कर्मसिद्धि से ही अखंड लक्ष्मी
भाग्य से व्यक्तिगत स्तर पर सफलता में प्रयास का स्थान महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन पुरुषार्थ की वृद्धि से संपूर्ण राष्ट्र का लाभान्वित होना सुनिश्चित है। इसके फायदे में जनता को भाग्य पर आश्रित कम रहना पड़ता है, जिसका प्रमाण विकसित देश हैं। इस तथ्यात्मकता को स्मृति में सँजोकर भारतवासी कर्म करें।
भारत के स्वर्णिमकाल के पराभव का अवगाहन, अवमंथन और अन्वेषण करने पर इस सिद्धांत की पुष्टि होती है कि विधि के तहत किसी भी कर्म का प्रारंभ व अंत होता है, उसी के तहत कर्म के परिणाम का भी आदि-अंत आता है। देश, काल, परिस्थिति के माप को कम-ज्यादा करने की क्रिया ही कर्म है। इसकी गुणात्मकता व संख्यात्मकता दोनों में आई कमी से इस देश की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक सहित अनेक क्षेत्रों में गिरावट दर्ज हुई। फलस्वरूप सर्वोत्कर्ष-चरमोत्कर्ष पर आरूढ़ रहा भारतवर्ष शनैःशनैः अधोगति से गमन करता रहा। किंतु शायद हमें अपनी भूल का ज्ञान प्रभुकृपा से स्मरण आया। आदिवाक्य-
'कर्मणा एव संसिद्धिम् आस्थिता'
के अनुसार 'कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं' का अनुशीलन करना प्रारंभ किया है। किसी भी स्तर पर पहुँचने में देश को (व्यक्ति को नहीं) उसके नागरिकों के सामूहिक कर्म मुख्य होते हैं। उच्चतम चोटी पर स्थायी वास में आवश्यक कर्म की न्यूनता-अधिकता से उसकी वर्तमान दशा की दिशा में परिवर्तन होता है। भाग्य से व्यक्तिगत स्तर पर सफलता में प्रयास का स्थान महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन पुरुषार्थ की वृद्धि से संपूर्ण राष्ट्र को लाभान्वित होना सुनिश्चित है। इसके फायदे में जनता को भाग्य पर आश्रित कम रहना पड़ता है, जिसका प्रमाण विकसित देश हैं।
इस तथ्यात्मकता को स्मृति में सँजोकर भारतवासी कर्म करें तो आश्चर्य नहीं कि रुपए के मुकाबले डॉलर कमजोर होगा। स्वदेशी मनोबल एवं बौद्धिक क्षमता का लोहा तो संपूर्ण विश्व ने स्वीकार कर लिया है। जरूरत स्तर, अर्थ और अवसर से संबंधित है। इन तीनों में हमारा शक्ति-सामर्थ्य संपूर्ण रूप से झोंकने का अवसर है, जिसकी पूर्णता प्राप्ति से इस साम्राज्य को संतोषी व महत्वाकांक्षी सिद्धि मिलेगी।
स्वतंत्रता के पश्चात भौतिक-आध्यात्मिक अनुष्ठानों के संकल्प में व्यक्तिगत भावना की अधिकता से व्यक्ति ने स्व की उन्नति से विश्व में अपनी साख बनाई जो विज्ञान, तकनीकी, कम्प्यूटर, चिकित्सा से विभिन्ना भागों तक विस्तृत हो रही है। इस खंड के ऊर्ध्वगमन से राज्य को परोक्ष लाभ मिला है। भारतवर्ष के उत्थान में आज की माँग प्रत्यक्ष होनी चाहिए। इस परम सिद्धि की पुष्टि के लिए हमें सर्वांगीण कौशल, विश्वसनीयता से पराक्रम करने पर ही सांसारिक ऋण अर्थात राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक उत्तरदायित्व का चुकारा होगा। दीप पर्व पर नए लेखा के श्रीगणेश पर इस सामूहिक कर्तव्य के व्यवसाय की योजना बनाएँगे। उसके सफल निर्वाह के लिए आशीर्वाद प्रदाय करने वाले से प्रार्थना करके इस राष्ट्रीय भावना को जागृत करेंगे तो ही हमारे जीवन की यह दीपावली आगामी पीढ़ी तक के लिए मंगलमयी होगी।