साईं सेविका जी,
सच कहा आपने, कई बार लोग साईं के साथ भी दुकानदार जैसा व्यव्हार करते है . कुछ सो या हज़ार या लाख जप या साईं सतचरित्र के कुछ पठन साईं को दो और बदले में नौकरी, या मनचाहा साथी या स्वास्थ्य या व्यापर में लाभ कुछ भी. पर लोग यह भूल जाते है की वोह किसके साथ सौदा कर रहे है . जिसके नाम का ध्यान ब्रह्माण्ड में निरंतर चलता रहता है . न केवल चेतन बल्कि अवचेतन जैसे वृक्ष, नदिया, पर्वत, सागर भी जिसका निरंतर गुणगान कर रहे हों, उसे हमारे कुछ हज़ार या लाख जपोँ से क्या अंतर पड़ेगा . यह तो ऐसा ही है किसी करोड़पति को १ रुपया देना . लोग भूल जाते है की कर्मो के रोग के इलाज में समय तो लगता ही है, जैसे किसी को गलत खान पान की आदत के कारण रोग हो जाये तो ठीक होने में तो समय लगेगा ही . डॉक्टर को यह तो नहीं कह सकते की तुंरत ठीक कर दो और जितनी चाहे फीस ले लो. इसी तरह कर्मो के फल का रोग भी वक़्त आने से ही ठीक होता है. जाप तो दवाई की तरह है जो ठीक होने में मदद करता है. पर जिस तरह ठीक होने के बाद भी आदते न बदली जाएँ तो रोग फिर लग जाता है , उसी तरह यदि मुराद पूरी होने के बाद भी साईं के नाम से न जुड़े रह सके तो जल्द ही माया फिर से पुरानी गत में ले जाती है और फिर वही सिलसिला चल पड़ता है.
खुशनसीब हैं वोह जिन्होंने साईं से साईं को माँगा,
वरना तो क्या कहें कुछ सिक्को की खनक में खो गए,
कुछ हूरों की चमक में, कुछ महलों की दमक में,
कुछ नाम लेकर रह गए, कुछ दाम लेकर चल दिए .
हर आत्मा को एक दिन परमात्मा में ही विलय होना होता है, सब उसी के अंश है . पर यह तभी संभव हो पाता है जब हिरदय में उस इश्वर के प्रति प्रेम उत्पन हो, और कोई लालसा शेष न रह जाये . तभी तो सब योगों में भक्ति योग को सर्वश्रेस्ट कहा गया है.
साईं सब पर किरपादृष्टि बनाये रखें, सबका जीवन सुख व मंगलमय हो.
ॐ श्री साईं राम !