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Author Topic: हम और हमारे कर्म  (Read 85610 times)

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Offline ShAivI

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  • बाबा मुझे अपने ह्र्दय से लगा लो, अपने पास बुला लो।
हम और हमारे कर्म
« on: January 28, 2018, 09:46:22 AM »
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  • ॐ साईं राम !!!

    हम और  हमारे कर्म

    एक व्यक्ति था उसके तीन मित्र थे।

    एक मित्र ऐसा था जो सदैव साथ देता था। एक पल, एक क्षण भी बिछुड़ता नहीं था।

    दूसरा मित्र ऐसा था जो सुबह शाम मिलता।

    और तीसरा मित्र ऐसा था जो बहुत दिनों में जब तब मिलता।

    एक दिन कुछ ऐसा हुआ की उस व्यक्ति को अदालत में जाना था किसी कार्यवश
    और किसी को गवाह बनाकर साथ ले जाना था।

    अब वह व्यक्ति अपने सब से पहले अपने उस मित्र के पास गया जो सदैव उसका साथ
    देता था और बोला :- "मित्र क्या तुम मेरे साथ अदालत में गवाह बनकर चल सकते हो ?

    वह मित्र बोला :- माफ़ करो दोस्त, मुझे तो आज फुर्सत ही नहीं।

    उस व्यक्ति ने सोचा कि यह मित्र मेरा हमेशा साथ देता था।
    आज मुसीबत के समय पर इसने मुझे इंकार कर दिया।

    अब दूसरे मित्र की मुझे क्या आशा है।

    फिर भी हिम्मत रखकर दूसरे मित्र के पास गया जो सुबह शाम मिलता था,
    और अपनी समस्या सुनाई।

    दूसरे मित्र ने कहा कि :- मेरी एक शर्त है कि में सिर्फ अदालत के दरवाजे तक जाऊँगा,
    अन्दर तक नहीं।

    वह बोला कि :- बाहर के लिये तो मै ही बहुत हूँ मुझे तो अन्दर के लिये गवाह चाहिए।

    फिर वह थक हारकर अपने तीसरे मित्र के पास गया जो बहुत दिनों में मिलता था,
    और अपनी समस्या सुनाई।

    तीसरा मित्र उसकी समस्या सुनकर तुरन्त उसके साथ चल दिया।

    अब आप सोच रहे होँगे कि वो तीन मित्र कौन है...?

    तो चलिये हम आपको बताते है इस कथा का सार।

    जैसे हमने तीन मित्रों की बात सुनी वैसे हर व्यक्ति के तीन मित्र होते है।

    सब से पहला मित्र है हमारा अपना 'शरीर' हम जहा भी जायेंगे, शरीर रुपी पहला मित्र
    हमारे साथ चलता है। एक पल, एक क्षण भी हमसे दूर नहीं होता।

    दूसरा मित्र है शरीर के 'सम्बन्धी' जैसे :- माता - पिता, भाई - बहन, मामा -चाचा इत्यादि
    जिनके साथ रहते हैं, जो सुबह - दोपहर शाम मिलते है।

    और तीसरा मित्र है :- हमारे 'कर्म' जो सदा ही साथ जाते है।

    अब आप सोचिये कि आत्मा जब शरीर छोड़कर धर्मराज की अदालत में जाती है, उस समय शरीर रूपी
    पहला मित्र एक कदम भी आगे चलकर साथ नहीं देता। जैसे कि उस पहले मित्र ने साथ नहीं दिया।

    दूसरा मित्र - सम्बन्धी श्मशान घाट तक यानी अदालत के दरवाजे तक राम नाम सत्य है
    कहते हुए जाते है। तथा वहाँ से फिर वापिस लौट जाते है।

    और तीसरा मित्र आपके कर्म है।

    कर्म जो सदा ही साथ जाते है चाहे अच्छे हो या बुरे।

    अगर हमारे कर्म सदा हमारे साथ चलते है तो हमको अपने कर्म पर ध्यान देना होगा अगर
    हम अच्छे कर्म करेंगे तो किसी भी अदालत में जाने की जरुरत नहीं होगी।




    ॐ साईं राम, श्री साईं राम, जय जय साईं राम !!!

    JAI SAI RAM !!!

     


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