सुंदरा को वह औरत अपनी माँ जैसी लगती, हालाँकि उसे अपनी माँ की कोई याद नहीं थी। वह सोचता, शायद माँ ऐसी ही होती होगी। एक दिन शाम को बड़ा शेठ, शेट्टी के ठेले पर आया। शेट्टी को डाँटते हुए वह बोला- 'शेट्टी चार महीने हो गए तूने अभी तक पिछला हफ्ता नहीं चुकाया।' शेट्टी बोला- 'शेठ, बड़ी बेटी बहुत बीमार है। दो महीने हो चले हैं, उसे सरकारी अस्पताल में दाखिल करवा रखा है। जो कमाई होती है, दवा-दारू में निकल जाती है। बस, इसीलिए देर हो गई है। मैं जल्दी ही कुछ इंतजाम करता हूँ।'
'ये तो तू पिछले हफ्ते से कहे है। तुझ पर पूरा हजार रुपया चढ़ गयेला है। अगर अगले हफ्ते तक पूरा पैसा नहीं मिला तो मैं ठेला किसी और को दे दूँगा।' कहता हुआ बड़ा शेठ दूसरे ठेलों की तरफ बढ़ गया। सुंदरा पास खड़ा सब सुन रहा था। उसे यह सोचकर फिक्र होने लगी कि अगर बड़े शेठ का पैसा नहीं चुकाया गया तो फिर उसका क्या होगा। इस बात को लेकर वह दिनभर अनमना बना रहा।
उस दिन सोमवार था।
बड़े शेठ का पैसा चुकाने में अब सिर्फ तीन दिन बचे थे। शेट्टी बहुत परेशान था। उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। उसे यह चिंता खाए जा रही थी कि अगर बड़े शेठ ने किसी और को ठेला दे दिया, तो उसके तो खाने के लाले पड़ जाएँगे।
वह सोचता हुआ अपने ठेले के पास खड़ा था, तभी बड़ा शेठ उधर से निकला। शेट्टी को देखकर वह रुक गया और बोला- 'शेट्टी तेरे हजार रुपए मिल गए हैं। इस छोकरे के हाथ इतनी रकम क्यों भिजवाई? अगर वो इसे लेकर कहीं भाग जाता तो?' शेट्टी अचकचाकर बड़े शेठ का मुँह देखने लगा। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। कभी वह बड़े शेठ की तरफ देखता और कभी सुंदरा की तरफ, जो वहीं जमीन पर कप-गिलास धोने में लगा था।
'इन छोकरों का इतना विश्वास मत किया कर, नहीं तो एक दिन पछताएगा।' कहता हुआ बड़ा शेठ एक तरफ को चल दिया। अब शेट्टी सुंदरा की ओर मुड़ा। वह चुपचाप बाल्टी में डाले गिलासों को धो रहा था।
'तुझे इतने पैसे कहाँ से मिले रे?' शेट्टी उससे बोला।
'शेठ, शनिवार की रात में बड़े स्टेशन की तरफ निकल गया था। उसके सामने के मैदान में मेला लगा है। घूमता-घामता मैं भी मैदान में चला गया। वहाँ एक जगह मैंने बड़ी भीड़ देखी। सब लोग एक घेरा बनाकर तमाशा देख रहे थे। बड़े घेरे की बीच की जगह पर दस-बाहर लड़के साइकल चला रहे थे। एक आदमी हाथ में भोंपू लिए चिल्ला रहा था-'हजार रुपए...हजार रुपए का इनाम है भाइयों। जो सबसे ज्यादा देर तक साइकल चलाएगा, उसे हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा।'
'तो?' शेट्टी ने पूछा।
'तो मैंने उस आदमी से पूछा, क्या मैं भी साइकल चला सकता हूँ।'
'जरूर, जरूर...।' उस आदमी ने कहा और एक ओर पड़ी साइकलों की ओर इशारा करके कहा- 'उठा ले, एक साइकल और हो जा शुरू।'
'मैंने साइकल उठाई और घेरे के चक्कर काटने लगा। पूरी रात मैं साइकल चलाता रहा और अगले दिन दोपहर तक मैंने साइकल नहीं छोड़ी। तब तक सभी लड़के थककर बैठ गए थे। बस, एक था जो मेरे साथ-साथ चलाता रहा था। लेकिन दोपहर को वह भी बेहोश होकर गिर पड़ा। उसके बाद मैंने दो चक्कर और लगाए और इनाम जीत लिया। कुछ और लोगों ने भी मुझे इनाम दिया।' शेट्टी उसको देखे जा रहा था- थोड़े आश्चर्य, थोड़ी खुशी और थोड़ी आत्मग्लानि के साथ।
'सुंदरा! तू सचमुच सुंदर है। बहोत-बहोत सुंदर है तू...।' और उसने उसे उठाकर अपनी छाती से लगा लिया। आज पहली बार उसे सुंदरा का चेहरा बहुत खूबसूरत लग रहा था।
और आगे............