ऊँ सांई राम
निरगुन काल तब बोले बानी । उरझे जीव सकल जमखानी ।।
कैसे के तुम शब्द पसारो । कौने विधि तुम जीव उबारौ ।।
ऐसे जीव सकल है करनी । कैसे पहुंचैं पुरुष के सरनी ।।
जग में जीव क्रोध विकारा । कैसे पहंचैं पुरुष के द्घारा ।।
क्रोधी जीव प्रेत अभिमानी । धरिहैं जन्म नरक की खानी ।।
लोभ होय सरप विकरारा । माटी भखे जीव अधिकारा ।।
लोभ जन्म सूकर अवतारा । कैसे पावै मोक्ष के द्घारा ।।
विषई विषै सब विष की खानी । ए सब कहिये जम सहिदानी ।।
अर्थ - निरंजन ने कहा कि मैंने काम, क्रोधादि में जीव को फंसाया हुआ है । ऐसे में तो कोई भी जीव परम पुरुष के लोक में नहीं पहुँच सकता । इस पर भी यम के 14 दूत मैंने प्रत्येक आदमी में बिठाए हुए है और बड़ी ताकत से उन्हें बांधा हुआ है । तुम कैसे निकलोगे उन्हें । प्रत्येक आदमी के भीतर यम के 14 दूत बैठे हुए है । एक का काम है, नींद लाना । एक का काम है, विषयों को दिल में पैदा करना । एक का काम है, मौज करना । वो जीव को मौज करता है । एक का काम है, चित्त भंग कर देना । इसका नाम है चित्तभंगा आदि यम के ये 14 दूत् है, जो जीव को भ्रमित कर रहे है । इनके साथ काम, क्रोध आदि भी जीव पर छाए हुए है । विषयों में जीव को उलझा दिया है । जीव बड़ा गन्दा हो गतया है । तुम्हारे शब्द को कोई नहीं मानेगा ।
जय सांई राम