अरुणा नदी के तट पर कृष्ण चैतन्य का गुरुकुल था । शिक्षा की समप्ति के बाद जब पांच विघार्थी स्वस्थल लौटनेवाले थे, तब उन्हें संबोधित करते हुए कृष्ण चैतन्य ने कहा, जब आप लोगों ने गुरुकुल में प्रवेश किया था, तब बिलकुल ही अशिक्षित थे । अब अमरकोश सहित कितने ही ग्रंथों का अध्ययन तुम पाँचों ने बड़ी ही खूबी के साथ किया । यह कैसे संभव हो पाया । यह संभव हो पाया, निरंतर अभ्यास और विकसित बुद्वि बल के कारण । अब तुम लोग बाहृ विश्व में कदम रखने जा रहे हो । जीवन पुष्पों से बिछी पगडंडी नहीं है । यह मत भूलना कि यह एक अविराम संघर्ष है । मनुष्य के लिये आवश्यक है, आत्मविश्वास और निरंतर प्रयत्न । इनके होने पर ही भविष्य उज्जवल बन सकता है । गजराज में अपार बल होता है, पर वह अगर यह समझ नहीं पाये तो उसे कोई लाभ नहीं पहुंचेगा । उदाहरणस्वरुप मैं एक कहानी सुनाऊँगा । ध्यानपूर्वक सुनो । फिर वे कहानी यों सुनाने लगे –
वीरेश, जंतुओं और पक्षियों से अनेक करतबें करवाता था और उस आमदनी से अपना पेट भरता था । एक दिन जब वह जंगल से गुजर रहा था, तब उसने एक हाथी के बच्चे को गढढे में गिरा हुआ देखा । उसने उसे ऊपर उठाया और अपने साथ शहर ले गया । उसने एक रस्सी से खंभे के साथ उसे बाँध दिया और चारा खिलाने लगा ।
हाथी के बच्चे को अपने माता-पिता की याद आयी । जंगल में चले जाने की उसकी इच्छा हुई । उसने रस्सी को तोड़ने की भरसक कोशिश की । पर, वह सफल हो नहीं पाया । वह कुछ दिनों तक इसी कोशिश में लगा रहा । पर, कोई फायदा नहीं हुआ । बेचारा वह कोशिश करते करते थक गया । उसने समझ लिया कि रस्सी को तोड़ना उसके बस की बात नहीं है, इसलिये उसने माता-पिता को देखने की आशा छोड़ दी और वीरेश के कहे अनुसार चलने लगा । वीरेश उस हाथी के बच्चे से तरह तरह के ककरतबों का प्रदर्शन कराने लगा । यों कुछ साल बीत गये । अब हाथी जवान हो गया और बड़ा बलशाली दीखने लगा ।
इस बीच, वीरेश जंगल से एक रीछ को पकड़ ले आया । मजबूर रस्सी से उसने उसे एक खंभे से बाँध दिया । उसने अपने को छुड़ाने की भरसक कोशिश की । परन्तु वह भी असफल हुआ । वीरेश ने उसे कितने ही करतब सिखलाये । जब कभी वह उसके कहे मुताबिक नहीं करता तब वह उसे चाबुक से मारता था । अगर वह उसका कहा मान लेगा तो उसे खूब खिलाता भी था ।
एक दिन वीरेश ने उस रीछ को चाबुक से खूब पीटा । वह रात भर दर्द के मारे कराहता रहा । उसकी दुस्थिति देखकर हाथी को दया आयी । उसने पूछा, दोस्त, क्यों बेकार मार खाते हो । मालिक जो कहता है, चुपचाप करते जाओ । तुम उसकी बात मान जाओगे तो भरपेट खाना भी मिलेगा । आराम से जिन्दगी काट सकोगे ।
गजराज, तुम भी मालिक का समर्थन करने लगे । खाने को जो वह देता है, उससे मेरा पेट नहीं भरता । जंगल में आराम से रह रहा था, बड़े आनन्द से घूम-फिर रहा था, वह मुझे बंदी बनाकर यहाँ जबरदस्ती ले आया । कमाने के लिये मुझ वह तरह-तरह से सता रहा है । जब तक मुझे उससे छुटकार नहीं मिलता, तब तक मैं सुखी नहीं रह पाऊँगा । रीछ ने दीन और आक्रोश भरे स्वर में कहा ।
यह तुमसे नहीं हो पायेगा । मैंने भी कभी तुम्हारी तह कोशिश की । पूरा बल लगाने के बाद भी मैं यह रस्सी नहीं तोड़ पाया । हाथी ने अपनी लाचारी व्यक्त करते हुए कहा ।
उसकी बातों पर रीछ जोर-जोर से हँसने लगा । क्यों हँसते हो । मेरी कहानी तुम्हे क्या मजाक लगती है । हाथी ने नाराज होते हुए कहा ।
गजराज, तुम अपने बल से अपरिचित हो । तुम चाहो तो इस रस्सी को आसानी से तोड़ सकते हो, खंभे को उजाड़ सकते हो, खेमे को उड़ा सकते हो । ये सब तुम्हारे बल के सामने तिनके के बराबर हे, रीछ ने कहा ।
मैं तुमसे बता चुका हूँ कि मेरे सारे प्रयत्न बेकार हो गये है । हाथी ने कहा ।
तुमने कोशिश कब की थी । जब तुम बच्चे थे । तब तुममे बल नहीं था । अब पहाड़ो को भी चूर्ण कर सकते हो । एक बार कोशिश करके देखो तो सही, तो तुम्हें मालूम हो जायेगा कि तुम कितने बलशाली हो । रीछ ने उसे प्रोत्साहन देते हुए कहा ।
रीछ की बातों से हाथी में उत्साह भर आया । उसने रस्सी तोड़ डाली । साथ ही रीछ की रस्सी भी तोड़े दी । दोनों जंगल की ओर भागे । जंगल में प्रवेश करने के बाद हाथी ने कहा, दोस्त मैं बहुत ही नादान था । तुम नहीं बताते तो अपना बल जान ही नहीं सकता था ।
सिर्फ तुम्हारे लिये ही नहीं । बहुतों के लिये यह बात सच है कि डर के मारे कोशिश ही नहीं करते । जो कोशिश नहीं करते, भला उन्हें विजय कैसे प्राप्त होगी । रीछ ने कहा ।
इसके बाद दोनों अपने-अपने लोगों से मिले और स्वतन्त्रतापूर्वक जिन्दगी काटने लगे ।
कृष्ण चैतन्य ने कहानी सुनाने के बाद कहा, तुम लोगों को भी अपनी शक्ति-सामर्थ्य को भुलाना नहीं चाहिये । निरंतर प्रयत्न करते रहना चाहिये । इससे तुम लोग सुखी जीवन बिता सकोगे और दूसरों को भी सुखी रख पाओगे, कहते हुए उन्होंने शिष्यों को आर्शीवाद दिया ।
पाँचों ने भक्तिपूर्वक उन्हें प्रणाम किया और वे वहाँ से स्वस्थल के लिये निकल पड़े ।