बुद्घिमान मन्त्री
एक राजा के तीन पुत्र थे । उसका प्यार तीनों पुत्रों में समान था । पर बड़े बेटे से अधिक प्यार करता था ।
बूढ़ा होने पर राजा ने राजगद्दी बड़े पुत्र को दे दी । इससे दोनों छोटे पुत्र दुखी हो गये । राजा नहीं चाहता था कि उसके मरने के बाद वे आपस में लड़े । इसलिये एक दिन अपने पुत्रों को बुलाकर उसने कहा, मैं राजगद्दी तो नहीं बाँट सकता क्योंकि प्रजा उसके साथ जुड़ी है । मैं अपनी निजी सम्पत्ति तुम तीनों में बाँट देना चाहता हूँ ।
राजा ने बड़े बेटे को आधा भाग, मँझले को उसका आधा भाग और छोटे को उसका भी आधा भाग देने को कहा । राजा ने इस काम के लिये अपने मन्त्री को जिम्मेदारी सौँप दी ।
राजा के मरने के बाद धन तो आसानी से बँट गया । पर समस्या जब हुई जब राजा के सात घोड़ो को बाँटना था ।मन्त्री ने बहुत सोचने के बाद उनसे पूछ कर उसमें एक अपना घोड़ा मिला दिया । अब उसका आधा 4 घोड़े बड़े पुत्र को, उसका आधा 2 घोड़े मँझले पुत्र को और उसका आधा 1 घोड़े छोटे पुत्र को देकर बाकी बचा हुआ अपना घोड़ा उसने रख लिया ।
शिक्षा – बुद्घिमता से ही समस्याएं सुलझ सकती है ।