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Author Topic: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)  (Read 399513 times)

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Offline Dipika

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Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
« Reply #1050 on: November 14, 2010, 08:59:30 PM »
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  • श्री साईबाबा का सदा ही प्रेमपूर्वक स्मरण करो ।



    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम

    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम


    Dipika Duggal

    Offline Dipika

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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1051 on: November 14, 2010, 09:02:05 PM »
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  • ऐसा कहते है कि भगवान् में 6 प्रकार के विशेष गुण होते है – यथा

    1.कीर्ति
    2.श्री
    3.वैराग्य
    4.ज्ञान
    5.ऐश्वर्य और
    6.उदारता
    श्री साईबाबा में भी ये सव गुण विघमान थे । उन्होंने भक्तों की इच्छा-पूर्ति के निमित्त ही सगुण अवतार धारण किया था । उनकी कृपा (दया) बड़ी ही विचित्र थी। वे भक्तों को स्वयं अपने पास आकर्षित करते थे । अन्यथा उन्हें कोई कैसे जान पाता । भक्तों के हेतु वे अपने श्रीमुख से ऐसे वचन कहते, जिनका वर्णन करने का सरस्वती भी साहस न कर सकती । उनमें से यहाँ पर एक रोचक नमूना दिया जाता हैं । बाबा अति विनम्रता से इस प्रकार बोलते दासानुदास, मैं तुम्हारा ऋणी हूँ, तुम्हारे दर्षन मात्र से मुझे सान्त्वना मिली, यह तुम्हारा मेरे ऊपर बड़ा उपकार है कि जो मुझे तुम्हारे चरणो, का दर्शन प्राप्त हुआ । तुम्हारे दर्शन कर मैं अपने को धन्य समझता हूँ । कैसी विनम्रता है । यदि कोई यह सोचे कि इन वाक्यों को प्रकाशित करने से श्री साईबाबा की महानता को आँच पहुँची है तो मैं इसके लिये क्षमाप्रार्थी हूँ और इसके प्रायश्चित स्वरुप मैं साई नाम का कीर्तन तथा जप किया करता हूँ ।

    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Dipika Duggal

    Offline swatisai87

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    • "OM SRI SAI RAM"
    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1052 on: November 14, 2010, 09:47:55 PM »
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  • OM GUD MRNG ALL...
    HAVE A NICE DAY...OM SRI SAI RAM..

    SWATI... :)
    be happy and keep smiling...om sri sai ram..
    swati

    Offline swatisai87

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    • "OM SRI SAI RAM"
    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1053 on: November 14, 2010, 09:52:40 PM »
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  • Dear Dipika ji,

    Gud Mrng :) have a nice day...:)
     om sri sai ram..:)
    tc..:)

    swati :)
    be happy and keep smiling...om sri sai ram..
    swati

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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1054 on: November 15, 2010, 12:58:17 AM »
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  • Dear Dipika ji,

    Gud Mrng :) have a nice day...:)
     om sri sai ram..:)
    tc..:)

    swati :)

    Gud mrng doll...how ru sweety...so which topic did u read on BABA.:)

    जिन्हें विश्वास और धैर्य है, उनकी रक्षा श्री हरि अवश्य करेंगे ।


    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Dipika Duggal

    Offline Dipika

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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1055 on: November 15, 2010, 03:21:18 AM »
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  • श्री साई, जो सन्त शिरोमणि है, उनका तो मुख्य ध्येय ही यही है । जो उनके श्री-चरणों की शरण में जाते है , उनके समस्त पाप नष्ट होकर निश्चित ही दिन-प्रतिदिन उनकी प्रगति होती है । उनके श्री-चरणों का स्मरण कर पवित्र स्थानों से भक्तगण शिरडी आते और उनके समीप बैठकर श्लोक पढ़कर गायत्री-मंत्र का जप किया करते थे । परन्तु जो निर्बल तथा सर्व प्रकार से दीन-हीन है और जो यह भी नहीं जानते कि भक्ति किसे कहते है, उनका तो केवल इतना ही विश्वास है कि अन्य सब लोग उन्हें असहाय छोड़कर उपेक्षा भले ही कर दे, परन्तु अनाथों के नाथ और प्रभु श्री साई मेरा कभी परित्याग न करेंगे । जिन पर वे कृपा करे, उन्हें प्रचण्ड शक्ति, नित्यानित्य में विवेक तथा ज्ञान सहज ही प्राप्त हो जाता है ।

    वे अपने भक्तों की इच्छायें पूर्णतः जानकर उन्हें पूर्ण किया करते है, इसीलिये भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाया करती है और वे सदा कृतज्ञ बने रहते है । हम उन्हें साष्टांग प्रणाम कर प्रार्थना करते है कि वे हमारी त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर हमें समस्त कष्टों से बचा लें । जो विपति-ग्रस्त प्राणी इस प्रकार श्री साई से प्रार्थना करता है, उनकी कृपा से उसे पूर्ण शान्ति तथा सुख-समृद्घि प्राप्त हती है ।

    रक्षा साईं बाबा!


    साईं बाबा अपने पवित्र चरणकमल ही हमारी एकमात्र शरण रहने दो.ॐ साईं राम
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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1056 on: November 17, 2010, 01:48:22 AM »
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  • जन-साधारण का ऐसा विश्वास है कि समुद्र में स्नान कर लेने से ही समस्त तीर्थों तथा पवित्र नदियों में स्नान करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है । ठीक इसी प्रकार सदगुरु के चरणों का आश्रय लेने मात्र से तीनों शक्तियों (ब्रहृ, विष्णु, और महेश) और परब्रहृ को नमन करने का श्रेय सहज ही प्राप्त हो जाता है । श्री सच्चिदानंद साई महाराज की जय हो । वे तो भक्तों के लिये कामकल्पतरु, दया के सागर और आत्मानुभूति देने वाले है । हे साई । तुम अपनी कथाओं के श्रवण में मेरी श्रद्घा जागृत कर दो । घनघोर वर्षा ऋतु में जिस प्रकार चातक पक्षी स्वाति नक्षत्र की केवल एक बूँद का पान कर प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार अपनी कथाओं के सारसिन्धु से प्रगटित एक जल कण का सहस्त्रांश दे दो, जिससे पाठकों और श्रोताओं के हृदय तृप्त होकर प्रसन्नता से भरपूर हो जाये । शरीर से स्वेद प्रवाहित होने लगे, आँसुओं से नेत्र परिपूर्ण हो जाये, प्राण स्थिरता पाकर चित्त एकाग्र हो जाये और पल-पल पर रोमांच हो उठे, ऐसा सात्विक भाव सभी में जागृत कर दो । पारस्परिक बैमनस्य तता वर्ग-अपवर्ग का भेद-भाव नष्ट कर दो, जिससे वे तुम्हारी भक्ति में सिसके, बिलखें और कम्पित हो उठें । यदि ये सब भाव उत्पन्न होने लगे तो इसे गुरु-कृपा के लक्षण जानो । इन भावों को अन्तःकरण में उदित देखकर गुरु अत्यन्त प्रसन्न होकर तुम्हें आत्मानुभूति की ओर अग्रसर करेंगे । माया से मुक्त होने का एकमात्र सहज उपाय अनन्य भाव से केवल श्री साईबाबा की शरण जाना ही है । वेद –वेदान्त भी मायारुपी सागर से पार नहीं उतार सकते । यह कार्य तो केवल सदगुरु द्घारा ही संभव है । समस्त पप्राणियों और भूतों में ईश्वर-दर्णन करने के योग्य बनाने की क्षमता केवल उन्हीं में है ।


    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1057 on: November 17, 2010, 03:53:15 AM »
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  • Eid Mubarak Ho


    May the blessings of Allah fill our lifes with happiness...


    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1058 on: November 17, 2010, 04:02:01 AM »
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  • We regard Sai Baba as an incarnation of God for reasons already stated, but He always said that He was an obedient servant of God. Though an incarnation He showed the people the way, how to behave satisfactorily and carry out the duties of their respective stations (Varnas) in this life. He never emulated others in any way, nor asked others to have something done for Him. For Him, Who saw the Lord in all movable and immovable things of this world, humility was the most proper thing. None He disregarded or disrespected; for He saw Narayan (Lord) in all beings, He never said, "I am God," but that He was a humble servant and He always remembered Him and always uttered - "Allah Malik" (God is the sole proprietor or Owner).


    Eid Mubarak Ho


    WISHING EVERYONE HAPPINESS TODAY AND ALWAYS  ;D


    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1059 on: November 17, 2010, 10:02:23 AM »
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  • जो अकारण ही सभी पर दया करते है तथा समस्त प्राणियों के जीवन व आश्रयदाता है, जो परब्रहृ के पूर्ण अवतार है, ऐसे अहेतुक दयासिन्धु और महान् योगिराज के चरणों में साष्टांग प्रणाम कर अब हम यह अध्याय आरम्भ करते है ।

    श्री साई की जय हो । वे सन्त चूड़ामणि, समस्त शुभ कार्यों के उदगम स्थान और हमारे आत्माराम तथा भक्तों के आश्रयदाता है । हम उन साईनाथ की चरण-वन्दना करते है, जिन्होंने अपने जीवन का अन्तिम ध्येय प्राप्त कर लिया है ।

    श्री साईबाबा अनिर्वचनीय प्रेमस्वरुप है । हमें तो केवल उनके चरणकमलों में दृढ़ भक्ति ही रखनी चाहिये । जब भक्त का विश्वास दृढ़ और भक्ति परिपक्क हो जाती है तो उसका मनोरथ भी शीघ्र ही सफल हो जाता है ।

    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1060 on: November 17, 2010, 10:04:54 AM »
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  • प्रार्थना

    एक प्रार्थना कर हेमाडपंत यह अध्याय समाप्त करते है ।

    हे साई सदगुरु । भक्तों के कल्पतरु । हमारी आपसे प्रार्थना है कि आपके अभय चरणों की हमें कभी विस्मृति न हो । आपके श्री चरण कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों । हम इस जन्म-मृत्यु के चक्र से संसार में अधिक दुखी है । अब दयाकर इस चक्र से हमारा शीघ्र उद्घार कर दो । हमारी इन्द्रियाँ, जो विषय-पदार्थों की ओर आकर्षित हो रही है, उनकी बाहृ प्रवृत्ति से रक्षा कर, उन्हें अंतर्मुखी बना कर हमें आत्म-दर्शन के योग्य बना दो । जब तक हमारी इन्द्रयों की बहिमुर्खी प्रवृत्ति और चंचल मन पर अंकुश नहीं है, तब तक आत्मसाक्षात्कार की हमें कोई आशा नहीं है । हमारे पुत्र और मीत्र, कोई भी अन्त में हमारे काम न आयेंगे । हे साई । हमारे तो एकमात्र तुम्हीं हो, जो हमें मोक्ष और आनन्द प्रदान करोगे । हे प्रभु । हमारी तर्कवितर्क तथा अन्य कुप्रवृत्तियों को नष्ट कर दो । हमारी जिहृ सदैव तुम्हारे नामस्मरण का स्वाद लेती रहे । हे साई । हमारे अच्छे बुरे सब प्रकार के विचारों को नष्ट कर दो । प्रभु । कुछ ऐसा कर दो कि जिससे हमें अपने शरीर और गृह में आसक्ति न रहे । हमारा अहंकार सर्वथा निर्मूल हो जाय और हमें एकमात्र तुम्हारे ही नाम की स्मृति बनी रहे तथा शेष सबका विस्मरण हो जाय । हमारे मन की अशान्ति को दूर कर, उसे स्थिर और शान्त करो । हे साई । यदि तुम हमारे हाथ अपने हाथ में ले लोगे तो अज्ञानरुपी रात्रि का आवरण शीघ्र दूर हो जायेगा और हम तुम्हारे ज्ञान-प्रकाश में सुखपूर्वक विचरण करने लगेंगे । यह जो तुम्हारा लीलामृत पान करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ तथा जिसने हमें अखण्ड निद्रा से जागृत कर दिया है, यह तुम्हारी ही कृपा और हमारे गत जन्मों के शुभ कर्मों का ही फल है ।

    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1061 on: November 17, 2010, 10:06:56 AM »
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  • मेरी बहन का स्वर्गवास होने के कारम मेरे दुःख का रारावार न रहा और जब मैं बाबा की शरण गया तो उन्होंने अपने मधुर उपदेशों से मुझे सान्तवना देकर अप्पा कुलकर्णी के घर पूरणपोली खलाई तथा मेरे मस्तक पर चन्दन लगाया ।

    जब मेरे घर चोरी हुई और मेरे ही एक तीसवर्षीय मित्र ने मेरी स्त्री के गहनों का सन्दूक, जिसमें मंगलसूत्र और नथ आदि थे, चुरा लिये, तब मैंने बाबा के चित्र के समक्ष रुदन किया और उसके दूसरे ही दिन वह व्यक्ति स्वयं गहनों का सन्दूक मुझे लौटाकर क्षमा-प्रार्थना करने लगा ।

    http://www.spiritualindia.org/wiki/Sai_Satcharitra_Hindi_chap_25


    ।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1062 on: November 18, 2010, 04:34:20 AM »
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  • किसी भी मनुष्य के उपहार की उससे समानता संभव नहीं है । मेरे सरकार कहते है ले जाओ । परन्तु लोग मेरे पास आकर कहते है मुझे दो, मुझे दो । जो कुछ मैं कहता हूँ उसके अर्थ पर कोई ध्यान देने का प्रयत्न नहीं करता । मेरे सरकार का खजाना (आध्यात्मिक भंडार) भरपूर है और वह ऊपर से बह रहा है । मैं तो कहता हूँ कि खोदकर गाड़ी में भरकर ले जाओ । जो सच्ची माँ का लाल होगा, उसे स्वयं ही भरना चाहिए । मेरे फकीर की कला, मेरे भगवान् की लीला और मेरे सरकार का बर्ताव सर्वथा अद्घितीय है । मेरा क्या, यह शरीर मिट्टी में मिलकर सारे भूमंडल में व्याप्त हो जायेगा तथा फिर यह अवसर कभी प्राप्त न होगा । मैं चाहें कहीं जाता हूँ या कहीं बैठता हूँ, परन्तु माया फिर भी मुझे कष्ट पहुँचाती है । इतना होने पर भी मैं अपने भक्तों के कल्याणार्थ सदैव उत्सुक ही रहता हूँ । जो कुछ भी कोई करताहै, एक दिन उसका फल उसको अवशे्य प्राप्त होगा और जो मेरे इन वचनों को स्मरण रखेगा, उसे मौलिक आनन्द की प्राप्ति होगी ।

    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1063 on: November 18, 2010, 05:46:07 AM »
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  • Repairs to the Masjid

    Another important idea occured to Gopal Gund. Just as he started the Urus or fair, he thought that he should put the Masjid in order. So in order to carry out the repairs, he collected stones and got them dressed. But this work was not assigned to him. This was reserved for Nanasaheb Chandorkar, and the pavement -work for Kakasaheb Dixit. First, Baba was unwilling to allow them to have these works done, but with the intervention of Mhalsapati, a local devotee of Baba, His permission was secured. When the pavement was completed in one night in the Masjid, Baba took a small Gadi for His seat, discarding the usual piece of sack - cloth used till then. In 1911, the Sabha - Mandap (court - yard) was also put in order with great labour and effort. The open space in front of the Masjid was very small and inconvenient. Kakasaheb Dixit wanted to extend it and put on it a roofing. At great expense, he got iron-posts, and pillars and trusses and started the work. At night, all the devotees worked hard and fixed the posts; but Baba, when he returned from Chavadi next morning, uprooted them all and threw them out. Once it so happened that Baba got very excited, caught a pole with one hand, and began to shake and uproot it, and with the other hand caught the neck of Tatya Patil. He took by force Tatya’s Pheta, struck a match, set it on fire and threw it in a pit. At that time, Baba’s eyes flashed like burning embers. None dared to look at Him. All got terribly frightened. Baba took out a rupee from his pocket and threw it there, as if it were an offering on an auspicious occasion. Tatya also was much frightened. None knew what was going to happen to Tatya, and none dared to interfere. Bhagoji Shinde, the leper devotee of Baba, made a little boldly advance, but he was pushed out by Baba. Madhavrao was also similarly treated, he being pelted with brick pieces. So all those, who went to intercede, were similarly dealt with. But after some time, Baba’s anger cooled down. He sent for a shopkeeper, got from him an embroidered Pheta and Himself tied it on Tatya’s head, as if he was being given a special honour. All the people were wonderstruck to see this strange behavior of Baba. They were at a loss to know, what enraged Baba so suddenly and what led Him to assault Tatya Patil, and why His anger cooled down, the next moment. Baba was sometimes very calm and quiet and talked sweet things with love, but soon after, with or without any pretext, got enraged. Many such incidents may be related; but I do not know which to choose and which to omit. I, therefore, refer them as they occur to me.

    रक्षा साईं बाबा!


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    Re: DWARKAMAI's LEELAS(She is our Mother)
    « Reply #1064 on: November 18, 2010, 05:58:27 AM »
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  • Jyon Naino Mein Putli, Tyon Maalik Ghat Mahin
    Moorakh Log Na Janhin, Baahar Dhudhan Jahin

    Sukhiya sab sansaar hai khaye aur soye
    Dukhiya daas Kabir hai jage aur roye

    Jab Mein Tha Tab Hari Nahin‚ Jab Hari Hai Mein Nahin
    Sab Andhiyara Mit Gaya‚ Jab Deepak Dekhya Mahin


    Keson Kaha Bigadia, Je Moonde Sau Baar
    Man Ko Kahe Na Moondiye, Jaamein Vishey Vikaar

    Kabir Soota Kya Kare, Koore Kaaj Niwaar
    Jis Panthu Tu Chaalna, Soyee Panth Samwaar


    Kabir dohe


    रक्षा साईं बाबा!


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