Welcome,
Guest
. Please
login
or
register
.
Did you miss your
activation email
?
October 09, 2024, 01:39:41 PM
Home
Help
Gallery
Facebook
Login
Register
DwarkaMai - Sai Baba Forum
»
Main Section
»
Inter Faith Interactions
»
Guru Ki Vani - गुरू की वाणी
»
बलिदान दिवस - गुरुतेग बहादूर जी
Join Sai Baba Announcement List
DOWNLOAD SAMARPAN - Nov 2018
« previous
next »
Print
Pages: [
1
]
Go Down
Author
Topic: बलिदान दिवस - गुरुतेग बहादूर जी (Read 9995 times)
0 Members and 1 Guest are viewing this topic.
PiyaSoni
Members
Member
Posts: 7719
Blessings 21
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
बलिदान दिवस - गुरुतेग बहादूर जी
«
on:
November 24, 2011, 01:55:26 AM »
Publish
वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फ़तेह
भारत में सभी धर्मों को समान नजर से देखा जाता है लेकिन यह कथन हमेशा सिर्फ कागजी ही लगता है. इतिहास गवाह है कि भारत में धर्म के नाम पर बहुत ही क्रुर दंगे हुए हैं. यह दंगे ना सिर्फ भारत की धर्म-निरपेक्षता पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा करते हैं बल्कि यह दंगे उस देश में हो रहे हैं महा पुरुषों ने अपने जीवन का बलिदान तक देकर धर्म की रक्षा की है. धर्म के नाम पर मर मिटने की जब भी बात होती है तो सिख समुदाय के गुरुतेग बहादुर जी का नाम बड़ी ही इज्जत और सम्मान के साथ लिया जाता है. अपने धर्म के नाम पर उन्होंने अपने सिर को भी कुर्बान कर दिया. आज उनका बलिदान दिवस है तो चलिए जानते हैं उनके बारें में कुछ बातें.
गुरु तेगबहादुर का बचपन
गुरु तेगबहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था. वह गुरु हरगोविन्द सिंह के पांचवे पुत्र थे. सिखो के आठवें गुरु ‘हरिकृष्ण राय’ जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा गुरु तेगबहादुर को गुरु बनाया गया था. उनके बचपन का नाम त्यागमल था. मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया. उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेगबहादुर (तलवार के धनी) रख दिया.
धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेगबहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्ष तक ‘बाबा बकाला’ नामक स्थान पर साधना की. आठवें गुरु हरकिशन जी ने अपने उत्तराधिकारी का नाम के लिए ‘बाबा बकाले’ का निर्देश दिया. गुरु जी ने धर्म के प्रसार लिए कई स्थानों का भ्रमण किया. आनंदपुर साहब से रोपण, सैफाबाद होते हुए वे खिआला (खदल) पहुंचे.
इसके बाद गुरु तेगबहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए, जहां उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए. आध्यात्मिकता, धर्म का ज्ञान बांटा. रूढ़ियों, अंधविश्वासों की आलोचना कर नये आदर्श स्थापित किए. उन्होंने परोपकार के लिए कएं खुदवाना, धर्मशालाएँ बनवाना आदि कार्य भी किए. इन्हीं यात्राओं में 1666 में गुरुजी के यहां पटना साहब में पुत्र का जन्म हुआ. जो दसवें गुरु- गुरु गोविंद सिंह बने
.
बलिदान की कथा
गुरु तेगबहादुर जी सिखों के नौवें गुरु माने जाते हैं। औरंगज़ेब के शासन काल की बात है। औरंगज़ेब के दरबार में एक विद्वान पंडित आकर रोज़ गीता के श्लोक पढ़ता और उसका अर्थ सुनाता था, पर वह पंडित गीता में से कुछ श्लोक छोड़ दिया करता था।
एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगज़ेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया परन्तु उसे बताना भूल गया कि उसे किन किन श्लोकों का अर्थ राजा से सामने नहीं करना था। पंडित के बेटे ने जाकर औरंगज़ेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया। गीता का पूरा अर्थ सुनकर औरंगज़ेब को यह ज्ञान हो गया कि प्रत्येक धर्म अपने आपमें महान है किन्तु औरंगजेब की हठधर्मिता थी कि वह अपने के धर्म के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म की प्रशंसा सहन नहीं थी।
औरंगज़ेब ने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया और संबंधित अधिकारी को यह कार्य सौंप दिया। औरंगज़ेब ने कहा -'सबसे कह दो या तो इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को गले लगा लें।' इस प्रकार की ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों का जीवन कठिन हो गया।
जुल्म से ग्रस्त कश्मीर के पंडित गुरु तेगबहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है, यातनाएँ दी जा रही हैं। हमें मारा जा रहा है। कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए। गुरु तेगबहादुर जब लोगों की व्यथा सुन रहे थे, उनके 9 वर्षीय पुत्र बाला प्रीतम (गुरु गोविंदसिंह) वहाँ आए और उन्होंने पिताजी से पूछा-
'पिताजी, ये सब इतने उदास क्यों हैं? आप क्या सोच रहे हैं?'
गुरु तेगबहादुर ने कश्मीरी पंडितों की सारी समस्याएं बाला प्रीतम को बताईं तो उन्होंने पूछा- 'इसका हल कैसे होगा?'
गुरु साहिब ने कहा- 'इसके लिए बलिदान देना होगा।'
बाला प्रीतम ने कहा-' आपसे महान पुरुष कोई नहीं है। बलिदान देकर आप इन सबके धर्म को बचाइए।'
उस बच्चे की बातें सुनकर वहाँ उपस्थित लोगों ने पूछा- 'यदि आपके पिता बलिदान देंगे तो आप यतीम हो जाएँगे। आपकी माँ विधवा हो जाएगीं।'
बाला प्रीतम ने उत्तर दिया- 'यदि मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं या अकेले मेरी माता के विधवा होने जाने से लाखों माताएँ विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है।'
तत्पश्चात गुरु तेगबहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे'। औरंगज़ेब ने यह स्वीकार कर लिया।
गुरु तेगबहादुर दिल्ली में औरंगज़ेब के दरबार में स्वयं गए। औरंगज़ेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए, पर गुरु तेगबहादुर जी नहीं माने तो उन पर ज़ुल्म किए गये, उन्हें कैद कर लिया गया, दो शिष्यों को मारकर गुरु तेगबहादुर जी को ड़राने की कोशिश की गयी, पर वे नहीं माने। उन्होंने औरंगजेब से कहा- 'यदि तुम ज़बर्दस्ती लोगों से इस्लाम धर्म ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए।'
गुरुद्वारा शीश गंज साहिब
औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया. उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने का हुक्म ज़ारी कर दिया और गुरु जी ने हँसते-हँसते बलिदान दे दिया. गुरु तेगबहादुरजी की याद में उनके ‘शहीदी स्थल’ पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा ‘शीश गंज साहिब’ है.
गुरु तेग बहादुर जी की बहुत सी रचनाएं ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं. इन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की. उनके अद्वितीय बलिदान ने देश की ‘सर्व धर्म सम भाव’ की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक, सांस्कृतिक, वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र भी दिया.
Source: sikhnet.com
Logged
"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "
PiyaSoni
Members
Member
Posts: 7719
Blessings 21
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ
Re: बलिदान दिवस - गुरुतेग बहादूर जी
«
Reply #1 on:
November 23, 2012, 11:22:05 PM »
Publish
"त्याग की मिसाल"
सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह ने उसूलों और विश्वास के लिए अपना बलिदान किया था। बलिदान दिवस (24 नवंबर) ...
संसार को ऐसे बलिदानियों से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने जान तो दे दी, परंतु सत्य का त्याग नहीं किया। नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी भी ऐसे ही बलिदानी थे। गुरु जी ने स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के अधिकारों एवं विश्वासों की रक्षा के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया। अपनी आस्था के लिए बलिदान देने वालों के उदाहरणों से तो इतिहास भरा हुआ है, परंतु किसी दूसरे की आस्था की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक मात्र मिसाल है-नवम पातशाह की शहादत।
औरंगजेब को दिल्ली के तख्त पर कब्जा किए 24-25 वर्ष बीतने को थे। इनमें से पहले 10 वर्ष उसने पिता शाहजहां को कैद में रखने और भाइयों से निपटने में गुजारे थे। औरंगजेब के अत्याचार अपने शिखर पर थे। बात 1675 ई. की है। कश्मीरी पंडितों का एक दल पंडित किरपा राम के नेतृत्व में गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में कीरतपुर साहिब आया और फरियाद की- हे सच्चे पातशाह, कश्मीर का सूबेदार बादशाह औरंगजेब को खुश करने के लिए हम लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहा है, आप हमारी रक्षा करें। यह फरियाद सुनकर गुरु जी चिंतित हो उठे। इतने में, मात्र नौ वर्षीय श्री गुरु गोबिंद सिंह बाहर से आ गए। अपने पिता को चिंताग्रस्त देखकर उन्होंने कारण पूछा। गुरु पिता ने कश्मीरी पंडितों की व्यथा कह सुनाई। साथ ही यह भी कहा कि इनकी रक्षा सिर्फ तभी हो सकती है, जब कोई महापुरुष अपना बलिदान करे। बालक गोबिंद राय जी ने स्वाभाविक रूप से उत्तर दिया कि इस महान बलिदान के लिए आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है? नवम पातशाह ने पंडितों को आश्वासन देकर वापस भेजा कि अगर कोई तुम्हारा धर्म परिवर्तन कराने आए, तो कहना कि पहले गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन करवाओ, फिर हम भी धर्म बदल लेंगे
।
नवम पातशाह औरंगजेब से टक्कर लेने को तैयार हो गए। बालक गोबिंद राय को गुरुगद्दी सौंपी और औरंगजेब से मिलने के लिए दिल्ली रवाना हो गए। औरंगजेब ने गुरु जी को गिरफ्तार किया और काल-कोठरी में बंद कर दिया। गुरु जी के सामने तीन शर्ते रखी गईं- या तो वे धर्म परिवर्तन करें या कोई करामात करके दिखाएं या फिर शहादत को तैयार रहें। गुरु जी ने पहली दोनों शर्ते मानने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप गुरु जी के साथ आए तीन सिखों-भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला को यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु जी इन सबके लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने कहा-मैं धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूं और करामात दिखाना ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध है। गुरु जी को आठ दिन चांदनी चौक की कोतवाली में रखा गया। उन पर अत्याचार किया गया, परंतु वे अचल रहे और अंतत: नानकशाही तिथि पत्रानुसार 24 नवंबर 1675 के दिन उन्हें चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया।
गुरु जी के एक सिख भाई जैता जी ने गुरु जी के शीश को आनंदपुर साहिब लाने की दिलेरी दिखाई। गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई जैता के साहस से प्रसन्न होकर उन्हें रंगरेटे-गुरु के बेटे का खिताब दिया। गुरु जी के शीश का दाह-संस्कार आनंदपुर साहिब में किया गया।
गुरु जी के शरीर को भाई लखी शाह और उनके पुत्र अपने गांव रकाबगंज ले गए और घर में आग लगाकर गुरु जी का दाह-संस्कार किया। आज यहां गुरुद्वारा रकाबगंज, दिल्ली सुशोभित है। दिल्ली में आज भी गुरुद्वारा शीशगंज नवम पातशाह श्री गुरु तेग बहादुर जी की बेमिसाल शहादत की याद दिलाता है। आज भी लोग उन्हें हिंद की चादर कह कर याद करते हैं।
वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फ़तेह
Logged
"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "
Print
Pages: [
1
]
Go Up
« previous
next »
DwarkaMai - Sai Baba Forum
»
Main Section
»
Inter Faith Interactions
»
Guru Ki Vani - गुरू की वाणी
»
बलिदान दिवस - गुरुतेग बहादूर जी
Facebook Comments