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Author Topic: Spiritual Blossoms  (Read 72332 times)

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Offline Ramesh Ramnani

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Re: Spiritual Blossoms
« Reply #90 on: February 25, 2007, 12:10:45 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    सफलता में प्रसन्नता अहम 
     
    नए लोगों से मिलने में थोड़ी झिझक, शर्म या संकोच महसूस होना स्वाभाविक माना जाता है पर कई लोगों में अस्वाभाविक रूप से शर्माने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है जिसका असर निगेटिव होता है। इस प्रवृत्ति के कारण व्यक्ति खुद को अलग-थलग व अकेला पाता है, जिससे कुंठा व निराशा उत्पन्न होती है। ऐसा व्यक्ति कई मामलों में उचित कदम नहीं उठा पाता। न तो वह नए दोस्त बना पाता है और न ही अपने पेशेवर जीवन में अपनी भूमिका को ही ठीक से निभा पाता है।

    शर्मीले लोग खुद को लेकर कुछ ज्यादा ही सचेत रहते हैं। उनके मन में भय एवं बेचैनी होती है जिससे वे स्वयं को स्वाभाविक तरीके से पेश नहीं कर पाते। उन्हें भ्रम होता है कि सबकी नजरें उन्हीं पर टिकी हैं। लोगों से नजरें मिलाने और ठीक तरह से अपनी बात कह पाने में उन्हें काफी मुश्किल होती है। थोड़े प्रयास और आत्मविश्वास के सहारे इस आदत से छुटकारा पाया जा सकता है। इस  सके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

    कहीं भी जाना हो, किसी से भी मिलना हो, मन से घबराहट और बेचैनी को निकाल दें। अगर हमें पता है कि बेचैनी और घबराहट हमारा नुकसान करती है तो हम इन्हें अपने पास फटकने ही क्यों दें। मन में कल्पना कर खुद को उन स्थितियों में रखें जहां झिझक या शर्म महसूस हो सकती है। फिर कल्पना में ही खुद को ऐसे पेश करें जैसाकि आप चाहते हैं। इस वास्तविक स्थितियों में सहजता से पेश आना संभव हो सकेगा।

    नकारात्मक विचार मन में बिल्कुल न आने दें। कोई क्या कहेगा, क्या सोचेगा जैसे प्रश्नों को लेकर तब तक चिंतित होने की जरूरत नहीं है जब तक कि आप कुछ गलत या अनैतिक न कर रहे हों। असफलता के भय को मन से निकाल दें। अपनी तुलना दूसरे लोगों से करने की बजाय अपना खुद का व्यक्तित्व बनाने पर ध्यान दें। सभी लोगों को आप बेशक न खुश रख सकें पर खुद को जरूर खुश रख सकते हैं और ऐसा तभी होगा जब स्वयं को औरों से हीन नहीं मानेंगे।

    इस दौरान बाबा सांई के सिखाये पाठ आत्मविश्वास का दामन कभी न छोड़ें। ध्यान रखें कि आपके चलने, उठने-बैठने, बात करने के तरीके में आत्मविश्वास झलके। लोगों से नजरें मिलाकर बात करें। आपके आत्मविश्वास का अंदाज आपकी बॉडी लैंग्वेज से ही प्रकट होगा। गलती की आशंका से कोई काम करने से घबराएं नहीं। जरूरी नहीं कि जीवन में आपका प्रत्येक निर्णय सही ही साबित हो। गलतियों से सबक लें और कोशिश करें कि उन्हें भविष्य में न दुहराएं। शर्मीलापन एक समस्या जरूर है पर इससे छुटकारा पाना मुश्किल नहीं है। साहस और आत्मविश्वास से शर्मीलेपन पर विजय पाई जा सकती है। आज की दुनिया में स्पष्टवादी, दृढ़निश्चयी एवं आत्मविश्वासी होना बेहद जरूरी हो गया है तभी आप चुनौतियों का सामना कर सकेंगे और अपनी क्षमताओं का पूरा लाभ उठा पाएंगे। शर्मीलेपन को प्रगति की राह का रोड़ा कतई न बनने दें।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #91 on: February 25, 2007, 07:19:04 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    डरना जीवन से
     
    मृत्यु को अंतिम सत्य कहा गया है। मगर वह क्या सचमुच अंतिम सत्य है? जन्म लेने के बाद से हम जीवन को ही हमेशा जान रहे होते हैं, उसी के बीच हंसते-रोते हैं, वह सतत हमारे साथ बना रहता है। घोर बीमारी में भी, मृत्यु की दहलीज पर कदम रखने से एक क्षण पहले तक हम जीवन की गोद में ही होते हैं। जीवन कई बरसों का होता है और मृत्यु क्षणिक। तो सालों का सान्निध्य जुदाई के एक क्षण से बड़ा कैसे हो सकता है? इसीलिए जो लोग मृत्यु से खौफ नहीं खाते, वही दरअसल जीवन को ज्यादा भरपूर जीते हैं। मृत्यु से घबराने वाले जीवन से भी घबराए रहते हैं। वे जीवन को मृत्यु तक का सफर समझने की भूल कर बैठते हैं। यह ऐसा ही है जैसे कोई दुश्मनों के डर से अपने घर का दरवाजा बंद कर ले। ठीक है, ऐसा करने से दुश्मन को हम अपने घर में घुसने से रोक देंगे, मगर इसका क्या कि तब दोस्त भी हमारे घर न आ सकेंगे। इसलिये आइये अपनी समझ का दरवाज़ा खुला रखिये अपने परम् मित्र बाबा सांई के लिये, बाबा सांई अगर धर में विराजमान हो गये तो मौत का खौफ हमेशा के लिये जाता रहेगा।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

    Offline Ramesh Ramnani

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #92 on: February 28, 2007, 04:24:04 AM »
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  • प्रेम और भक्ति में हिसाब  

    एक पहुंचे हए सन्यासी का एक शिष्य था, जब भी किसी मंत्र का जाप करने बैठता तो संख्या को खड़िया से दीवार पर लिखता जाता। किसी दिन वह लाख तक की संख्या छू लेता किसी दिन हज़ारों में सीमित हो जाता। उसके गुरु उसका तह कर्म नित्य देखते और मुस्कुरा देते।

    एक दिन वे उसे पास के शहर मे भिक्षा मांगने ले गये। जभ वे थक गये तो लौटते मे एक बरगद की छांव बैठे,  उसके सामने एक युवा दूधबाली दूध बेच रही थी, जो आता उसे बर्तन में नाप कर देती और गिनकर पैसे रखवाती। वे दोनों ध्यान से उसे देख रहे थे। तभी एक आकर्षक युवक आया और दूधवाली के सामने अपना बर्तन फैला दिया,  दूधबाली मुस्कुराई और बिना मापे बहुत सारा दूध उस युवक के बर्तन मे डाल दिया, पैसे भी नहीं लिये। गुरु मुस्कुरा दिये,  शिष्य हतप्रभ।

    उन दोनों के जाने के बाद, वे दोनों भी उठे और अपनी राह चल पड़े। चलते चलते शिष्य ने दूधबाली के व्यवहार पर अपने जिज्ञासा प्रकट की तो गुरु ने उत्तर दिया, "प्रेम वत्स, प्रेम! यह प्रेम है, और प्रेम मे हिसाब कैसा?  उसी प्रकार भक्ति भी प्रेम है, जिससे आप अनन्य प्रेम करते हो, उसके स्मरण मे हिसाब किताब कैसा?"  और गुरु वैसे ही मुस्कुराये व्यंग्य से।

    "समझ गया गुरुवर। मैं समझ गया प्रेम और भक्ति के इस दर्शन को।
     


    मेरा साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा मेरा साँई

    जय सांई राम।।।
     

     
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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #93 on: March 01, 2007, 02:38:50 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    दुखी व्यक्ति को सुखी बना देना किसी के हाथ की बात नहीं है पर उसका दुख दूर करने का प्रयत्न करना तो हमारे हाथ की बात है। ऐसा करने से अंत: करण शुद्ध होता है और शांति मिलती है। गरीब सांई राम रसायन पीजिए, यौह गौसर यौह दाव, फिर पीछे पछितायगा, चला चली होई जाव अर्थात मनुष्य जन्म में यह शुभ अवसर प्राप्त हुआ है फिर ऐसा दाव कभी प्राप्त नहीं होगा। इस समय का सदुपयोग कर अर्थात इस जन्म में सांई राम रूपी रसायन का सेवन कर,  अब समय तेरे पास है। जब समय बीत जाएगा तुझे काल बाली बुलावा आ जाएगा, फिर तुझे पछताना पड़ेगा। हीरे जैसा अनमोल जन्म पाकर ऐसा कर्म न कर जिसके कारण अंत समय तुझे पछताना पड़े, फिर पछताने से कुछ लाभ नहीं होगा।

    सदा सुख की इच्छा रखना ही मनुष्य जीवन पाने का उद्देश्य नहीं है। इस अनमोल जीवन के सामने तो स्वर्ग का सुख भी कुछ नहीं है। मनुष्य को अगर स्वर्ग का सुख भी प्राप्त हो तो भी जीवन की सार्थकता नहीं है। सार्थकता तो केवल सांई परम् तत्व को प्राप्त करने में है त्याग और सेवा में है। त्याग अर्थात प्राप्त सुख का भोग स्वयं न करके उससे दूसरों को सुखी करना। सेवा अर्थात दूसरों को दुखी देखकर स्वयं दुखी हो जाना और यथा संभव उसे सुखी करने का प्रयत्न करना। सेवा और त्याग दोनों मनुष्यों का कल्याण करने वाले साधन है। दूसरे को दुखी देखकर दुख और सुख देखकर सुख का अनुभव करना यह संतों के लक्षण है।


    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #94 on: March 01, 2007, 03:11:04 PM »
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  • जय सांई राम

    कबीर दास कहते हैं:

    सुखिया सब संसार है खावै अरु सोवै।
    दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै।।
    Om Sai Ram !

    -Anju

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #95 on: March 02, 2007, 12:00:48 AM »
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  • जय सांई राम।।।

    हर श्वास में हो ईश्वर का ध्यान

    मनुष्य को हर सांस के साथ बाबा सांई का सुमिरन करते रहना चाहिए। किसी भी सांस को व्यर्थ करना मनुष्य के लिए उचित नहीं है क्योंकि न जाने कब सांस का आना जाना बंद हो जाए और यह जीवन लीला समाप्त हो जाए। अत: हर सांस व हर पल का प्रयोग बाबा का सुमिरन कर मानव को अपना जीवन सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए।

    जप-तप व संयम साधना ये सभी सुमिरन के अंदर ही आ जाते हैं। इस रहस्य को भक्त जन ही समझ सकते हैं कि सुमिरन के बराबर कुछ नहीं है अर्थात जप-तप और संयम के साधक भी सुमिरन का आधार किसी न किसी रूप में प्राप्त कर ही लेते हैं। परन्तु सुमिरन भक्त तो केवल सुमिरन में ही सभी सुख मानता है। प्रेम तो अनमोल है। इसका मूल्य कौन चुका सकता है। इस भाव को ध्यान में रखते हुए कबीर जी कहते हैं कि हमने प्रेम को बकते हुए सुना है परन्तु उसके बदले शीश काटकर देना पड़ता है। ऐसे में पूछताछ करने में विलम्ब न करो यह तो सस्ता ही है उसी क्षण शीश काटकर मोल चुका दो। जब तक हृदय में प्रेम न हो तब तक धैर्य नहीं होता और जब तक जीवन में विरह की व्याकुलता न हो तब तक वैराग्य नहीं होता कोई चाहे कितने भी यत्न कर ले इसी प्रकार बिना सदगरु के मन और हृदय के मैले दाग दूर नहीं हो सकते। काम,  क्रोध,  मद,  लोभ-मोह एवं अन्य दुष्ट विचारों पर काबू पाना ही मानव  का पहला कर्तव्य है क्योंकि इनके अधीन होने पर मानव वहशी हो जाता है। उदाहरणार्थ जब आपके अंदर जब क्रोध आता है और अगर आपके नाखून लंबे-लंबे होते हैं तो आप डंडे की ओर न जाकर के नाखूनों से ही काम लेते हैं। वास्तव में क्रोध आने पर मानव इंसानियत को भूल जाता है और वह जानवरों से बदतर व्यवहार करने लग जाता है। इसीलिए संतों ने काम,  क्रोध, मोह व लोभ आदि के त्याग के लिए कहा है क्योंकि मानव में जब इन दुर्गुणों का समावेश होता है तो उसके अंदर गंदे विचार जन्म लेते है और उसका व्यवहार पशुवत होता जाता है। काम,  क्रोध,  मोह,  लोभ और अहंकार आदि अवगुणों के त्याग में ही मानव हित निहित हैं। 
       
           
    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई


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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #96 on: March 05, 2007, 10:48:05 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    एक बार ईसा मसीह अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक जगह कई गड्ढे देखकर एक शिष्य ने उनके बारे में पूछा। ईसा मसीह बोले, 'किसी ने इन गड्ढों को पानी की खोज में खोदा है। एक गड्ढे में पानी नहीं मिलने पर दूसरा और दूसरे में नहीं मिलने पर तीसरा। इसी तरह इतने गड्ढे खोदने पर भी उसे पानी नहीं मिला और वह थक-हारकर बैठ गया। उस आदमी में धैर्य नहीं था। उसने इतने गड्ढे खोदने में जितनी मेहनत लगाई, अगर उतनी मेहनत एक ही गड्ढे में लगाता तो उसे अवश्य पानी मिलता। मनुष्य को चाहिए कि वह कोई भी काम तन-मन-धन से करने के साथ थोड़ा धैर्य भी रखे तो उसे परिश्रम का फल अवश्य मिलेगा।'
     

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #97 on: March 06, 2007, 10:55:11 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    अतीत की याद
     
    किसी गांव में एक पुजारी रहता था। पूजा-पाठ से उसके घर का खर्च चलता था। लेकिन कुछ समय से उसकी जजमानी कम होने लगी थी क्योंकि गांव के ज्यादातर लोग शहर में नौकरी करने चले गए। जब घर का खर्च चलना कठिन हो गया तो एक दिन पुजारी ने भी शहर का रुख किया। वहां एक सेठ ने उसे अपना मुनीम बना लिया। सेठ के यहां पहले से दो और मुनीम काम कर रहे थे। पुजारी की ईमानदारी से प्रभावित होकर सेठ ने पुजारी को प्रधान मुनीम बना दिया। यह दूसरे मुनीमों को अच्छा नहीं लगा। वे पुजारी के खिलाफ षडयंत्र रचने लगे।

    पुजारी रोज शाम को घर लौटने पर एक घंटा अपने कमरे में बंद रहता था। इस दौरान वह किसी को अंदर नहीं आने देता था। इसकी जानकारी जब दूसरे मुनीमों को हुई तो उन्हें लगा कि जरूर दाल में कुछ काला है। एक दिन उन्होंने सेठ से कहा, 'सेठ जी, हम लोगों ने पुजारी को कमरे में बंद होकर रुपये गिनते देखा है।' पहले तो सेठ को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ लेकिन बार-बार यही शिकायत मिलने पर सेठ को भी शक हुआ। एक दिन दोनों मुनीमों को साथ लेकर शाम के समय सेठ पुजारी के कमरे पर पहुंचा। कमरा अंदर से बंद था।

    सेठ ने आवाज दी लेकिन कमरा नहीं खुला। अंत में सेठ के कहने पर धक्का देकर किवाड़ खोला गया। सब लोगों ने अंदर पहुंचकर देखा कि पुजारी कमरे में ट्रंक खोल कर बैठा था। उसमें कुछ कपड़े और थोड़े पैसे थे। फर्श पर पुस्तकें पड़ी थीं। अगरबत्ती जल रही थी। सेठ सब कुछ समझ गया। उसने अपने पुराने मुनीमों को नौकरी से निकाल देने का आदेश सुनाया।

    पुजारी बोला, 'इनका कोई दोष नहीं है। यह तो आपके कान का दोष है कि आप शिकायत की जांच किए बगैर यहां आ गए। मैं कमरे में बंद होकर अपने अतीत को याद कर लेता हूं और बाबा सांई से प्रार्थना करता हूं कि मेरे अंदर गलत भाव पैदा न होने दें। जो अपने अतीत को बिसरा देता है, वही गलत रास्ते पर चलता है।'

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #98 on: March 08, 2007, 12:12:51 AM »
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    राजवैद्य चरक औषधियों की खोज में घूम रहे थे। उनकी नजर खेत में खिले एक सुंदर फूल पर पड़ी। इसके पूर्व वह हजारों फूलों की जांच कर चुके थे, पर यह उनसे अलग था। वह फूल लेना चाहते थे, पर कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे। उनके शिष्य ने कहा, 'गुरुदेव, आज्ञा दें तो मैं फूल ले आऊं।'

    ' फूल तो चाहिए, मगर खेत के मालिक की आज्ञा के बिना तोड़ना चोरी है।' शिष्य बोला, 'यदि कोई वस्तु किसी के काम की हो तो उसे लेना चोरी है, पर यह फूल तो इस खेत के मालिक के किसी काम का नहीं है। उसे लेने में क्या हर्ज है। आपको तो राज्य की ओर से आदेश मिला हुआ है कि आप जहां से चाहें, वनस्पति ले सकते हैं।'

    चरक ने कहा, 'राजाज्ञा और नैतिक जीवन में भेद है। यदि हम अपने आश्रितों की संपत्ति को स्वच्छन्द रूप से व्यवहार में लाएंगे तो लोगों में नैतिक आदर्श किस प्रकार जागृत हो सकेगा।' चरक तीन मील चलकर किसान के घर पहुंचे और उसकी आज्ञा प्राप्त कर फूल लिया।


    अपना सांई सबका सांई - माँ समान है मेरा सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #99 on: March 08, 2007, 09:15:08 AM »
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  • Jai Sai Ram.

    Vasudeva Sutam Devam, Kansa Chaanura Mardanam
    Devaki Paramaa Nandam, Krushnam Vande Jagad-Gurum

    Tvameva Maataa Cha Pitaa Tvameva
    Tvameva Bandhush-Cha Sakhaa Tvameva
    Tvameva Vidyaa Dravinan Tvameva
    Tvameva Sarvam Mama Deva Deva
    Om Sai Ram !

    -Anju

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #100 on: March 09, 2007, 11:16:00 AM »
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  • Jai Sai Ram.

    When you are born, you are not born with garlands and necklaces. You have no pearls or diamonds... no golden ornaments. But around your neck hangs the garland of your past Karma (actions) and acquired “samskaras” (subtle impressions). When you die you do not take anything with you except the consequences of your good and evil actions. You are always decked with the invisible garland of your inexorable Karma, which pursues and burdens you. This burden of Karma can be lightened by God’s grace and your own realization of the oneness of your soul with the universal soul. Karma can be destroyed by Karma alone.

    All the pains and pleasures man experiences are the results of his own actions
    and not due to any act of the Divine.
    Om Sai Ram !

    -Anju

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #101 on: March 09, 2007, 09:57:55 PM »
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    आत्मविश्वास
     
    एक बार तक्षशिला पर उसके पड़ोसी राज्य ने आक्रमण कर दिया। शत्रु की सेना को देख सेनापति की हिम्मत टूट गई, उसने तक्षशिला नरेश से कहा, 'राजन, शत्रु की सेना विशाल है, उससे संधि कर लेना ही उचित रहेगा।' राजा चिंतित हो उठे। तक्षशिला के एक संत को जब पता चला तो वह राजा के पास पहुंचकर बोले,' सेनापति को निकाल बाहर किया जाए। मैं सेना का नेतृत्व करूंगा।' राजा असमंजस में पड़ गए, पर चूंकि संत के परामर्श समय-समय पर उनके लिए लाभकारी सिद्ध हो चुके थे, इसलिए उन्होंने सेना का नेतृत्व उन्हें सौंप दिया। शत्रु सेना का पड़ाव थोड़ी दूर था। मार्ग में एक मंदिर था।

    संत ने कहा, 'पहले देवता से पूछ लेना चाहिए कि विजय किसकी होगी।' सेना के समक्ष मंदिर के प्रांगण में एक सिक्का उछालते हुए संत ने कहा, 'यदि सिक्का पट गिरता है तो विजयश्री हमें हासिल होगी।' संयोग से सिक्का पट गिरा। दैवी कृपा अनुकूल जानकर तक्षशिला के सिपाही जी-जान लगाकर लड़े और जीत गए। सैनिकों ने संत से कहा, 'यह सब दैवीय कृपा का प्रतिफल है।' संत मुस्कराए। उन्होंने सिक्का दिखाया। सिक्के के दोनों ओर एक ही आकृति थी। वह बोले, 'यह सब आत्मविश्वास का प्रतिफल है, जो पहले सोया हुआ था। जब वह जग पड़ा तो विजयश्री उसकी चेरी बन गई।'

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #102 on: March 12, 2007, 08:16:03 PM »
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    तुकाराम का स्नेह
     
    संत तुकाराम हर रोज शाम को अपने घर कीर्तन किया करते थे। एक आदमी उनका कीर्तन सुनने नित्य आता था, पर उनसे कुछ द्वेष भी रखता था। प्रभु के सच्चे भक्त के रूप में उन्हें आसपास के लोगों में जो आदर मिलता था, उससे उसे चिढ़ होती थी और वह मन ही मन उन्हें किसी तरह नीचा दिखाने की ताक में रहता था। एक दिन तुकाराम की गाय उसके बाग में घुस कर कुछ पौधे चर गई और बाग भी उजाड़ दिया। वह व्यक्ति तुकाराम को गालियाँ देने लगा, पर संत तुकाराम चुपचाप सुनते रहे। इससे उसे और क्रोध आ गया। अंत में उसने एक डंडा उठाया और तड़ातड़ तुकाराम की पिटाई करने लगा। इस पर भी तुकाराम ने न तो क्रोध किया और न ही उसे कुछ कहा। शाम को वह व्यक्ति रोजाना की तरह जब कीर्तन में नहीं आया, तो तुकाराम उसके घर गए और गाय द्वारा किए नुकसान के लिए क्षमा मांग कर कीर्तन में आने का आग्रह किया। इस व्यवहार पर वह व्यक्ति शर्म से पानी-पानी हो गया और माफी मांगते हुए तुकाराम के चरणों में गिर पड़ा।

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #103 on: March 14, 2007, 08:20:33 AM »
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    The Lady And The Basket

    A funny story tells about an old lady who was living in the village. She had never owned nor even been in a car before. One day, she was returning home from the market carrying a big heavy basket on her head, when a rich man riding his car passed by. Kindly, he offered to drive the lady to her home. She thanked him and got into the car with her basket. 

    On the way, the man glanced at the lady in the mirror, still holding her basket over her head. Astonished, he asked her to lay the basket down in the car and rest. The old lady naively replied, "Oh my son, your car is carrying me; this is enough, I should not burden it carrying my basket too!" What an innocently funny response!

    We sometimes do the same with BABA SAI.  Everyday, BABA carries us during the day. Still, we insist on carrying our heavy baskets of worries and fear of the future, for family, kids, spouses, money, jobs, etc...  We are carried by Almighty  BABA's Hands, watched over by Sleepless Eyes and BABA plans our future. Let us then relax and lay down everything in BABA's Hands. The old lady, if she agreed to lay down the basket, would have to carry it again when she returned home. But the beautiful thing about BABA is that once we cast our heavy basket in HIS Hands we do not need to think about it anymore.

    "Delight yourself also in the BABA, and HE shall give you the desires of your heart."

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

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    Re: Spiritual Blossoms
    « Reply #104 on: March 16, 2007, 10:35:10 PM »
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  • जय सांई राम।।।

    कुछ यात्री रेगिस्तान से गुजर रहे थे, तभी डाकुओं के एक गिरोह ने उन पर हमला कर उनका सब कुछ छीन लिया। यात्रियों में एक बारह साल का लड़का भी था। डाकुओं को उसके पास कुछ नहीं मिला। डाकुओं के सरदार ने बालक से पूछा, 'तू अकेला कहां जा रहा है?' बालक बोला, 'मेरी बहनें बीमार हैं, उन्हीं को देखने जा रहा हूं।' सरदार ने पूछा, 'तेरे पास पैसे नहीं हैं?' बालक बोला, 'हैं क्यों नहीं? चलते समय मेरी मां ने सोने की पांच अशर्फियां मेरी कमर में बांध कर छिपा दी थीं। वे मेरे पास हैं।'

    सरदार बोला, 'लेकिन तूने यह बताया क्यों? क्या तुझे इस बात का डर नहीं लगा कि हम उन्हें तुमसे छीन लेंगे?' बालक बोला, 'मेरी मां ने मुझे सिखाया है कि जीवन में कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।' बालक की सत्यनिष्ठा देखकर सरदार का हृदय बदल गया। उसने यात्रियों का लूटा हुआ सारा सामान वापस कर दिया।   

    अपना सांई प्यारा सांई सबसे न्यारा अपना सांई

    ॐ सांई राम।।।
    अपना साँई प्यारा साँई सबसे न्यारा अपना साँई - रमेश रमनानी

     


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