धैर्य सबसे बड़ा मित्र
प्रगति का मुख्य साधन है, 'अटल धैर्य'। जिसके पास धैर्य है, उसके पास संसार का हर सुख, शांति, आनंद, यश, कीर्ति और ऐश्वर्य है। और वे ही व्यक्ति जीवन में सफल भी हुए हैं। धैर्य शब्द का अर्थ है, किसी भी कठिन समय में विचलित न होने वाली शक्ति। इसलिए मनुस्मृति के छठे अध्याय में जो दस लक्षण बताए गए हैं, उनमें सर्वप्रथम लक्षण धैर्य ही है। मनुस्मृति में धैर्य को 'धृति' के नाम से कहा गया है। धृति माने धारण करना, रोक रखना। धैर्य ही मानव को मानव बनने के प्रेरणा देता है।
चीन में एक राजा क्यांग हुए हैं। उन्होंने शुनशुनाओ नाम के एक व्यक्ति को तीन बार अपना मंत्री बनाया तथा तीन बार हटाया। राजा के इन फैसलों से शुनशुनाओ न तो कभी प्रसन्न हुए और न ही कभी खिन्न। एक बार उनके मित्र किनबु उनसे मिले। उन्होंने शुनशुनाओ से इस अपार धैर्य का कारण पूछा तो शुनशुनाओ अत्यंत सहज भाव से बोले- जब मुझे मंत्री बनने को कहा गया तो मैंने सोचा कि देश और राजा को अवश्य मेरे कौशल की जरूरत होगी। इसे अस्वीकार करना ठीक नहीं होगा, इसीलिए हर बार मैंने पद ग्रहण कर लिया। जब मुझे हटाया गया तो मैंने हमेशा यही सोचा कि राजकाज में अब मेरी उपयोगिता शेष नहीं रही होगी। इसलिए हटाए जाने का मैंने कभी बुरा नहीं माना। मंत्री पद ने न मुझे कुछ दिया और न इस पद के छिनने पर मेरा कुछ गया। जो सम्मान मुझे मिला, वह उस पद का था, मुझसे इसका कोई सरोकार नहीं। किनबु शुनशुनाओ के विवेकपूर्ण विचार सुन और उनके अपार धैर्य को देख मुग्ध हो गए। कहा भी जाता है, मनुष्य को जो हर परिस्थिति में अपने निर्णय पर अडिग रहने की प्रेरणा दे वह 'धैर्य' है।
बहुत गई थोड़ी रही, व्याकुल मन मत हो।
धीरज सबका मित्र है, करी कमाई मत खो॥
अर्थात- धैर्य मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है, जिसने इससे दोस्ती की, उसे जीवन की सारी खुशियाँ हासिल हो सकती हैं। मनुष्य का जो पहला धर्म है, वह अपने धैर्य को कायम रखना। किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। जीवन में रात आती है, दिन आता है, रोग आता है, आरोग्य आता है, सुख आता है, दुःख आता है, परंतु किसी भी स्थिति में हमें विचलित नहीं होना चाहिए। जिसके पास धैर्य रूपी पारसमणि है, वही व्यक्ति अपने जीवन में सफल होता है। इसीलिए कहा भी जाता है-
धैर्य धरो आगे बढ़ो, पूरन हो सब काम।
उसी दिन ही फलते नहीं, जिस दिन बोते आम।