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Author Topic: SMALL STORIES  (Read 179827 times)

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Offline PiyaSoni

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जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है, और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, उस समय ये बोध कथा, "काँच की बरनी और दो कप चाय" हमें याद आती है

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ... आवाज आई...फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, समा गये, फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्या अब बरनी भर गई है, छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. सभी ने एक स्वर में कहा..सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया - इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बडा़ मकान आदि हैं, और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, मनमुटाव, झगडे़ है..अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी...ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है...यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो, बगीचे में पानी डालो, सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, घर के  बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, मेडिकल चेक-अप करवाओ..टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो, वही महत्वपूर्ण है... पहले तय करो कि क्या जरूरी है... बाकी सब तो रेत है..छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. अचानक एक ने पूछा, सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... इसका उत्तर यह है कि, जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये !!
« Last Edit: September 05, 2011, 04:44:05 AM by piyagolu »
"नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

Offline Pratap Nr.Mishra

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Re: नानक ! दुखिया सब संसार......
« Reply #331 on: September 17, 2011, 06:35:58 AM »
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  • ॐ साईं राम

    नानक ! दुखिया सब संसार......

    स्रोत्र :  nge .ashram .org   


    दो मित्र चार-पाँच वर्ष के बाद एक-दूसरे से मिले और परस्पर खबर पूछने लगे। एक मित्र ने दुःखी आवाज में कहाः

    "मेरे पास एक सुन्दर बड़ा घर था। दस बीघा जमीन थी। दस-बारह बैल थे। गायें थीं, पाँच बछड़े भी थे परन्तु मैंने वह सब खो दिया। मेरी पत्नी और मेरे बालक भी मर गये। मेरे पास केवल ये पहने हुए कपड़े ही रह गये हैं।"

    यह सुनकर उसका मित्र हँसने लगा। उसको हँसता हुआ देखकर इसको गुस्सा आया। वह बोलाः

    "त मेरा जिगरी दोस्त है। मेरी इस दशा पर तुझे दुःख नहीं होता और ऊपर से मजाक करता है? तुझे तो मेरी हालत देखकर दुःखी होना चाहिए।"

    मित्र ने कहाः "हाँ....'तेरी बात सच्ची है। परन्तु अब मेरी बात भी सुनः मेरे पास पैंसठ बीघा जमीन थी। लगभग तीस मकान थे। मैंने शादी की तो 21 बालक हुए। लगभग तीस बैल और गायें थीं। सिंध नेशनल बैंक में पाँच लाख रुपये थे। मैंने वह सब खो दिया। मैंने अपनी परिस्थिति का स्मरण किया तो मेरी तुलना में तेरा दुःख तो कुछ भी नहीं है। इसलिए मुझे हँसी आ गयी।"

    विचार करें तो संसार और संसार के नश्वर भोग-पदार्थों में सच्चा सुख नहीं है। यह सब आज है और कल नहीं। सब परिवर्तनशील है, नाशवान है।

    एक सेठ प्रतिदिन साधु संतों को भोजन कराता था। एक बार एक नवयुवक संन्यासी उसके यहाँ भिक्षा के लिए आया। सेठ का वैभव-विलास देखकर वह खूब प्रभावित हुआ और विचारने लगाः

    'संत तो कहते हैं कि संसार दुःखालय है, परन्तु यहाँ इस सेठ के पास कितने सारे सोने-चाँदी के बर्तन हैं ! सुख के सभी साधन हैं ! यह बहुत सुखी लगता है।' ऐसा मानकर उसने सेठ से पूछाः

    "सेठजी ! आप तो बहुत सुखी लगते हैं। मैं मानता हूँ कि आपको कोई दुःख नहीं होगा।"

    सेठजी की आँखों में से टप-टप आँसू टपकने लगे। सेठ ने जवाब दियाः "मेरे पास धन-दौलत तो बहुत है परन्तु मुझे एक भी सन्तान नहीं है। इस बात का दुःख है।"

    संसार में गरीब हो या अमीर, प्रत्येक को कुछ न कुछ दुःख अथवा मुसीबत होती है। किसी को पत्नी से दुःख होता है तो किसी की पत्नी नहीं है इसलिए दुःख होता है। किसी को सन्तान से दुःख होता है तो किसी की सन्तान नहीं होती है इस बात का दुःख होता है। किसी को नौकरी से दुःख होता है तो किसी को नौकरी नहीं है इस बात का दुःख होता है।

    कोई कुटुम्ब से दुःखी होता है तो किसी का कुटुम्ब नहीं है इस बात का दुःख होता है। किसी को धन से दुःख होता है तो किसी को धन नहीं है इस बात का दुःख होता है। इस प्रकार किसी-न-किसी कारण से सभी दुःखी होते हैं।

    नानक ! दुखिया सब संसार....

    तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।

    एक बार लक्ष्मण ने भगवान श्री राम से कहाः "कैकेयी को मजा चखाना चाहिए।"

    भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को रोका और कहाः

    "कैकेयी तो मुझे मेरी माता कौशल्या से भी ज्यादा प्रेम करती है। उस बेचारी का क्या दोष? सभी कुछ प्रारब्ध के वश में है। केकेयी माता यदि ऐसा न करती तो बनवास कौन जाता और राक्षसों को कौन मारता? याद रखो कि कोई किसी का कुछ नहीं करता।

    नाच नचे संसार मति, मन के भाई सुभाई।

    होवनहार न मिटे कस, तोड़े यत्न कोढ़ कमाई।।

    जो समय बीत गया वह बीत गया। जो समय बाकी रहा है उसका सदुपयोग करो। दुर्लभ योनि बार-बार नहीं मिलती इसलिए आज से ही मन में दृढ़ निश्चय करो कि 'मैं सत्पुरुषों का संग करके, सत्शास्त्रों का अध्ययन करके, विवेक और वैराग्य का आश्रय लेकर, अपने कर्त्तव्यों का पालन करके इस मनुष्य जन्म में ही मोक्ष पद की प्राप्ति करूँगा.... सच्चे सुख का अनुभव करुँगा।' इस संकल्प को कभी-कभार दोहराते रहने से दृढ़ता बढ़ेगी।

    ॐ साईं राम


    Offline Pratap Nr.Mishra

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    जीवन के भाव सुख और दु:ख
    « Reply #332 on: September 17, 2011, 07:09:29 AM »
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  • ॐ साईं राम

    जीवन के भाव सुख और दु:ख

    स्रोत्र :  धर्म मार्ग

    लेखक : श्रीमान सुरजीत सिंह गाँधी

    नानक ने संसार को दु:खी ही देखा और उद्घोषणा कर दी, नानक दुखिया सब संसार। बुद्ध ने तो यहां तक कह दिया कि दु:ख में अब तक मनुष्य ने जितने आंसू बहाये हैं, वह महासागरों के जल से भी अधिक है क्योंकि जीवन दु:खदायीहै, क्षीणतादु:खदायीहै, रोग दु:खदायीहै, मृत्यु दु:खदायीहै, प्रिय का वियोग दु:खदायीहै, अप्रिय के साथ संयोग दु:खदायीहै और कोई आकांक्षा जिसकी पूर्ति न हो, तो वह भी दु:खदायीहै।

    अध्यात्म हमें ऐसी अंतदर्ृष्टि प्रदान करता है कि हम जीवन की वास्तविकता को समझ सकें। जीवन सिर्फ तृष्णाओंकी पूर्ति हेतु शरीर के साथ ही जीना नहीं है बल्कि अपने को शरीर के धरातल से अलग रखकर जीना ही जीवन की सार्थकता है। तब हम जान पाते हैं कि यथार्थ में प्रबल तृष्णा ही दु:ख का कारण है। इंद्रियों की तृप्ति के प्रबल लालसा ही दु:ख को उत्पन्न करती है। उपनिषदों के अनुसार जो स्थायी [नित्य] है, वह आनंदमय है और जो क्षणभंगुर है [अनित्य एवं अस्थायी] है दु:खदायीहै।

    श्रीमद्भगवतगीतामें श्रीकृष्ण कहते हैं जब कोई मनुष्य अपने मन में इंद्रियों के विषयों का ध्यान करने लगता है, तो उसके प्रति अनुराग पैदा हो जाता है। अनुराग से इच्छा उत्पन्न होती है और इच्छा से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से मूढताउत्पन्न होती है, मूढतासे स्मृति नष्ट हो जाती है। स्मृति के नष्ट होने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि के नाश से व्यक्ति नष्ट हो जाता है।

    इच्छाएं ही मूल है सुख-दु:ख का। इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम इंद्रियों से घृणा करने लगे। इच्छाएं हमें यशस्वी बना सकती हैं या फिर कलंक के गर्त में भी धकेल सकती हैं। इंद्रियों के प्रति समभाव रखना चाहिए। इंद्रियों से घृणा करना भी उतना ही गलत है, जितना उनसे प्रेम करना।

    श्रीकृष्ण कहते हैं इंद्रियांरूपीघोडों को रथ में से खोलकर अलग नहीं कर देना है अपितु मनरूपीलगामों द्वारा उन्हें वश में रखना है। अनुशासित मन वाला मनुष्य जो अपनी इंद्रियों को वश में रखे हुए राग और द्वेष से मुक्त रहकर इंद्रियों के विषय में विचरण करता है, वह आत्मा की पवित्रता को प्राप्त कर लेता है।
    राजा ययातिकी कथा है। ययातिसम्राट था, उसकी सौ रानियां व सौ बेटे थे। ययातिको जब भी मृत्यु लेने आती हर बार राजा ययातिअपने बदले में अपने बेटे को मृत्यु को सौंप देता। इस तरह ययातिकी उम्र जब हजार वर्ष की हो गयी तो उसने मृत्यु से कहा, अब मैं चलने को तैयार हूं इसलिए नहीं कि मेरी इच्छाएं पूरी हो गई है, इच्छाएं तो वैसी की वैसी ही अधूरी हैं, परंतु एक बात स्पष्ट हो गई है कि इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकती। इच्छाओं का भिक्षापात्र कभी नहीं भरेगा। इसमें तली नहीं है, जितना भर लो यह खाली का खाली ही रहेगा।

    ययातिकी कथा से इतना तो स्पष्ट होता ही है कि तृष्णा से मुक्ति ही जीवन को सुखमय और सुगंधित बना सकती है। बुद्ध, महावीर, नानक, कबीर सभी ने एक ही बात पर बल दिया कि जितने भी दोष, पाप, दु:ख पैदा होते हैं, वे सभी संसार के राग से ही पैदा होते हैं और जितना सुख, शांति मिलती है वह सब रागरहितहोने से ही मिलती है।

    आज हमारा नितांत भौतिकतावादीदृष्टिकोण हमें हमारे अध्यात्म से ही दूर करता जा रहा है। मानव के अध्यात्म से दूर होने के कारण ही उसकी दु:ख सहने की क्षमताएं कम होती जा रही हैं। रोजमर्रा की भाग-दौड भरी जिंदगी में छोटी-छोटी विफलताओंपर दु:ख का बोझ अब कुछ ज्यादा ही महसूस होने लगा है। अप्राप्य वस्तु की अभिलाषा और उसे पाने के समयांतर में तनाव इतना बढ जाता है कि व्यक्ति इससे बचने हेतु अध्यात्म के बजाए मौत को चुनता है।
    मनोवैज्ञानिकों का तर्क है कि दुनिया की 70प्रतिशत बीमारियों के लिए लोग स्वयं जिम्मेदार हैं। इन विषम स्थितियों में अध्यात्म ही एकमात्र सहारा है जो दु:ख के उन पलों में मरहम का कार्य करता है, जब चारों ओर से व्यक्ति हैरान, परेशान तथा अपने आपको मुसीबतों से घिरा पाता है।

    अध्यात्म की तरफ लौटना दु:ख को समाप्त करना नहीं अपितु यह हमें ऐसी अंतदर्ृष्टि प्रदान करता है हम जान सकें कि प्रत्येक वह वस्तु जो सुखात्मकअनुभूति की परिचायक है, हमारे पास है, उसके खो जाने की चिंता एवं भय ही दु:ख का मूल है। सुख और दुख तो जीवन का चक्र है। हर सुख के बाद दु:ख का और हर दु:ख के बाद सुख विशेष आमंत्रण है। अध्यात्म हमें सक्षम बनाता है जिससे हममें सुख एवं दु:ख के प्रति समभाव उत्पन्न होने लगता है। इस स्थिति में मनुष्य राग,भय और क्रोध से मुक्त हो जाता है, तब वह मनुष्य स्थिरबुद्धि मुनि कहलाता है।



    ॐ साईं राम

    Offline Puja A.

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #333 on: September 19, 2011, 11:26:43 PM »
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  • I just joined the Sai Baba forum.  I after reading a few stories have so much hope to connect with God and to get to know Sai Baba's other followers. Om Sai Sai Ram.

    Offline Pratap Nr.Mishra

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    • राम भी तू रहीम भी तू तू ही ईशु नानक भी तू
    Re: SMALL STORIES
    « Reply #334 on: September 20, 2011, 12:48:34 AM »
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  • ॐ साईं राम

    पूजाजी जय साईं राम ,

    सर्वप्रथम इस द्वारकामाई में आपका हार्दिक अभिनन्दन . पूजाजी आपपे बाबा ने खुद ही रहम की वर्षा की है जिसकी वजह से ही आप उनके करीब आने में सफल हुई . बस बाबा के दरबार में आ गई है तो अब केवल उनके चरणों को ही स्वर्मान्य समझते हुए हर समय पकड्ये रहिएगा . बाबा अपने पास बुलाते भी है ,प्यार भी करते है और समय-समय पर हमलोगों की परीक्षा भी लेते रहते है . परीक्षा के समय केवल साईं पर विश्वास और द्रढ़ आस्था ही पास होने की एकमात्र कुंजी है.

    और रही बात बाबा को जानने की तो बाबा ने जब आपको अपने चरणों में शरण दी है तो ज्ञान भी वही देंगे. हां एक बात अवश्य कहना चाहूँगा की बहन बाबा को जानने की जगह बाबा की जानने पे ही अपना ध्यान लगाएंगी तो आनंद के सागर में ही सदा गोते लगते रहेंगी ये मेरा द्रढ़ विस्वास है .

    आप सबसे प्रथम श्री साईं सत्चरित को अध्यन करना प्रारंभ कीजिये . शायद प्रथम बार आपको ये वो एहसास न हो पर लगातार अध्यन से आप फिर जिस आनंद की अनुभूति का अनुभव करेंगी उसको वर्णन करना संभव नहीं है. श्री साईं सत्चरित ही आपको सही बाबा के वचनों और विचारो को कहने और समझाने में सक्षम है और कोई नहीं . हम मनुष्य कही न कही किसी न किसी भावना से ग्रषित होके  बाबा के सही वचनों को न ही समझ पते है न ही सही तरीके से ही समझा सकते है.
    बहन ये आपकी बाबा के साथ प्यार की शुरुवात है इसलिए मैंने इतना कुछ कहना उचित समझा . मेरा उदेश्य केवल आपको बाबा की और ही ले जाना है नाकि बाबा को  जानने की ओर.

    इस माँ के आँचल में आपको वो सुख की प्राप्ति होगी जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी . बाबा की लीलाओं का अब आनंद उठाना शुरू कर दीजिये .

    साईं राम 

    I just joined the Sai Baba forum.  I after reading a few stories have so much hope to connect with God and to get to know Sai Baba's other followers. Om Sai Sai Ram.

    Offline PiyaSoni

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    Re: SMALL STORIES - Two Frogs
    « Reply #335 on: September 20, 2011, 01:29:06 AM »
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  • Two frogs accidentally fell into a huge, tall bowl of cream that was kept in the floor of a restaurant. For a long time, the frogs tried helplessly jumping out of the bowl, however it was impossible for them to jump that high while swimming in the viscous, slippery cream.

    Finally, the first frog said "I have tried enough. I have thought about the situation - there is no way out. We are going to d...ie. I am going to stop struggling as it of no use. I suggest you give up too.” It gave up the struggle, became fully submerged in the cream, and soon died.

    The second frog said "I cannot see a way out of this this moment. I am however going to attempt getting out until I exhaust the last ounce of energy in my body". The second frog kept on paddling and trying to jump out of the bowl of cream.

    After a couple of hours, the cream started to solidify, and it became easier and easier for the frog to swim in it. The frog's continuos paddling was starting to churn the cream into butter!! With little more effort, the frog was able to jump out, while sitting on the butter that had now completely solidified!

    Moral of the story:

    1) Your future may not appear bright today. You may not be able to see the light in the end of your tunnel yet. Don't lose hope too soon. Things will change for the better.

    2) Give up your anxiety, fear and worry, and stay positive. Put your 100% attention to the tasks that you have currently undertaken. Things will work itself out.

    3) Do not listen to the people who ask you to give up on your dreams. Listen to your inner voice instead.

    4) You may be very close to success and yet not know it. Don't give up.

    5) Nothing is lost until you say it is.


    ( Found on Net, Sharing )
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

    Offline PiyaSoni

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    Keep your dream..
    « Reply #336 on: September 21, 2011, 03:16:57 AM »
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  • I have a friend named Monty Roberts who owns a horse ranch in San Ysidro. He has let me use his house to put on fund-raising events to raise money for youth at risk programs.

    The last time I was there he introduced me by saying, “I want to tell you why I let Jack use my horse. It all goes back to a story about a young man who was the son of an itinerant horse trainer who would go from stable to stable, race track to race track, farm to farm and ranch to ranch, training horses. As a result, the boy’s high school career was continually interrupted. When he was a senior, he was asked to write a paper about what he wanted to be and do when he grew up.

    “That night he wrote a seven-page paper describing his goal of someday owning a horse ranch. He wrote about his dream in great detail and he even drew a diagram of a 200-acre ranch, showing the location of all the buildings, the stables and the track. Then he drew a detailed floor plan for a 4,000-square-foot house that would sit on a 200-acre dream ranch.

    “He put a great deal of his heart into the project and the next day he handed it in to his teacher. Two days later he received his paper back. On the front page was a large red F with a note that read, `See me after class.’

    “The boy with the dream went to see the teacher after class and asked, `Why did I receive an F?’

    “The teacher said, `This is an unrealistic dream for a young boy like you. You have no money. You come from an itinerant family. You have no resources. Owning a horse ranch requires a lot of money. You have to buy the land. You have to pay for the original breeding stock and later you’ll have to pay large stud fees. There’s no way you could ever do it.’ Then the teacher added, `If you will rewrite this paper with a more realistic goal, I will reconsider your grade.’

    “The boy went home and thought about it long and hard. He asked his father what he should do. His father said, `Look, son, you have to make up your own mind on this. However, I think it is a very important decision for you.’ “Finally, after sitting with it for a week, the boy turned in the same paper, making no changes at all.

    He stated, “You can keep the F and I’ll keep my dream.”

    Monty then turned to the assembled group and said, “I tell you this story because you are sitting in my 4,000-square-foot house in the middle of my 200-acre horse ranch. I still have that school paper framed over the fireplace.” He added, “The best part of the story is that two summers ago that same schoolteacher brought 30 kids to camp out on my ranch for a week.” When the teacher was leaving, he said, “Look, Monty, I can tell you this now. When I was your teacher, I was something of a dream stealer. During those years I stole a lot of kids’ dreams. Fortunately you had enough gumption not to give up on yours.”

    “Don’t let anyone steal your dreams. Follow your heart, no matter what.”


    Author Unknown
    « Last Edit: September 22, 2011, 02:40:28 AM by piyagolu »
    "नानक नाम चढदी कला, तेरे पहाणे सर्वद दा भला "

    Offline sateesh

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    • OM SAIRAM
    Re: SMALL STORIES
    « Reply #337 on: September 22, 2011, 02:40:25 AM »
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  • Little Things To Remember

       I find what I look for in people. If I look for God, I find God. If I look for bad qualities, I find them. I, in a sense, select what I expect, and I receive it. A life without challenges would be like going to school without lessons to learn. Challenges come not to depress or get me down, but to master and to grow and to unfold thereby.

    In the Father's wise and loving plan for me, no burden can fall upon me, no emergency can arise, no grief can overtake me, before I am given the grace and strength to meet them.

    A rich, full life is not determined by outer circumstances and relationships. These can be contributory to it, but cannot be the source. I am happy or unhappy because of what I think and feel.

    I can never lose anything that belongs to me, nor can I posses what is not really mine.
         
     To never run from a problem: either it will chase me or I will run into another just like it, although it may have a different face or name.

    To have no concern for tomorrow. Today is the yesterday over which I had concern.

    To never bang on a closed door: Wait for it to open and then go through it.

    A person who has come into my life has come either to teach me something, or to learn something from me    
              


    Sooo I think now u guys got it what to do.. :)
    GURUBHIYO NAMAHA:

    Offline ShAivI

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    • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
    Re: SMALL STORIES
    « Reply #338 on: May 08, 2012, 01:02:29 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!


    रघुकुल में एक प्रतापी राजा हुए लेकिन उनके शरीर में कोढ़ हो गया। बड़े पीड़ित हो रहे थे।
    गुरु वशिष्ठजी के चरणों में पड़ेः "गुरु महाराज ! यह पीड़ा....?"

    गुरु महाराज ने उनकी आँखों पर हाथ रख दिया। फिर बोलेः "अब दूर देख। क्या दिखता है?"

    "एक बड़ा चमकता हुआ सुनहरा पहाड़। दूसरा कोयले जैसा काला पहाड़ दिख रहा है।"

    "एक है तेरे पुण्यों का पहाड़ जिससे तुझे राज्य, धन, सत्ता, वैभव और यश मिला है।
    दूसरा है तेरे पापों का पहाड़ जिसके कारण यह रोग है, चिन्ता है, परेशानी है।"

    "गुरुदेव ! इसे मिटाने का उपाय?"

    "यह तो मेरे बस की बात नहीं है प्रभो !"

    "तो महल के पीछे जो कचरा पड़ा है वह सब खा लो।"

    "हे मुनिश्वर ! वह भी नहीं खा सकता हूँ। कोई सरल उपाय बताओ नाथ !"

    वशिष्ठजी ने क्षणभर अपना चित्त शांत किया, उपाय खोज लिया। बोलेः "अपनी विधवा भाभी के महल के
    प्रांगण में शाम को छः बजे बिस्तर लगाकर सो जा।"

    रघुवंशी राजा के पद पर.... विधवा भाभी के महल में....? लोग क्या कहेंगे? लेकिन दूसरा कोई उपाय था नहीं।
     राजा शाम को जाकर प्रांगण में लेट गये। वहाँ से गुजरते लोग कहने लगेः "ये देखो। बूढ़े की बुद्धि बिगड़ी है।"
    जिसको जैसा सूझा ऐसा बकने लगे। रात को दस बज गये। राजा चुपचाप अपने महल में लौट आये। दूसरे दिन
    देखा तो शरीर के सातवें भाग का कोढ़ गायब हो गया। ऐसे प्रतिदिन प्रांगण में जाते और एक-एक हिस्सा
    कोढ़ खत्म होता जाता। चौथे दिन रोग का काफी हिस्सा गायब हो गया। अशांति भी कम हो गयी। फिर
    वशिष्ठजी ने राजा की आँखों के ऊपर हाथ रखकर देखने को कहा तो राजा को दिखायी दिया कि पुण्यों का
    पहाड़ वैसे ही चमक रहा है और पापों का काला पहाड़ बिल्कुल छोटा-सा रह गया है।

    वशिष्ठजी बोलेः "जिन्होंने तुम पर दोष का आरोप लगाया, तुम्हारी निन्दा की, तुमको दुश्चरित्र माना वे
    लोग तुम्हारे प्रारब्ध का हिस्सा अपने प्रारब्ध में लेते गये। तुम शुद्ध होते गये।"

    दो दिन और बीते। वह काला पहाड़ बिलकुल छोटे-से कंकड़ जैसा रह गया। राजा के शरीर पर से कोढ़ गायब
    हो गया, केवल चेहरे पर छोटा सा चिह्न रह गया। उसमें कोई जन्तु हलचल कर रहा था।

    "गुरुजी ! वह पूरा पहाड़ चला गया और कंकड़ मात्र रह गया है। चेहरे पर भी छोटा-सा निशान बचा है
    कोढ़ का और चित्त में थोड़ी-सी उदासी है।"

    "वह मेरे हिस्से का है लेकिन तू सदाचारी, पवित्र आदमी है और तुझ पर लांछन लगाकर तेरी निन्दा
    करूँ और पाप अपने सिर पर लूँ? यह अब तू ही भोग ले।"

    जब-जब महापुरुष पृथ्वी पर आये हैं – चाहे वे वशिष्ठजी हों चाहे रामकृष्ण हों, रमण महर्षि हों चाहे
    रामतीर्थ हों, बुद्ध हों, चाहे महावीर हों, कबीर जी हों चाहे नानकदेव हों, सुकरात हों चाहे वे क्राइस्ट हों –
    उनके निन्दक खड़े हो ही गये हैं। उन महापुरुषों के संचित कर्म तो ज्ञान से जल जाते हैं और उनके क्रियमाण
    कर्म उनकी प्रशंसा और निन्दा करने वाले लोग जाते हैं।

    जो तां की सेवा करे संचित सुकृत सो देत।

    दोषदृष्टि पुनि तामें पाप फल वहि लेत।।

    बाकी बचे हुए प्रारब्ध कर्म ज्ञानी हँसते-हँसते भोगते हैं। वे समझते हैं कि प्रतिकूलता-अनुकूलता आती है
    और वह जाती भी है। आने जाने वाली चीज मुझ अचल को क्या करेगी? ऐसा समझकर ज्ञानी हर हाल में
    ज्यों-के-त्यों रहते हैं। अज्ञानी अनुकूलता-प्रतिकूलता में उलझ जाते हैं।

    संचित कर्मों का संग्रह ज्ञानाग्नि से भस्म हो जाता है। क्रियमाण कर्म में कर्तृत्वबुद्धि नहीं रहती। इसलिए
    क्रियमाण कर्मों का फल लोग ले जाते हैं।

    दो आदमी कहीं जा रहे हैं। रास्ते में थके हैं। दोनों को धूप ने, भूख-प्यास ने, कंकड़-पत्थर ने तंग किया है।
    एक आदमी को पता नहीं है इसलिए दुःखी हो रहा है किः "हाय रे ! थक गये, मर गये। अभी कितना दूर है,
     क्या पता।" ऐसा करके वह दुःख को ज्यादा बढ़ाता है। दूसरे को पता है कि अब एक ही किलोमीटर जाना है।
    वह कहता हैः

    "इतना जब चल लिया तो एक किलोमीटर क्या है? चल लेंगे, क्या हर्ज है?" एक चिन्तित है दूसरा निश्चिन्त है।"

    ऐसे ही जिनको बोध हो गया है वे ज्ञानी भी संसाररूपी मार्ग में चलते हैं और हम लोग भी चलते हैं। हम लोगों
    को पता नहीं लेकिन ज्ञानी के लिए सब रहस्य प्रकट होते हैं।

    ....तो कृपानाथ ! जब आपके जीवन में प्रतिकूलता आ जाये तो कृपा करना आप पर। अनुकूलता-प्रतिकूलता
    को इतना महत्त्व नहीं देना कि आप उन्हीं में खो जायें। अगर इस विषय में आप एकाग्रता लगायेंगे तो जैसे
    कड़ी सुपारी बादाम के मेल से पिघल जाती है ऐसे ही आपके कड़े कर्म ज्ञान के बादाम से पिघल जायेंगे।

    जिन महापुरुषों को योग की युक्ति आ गयी उनकी कृपा का प्रसाद आपके जीवन में उतर जायेगा तो आपके
    लिए मोक्षमार्ग आसान हो जायेगा।



    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!!!

     
    « Last Edit: May 08, 2012, 02:42:46 AM by ShAivI soohnam »

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    « Reply #339 on: May 08, 2012, 01:11:11 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    एक गांव मे एक मंदिर मे एक पुजारी था और बो बड़े नियम से भगवान की पूजा
    करता था और उसको या गांव वालो को कोई भी परेशानी होती थी तो बो कहता था धैर्य
    रखो भगवान सब ठीक कर देगा और सचमुच परेशानिया ठीक हो जाती थी .......

    एक बार गांव मे बहुत जोर की बाढ़ आ गयी और सब डूबने लगा तो लोग पुजारी के पास गए तो उसने
    कहा की धैर्य रखो सब ठीक हो जायेगा मैं भगवान की इतनी पूजा करता हूँ सब ठीक हो जायेगा ,
    लेकिन पानी बढ़ने लगा और गांव वाले भागने लगे और पुजारी से बोले की अब तो पानी मंदिर
    मे भी आने लगा हें आप भी निकल चलो यहाँ से लेकिन पुजारी ने फिर बही कहा की मैं इतनी
    पूजा करता हूँ तो मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम लोग जाओ मैं नहीं जाऊँगा.....

    फिर कुछ दिनोंमे पानी और बढ़ा और मंदिर मे घुस गया तो पुजारी मंदिर पर चढ गया ...
    फिर उधर से एक नाव आई और उसमे कुछ बुजुर्ग लोगो ने पुजारी से कहा की सब लोग भाग गए हें
    और यह आखिरी नाव हें आप भी आ जाओ इसमें क्योकि पानी और बढ़ेगा ऐसा सरकार का कहना हें
     नहीं तो आप डूब जाओगे तो पुजारी ने फिर कहा की मेरा कुछ नहीं होगा क्योकि मैने इतनी
    पूजा करी हें जिंदगी भर तो भगवान मेरी मदद करेगे और फिर बो नाव भी चली गयी ......

    कुछ दिनों मे और पानी और बढ़ा तो पुजारी मंदिर मे सबसे ऊपर लटक गया और पानी जब
    उसकी नाक तक आ गया तो बो त्रिशूल पर लटक गया और भगवान की प्रार्थना करने लगा
    की भगवान बचाओ मैने आपकी बहुत पूजा की हें तो कुछ देर मे एक सेना का हेलिकॉप्टर
    आ गया और उसमे से सैनिको ने लटक कर हाथ बढ़ाया और कहा की हाथ पकड़ लो किन्तु
    फिर बो पुजारी उनसे बोला की मैने जिंदगी भर भगवान की पूजा करी हें मेरा कुछ नहीं होगा
    और उसने किसी तरह हाथ नहीं पकड़ा और परेशान होकर सैनिक चले गए ...

    फिर थोड़ी देर मे पानी और बढ़ा और उसकी नाक मे घुस गया और पुजारी मर गया......

    मरने के बाद पुजारी स्वर्ग मे गया और जैसे ही उसे भगवान जी दिखे तो बो चिल्लाने लगा
    की जिंदगी भर मैने इतनी इमानदारी से आप लोगो की पूजा करी फिर भी आप लोगो ने मेरी
    मदद नहीं की ...

    तो भगवान जी बोले की अरे पुजारी जी जब पहली बार जो लोग आप से चलने को कह रहे थे तो
    बो कौन था अरे बो मैं ही तो था ...फिर नाव मे जो बुजुर्ग आप से चलने को कह रहे थे बो कौन था
    बो मैं ही तो था और फिर बाद मे हेलिकॉप्टर मे जो सैनिक आप को हाथ दे कर कह रहा था बो कौन
     था बो मैं ही तो था किन्तु आप मुंझे उस रूप मे पहचान ही नहीं पाए तो मैं क्या करू ..... अरे मैं
    जब किसी मनुष्य की मदद करूँगा तो मनुष्य के रूप मे ही तो करूँगा चाहे बो रूप डॉक्टर का हो या
    गुरु का हो या किसी अच्छे इंसान का या माँ , बाप भाई या बहन का या दोस्त का लेकिन उस रूप मे
    आप लोग मुंझे पहचान ही नहीं पाते हो तो मैं क्या करू ..... मेरी बाणी को पहचानने के लिए ध्यान
    बहुत जरूरी हें और योग भी तभी इंसान मेरी बाणी को इंसान मे भी पहचान जायेगा क्योकि सच्चे
    आदमियो मे मेरी ही बाणी होती हें.

    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!!!

     
    « Last Edit: May 08, 2012, 02:36:22 AM by ShAivI soohnam »

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #340 on: May 08, 2012, 01:15:19 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    एक बार एक भला आदमी नदी किनारे बैठा था। तभी उसने देखा एक
    बिच्छू पानी में गिर गया है। भले आदमी ने जल्दी से बिच्छू को हाथ में उठा लिया।
    बिच्छू ने उस भले आदमी को डंक मार दिया। बेचारे भले आदमी का हाथ काँपा और बिच्छू
    पानी में गिर गया।
     
    भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए दुबारा उठा लिया। बिच्छू ने दुबारा
    उस भले आदमी को डंक मार दिया। भले आदमी का हाथ दुबारा काँपा और बिच्छू पानी
     में गिर गया।
     
    भले आदमी ने बिच्छू को डूबने से बचाने के लिए एक बार फिर उठा लिया। वहाँ
    एक लड़का उस आदमी का बार-बार बिच्छू को पानी से निकालना और बार-बार
    बिच्छू का डंक मारना देख रहा था। उसने आदमी से कहा, "आपको यह बिच्छू
    बार-बार डंक मार रहा है फिर भी आप उसे डूबने से क्यों बचाना चाहते हैं?"

    भले आदमी ने कहा, "बात यह है बेटा कि बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और
    मेरा स्वभाव है बचाना। जब बिच्छू एक कीड़ा होते हुए भी अपना स्वभाव नहीं
    छोड़ता तो मैं मनुष्य होकर अपना स्वभाव क्यों छोड़ूँ?"
     
    मनुष्य को कभी भी अपना अच्छा स्वभाव नहीं भूलना चाहिए।


    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम!!!

     

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #341 on: May 08, 2012, 03:02:19 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    A man was walking on the shaking bridge .

    He prayed for help .....

    He saw GOD on the other side of the bridge
    & asked GOD to come near.........

    but GOD didn't come, man got angry..... Started shouting & abusing,

    With great difficulty he crossed half of the bridge
    & asked GOD again to come near but GOD didn't come .

    Man got more angry & kept shouting & abusing !!!

    He crossed the bridge & reached to other side
    & saw GOD holding the broken bridge...

    Trust him .....His ways are amazing........

    GOD is Great !!!

    HIS  ways may be different but HE always shows the way !!!!!!!!!!!!!


    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM!!!

     

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #342 on: May 08, 2012, 03:09:01 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    The Tailor's Needle..

    A tailor was at work. He took a piece of cloth and with a pair of shining,
    costly, scissors, he cut the cloth into various bits.

    Then he put the pair of scissors at his feet. Then he took a small needle
    and thread and started to sew the bits of cloth, into a fine shirt. When the
    spell of sewing was over, he stuck the needle on to his turban.

    The tailor's son who was watching it asked him: "Father, the scissors
    are costly and look so beautiful. But you throw them down at your feet.
    This needle is worth almost nothing; you can get a dozen for an Anna.
    Yet, you place it carefully on your head itself. Is there any reason for
    this illogical behaviour?"

    "Yes, my son. The scissors have their function, no doubt; but they only
    cut the cloth into bits. The needle, on the contrary, unites the bits and
    enhances the value of the cloth. Therefore, the needle to me is more
    precious and valuable. The value of a thing depends on its utility, son,
    not on its cost-price or appearance."

    Similarly, there are two classes of people in the world-those who create
    dissensions and disharmony, who separate man from man; and those
    who bring about peace and harmony, who unite people.

    The former are generally powerful politicians, kings and unethical business
    men; and the latter are usually the poor devotees of God, the penniless
    wandering monks, and mendicants. It is true that the Lord make use of
     both to carry on his function of providing the field for the evolution of
    individual souls, but He throws down on the dust the former, who create
    wars and disharmony; and keeps the poor, pious devotee over
    His own head….!

    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM!!!

     

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #343 on: May 08, 2012, 03:14:03 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    Old story with new moral. .

    There were once 2 brothers who lived on the 80th level. On coming home
    one day, they realized to their dismay that the lifts were not working
    and that they have to climb the stairs home. After struggling to the
    20th level, panting and tired, they decided to abandon their bags and
    come back for them the next day. They left their bags then and climbed on.

    When they have struggled to the 40th level, the younger brother started
    to grumble and both of them began to quarrel. They continued to climb the
    flights of steps, quarreling all the way to the 60th floor. They then realized
    that they have only 20 levels more to climb and decided to stop quarreling
    and continue climbing in peace. They silently climbed on and reached their
    home at long last. Each stood calmly before the door and waited for the
    other to open the door. And they realized that the key was in their bags
    which was left on the 20th floor

    This story is reflecting on our life...many of us live under the expectations
    of our parents, teachers and friends when young. We seldom get to do
    the things that we really like and love and are under so much pressure
    and stress so that by the age of 20, we get tired and decided to dump
    this load. Being free of the stress and pressure, we work enthusiastically
    and dream ambitious wishes. But by the time we reach 40 years old,
    we start to lose our vision and dreams. We began to feel unsatisfied
    and start to complain and criticize.

    We live life as a misery as we are never satisfied. Reaching 60, we realize
    that we have little left for complaining anymore, and we began to walk
    the final episode in peace and calmness. We think that there is nothing
    left to disappoint us, only to realize that we could not rest in peace
    because we have an unfulfilled dream ...... a dream we abandoned
    60 years ago.

    So what is your dream?
    Follow your dreams, so that you will not live with regrets.

    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM!!!

     

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    Re: SMALL STORIES
    « Reply #344 on: May 08, 2012, 03:17:29 AM »
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  • OM SAI RAM !!!

    NEVER JUDGE ANYONE WITH OUT KNOWING

    A doctor entered the hospital in hurry after being called in for an
    urgent surgery. He answered the call asap, changed his clothes
    and went directly to the surgery block. He found the boy’s father
    going and coming in the hall waiting for the doctor. Once seeing him,
    the dad yelled:

    “Why did you take all this time to come? Don’t you know that my son’s life is in danger?
    Don’t you have the sense of responsibility?”

    The doctor smiled and said:

    “I am sorry, I wasn’t in the hospital and I came the fastest I could after
    receiving the call…… And now, I wish you’d calm down so that I can do my work”

    “Calm down?! What if your son was in this room right now, would you
    calm down? If your own son dies now what will you do??”
    said the father angrily

    The doctor smiled again and replied: “I will say what Job said in the
    Holy Book “From dust we came and to dust we return, blessed be the
    name of God”. Doctors cannot prolong lives. Go and intercede for your son,
    we will do our best by God’s grace”

    “Giving advice when we’re not concerned is so easy” Murmured the father.

    The surgery took some hours after which the doctor went out happy,

    “Thank goodness!, your son is saved!” And without waiting for the father’s
    reply he carried on his way running. “If you have any question,
    ask the nurse!!”

    “Why is he so arrogant? He couldn’t wait some minutes so that I ask about
    my son’s state” Commented the father when seeing the nurse minutes
    after the doctor left.

    The nurse answered, tears coming down her face: “His son died yesterday
    in a road accident, he was in the burial when we called him for your son’s
    surgery. And now that he saved your son’s life, he left running to finish
    his son’s burial.”

    Moral:- NEVER JUDGE ANYONE BECAUSE You never know how their life is
    & as to what is happining or what they’re going through.
    Just think ABOUT this moment.

    OM SAI RAM, SRI SAI RAM, JAI JAI SAI RAM!!!

     

    JAI SAI RAM !!!

     


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