करन भाई,
ॐ साईं राम।
करन भाई, मुझे हैरानी हो रही है कि आपने इस मन्दिर के इतने बडे-बडे और विद्वान लोगों के स्थान पर ये सवाल मुझसे पूछा है। करन भाई, मै तो खुद भी अभी जीवन से बहुत कुछ सीख रहा हुँ। रमेश भाई,ताना जी, कविता जी, सुभर्शिनी जी, ये सभी मुझसे ज्यादा जानते है,और ज्ञानी हैं।
लेकिन आपने मुझे जो सम्मान दिया है,उसके लिये धन्यवाद।
करन भाई, मैंने सभी के उत्तर पढे, सभी अपनी-अपनी जगह पर ठीक है,क्योकि सबके अपने-अपने अनुभव एवम् अपना-अपना स्वभाव होता है।
मगर आपका confuion भी जायज है,क्योकि कही न् कही प्रश्न् उलझ गया है-
मूल प्रश्न् यह है कि क्या अपनी इच्छा (या भगवान से की गयी दुआ-wish) दूसरो को बतानी चहिये या नही?क्या बता देने से इच्छा पूरी नही होती है?
भाई,आपके दोस्त ने जो कहा वो एक प्राचीन धरणा है।ऐसा कहा जाता है कि अपनी मांगी हुई दुआ किसी को बतानी नही चाहिये।मगर मै इस बात मे विश्वास् नही कर्ता हुँ।मै निम्मी जी कि इस बात् से सेहमत हुँ कि जो होना है वो होगा ही।
दूसरी बात ये भी है कि क्या इश्वर इस बात से नराज हो जता है कि उस्की बात किसी अन्य व्यक्ति को क्यो बता दी? नही मेरे भाई,इश्वर इस बात की सजा नही दे सकता है।
और बाकी रही बात अन्य बातों को बतने की,तो जीवन मे किसको कैसे दोस्त् मिलते है ये उस पर निर्भर करता है। मगर ये बात बिलकुल् सही है कि हर किसी से दिल् की बात नही की जा सकती है,इसके लिये सही व्यक्ति क चुनाव् करना जरुरी है।
वैसे मेरे भाई, परेशान मत होना जिन्दगी सब कुछ अपने आप सीखा देती है, और् मेरा मानना है कि सीखना भी जीवन से ही चाहिये क्योकि ये सभी को अलग अलग पाठ पढाती है।इसिलिये तो कोई कार का मालिक बनता है और कोई,ड्राइवर।
इसलिये जीवन अपने आप आपको भी सिखा देगा, सही और् गलत।
ॐ साईं राम।