ॐ साईं राम !!!
एक छोटी सी घटना, और मैं अपनी बात पूरी करूं।
बुद्ध के पास एक राजकुमार संन्यस्त हुआ।
उसका नाम था श्रोण।
वह बहुत भोगी आदमी था।
भोग में जिंदगी बिताई।
फिर त्यागी हो गया, फिर संन्यस्त हो गया।
और जब भोगी त्यागी होता है तो अति पर चला जाता है।
वह भी चला गया।
अगर भिक्षु ठीक रास्ते पर चलते, तो वह आड़े-टेढ़े रास्ते पर चलता।
अगर भिक्षु जूता पहनते, तो वह कांटों में चलता।
भिक्षु कपड़ा पहनते, तो वह नग्न रहता।
भिक्षु एक बार खाना खाते, तो वह दो दिन में एक बार खाना खाता।
सूख कर हड्डी हो गया, चमड़ी काली पड़ गई।
बड़ा सुंदर युवक था, स्वर्ण जैसी उसकी काया थी।
दूर-दूर तक उसके सौंदर्य की ख्याति थी। पहचानना मुश्किल हो गया।
पैर में घाव पड़ गये।
बुद्ध छः महीने बाद उसके द्वार पर गये।
उसके झोपड़े पर उन्होंने जाकर कहा, ‘श्रोण, एक बात पूछने आया हूं।
मैंने सुना है कि जब तू राजकुमार था तब तुझे सितार बजाने का बड़ा शौक था, बड़ा प्रेम था।
मैं तुझसे यह पूछने आया हूं कि सितार के तार अगर बहुत ढीले हों तो संगीत पैदा होता है?’
श्रोण ने कहा, ‘कैसे पैदा होगा? सितार के तार ढीले हों तो संगीत पैदा होगा ही नहीं।’
बुद्ध ने कहा, ‘और अगर तार बहुत कसे हों तो संगीत पैदा होता है?’
श्रोण ने कहा, ‘आप भी कैसी बात पूछते हैं! अगर बहुत कसे हों तो टूट ही जायेंगे।’
तो बुद्ध ने कहा, ‘तू मुझे बता, कैसी स्थिति में संगीत श्रेष्ठतम पैदा होगा?’
श्रोण ने कहा, ‘एक ऐसी स्थिति है तारों की, जब न तो हम कह सकते हैं कि वे बहुत ढीले हैं
और न कह सकते हैं कि बहुत कसे हैं; वही समस्थिति है। वहीं संगीत पैदा होता है।’
बुद्ध उठ खड़े हुए।
उन्होंने कहा, ‘यही मैं तुझसे कहने आया था, कि जीवन भी एक वीणा की भांति है।
तारों को न तो बहुत कस लेना, नहीं तो संगीत टूट जायेगा। न बहुत ढीला छोड़ देना,
नहीं तो संगीत पैदा ही न होगा।
और दोनों के मध्य एक स्थिति है, जहां न तो त्याग है और न भोग; जहां न तो पक्ष है न विपक्ष;
जहां न तो कुआं है न खाई; जहां हम ठीक मध्य में हैं। वहां जीवन का परम-संगीत पैदा होता है।’
यह सूफी कथा भी उसी परम संगीत के लिए है।
न तो नियमों को तोड़ कर उच्छृंखल हो जाना और न नियमों को मान कर गुलाम हो जाना।
दोनों के मध्य नाजुक है रास्ता।
इसलिए फकीरों ने कहा है: खड्ग की धार है।
इतना बारीक है, जैसे तलवार की धार हो।
मगर अगर समझ हो, तो वह पतला सा रास्ता राजपथ हो जाता है।
ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!