टीनपाट में उगल दिया और वही तेलिया पानी दियों में डालकर उन्हें जला दिया । उत्सुक बिनयों ने जब दीपकों को पूर्ववत् रात्रि भर जलते देखा, तब उन्हें अपने कृत्य पर बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने बाबा से क्षमा-याचना की । बाबा ने उन्हें क्षमा कर भविष्य में सत्य व्यवहार रखने के लिये सावधान किया ।


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1101 on: November 27, 2010, 09:30:13 AM »
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  • यघपु बाबा भक्तों को उनकी इच्छानुसार ही पूजन करने देते थे, परन्तु कभी-कभी तो उनका व्यवहार विचित्र ही हो जाया करता था । जब कभी वे पूजन की थाली फेंक कर रुद्रावतार धारण कर लेते, तब उनके समीप जाने का साहस ही किसी को न हो सकता था । कभी वे भक्तों को झिड़कते और कभी मोम से भी नरम होकर शान्ति तथा क्षमा की मूर्ति-से प्रतीत होते थे । कभी-कभी वे क्रोधावस्था में कम्पायमान हो जाते और उनके लाल नेत्र चारों ओर घूमने लगते थे, तथापि उनके अन्तःकरण में प्रेम और मातृ-स्नेह का स्त्रोत बहा ही करता था । भक्तों को बुलाकर वे कहा करते थे कि उनहें तो कुछ ज्ञात ही नहीं हे कि वे कब उन पर क्रोधित हुए । यदि यह सम्भव हो कि माताएँ अपने बालकों को ठुकरा दें और समुद्र नदियों को लौटा दे तो ही वे भक्तों के कल्याण की भी उपेक्षा कर सकते हैं । वे तो भक्तों के समीप ही रहते हैं और जब भक्त उन्हें पुकारते है तो वे तुरन्त ही उपस्थित हो जाते है । वे तो सदा भक्तों के प्रेम के भूखे है ।

    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1102 on: November 27, 2010, 09:56:09 AM »
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  • It was always the practice of Das Ganu to keep Baba's picture in front of the audience while making the kirtan. Lakhamichand was surprised to see that the features of the old man he saw in his dream, tallied exactly with those in the picture and thus he came to the conclusion, that the old man, he saw in his dream was Sai Baba himself. The sight of this picture, Das Ganu's kirtan and the life of the Saint Tukaram on which Das Ganu discoursed, all these things made a deep impression on his mind and he pined to go to Shirdi. It is always the experience of the Bhaktas that God always helps them in their search for Sad-guru and other spiritual endeavours.

    Tukaram maharaj fights with God


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    « Last Edit: December 04, 2010, 07:35:50 AM by diPika »
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1103 on: November 27, 2010, 10:39:45 AM »
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  • OMSAIRAM!Tuka says a man will become what he continously think of..

    Words are the only jewels i possess

    Words are the only clothes i wear

    Words are the only food that sustains life

    Words are the only wealth i distribute among poor

    Says Tuka witness the word he is God

    I worship him with my words

    Sri Tukarama



    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1104 on: November 28, 2010, 12:44:33 AM »
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  • Sukh-dukh teri dhen hei, sukh-dukh mein thoo aap |
    roma-roma mein hei Sai, thoo hi rahyo vyaap ||57||


    Baba se kar saachee preet, yah hi bhagat janom ki reeth |
    thoo tho hei Baba ka anga, jaise saagar beech tarang |


    bas ek tamannaa hei tum saamne ho mere,
    tum saamne ho mere, meraa dum hi nikal jaaye | ||Baba||


    Deva.....................


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1105 on: November 28, 2010, 12:45:53 AM »
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  • Mangalamaya Praarthana
     

    sarveshaam swasti bhavatu, sarveshaam shaanthirbhavathu |

    sarveshaam mangalam bhavatu, sarveshaam poorna bhavatu ||

     

    sarve bhavanthu sukhinam, sarve santhu niraamayaahm |

    sarve bhadraani pashyantu, maa kashchid dukhabhaag bhaveth ||

     
    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1106 on: November 28, 2010, 12:47:51 AM »
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  • Sai rahama najar karanaa, bachchon ka paalan karanaa |

    jaanaa tumane jagatpsaaraa, sabahi jhooth jamaanaa | ||Sai|| 1

     

    mein andhaa hoon bandaa aapkaa, mujhko prabhu dikhalaanaa | ||Sai|| 2

     

    Daasaganu kahe abb kyaa boloon, thak gayee meri rasanaa | ||Sai|| 3


    rahama najar karo, abb more Sai,

    tum bina naheen mujhe maa baap bhaayi |

    mein andhaa hoon bandaa tumhaaraa |

    mein naa jaanoon, allah ilaahi | ||rahama|| 1

     

    khaali jamaanaa meine gamaayaa,

    saathee aakhir ka kiyaa na koyi | ||rahama|| 2

     

    apane mashid ka jhaadoo ganoo hei |

    maalik hamaare, tum Baba Sai | ||rahama|| 3

     

    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1107 on: November 28, 2010, 02:27:33 AM »
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  • श्री साई अनंत है । वे एक चींटी से लेकर ब्रहमाणड पर्यन्त सर्व भूतों में व्याप्त है । वेद और आत्मविज्ञान में पूर्ण पारंगत होने के कारण वे सदगुरु कहलाने के सर्वथा योग्य है । चाहे कोई कितना ही विद्घान क्यों न हो, परन्तु यदि वह अपने शिष्य की जागृति कर उसे आत्मस्वरुप का दर्शन न करा सके तो उसे सदगुरु के नाम से कदापि सम्बोधित नहीं किया जा सकता । साधारणतः पिता केवल इस नश्वर शरीर का ही जन्मदाता है, परन्तु सदगुरु तो जन्म और मृत्यु दोनों से ही मुक्ति करा देने वाले है । अतः वे अन्य लोगों से अधिक दयावन्त है ।

    श्री साईबाबा हमेशा कहा करते थे कि मेरा भक्त चाहे एक हजार कोस की दूरी पर ही क्यों न हो, वह शिरडी को ऐसा खिंचता चला आता है, जैसे धागे से बँधी हुई चिडियाँ खिंच कर स्वयं ही आ जाती है ।


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    « Reply #1108 on: November 28, 2010, 02:34:04 AM »
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  • OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM

    Sai baba gave darshan as SitaNath to one Sai bhakt devotee


    लगभग सन् 1916 में एक मद्रासी भजन मंडली पवित्र काशी की तीर्थयात्रा पर निकली । उस मंडली में एक पुरुष, उनकी स्त्री, पुत्री और साली थी । अभाग्यवश, उनके नाम यहाँ नहीं दिये जा रहे है । मार्ग में कहीं उनको सुनने में आया कि अहमदनगर के कोपरगाँव तालुका के शिरडी ग्राम में श्री साईबाबा नाम के एक महान् सन्त रहते है, जो बहुत दयालु और पहुँचे हुए है । वे उदार हृदय और अहेतुक कृपासिन्धु है । वे प्रतिदिन अपने भक्तों को रुपया बाँटा करते है । यदि कोई कलाकार वहाँ जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता है तो उसे भी पुरस्कार मिलता है । प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रुपये इकट्ठे हो जाया करते थे । इन रुपयों में से वे नित्य एक रुपया भक्त कोण्डाजी की तीनवर्षीय कन्या अमनी को, किसी को दो रुपये से पाँच रुपये तक, छः रुपये अमनी की माली को और दस से बीस रुपये तक और कभी-कभी पचास रुपये भी अपनी इच्छानुसार अन्य भक्तों को भी दिया करते थे । यह सुनकर मंडली शिरडी आकर रुकी । मंडली बहुत सुन्दर भजन और गायन किया करती थी, परन्तु उनका भीतरी ध्येय तो द्रव्योपार्जन ही था । मंडली में तीन व्यक्ति तो बड़े ही लालची थे । केवल प्रधान स्त्री का ही स्वभाव इन लोगों से सर्वथा भिन्न था । उसके हृदय में बाबा के प्रति श्रद्घा और विश्वास देखकर बाबा प्रसन्न हो गये । फिर क्या था । बाबा ने उसे उसके इष्ट के रुप में दर्शन दिये और केवल उसे ही बाबा सीतानाथ के रुप में दिखलाई दिये, जब कि अन्य उपस्थित लोगों को सदैव की भाँति ही । अपने प्रिय इष्ट का दर्शन पाकर वह द्रवित हो गई तथा उसका कंठ रुँध गया और आँखों से अश्रुधारा बहने लगी । तभी प्रेमोन्मत हो वह ताली बजाने लगी । उसको इस प्रकार आनन्दित देख लोगों को कौतूहल तो होने लगा, परन्तु कारण किसी को भी ज्ञात न हो रहा था । दोपहर के पश्चात उसने वह भेद अपने पति से प्रगट किया । बाबा के श्रीरामस्वरुप में उसे कैसे दर्शन हुए इत्यादि उसने सब बताया पति ने सोचा कि मेरी स्त्री बहुत भोली और भावुक है, अतः इसे राम का दर्शन होना एक मानसिक विकार के अतिरिक्त कुछ नहीं है । उसने ऐसा कहकर उसकी उपेक्षा कर दी कि कहीं यह भी संभव हो सकता है कि केवल तुम्हें ही बाबा राम के रुप में दिखे ओर अन्य लोगों को सदैव की भाँति ही । स्त्री ने कोई प्रतिवाद न किया, क्योंकि उसे राम के दर्शन जिस प्रकार उस समय हुए थे, वैसे ही अब भी हो रहे थे । उसका मन शान्त, स्थिर और संतृप्त हो चुका था ।

    OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM OMSAIRAM


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1109 on: November 29, 2010, 12:37:34 AM »
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  • Once, Kaka Mahajani went to Shirdi from Bombay. He wanted to stay there for one week, and enjoy the Gokul-Ashtami festival. As soon as he took Baba's darshan, Baba asked him - "When are you returning home?" He was rather surprised at this question, but he had to given an answer. He said that he would go home when Baba ordered him to do so. Then Baba said - "Go to-morrow". Baba's word was law and had to be obeyed. Kaka Mahajani, therefore, left Shirdi, immediately. When he went to his office in Bombay, he found that his employer was anxiously waiting for him. His munim, i.e., the manager, suddenly fell ill, hence Kaka's presence was absolutely necessary. He had sent a letter to Kaka at Shirdi, which was redirected to him at Bombay.

    BABA knows everything...HE always Guides us


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