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Author Topic: जीवन-मृतक का अंग~~~  (Read 7852 times)

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Offline tana

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    • Sai Baba
जीवन-मृतक का अंग~~~
« on: May 07, 2008, 05:24:17 AM »
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  • ॐ सांई राम~~~

    जीवन-मृतक का अंग~~~


    `कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर ।
    तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥

    भावार्थ - कबीर कहते हैं -मेरा मन जब मर गया और शरीर सूखकर कांटा हो गया, तब, हरि मेरे पीछे लगे फिरने मेरा नाम पुकार-पुकारकर-`अय कबीर ! अय कबीर !'- उलटे वह मेरा जप करने लगे ।

    जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ ।
    मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥

    भावार्थ - इस जीने से तो मरना कहीं अच्छा ; मगर मरने-मरने में अन्तर है । अगर कोई मरना जानता हो, जीते-जीते ही मर जाय । मरने से पहले ही जो मर गया, वह दूसरे ही क्षण अजर और अमर हो गया ।[जिसने अपनी वासनाओं को मार दिया, वह शरीर रहते हुए भी मृतक अर्थात मुक्त है।]

    आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ ।
    अकथ कहाणी प्रेम की, कह्यां न कोउ पत्याइ ॥3॥

    भावार्थ - अहंकार को मिटा देने से ही हरि से भेंट होती है, और हरि को मिटा दिया, भुला दिया, तो हानि-ही-हानि है ।प्रेम की कहानी अकथनीय है । यदि इसे कहा जाय तो कौन विश्वास करेगा ?

    `कबीर' चेरा संत का, दासनि का परदास ।
    कबीर ऐसैं होइ रह्या, ज्यूं पाऊँ तलि घास ॥4॥


    भावार्थ - कबीर सन्तों का दास है, उनके दासों का भी दास है ।वह ऐसे रह रहा है, जैसे पैरों के नीचे घास रहती है ।

    रोड़ा ह्वै रहो बाट का, तजि पाषंड अभिमान ।
    ऐसा जे जन ह्वै रहै, ताहि मिलै भगवान ॥5॥

    भावार्थ - पाखण्ड और अभिमान को छोड़कर तू रास्ते पर का कंकड़ बन जा । ऐसी रहनी से जो बन्दा रहता है, उसे ही मेरा मालिक मिलता है ।

    जय सांई राम~~~     
    "लोका समस्ता सुखिनो भवन्तुः
    ॐ शन्तिः शन्तिः शन्तिः"

    " Loka Samasta Sukino Bhavantu
    Aum ShantiH ShantiH ShantiH"~~~

    May all the worlds be happy. May all the beings be happy.
    May none suffer from grief or sorrow. May peace be to all~~~

     


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