ॐ साईं राम
साईं तेरे दर पर आई
क्षमा प्राप्ति की आशा ले
पाप कर्म सब माफ कराके
मुक्ति की अभिलाषा ले
अवगुण मेरे अनगिन स्वामी
नख शिख भरे विकार हैं
मोह माया ना मिटती मेरी
चित्त में घर सँसार है
अहँकार के कारण अपना
क्रोध भी जायज़ लगता है
रिश्ते नातों में उलझा के
मन भी मुझको ठगता है
कभी स्वँय न्यायधीश बन जाती
पर के दोष परखती हूँ
शिक्षक बन उपदेश सुनाने
में भी नहीं झिझकती हूँ
मन में 'मैं' के भाव के कारण
खुद को ठीक समझती हूँ
अपने ही चश्में से सारी
दुनिया को मैं तकती हूँ
ईर्ष्या,ढाह,लोभ,मद,मत्सर
जितने अवगुण काया के
सब दिखते मुझे मेरे अँदर
इस सँसारी माया के
इतने अवगुण ओढ़ के स्वामी
कैसे तुझको पाऊँगी
कैसे मैले पैरों से चल
तेरे दर पर आऊँगी
साईं प्रभु जी दीन दयालु
मेरे अवगुण चित्त ना धरो
दुर्गुण दूर करो हे दाता
भक्तन पर उपकार करो
मेरी 'मैं' को मेटो स्वामी
निर्मल कर दो चित्तवन को
मनसा वाचा कर्मणा
शुद्ध करो इस तन मन को
शीश नवा शुभ चरणों में
विनती करती बारम्बार
अधम जीव को तारो बाबा
हाथ थाम लो अपरम्पार
जय साईं राम